17 मई को तृणमूल कांग्रेस के चार नेताओं की गिरफ्तारी के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कोलकाता में CBI के निजाम पैलेस ऑफिस पहुंची और एजेंसी के अधिकारियों को उन्हें भी गिरफ्तार करने की चुनौती दी. लेकिन शायद वह इस बात से अनजान हो कि एजेंसी 2019 में ही उनसे चिटफंड घोटाले की जांच से संबंधित पूछताछ करने की योजना बना रही थी. आगे फरवरी 2020 में एजेंसी उनके खिलाफ चार्जशीट दायर करना चाहती थी लेकिन एजेंसी के कोलकाता ब्रांच को दिल्ली हेड क्वार्टर से इसकी स्पष्ट इजाजत नहीं मिली.
वरिष्ठ TMC नेता और लोकसभा सांसद सौगत राय ने 'द क्विंट' को बताया कि "मैं इस मुद्दे पर टिप्पणी नहीं कर सकता. मेरे लिए यह सब अफवाह और अटकलबाजी है. उससे भी बढ़कर यह चिटफंड घोटाला दरअसल SEBI,RBI और SFIO जैसे सेंट्रल रेगुलेटरी अथॉरिटी की नाकामी थी. फाइनेंस पर स्टैंडिंग कमिटी ने भी अपनी रिपोर्ट में सेंट्रल रेगुलेटरी अथॉरिटी की तरफ से चूक की बात कही है. जहां तक नारदा केस की बात है तो CBI के पास मजबूत केस ही नहीं है क्योंकि एजेंसी पब्लिक सर्वेंट के खिलाफ भ्रष्टाचार का केस बनाने के लिए मनी ट्रांसफर साबित नहीं कर पाई है."
यह स्टोरी CBI के कोलकाता ब्रांच और दिल्ली हेडक्वार्टर के बीच फाइल मूवमेंट के डिटेल्स और इस संबंध में गुप्त निर्णय की जानकारी रखने वाले ऑफिसर के इनपुट के आधार पर तैयार की गई है. CBI को भेजी गई विस्तृत प्रश्नों की सूची पर अब तक हमे कोई जवाब नहीं मिला है.
2019 में CBI के कोलकाता ब्रांच द्वारा ममता बनर्जी से विस्तृत पूछताछ का क्या हुआ?
लगातार तीसरी बार विधानसभा चुनावों में बड़ी जीत दर्ज करने वाली ममता बनर्जी से चिटफंड घोटाले में पूछताछ के मुद्दे पर पहली चर्चा CBI के कोलकाता ब्रांच में जून 2019 में हुई. इस वाकये से संबंधित एक अधिकारी ने द क्विंट को बताया कि "इन्वेस्टिगेशन टीम इस बात को लेकर आश्वस्त थी कि उनके पास मुख्यमंत्री से इस संबंध में पूछताछ के लिए पर्याप्त ऑन रिकॉर्ड मटेरियल था. इसलिए कोलकाता ब्रांच ने ममता बनर्जी से पूछताछ करने की इजाजत दिल्ली स्थित CBI हेडक्वार्टर से मांगी, क्योंकि यह केस CBI चीफ के स्तर पर मॉनिटर किया जा रहा था."
अधिकारी ने बताया कि हेडक्वार्टर से त्वरित इजाजत की उम्मीद में ब्रांच ने ममता बनर्जी से पूछताछ के लिए प्रश्नों की सूची तैयार कर ली थी ,जिसमें लगभग 150 प्रश्न थे. लेकिन दिसंबर 2019 तक हेडक्वार्टर से इस संबंध में कोई जवाब नहीं आया और जब जवाब आया तो उसने इन्वेस्टिगेशन टीम को थोड़ा कंफ्यूज कर दिया. अपने जवाब में तब के CBI डायरेक्टर ऋषि कुमार शुक्ला ने इन्वेस्टिगेशन टीम को जांच जारी रखने और 'फाइनलाइज' करने को कहा.
कोलकाता ब्रांच के इंवेस्टिगेशन टीम ने हेडक्वार्टर के इस निर्देश का पालन करने का निर्णय लिया और फरवरी 2020 तक जांच 'फाइनलाइज' कर दिया.
बंगाल चिटफंड जांच में हेडक्वार्टर का बदलता निर्देश
अधिकारी ने इस पत्रकार को बताया कि "जांच को 'फाइनलाइज' करने के निर्देश का प्रभावी मतलब था कि आरोपी पर मुकदमा चलाने के लिए आवश्यक कई सबूतों को नजरअंदाज कर दिया जाए."
" जांच को पूरा करते हुए कोलकाता ब्रांच ने इस बार ममता बनर्जी पर दूसरों के साथ कम से कम एक चिटफंड घोटाले में मुकदमा चलाने की इजाजत मांगी. लेकिन इस बार भी हेडक्वार्टर की तरफ से तुरंत कोई जवाब नहीं आया, बल्कि इस बार हेड क्वार्टर की तरफ से जवाब देने में और देरी की गई. कोलकाता ब्रांच को अपने रिक्वेस्ट पर जवाब दिसंबर 2020 में मिला ,जब इस रिक्वेस्ट का मूल्यांकन एजेंसी के लॉ ऑफिसर से करा लिया गया. लॉ ऑफिसर की सहमति से डायरेक्टर ने कोलकाता ब्रांच को नए ऑन रिकॉर्ड सबूतों के मद्देनजर मुख्यमंत्री से पूछताछ का निर्देश दिया. लेकिन यह आश्चर्यजनक था. क्योंकि कोलकाता ब्रांच ने मुख्यमंत्री से पूछताछ करने की इजाजत 1 साल पहले मांगी थी और उस समय उसे जांच को 'फाइनलाइज' करने का निर्देश दिया गया था. अब उसने हेडक्वार्टर के निर्देश का पालन करते हुए जांच को 'फाइनलाइज' करके मुख्यमंत्री पर चार्जशीट दायर करने की इजाजत मांगी थी. हेड क्वार्टर के इस जवाब ने कोलकाता ब्रांच के 10 महीने की मेहनत पर अड़ंगा लगा दिया."
