बजट 2023-24 (Budget 2023) की सबसे बड़ी बात थी 10 लाख करोड़ रुपये का पूंजीगत व्यय (Capital Expenditure). 2022-23 बजट अनुमान के मुताबिक ये 7.5 लाख करोड़ रुपये था. अब इस बजट अनुमान में इसे 33% से ज्यादा बढ़ाकर 10 लाख करोड़ कर दिया गया है. ये 45 लाख करोड़ के पूरे कुल बजट खर्च का 22% है. और 301.75 लाख करोड़ रुपये की जीडीपी का करीब 3.3% है. वास्तव में विकास चक्र को तेज करने के लिए यह एक बड़ा बूस्टर हो सकता है.
ऊपर-ऊपर कहें तो भारत में विकास की गति को बनाए रखने के लिए सरकार का इस तरह का मेगा कैपिटल पुश सबसे सही कदम है. खासकर ऐसे समय में जब दुनिया आर्थिक मंदी झेल रही है.
लेकिन क्या इतने बड़े पूंजीगत खर्च का असर देश की इकनॉमी पर होगा. हमें शायद प्रस्तावित पूंजीगत खर्च को समझने के लिए बजट को गहराई से देखने की जरूरत है.
सरकारी पूंजीगत खर्च असल में कम है
भारत में केंद्र सरकार और केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र में पूंजीगत खर्च यानी कैपेक्स दो चैनलों से होता है. बजट से और सार्वजनिक क्षेत्र के एंटरप्राइज के इंटरनल और अतिरिक्त-बजटीय संसाधनों (IEBR) के माध्यम से. बजट अनुमान 2022-23 में, कुल पब्लिक सेक्टर कैपेक्स 12.20 लाख करोड़ रुपए था.
बजट के माध्यम से 7.5 लाख करोड़ रुपए और IEBR के माध्यम से 4.7 लाख करोड़ रुपये. बजट 2023-24 में इसे बढ़ाकर 14.89 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया. इसमें 10.01 लाख करोड़ रुपये का बजट कैपेक्स और 4.88 लाख करोड़ रुपये का IEBR शामिल है. कुल पब्लिक सेक्टर के कैपेक्स में 2.69 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई है.
जैसा कि IEBR में बढ़ोतरी काफी कम है, ऐसे में कैपेक्स में टोटल बढ़ोतरी घटकर 22% हो जाती है, ना कि 33% जो बताया जा रहा है. इसके अलावा, जब आप कैपेक्स प्रावधान की प्रकृति को देखेंगे तो पाएंगे कि बहुत प्रावधान ऐसे हैं जिन्हें कैपेक्स बताया गया है लेकिन वो कैपेक्स नहीं हैं.
IEBR के मामले में एक बड़ा उदाहरण लेने के लिए, फूड और पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन विभाग (DoFPD) के पास बजट अनुमान 2023-24 में 1.45 लाख करोड़ रुपये का IEBR है. लेकिन DoFPD का IEBR किसी कैपेक्स के लिए नहीं है. यह अनिवार्य रूप से खाद्यान्न खरीदने और स्टोरेज के लिए बैंकों से कर्ज लेने के लिए है. इस बढ़ोतरी को छोड़ दें तो पब्लिक सार्वजनिक क्षेत्र IEBR Capex घटकर 3.43 लाख करोड़ रुपये पर आ जाता है.
बजट अनुमान 2023-24 में 1.3 लाख करोड़ रुपये का कैपेक्स राज्य सरकारों को कर्ज देने के लिए है, जो वो कैपैक्स पर खर्च करेंगे. राज्यों को कैपेक्स कर्ज न तो केंद्र सरकार का कैपेक्स है और न ही अर्थव्यवस्था के लिए अतिरिक्त कैपेक्स है क्योंकि इस तरह के कैपेक्स कर्ज उस सीमा तक कैपेक्स के लिए राज्यों को उधारी करते हैं. अगर हम 1.30 लाख करोड़ रुपये को हटा दें, तो केंद्र का बजटीय कैपेक्स 8.71 लाख करोड़ रुपये हो जाता है.
तो केंद्र का कैपेक्स 8.71 लाख करोड़ और IEBR Capex 3.43 लाख करोड़ यानी कुल कैपेक्स हुआ 12.04 लाख करोड़ रुपये. 8.70 लाख करोड़ रुपये के बजट से केंद्र का कैपेक्स प्रावधान जीडीपी का 2.88% हो जाता है, ना कि 3.3%, जैसा कि वित्त मंत्री ने दावा किया है.
