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UP चुनाव: PM मोदी के जलवे और अखिलेश-माया की गलतियों के भरोसे BJP

सट्टा बाजार बता रहे हैं यूपी का हाल

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2014 के लोकसभा चुनाव के बाद के सबसे रोमांचक उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों के आने में हफ्ते भर से कम का समय बचा है. पर प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की मानें तो यूपी के सात चरणों के चुनाव में बीजेपी पांच चरणों में ही जीत हासिल कर चुकी है.

सट्टा बाजार, मीडिया और कयासों के बाजार यूपी में बीजेपी को सबसे बडी पार्टी बता रहे हैं पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती के मुताबिक बहुमत का दावा बीजेपी का माइंड गेम है.

अंतिम दौर के मतदान के लिए बनारस में जमे बीजेपी नेताओं के दावों पर यकीन करें तो बीजेपी यूपी में सत्ता के बेहद करीब है. बीजेपी कैंपेन को संभाल रहे एक बीजेपी महासचिव के मुताबिक पहले दो चरणों में पिछड़ने के बाद बीजेपी बाकी के चरणों में तेज बढत ले चुकी है और पूर्वांचल के कुछ इलाकों में 2014 के लोकसभा चुनाव जैसी मोदी लहर दिख रही है.

बिहार में नीतीश की सफलता की कहानी क्या यूपी में मोदी दोहराने वाले हैं ?


बिहार में नीतीश कुमार की सत्ता वापसी के पीछे एक बडी वजह ईबीसी यानी अति पिछड़ा वर्ग का नीतीश के पक्ष में खुलकर मतदान करना था. नीतीश ने बडी मेहनत से ईबीसी वोटबैंक को तैयार किया था. बीजेपी नेता के मुताबिक अगर यूपी में बीजेपी जीतती है तो जीत का सबसे बडा फैक्टर ईबीसी का बीजेपी के पक्ष में गोलबंद होना हो सकता है .

बीजेपी महासचिव के मुताबिक अखिलेश का कोर वोट बैंक यादव पूरी तरह से सपा के साथ है तो मायावती का जाटव और बीजेपी का सवर्ण उसे खुलकर वोट कर रहा है. पर यूपी में जीत की कहानी एक जाति के वोट करने से नही बन रही है .यूपी जीतने के लिए कम से कम दो जातियों का मिलना जरूरी है और बीजेपी के मुताबिक न अखिलेश को और न मायावती को पूरा मुस्लिम वोट सभी चरणों में एक तरह मिल पाया है .

पहले दो चरण में मुस्लिम वोटरों का रूझान सपा-कांग्रेस गठबंधन की तरफ था तो बाद के चरणों में यह बीएसपी की तरफ शिफ्ट हो गया जिससे त्रिशंकु विधानसभा की संभावना बन सकती है. लेकिन बीजेपी के रणनीतिकारों के मुताबिक सवर्ण के साथ गैर यादव अन्य पिछड़ी जातियां और ईबीसी के गोलबंद होने से बीजेपी सत्ता के नजदीक पहुंचने वाली है.

बीजेपी की कहानी धार्मिक धुव्रीकरण में नही बल्कि जातियों के रिवर्स पोलेराईजेशन में छुपी है

बनारस में कैंप किए मोदी सरकार के एक मंत्री के मुताबिक अगर बीजेपी के सर्वे यूपी में सही साबित होते है तो इसका सेहरा कैराना, मुजफ्फरनगर के पलायन मॉडल की जगह अखिलेश के यादव वोट बैंक के खिलाफ गैर यादव ओबीसी और ईबीसी के विद्रोह को जाएगा.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी ने अखिलेश सरकार में गैर यादव पिछड़ी जातियों की उपेक्षा को हर रैली में प्रमुखता से उठाया. इसके अलावा धानुक, कहार, नोनिंयां, मौर्य जैसी जातियों के नेताओं को संगठन में जगह और टिकटों में हिस्सेदारी देकर उस वर्ग को अपनी ओर खींचने की रणनीति भी काम करती दिखाई दे रही है.

