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तौहीन-ए-रिसालत की सजा पर क्या कहता है कुरान और पैगंबर मोहम्मद का आचरण?

मुस्लिम धर्मगुरू मुसलमानों को रसूल की राह पर चलने को कहते हैं, तो फिर वो खुद रसूल की सुन्नत को क्यों भूल जाते हैं?

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पैग़ंबर मोहम्मद साहब बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा(Nupur Sharma) के विवादित बयान को लेकर देश विदेश में प्रदर्शन हुए. इस दौरान कई जगहों पर पथराव, आगजनी और हिंसा की भी घटनाएं हुई थी. उस दौरान सोशल मीडिया में एक नारा खूब वायरल हुआ 'गुस्ताख़-ए-रसूल की एक सज़ा, सर तन से जुदा, सर तन से जुदा.' तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि कुछ सिरफिरे इसे अमली जामा भी पहना सकते हैं. नूपुर शर्मा तो नहीं लेकिन सोशल मीडिया पर उनका समर्थन करने वाले उदयपुर के कन्हैया लाल का सिर तन से जुदा कर दिया गया. अमरावती में उमेश कोल्हे को बेरहमी से कत्ल कर दिया गया. आरोप है कि इनकी हत्या नुपूर शर्मा का समर्थन करने की वजह से की गई.

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बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और दिल दहला देने वाली इन घटनाओं के बाद अजमेर की मशहूर ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के एक ख़ादिम सलमान चिश्ती का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. इसमें वो नूपुर शर्मा का सिर क़लम करने वाले को अपना मकान इनाम में देने का ऐलान कर रहा है. सलमान अजमेर का हिस्ट्रीशीटर बताया जा रहा है. भले ही अजमेर की दरगाह के ख़ादिमों की कौंसिल ने सलमान के इस बयान से पल्ला झड़ा लिया हो. लेकिन अमरावती और उदयपुर जैसी घटनाओं की पुनरावृति की आशंका बनी हुई है. अजमेर में एक वकील को नूपुर शर्मा का समर्थन करने पर जान से मारने की धमकी मिली हुई है. अमरावती और उदयपुर में भी मारे जाने वालों भी को पहले धमकियां मिली थीं.

मुस्लिम धर्मगुरु और इस्लामी संगठन हैं जिम्मेदार

दरअसल इन हालात के लिए मुस्लिम धर्मगुरू और उनकी रहनुमाई में चल रहे इस्लामी संगठन पूरी तरह जिम्मेदार हैं. उदयपुर की घटना के बाद दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम सैयद अहमद बुखारी से लेकर जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मौलाना अरशद मदनी और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से जुडे कई मौलानाओं ने इसे इस्लाम, कुरआन और इंसानियत के खिलाफ करार दिया. लेकिन ‘सिर तन से जुदा’ का नारा वायरल होते समय इनमें से एक ने भी आगे बढ़कर नहीं कहा इस्लाम में ऐसी कोई सजा नहीं है. ऐसे नारों का कोई मजहबी आधार नहीं है. शायद इन्हें यह गलतफहमी थी की सिर कलम करने के पहले दिए गए तमाम फ़तवों को किसी मुसलमान ने कभी गंभीरता से नहीं लिया. लिहाज़ा कोई मुसलमान इस बार भी ऐसा कुछ नहीं करेगा. लेकिन उदयपुर के मोहम्मद ग़ौस और रियाज़ अत्तारी ने इनकी ये ग़लतफहमी दूर कर दी.

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पाकिस्तान में सलमान तासीर की हुई थी हत्या

मजहबी जुनून में हत्या के मामलों में पाकिस्तान के सलमान तासीर का उदाहरण उल्लेखनीय है. सलमान तासीर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के बड़े नेता थे. वो पंजाब के गवर्नर भी रहे थे. उन्होंने साल 2010 में पाकिस्तान के ईशनिंदा क़ानून के तहत एक ईसाई औरत को हुई सज़ा का कड़ा विरोध किया था. उन्होंने ईशनिंदा कानून को काला क़ानून बताया था. इससे नाराज़ होकर पाकिस्तान के कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों न उनके ख़िलाफ़ मौत का फ़तवा जारी कर दिया था.

