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गणतंत्र दिवस पर बोलसोनारो चीफ गेस्ट:क्या संदेश देना चाहते हैं हम?

बोलसोनारो ब्राजील के राष्ट्रपति बनने से पहले सेना में थे. पहली बार 1990 में ब्राजील की संसद में चुनकर आए.

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पिछले साल सितंबर में ब्राजील के 27 राज्यों के 40 लाख लोग सड़कों पर नारे लगा रहे थे- नॉट हिम (वह नहीं). इसे ब्राजील के इतिहास में महिलाओं का सबसे बड़ा प्रदर्शन बताया गया था. जिस शख्स के खिलाफ नारेबाजी हो रही थी, वह और कोई नहीं- ब्राजील के राष्ट्रपति जेयर बोलसोनारो हैं. तब वह राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार थे.

महिलाएं उनके राष्ट्रपति चुने जाने के खिलाफ थीं. कारण था, उनके महिला विरोधी तेवर. उन्होंने लगातार ऐसी टिप्पणियां की थीं जोकि महिलाओं, अश्वेतों और समलैंगिक लोगों के प्रति द्वेष से भरी थीं. इस विरोध के बावजूद बोलसोनारो राष्ट्रपति बने. इस गणतंत्र दिवस परेड में वह भारत में विशेष मेहमान हैं.

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ऐसा क्या कहा था बोलसोनारो ने?

बोलसोनारो ब्राजील के राष्ट्रपति बनने से पहले सेना में थे. राजनीति में आने के लिए उन्होंने सेना छोड़ी और 1990 में ब्राजील की संसद में चुनकर आए. पर तब उनकी लोकप्रियता का वह आलम नहीं था. धीरे-धीरे उनकी दक्षिणपंथी छवि ने उन्हें शोहरत दिलाई. इसमें उनकी टिप्पणियों ने भी अहम भूमिका निभाई. उनके महिला विरोधी बयान बहुत तीखे थे. 2015 में जीरो होरा नाम के एक समाचार पत्र को दिए गए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि महिलाओं और पुरुषों को एक बराबर वेतन इसलिए नहीं मिलना चाहिए क्योंकि महिलाएं गर्भवती होती हैं. मेटरनिटी लीव से उत्पादकता पर असर होता है.

2017 में एक भाषण में उन्होंने अपनी बेटी लॉरा को अपनी दुर्बलता की संतति (वीकनेस का प्रॉड्यूस) कहा. संसद में बहस के दौरान उन्होंने फेडरेल डेप्युटी और पूर्व मानवाधिकार मंत्री मारिया दो रोसारिओ से कहा था कि वह रेप करने लायक नहीं क्योंकि बेहद बदसूरत हैं. ऐसी घृणा से भरी टिप्पणियां वह अश्वेतों और समलैंगिकों के खिलाफ भी कर चुके हैं. अश्वेत एक्टिविस्ट्स उन्हें जानवर लगते हैं, जिन्हें चिड़ियाघर भेज दिया जाना चाहिए. समलैंगिक लोगों के प्रति उनकी नफरत इसी बात से झलकती है कि अगर उनका बेटा समलैंगिक हो तो वह उसकी मौत तक की कामना करते हैं.

अपने यहां महिलाओं की स्थिति पहले ही खराब

वही बोलसोनारो भारत आ रहे हैं. एक ऐसे देश में जिसे पहले ही महिलाओं के लिए अक्सर खतरनाक बताया जाता है. थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन का एक सर्वे महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा, मानव तस्करी और यौन व्यापार में ढकेले जाने के आधार पर भारत को महिलाओं के लिए खतरनाक बता चुका है.

सरकारी आंकड़ों का भी यही कहना है कि 2007 से 2016 के बीच महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों में 83 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. यहां हर घंटे बलात्कार के लगभग चार मामले दर्ज किए जाते हैं.

हालांकि इस सर्वे की प्रामाणिकता पर कई सवाल किए गए, लेकिन यह भी सच है कि भारत में यौन हिंसा के मामले बढ़े हैं पर दोष सिद्धि की दर बहुत कम है.

2018 के एक शोध पत्र रिलीजिंग द टाइड में कहा गया था कि भारत में एक दशक में बलात्कार के जितने भी मामले दर्ज हुए हैं, उनमें से 12 से 20 प्रतिशत में ही सुनवाई पूरी हुई है. भले ही महिलाएं ऐसे मामलों को अधिक बड़ी संख्या में दर्ज कर रही हैं लेकिन असल चिंता सजा की घटती दर है. एनसीआरबी के आंकड़े कहते हैं, 2017 में देश में 43,197 बलात्कार के आरोपी गिरफ्तार किए गए. इनमें से 38,559 के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हुई, लेकिन केवल 6,957 आरोपित ही दोषी साबित हो पाए. इसी साल बलात्कार के बाद हत्या के मामलों में 374 गिरफ्तार हुए, लेकिन केवल 48 ही दोषी साबित हो पाए. 2018 के लिए NCRB रिपोर्ट कहती है कि रेप में 41,117 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया. इनमें से 37,513 पर चार्जशीट हुई और सिर्फ 59,69 ही दोषी साबित हुए.