बजट कैपेक्स पब्लिक सेक्टर की कमजोरी को छिपाता है
8.70 लाख करोड़ रुपये का केंद्र का वास्तविक बजटीय कैपेक्स दरअसल एक मजबूरी भी है. पिछले साल, सरकार ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) और BSNL की वित्तीय बाजारों तक पहुंच में असमर्थता के कारण उनकी संपूर्ण कैपेक्स जरूरतों को पूरा करने के लिए बजट तैयार किया था. इस साल बजट में इंडियन रेलवे फाइनैंसिंग कॉरपोरेशन (IRFC) को भी बाजार के सहारे छोड़ने लायक नहीं माना गया.
पिछले साल IRFC को IEBR के रूप में 66,500 करोड़ रुपये जुटाने का बजट था लेकिन वो इस साल बाजार से कुछ नहीं जुटाएगा. पूरे IRFC कैपेक्स बजट से ही दिया गया है. पिछले साल इसे 1.37 लाख करोड़ रुपये दिया गया था. इस बार 2.40 लाख करोड़ रुपये
सरकार ने चालाकी से ऑयल मार्केटिंग कंपनियों को कैपिटल सपोर्ट के रूप में 30,000 करोड़ रुपये दिए हैं. संभवतः LPG और तेल उत्पादों में नुकसान के कारण रेवेन्यू सपोर्ट देने के लिए.
NHAI को बजट अनुमान 2022-23 में 1.34 लाख करोड़ रुपये का कैपिटल सपोर्ट दिया गया था. इसे बढ़ाकर 1.62 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है यानी 28,000 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी. IRFC के एवज में रेलवे को कैपिटल सपोर्ट में अतिरिक्त 36,400 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी की गई है. यदि इन संगठनों की सेहत वास्तव में अच्छी होती तो वो अपने संसाधनों को बाजार से जुटा लेते, सरकारी बजट की जरूरत ही नहीं पड़ती.
इन सबसे 1.61 लाख करोड़ रुपए का एक्स्ट्रा खर्च हो रहा है. इस तरह से बजट में किए गए 8.7 लाख करोड़ रुपए के कैपेक्स खर्च से अगर इनको भी निकाल दें तो यह बजट कैपेक्स सिर्फ 7.1 लाख रह जाता है. अब यह कैपेक्स पिछले साल के बजट एक्सपेंडिचर यानि 2022-23 के 7.5 लाख रुपए करोड़ से भी कम है.
दुर्भाग्य से कड़वी सच्चाई यह है कि 2023-24 बजट में कैपिटल एक्सपेंडिचर में असल में बढ़ोतरी नहीं हुई है.
बजट कैपेक्स से ग्लोबल मंदी का खतरा नहीं टलेगा
आर्थिक सर्वेक्षण में 2023-24 में भारत का GDP ग्रोथ 6.5% रहने का अनुमान दिया गया है. यह 2026-27 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की GDP और 2035 तक 10 ट्रिलियन डॉलर के GDP के सपने को साकार करने के लिए पर्याप्त ग्रोथ रेट नहीं है. लेकिन दुनिया के हालात को देखते हुए ये अच्छी रेट है, क्योंकि कई विकसित देशों के मंदी में जाने की आशंका है.
क्या 10 लाख करोड़ रुपये नाम का और असली में 7.1 लाख करोड़ रुपये का वास्तविक कैपेक्स ग्लोबल मंदी के खतरे को दूर कर पाएगा? इसमें संशय है...मैं बताता हूं आखिर ऐसा क्यों है -
पहली बात यह कि कोई वास्तविक कैपेक्स बढ़ोतरी नहीं हुई है.
संपूर्ण कैपेक्स बजट वास्तव में खर्च नहीं किया जा सकता है. 2022-23 के लिए, रिवाइज्ड बजट कैपेक्स को 7.5 लाख करोड़ रुपये से घटाकर 7.3 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है. वास्तविकता में इसमें और गिरावट की आशंका है. 2023-24 के कैपेक्स बजट का भी यही हश्र हो सकता है.