4 जनवरी 2011 को उन्हीं के एक सुरक्षाकर्मी मुमताज़ क़ादरी ने अपनी सर्विस गन से उन्हें सरेआम 28 गोलियां मारकर मौत के घाट उतार दिया था. हालांकि क़ादरी को उसके इस अपराध के लिए फांसी दी गई, लेकिन उसे फांसी से बचाने के लिए कट्टरपंथी संगठनों ने सलमान तासीर के परिवार को 'ब्लड मनी' देने की पेशकश की थी. उनके परिवार ने य पेशकश ठुकरा दी थी. पाकिस्तान के कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों के लिए मुमताज क़ादरी एक बड़ा हीरो बन गया. उसके जनाज़े में हजारों लोगों ने शिरकत की थी. रास्ते में जनाज़े पर फूल भी बरसाए गए थे.

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सलमान रुश्दी और तस्लीमा नसरीन के ख़िलाफ़ मौत का फतवा

1990 के दशक में भारतीय मूल के लेखक सलमान रशदी के खिलाफ ईरान के सबसे बड़े धार्मिक नेता अयातुल्ला ख़ुमैनी ने मौत का फ़तवा जारी किया था. यह फतवा उनकी किताब 'द सैटेनिक वर्सेज़' (यानी शैतानी आयतें) को लेकर जारी किया गया था. भारत में भी उनकी इस किताब पर पाबंदी लगाई गई थी. इससे बरसों तक सलमान रश्दी की जान पर ख़तरा बना रहा. इसी दशक में बांग्लादेश की मशहूर लेखिका तस्लीमा नसरीन ने जब 'लज्जा' नामक उपन्यास लिखी तो उनके ख़िलाफ़ भी बांग्लादेश के कट्टरपंथी मौलानाओं की तरफ़ मौत का फ़तवा जारी किया गया. उन्हें बांग्लादेश छोड़कर यूरोपीय देशों में शरण लेनी पड़ी. कोलकाता के एक मौलाना ने भी तस्लीमा नसरीन के खिलाफ मौत

शार्ली एब्दो के ख़िलाफ़ फ़तवा

साल 2006 में फ्रांस की मशहूर पत्रिका 'शार्ली एब्दो' ने पैगंबर मोहम्मद साहब पर एक विवादित कार्टून छापा था. इस पर दुनिया भर में प्रतिक्रिया हुई थी. तब भारत में उत्तर प्रदेश के मेरठ से विधायक और मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली तात्कालीन समाजवादी पार्टी सरकार में मंत्री रहे हाजी याक़ूब क़ुरैशी ने कार्टून छापने वाले का सिर क़लम करने वाले को 51 करोड़ रुपए का इनाम देने का ऐलान किया था. 2015 में कार्टून छापने वाली पत्रिका के दफ्तर पर हमला हुआ. इसमें 12 लोग मारे गए थे. 2020 में पत्रिका ने फिर कार्टून छापा. फ्रांस में ही एक छात्र ने अपने टीचर की इसलिए हत्या कर दी थी कि पढ़ाई के दौरान उन्होंने मोहम्मद साहब का कार्टून दिखाया था.

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जॉर्ज बुश की गर्दन पर 25 करोड़ के इनाम का ऐलान

साल 2006 में ही भारत में बरेली मसलक के मुसलमानों के बड़े नेता मौलाना तौक़ीर रज़ा ने अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश की गर्दन काट कर लाने वाले को 25 करोड़ रुपए का इनाम देने का ऐलान किया था. मौलाना तौक़ीर रजा ने जब ये फ़तवा दिया था तब अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश अपनी पहली आधिकारिक यात्रा पर भारत आए हुए थे. 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान अपने इसी ऐलान के चलते मौलाना तौक़ीर रज़ा को कांग्रेस के साथ गठबंधन से हाथ धोना पड़ा था. उत्तर प्रदेश में इसी साल हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भी मौलाना और कांग्रेस के बीच हुए गठबंधन को उनके इस बयान का ग्रहण लग गया था.