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क्योंकि बयानबाजी के मायने बहुत व्यापक हैं

बोलसोनारो के भारत आने और भारत में महिलाओं की बदतर स्थिति, इन दोनों के बीच क्या संबंध है. दरअसल दोनों के बीच गहरा रिश्ता है. एक स्त्री विरोधी शख्सीयत की बयानबाजी के मायने बहुत व्यापक होते हैं. उनके कभी-कभार के बयान को भी हम नजरंदाज नहीं कर सकते. चूंकि राजनेता अपने समर्थकों के लिए आदर्श होते हैं.

जब बोलसोनारो महिलाओं, अश्वेतों (यानी अपने देश में अल्पसंख्यकों) और समलैंगिकों के खिलाफ बयान देते हैं, तब उसका यही मायने होता है कि वह उन्हें अपने से कमतर समझते हैं. अधिकतर समाज की भी यही सोच है कि ये समुदाय हमसे कमतर हैं.

ऐसे में शीर्ष पद पर आसीन व्यक्ति के इन बयानों से ऐसी सोच वालों को प्रोत्साहन मिलता है. कोई ताकतवर व्यक्ति उनके विश्वास पर अपनी सहमति की मुहर लगाता है. यूं भी जनता अपने नेताओं की अंधभक्ति करती है. ये नेता राजनेता, आध्यात्मिक गुरू, खिलाड़ी और फिल्मस्टार कोई भी हो सकते हैं. मनोविज्ञान में एक टर्म है इंट्रोजेक्शन. जब लोग बिना जाने किसी व्यक्ति का व्यवहार अपना लेते हैं. इन मामलों में वह व्यक्ति राजनेता है. विशेष मेहमान बोलसोनारो हैं.

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मेहमान और मेजबान जब एक जैसी बातें करें

बेशक, कई बार हम यह तय नहीं कर सकते कि हमारा मेहमान कैसी राय रखता है. पर दिलचस्प यह है कि यहां मेजबानों में से भी कई ऐसी ही सोच रखते हैं. महिला विरोधी सोच रखने वाले अपने यहां भी कमी नहीं. 2014 में सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव अपने चुनाव प्रचार के दौरान बलात्कार के मामलों में मृत्युदंड का विरोध कर चुके हैं. इसका तर्क उन्होंने यह दिया था कि लड़कों से गलतियां हो जाती हैं.

बीजेपी के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय कह चुके हैं कि बलात्कार उन महिलाओं का होता है जो मर्यादा पार करती हैं. शरद यादव जैसे वरिष्ठ नेता दक्षिण भारत की महिलाओं को सांवली, पर सुंदर शरीर वाली बता चुके हैं. स्वयं प्रधानमंत्री कांग्रेस नेता रेणुका चौधरी को सूर्पनखा कह चुके हैं.

अल्पसंख्यकों और समलैंगिकों के विरोध में भाषण देने वाले नेता भी खूब सारे हैं. बाबा रामदेव से लेकर गुलाम नबी आजाद तक समलैंगिकता को बीमारी घोषित कर चुके हैं. मुस्लिम विरोध तो बहुत से भाजपा नेताओं का प्रिय मुद्दा रहता है. आबादी बढ़ाने के आरोप से लेकर उनकी राष्ट्रभक्ति पर सवाल खड़े करना राजनीतिक एजेंडा बन चुका है.
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फिर भी हम मेजबान से साथ-साथ मेहमान को दोषमुक्त नहीं कर सकते. बेशक, मेहमान पर अपना बस नहीं, पर मेजबान पर तो है. हुकूमत का काम, हमारे भीतर के उजले पक्ष को उभारना होता है, न कि हमारे भीतर की क्षुद्रता को जमीन मुहैय्या कराना.

आज दुनिया भर की हुकूमतें अपनी हरकतों से यही संदेश दे रही है कि मानवता के भविष्य का नक्शा उन्हीं के पास है. कालजयी होने का अहंकार रखने वालों को समझना चाहिए कि काल का झाड़ू कितनों को बुहारकार इतिहास के कूड़े में फेंक चुका है. यह बोलसोनारो को भी याद रखना चाहिए और बाकी के नेताओं को भी.

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