CBI की जांच में वर्तमान गतिरोध
जब द क्विंट ने उनसे टेलीफोन पर बात करने की कोशिश की तो तब के CBI चीफ ऋषि कुमार शुक्ला, जो फरवरी 2021 में रिटायर हो गए ,ने इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया . CBI चीफ की तरफ से नए निर्देशों के बाद केस में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई क्योंकि राज्य में चुनाव चल रहा था. अब जब चुनाव खत्म हो गया है और ममता बनर्जी फिर से कुर्सी पर विराजमान हैं तब निर्णय लेने के लिए कोई रेगुलर CBI चीफ नहीं है .ऋषि शुक्ला के रिटायर होने के बाद 1988 बैच के गुजरात कैडर के आईपीएस ऑफिसर प्रवीण सिन्हा को कार्यवाहक डायरेक्टर बनाया गया है.
प्रधानमंत्री, लोकसभा के विपक्षी दल का नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश की सदस्यता वाली हाई प्रोफाइल कमिटी ने 24 मई को नयी सीबीआई चीफ के नाम पर निर्णय लेने के लिए बैठक की.
शारदा ग्रुप और रोज वैली स्कैम
शारदा और रोज वैली जैसे पोंजी कंपनियों ने पश्चिम बंगाल और देश के दूसरे भागों में आम नागरिकों से अवैध रूप से पैसा इकट्ठा किया था. इन कंपनियों के खिलाफ काफी शिकायतों के बावजूद शुरुआत में कोई कानूनी मामला दर्ज नहीं किया गया. अप्रैल 2013 में शारदा ग्रुप के मुख्य प्रमोटर सुदिप्ता सेन और देबजानी मुखर्जी कोलकाता से फरार हुए और आखिरकार 22 अप्रैल 2013 को जम्मू-कश्मीर के सोनमर्ग से गिरफ्तार किए गए .
अप्रैल 2013 में कोलकाता हाई कोर्ट में इस मामले में CBI जांच के लिए जनहित याचिका दायर की गई. याचिका में यह आरोप लगाया गया कि सुदिप्ता सेन पश्चिम बंगाल के सत्ताधारी पार्टी के कई नेताओं के साथ नजर आए हैं, जिन्होंने उसके फरार होने के बाद अपने आपको उससे दूर कर लिया था. याचिका में यह आरोप था कि इस स्कैम से जुड़े लोगों को बचाने के प्रयास में अथॉरिटी धीमी गति से कार्यवाही कर रही है. 16 अप्रैल 2013 को शारदा ग्रुप के खिलाफ बिधाननगर पुलिस कमिश्नरेट के अंतर्गत आने वाले इलेक्ट्रॉनिक कॉम्पलेक्स पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज कराया गया, जहां जनवरी 2012 से राजीव कुमार कमिश्नर के तौर पर पोस्टेड थे.
26 अप्रैल 2013 को पश्चिम बंगाल सरकार ने चिटफंड केस की जांच के लिए SIT गठित करने का नोटिफिकेशन जारी किया. राजीव कुमार को SIT का सदस्य बनाया गया, जिन्हें SIT के प्रतिदिन के कार्यों को देखने की जिम्मेदारी दी गई. SIT के ओवरऑल हेड पश्चिम बंगाल डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस थे .लेकिन मई 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने चिटफंड स्कैम से जुड़े पश्चिम बंगाल एवं ओडिशा के विभिन्न पुलिस स्टेशनों में दर्ज मामलों को CBI को ट्रांसफर करने का निर्देश दिया.
बंगाल का पोंजी पिरामिड
एक समय में पश्चिम बंगाल में 270 पोंजी कंपनियां संचालित थीं लेकिन उनमें से दो- शारदा और रोज वैली -CBI के मुताबिक सबसे प्रमुख थी.उन्होंने क्रमश 2450 करोड और 17367 करोड़ रुपए इकट्ठा किए थे.
2012-13 में कोलैप्स होने के पहले शारदा ग्रुप ने अवैध रूप से 805 करोड रुपए इकट्ठा किए थे ,जबकि रोज वैली ने 2012-13 में 4329 करोड़ और 2013-14 में 2536 करोड रुपए इकट्ठा किए थे. 2013-14 में उसका इतना पैसा इकट्ठा करना आश्चर्यजनक था क्योंकि तब तक शारदा स्कैम सबकी नजर में आ चुका था.
CBI ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि रोज वैली ग्रुप ने 2013-14 में भी अवैध रूप से अपना ऑपरेशन जारी रखा था और लोगों के पोंजी कंपनियों के प्रति भारी विरोध के बावजूद उसने 2536 करोड़ रुपए इकट्ठा किए थे. इसका परिणाम हुआ कि पश्चिम बंगाल सरकार को जांच के लिए SIT का गठन करना पड़ा.
( राजेश आहूजा पिछले 20 सालों से पत्रकार हैं. वह न्यू एज सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म-Pixstory के को-फाउंडर भी हैं . उनका ट्विटर हैंडल है @iamrajeshahuja .यह एक ओपिनियन पीस है और यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. द क्विंट का इससे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)