मौलवियों की फतवे अपनी जगह हैं. लेकिन सच्चाई ये है कि इस्लाम में पैग़ंबर की तौहीन करने वालों को मौत की सज़ा की बात नहीं है. बल्कि ऐसे लोगों को अल्लाह की तरफ से माफ करने का हुक्म है. क़ुरान की कई आयतों में पैग़ंबर से उन पर ज़ुल्म करने वालों और उनका मज़ाक उड़ाने वालों को माफ़ करने, जाहिलों के मुंह न लगने और सब्र करने का हुक्म दिया गया है. ऐसी ही कुछ आयते निम्नलिखित हैः

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स्नैपशॉट
  • सूरः आले इमरान (3:186)- ‘तुम अहले किताब और मुशरिकीन से बहुत दुख देने वाली बातें सुनोगे, अगर तुम सब्र करो और परहेज़गारी करो तो यह बड़े हौसले का काम है. ’

  • सूरः अल हिज्र (15:97-98)- ‘बेशक़ मज़ाक़ उड़ाने वालों के लिए हम काफ़ी

    हैं. हमें मालूम है कि जो बातें यह लोग तुम पर बनाते हैं उससे तुम्हारे

    दिल को सदमा होता है.’

  • सूरः अल अम्बिया (21:41) और सूरः अल अनआम (6:10)- ‘’मज़ाक़ तुमसे पहले भी रसूलों का उड़ाया जा चुका है, मगर उनका मज़ाक़ उड़ाने वाले उसी चीज़ के फेर में आकर रहे, जिसका वह मज़ाक़ उड़ाते थे (यानी फिर मज़ाक़ उड़ाने वालों का ही मज़ाक़ बना.)’

  • सूरः अर रअद (13:23)- ‘अपने रब्ब की रज़ा के लिये सब्र करो.’

  • सूरः अर रअद (13:32)- ‘पहले भी रसूलों का मज़ाक़ उड़ाया गया है तो मैंने

    नाफ़रमानों को ढील दी फिर मैंने उनकी पकड़ की. मेरा बदला कैसा था?’

  • सूरः अल अहकाफ (46:35)- ‘तुम सब्र करो, जैसे बहादुर रसूलों ने सब्र किया था और इनके लिये जल्दी ना करो.’

  • सूरः अलआराफ़ (7:199)- ‘तुम इन्हें माफ़ कर दो और लोगों की भलाई के

    कामों को करते रहो और जाहिलों के मुंह मत लगो.’

  • सूरः अत्तौबा (9:61)- ‘जो लोग अल्लाह के रसूल(स) को सताते हैं, उनके

    लिये दर्दनाक अज़ाब है. ’

  • सूरेः अन्नहल (16:126)- ‘अगर तुम दुख दो तो ऐसा ही दुख दो, जैसा तुम्हें

    दुख दिया गया है और अगर तुम सब्र करो तो यह सब्र करने वालों के लिये ही बेहतर है. ’

कुरआन की उपरोक्त आयतों से साफ़ है कि इस्लाम में तौहीन रसूल, या तौहीन—रिसालत की सज़ा किसी भी सूरत में मौत नहीं है. जिस पैग़बंर के नाम पर कुछ कट्टरपंथी और जज़्बाती मुसलमान गला काटने पर आमादा हैं उन्हें पैग़ंबर के चरित्र से भी सीख लेना चाहिए. उनका पूरा जीवन खुद पर जुल्म करने वालों को माफ़ करने के उदाहरणों से भरा पड़ा है.ऐसे कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैः

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एक रवायत के मुताबिक एक यहूदी बूढ़ी औरत रोज़ उनके ऊपर कूड़ा फेंकती थी. एक उनपर कूड़ा नहीं डाला गया तो उन्होंने कुछ दर इंतज़ार किया. वो नहीं आई तो ख़ैरियत के लिए उसके घर चले गए. पता चला कि वो औरत बीमार है तो पैग़ंबर ने उसका हाल चाल पूछा और उसके जल्द सेहतमंद होने की दुआ की.

