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मेट्रो में लड़कियां मोबाइल स्क्रीन पर नहीं इन पन्नों में डूबी हैं!

आपके बैग में क्या है, फोन या कोई किताब?

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रीडर्स खत्म हो रहे हैं- प्रिंट की दुनिया के लिए यह वाक्य सूक्ति बन गया है. यह सही है कि रीडर्स की संख्या लगातार तेजी से घट रही है, लेकिन किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले चिंता करने वालों को कम से कम एक बार मेट्रो में सफर जरूर करना चाहिए. खासकर लेडीज कोच में. रीडर्स हैं और खूब सारे हैं. ऐसे रीडर्स भी हैं जो मोबाइल की स्क्रीन के बजाय किताब के पन्नों में डूबे रहते हैं. यह अलग बात है कि अब किताब पढ़ने वाले लोग कम हैं और जिन लोगों के हाथ में किताब नहीं है वे लोग उन्हें एलियन की तरह देखते हैं.

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वैशाली से द्वारका के रोज के सफर में मैं कई लोगों को उनकी किताब से ही पहचानती हूं. यकीन मानिए रश्मि बंसल की स्टे हंगरी, स्टे फूलिश का कवर मैंने इतनी बार देखा कि मुझे याद हो गया कि यह लड़की मंडी हाउस मेट्रो स्टेशन पर उतर जाएगी. फिर क्या था मेरी निगाहें अब हर दिन किसी किताब वाली लड़की को खोजने लगीं. कुछ किताबें मेरी पढ़ी हुई थीं, तो कुछ को मैंने अपने स्मार्ट फोन से वहीं के वहीं ई-शॉपिंग साइट पर बुक कर दिया. कविता काणे की किताब कर्णाज वाइफ : द आउटकास्ट्स क्वीन उन्हीं किताबों में से एक है. भले ही किसी को यह पता न चल पाए कि देखा-देखी ही सही, लेकिन एक रीडर और बढ़ गया है!

जब स्क्रीन पर सिमटी दुनिया को मैंने किताबों के पन्नों पर भी धड़कते देखा तो लगा कि एक बार लेडीज कोच से निकलकर पूरी मेट्रो की परिक्रमा कर लेनी चाहिए. अगले दिन मैंने जानबूझकर लेडीज कोच बोर्ड करने के बजाय दूसरे कोच में अपना अड्डा जमाया. मैं यहां से वहां घूमती रही. और ये क्या, एक भी लड़का नहीं मिला, जो अपनी चमकती स्क्रीन को छोड़कर उन किताबों की गंध में डूबा हो. अलबत्ता मुझे दो लड़कियां मिल गईं जो तल्लीनता से पाउलो कोएलो की वेरोनिका डिसाइड्स टू डाइ और रविंदर सिंह की दिस लव दैट फील्स राइट... पढ़ती नजर आ गईं. रविंदर सिंह ओह माय गॉड, मशी लव स्टोरी के लेखक. मेरी फेवरेट बुक आई टू हेड अ लव स्टोरी लिखने वाले. मन किया, इससे कुछ और किताबों पर चर्चा करूं. पर अनजान लड़की से बात करना मुझे कुछ जचा नहीं.

किताबें पढ़ने वाले नहीं वालियां कई थीं. मेरी किताबों की फेहरिस्त भी उनके साथ लंबी होती जा रही थी. अब मैं खुद व्हॉट्स ऐप छोड़कर यह देखने में मगन रहती थी, कि देखूं आज कौन क्या पढ़ता मिलेगा.

इन किताबों के चक्कर में कभी-कभी तो इतनी बार गरदन घुमानी पड़ती थी, कि क्या कहूं. नाम जो देखने होते थे. ऐसे ही मेरे सामने वाली लड़की किताब को अपने बैग पर टिकाए आराम से पढ़ने में तल्लीन थी. और मैं थी कि उस किताब का नाम देखना चाहती थी. जीत तो जानते हीं हैं कोशिश करने वालों की ही होती है. उसका स्टेशन आया और वह किताब बंद कर उठती, उससे पहले मैंने अपनी निगाहें कवर पर टिका दीं. वह दुरजॉय दत्ता और मानवी आहूजा की ऑफकोर्स आई लव यू...! टिल आई फाइंड समवन बेटर पढ़ रही थी.

किताबों के प्रेमियों में मैंने एक खास बात नोटिस की. वे लोग बहाने नहीं बनाते. क्योंकि जो लोग यह सोचते हैं कि मेट्रो में बैठने की सीट नहीं मिलेगी, इसलिए वो पढ़ नहीं पाएंगे. वही लोग फोन पर खड़े होकर भी गेम खेल लेते हैं, चैटिंग कर लेते हैं. लेकिन जब एक लड़की मुझे क्रिस्टोफर सी. डॉयल की द महाभारत सीक्रेट पढ़ती दिखी तो मैं समझ गई कि किताबें भारी भी हों, तो भी पढ़ने वाले उन्हें साथ ढोते फिरते हैं. अब मेरे बैग में भी हर हफ्ते एक नई किताब बसेरा बना रही है. आपके बैग में क्या है, फोन या कोई किताब?

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