केंद्र के कैपेक्स का एक अच्छा हिस्सा नॉन ग्रोथ को प्रमोट करने वाले निवेश में चला जाता है. 1.62 लाख करोड़ रुपये का रक्षा उपकरण और हथियार पर खर्च होने वाला पैसा कुल कैपेक्स का 23 फीसदी है. (राष्ट्रीय सुरक्षा के विचारों से काफी तर्कसंगत) लेकिन इसका किसी भी तरह के गुड्स & सर्विस प्रोडक्शन में योगदान नहीं है और इसलिए यह ग्रोथ में भी मददगार नहीं है.
यह माना जाता है कि कैपेक्स बजट से मैन्युफैक्चरिंग में तेजी आती है, जैसे - सड़कों के निर्माण, रेलवे लाइन बिछाने आदि के लिए अधिक सीमेंट, स्टील और अन्य निर्माण सामग्री और अधिक मशीनें जैसे रेलवे इंजन, बोगी, बिजली की लाइनें की जरूरत पड़ती है. इनकी ग्रोथ GVA में आंकी जाती है.
6 जनवरी को NSO ने जो एडवांस अनुमान जारी किया था उसमें साल 2022-23 में 7.5 लाख करोड़ रुपए के बजट कैपेक्स के बाद भी GVA ग्रोथ में 1.6 % की गिरावट बताई गई है. इसी तरह कैपेसिटी यूटिलाइजेशन में भी कोई अच्छा असर नहीं दिखा. शायद फिलहाल भारत के कैपेक्स बढ़ोतरी और मैन्युफैक्चरिंग ग्रोथ में कोई सीधा कनेक्शन नहीं है.
हाई कैपेक्स के साथ हाई फिस्कल डेफिसिट भी आता है. बजट 2023-24 में भारी पूजीगंत के साथ भारी वित्तीय घाटे का भी अनुमान है. ये करीब 6 फीसदी है. इस तरह की हाई फिस्कल डेफिसिट से देश में मौजूदा ब्याज दर और प्राइवेट इन्वेस्टमेंट का सीधा कनेक्शन है. ऐसी स्थितियों में निजी निवेश कम हो जात है जो पब्लिक सेक्टर के इन्वेस्टमेंट को बेअसर कर देता है.
ग्लोबल मंदी एक्सपोर्ट-इंपोर्ट चैनल के माध्यम से भारत के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है. भारतीय एक्सपोर्ट के लिए वैश्विक मांग में कमी और कम इंपोर्ट कीमतों के कारण इंपोर्ट बढ़ने से कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और नॉन ड्यूरेबल GVA प्रभावित होती है. सरकारी कैपेक्स शायद ही मैन्युफैक्चरिंग के इन क्षेत्रों को छूता है.
कैपेक्स कार्ड को ज्यादा महत्व ना दें
हाई कैपेक्स बजट हाई फिस्कल डेफिसिट कॉस्ट के साथ आता है. भारत सरकार के बढ़ते कर्ज और देनदारियों से निश्चित रूप से ब्याज का बोझ बढ़ जाता है. 2022-23 में देश के ब्याज भुगतान में लगभग 1.35 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई. 2023-24 में ब्याज भुगतान 1.4 लाख करोड़ रुपये और बढ़ सकता है. 2021-22 से दो वर्षों में, भारत के ब्याज भुगतान बजट में प्रति वर्ष 2.75 लाख करोड़ रुपये की बढोतरी हुई है. ये 2021-22 में 8.05 लाख करोड़ के ऊपर है.
रक्षा, रेलवे, रोडवेज, मेट्रो आदि में भारत का कैपेक्स कोई वित्तीय रिटर्न नहीं देता है. कुछ अर्थों में, ये रेवेन्यू एक्सपेंडिचर की तरह होते हैं. नतीजतन, इंटरेस्ट पेमेंट बढ़ोतरी परमानेंट फिस्कल देनदारी और फिस्कल स्ट्रेस में बन जाता है.
हमारे बजटीय कैपेक्स का ग्रोथ पर असर बिल्कुल साफ नहीं है, लेकिन ब्याज का बढ़ता बोझ वास्तविक है. हमें हाई कैपेक्स बजट के गुणों को ज्यादा महत्व नहीं देना चाहिए.
(लेखक सुभांजलि के चीफ पॉलिसी सलाहकार हैं, 'द 10 ट्रिलियन डॉलर ड्रीम' के लेखक और पूर्व वित्त-आर्थिक मामलों के सचिव,भारत सरकार रह चुके हैं. आलेख में दिए गए विचार लेखक के अपने हैं, और इससे क्विंट हिंदी का सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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