मोदी का जलवा कायम है

बीजेपी के मुताबिक नोटबंदी से प्रधानमंत्री की इमेज पर कोई नाकारात्मक असर नही पडा है और यह मुद्दा चुनाव में बीजेपी को फायदा नही पहुंचा रहा तो नुकसान भी नही पहुंचा रहा. बीजेपी के मुताबिक यह मजबूत ब्रांड इमेज ही है जिसकी वजह से नोटबंदी से तकलीफ उठाए लोग भी पीएम मोदी का साथ छोड़ने को तैयार नहीं है .

कमोबेश उन्होंने पीएम मोदी को ना सिर्फ माफ कर दिया है बल्कि अति पिछड़ी जातियों में इस ‘बोल्ड’ फ़ैसले से प्रधानमंत्री की इमेज और मजबूत हुई है. बीजेपी के रणनीतिकारों के मुताबिक बिहार से उलट यूपी में पीएम ने जनता से संवाद स्थापित करने में ज्यादा कामयाबी हासिल की है और जनता एक बार उन्हें मौका देने को तैयार दिख रही है.

बिहार में लालू-नीतीश के जातीय गठबंधन के कारण चार जातियां यादव, मुस्लिम, कुर्मी और ईबीसी नीतिश के साथ खड़ी थीं. पर यहां अखिलेश के पास डेढ़ जाति समूह यादव और आधा मुस्लिम ही हैं. ऐसे में अखिलेश की गुडविल उन्हें सत्ता तक तभी पहुंचा पाएगी जब उन्हें बाकी जातियों ने भी काम के आधार पर वोट दिया हो .

अखिलेश की कमजोर कड़ी

बीजेपी के मुताबिक पूरे प्रचार में अखिलेश की तीन कमज़ोर कड़ी रहीं. पहली यह कि मुलायम के प्रचार न करने से सपा अपने मजबूत गढ़ इटावा, कन्नौज मैनपुरी में ही कमजोर हो गई. अकेले कैंपेन करते अखिलेश को देखकर मुसलमान भी सशंकित हुए और बाकी के चरणों में वो मायावती की तरफ शिफ्ट हुए.

अखिलेश की दूसरी कमजोर कड़ी यादवों के खिलाफ बाकी ओबीसी जातियों का धुव्रीकरण रहा . यादवों के खिलाफ यह रिवर्स धुव्रीकरण अखिलेश को खासा नुकसान पहुंचा रहा है. बीजेपी के मुताबिक अखिलेश की तीसरी कमजोर कड़ी कानून व्यवस्था पर सरकार का खराब प्रदर्शन रहा जिसके कारण दलित और ओबीसी जातियां अखिलेश के प्रति सहानुभूति रखने के बावजूद मायावती की तरफ शिफ्ट हुईं .

बीजेपी की मानें तो अखिलेश कैंपेन के दौरान प्रधानमंत्री के लगाए गए आरोपों का और तार्किक जबाब दे सकते थे. मसलन कानून व्यवस्था जैसे मसलों पर. बिहार में चुनावी प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री के लगाए आरोपों का जबाब नीतीश रैलियों के साथ-साथ हर दिन शाम में पटना में प्रेस कांफ्रेस कर देते थे .

अखिलेश का ‘काम बोलता है’ का नारा भी डेढ़ महीने के लंबे चुनाव में धीरे धीरे अपनी चमक खोने लगा. उसमें नयापन लाकर उसे और प्रभावी बनाया जा सकता था .

मायावती की गलतियां

मोदी सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री के मुताबिक मायावती ने चुनाव में दो ग़लतियां की . एक तो मुस्लिमों से की गई उनकी जरूरत से ज्यादा मनुहार दलितों के एक वर्ग को अच्छी नही लगी और उन्होने हाथी से किनारा कर लिया . पूर्वांचल में बीएसपी के सवर्ण उम्मीदवारों को दलितों का मिलने वाला वोट बीएसपी के मुस्लिम तुष्टीकरण के कारण कट गया .बहनजी को दूसरा नुकसान नोटबंदी से हुआ . नोटबंदी के कारण मायावती अपने प्रचार को सभी जगहों पर नही पहुंचा पाईं .

पर बीजेपी का ये आत्मविश्वास या माइंड गेम कितना जमीन पर उतरा है इसके लिए हफ़्ते भर इंतज़ार करना पड़ेगा . कहते हैं सौ सुनार की एक लुहार की. तो ईवीएम के बोलने तक सबके दावे और कयासों का बाज़ार चलता ही रहे तो क्या बुरा है ?

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