एक बार पैग़ंबर इस्लामी शिक्षा के प्रचार के लिए मक्का के नजदीक ताईफ शहर गए. वहां के लोगों ने उन पर पथराव करके उन्हें लहूलुहान कर दिया. हदीस में बताया गया है कि फरिश्ते जिब्राईल ने प्रकट होकर कहा ऐ अल्लाह के नबी तुम कहो तो मैं दोनों पहाड़ों को इस तरह मिला दूं कि ज़ालिमों का ये शहर पिसकर रह जाएं. पैग़बंर ने ऐसा करने से मना किया और अल्लाह से उन पर पत्थर फेंकने वालों को सीधा रास्ता दिखाने की दुआ की.

उहद की लड़ाई में मक्का के तत्कालीन सरदार अबू सुफियान की पत्नी हिंदा ने अपने एक ग़ुलाम से पैग़ंबर के चाचा हज़रत हमज़ा को धोखे से क़त्ल करवा दिया था और उनके शरीर से उनका कलेजा निकालकर खाया था. लेकिन मक्का जीतने के बाद पैग़ंबर ने हिंदा और ग़ुलाम दोनों को माफ़ कर दिया था.

पैग़ंबर ने उनके मुक़ाबले पैग़ंबरी का दावा करके आधी ज़मीन पर अपनी हुकूमत का हक़ जताने वाले मुसैलिमा तक का सिर क़लम करने का हुक्म नहीं दिया था.

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हज्जतुल विदा के मौक़े पर अपने आख़िरी खुत्बे (भाषण) में पैग़ंबर ने फरमाया था, ‘जहालत के दौर का सब कुछ मैंने पैरों तले रौंद दिया है. जिहालत के दौर के ख़ून के सारे बदले अब प्रतिबंधित हैं. पहला बदला जिसे मैं प्रतिबंधित क़रार देता हूं, वो मेरे अपने परिवार का है. रबीअतः बिन अल-हारिस के दूध पीते बेटे का खून जिसे बनू हज़ील ने मार डाला था, उसे अब मैं माफ करता हूं. जहालत के दौर का सौदा अब कई हैसियत नहीं रखता. पहला सूद (ब्याज) जिसे मैं छोड़ता हूँ, अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब के परिवार का सूद है, अब ये खत्म हो गया.’

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उपरोक्त उदाहरणों से ये साफ हो गया है कि पैग़ंबर ने कुरआन में दिए गए हुक्म के मुताबिक़ माफ करने की नीति अपनाई. अल्लाह ने कुरआन में खुद को बार-बार माफ करने वाला बताया है. साथ ही कहा है कि माफ करना उसका सबसे अच्छा गुण है. अल्लाह ने नबियों और ईमान वालों से इस गुण को अपनाने का हुक्म दिया है. पैगंवर ने जीवन भर इसी पर अमल किया. मुस्लिम धर्मगुरू खुद को रसूल का वारिस बताते हैं और मुसलमानों को हर बात में रसूल की सुन्नत अपनाने (यानि उनके आचरण को खुद में उतारने) की नसीहत करते हैं. तो फिर तौहीन-ए-रिसालत के मामले में वो खुद रसूल की सुन्नत को क्यों भूल जाते हैं? अहम सवाल ये है कि मुस्लिम धर्मगुरु और उनके संगठन आम मुसलमानों को क्यों नहीं बताते कि तौहीन-ए-रिसलात की सज़ा मौत नहीं बल्कि माफी है. इस मामले में आम मुसलमानों को ख़ुद ही जागरूक होना होगा.

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