ADVERTISEMENTREMOVE AD

BYJU’s:2500 को निकाल मेस्सी से यारी, स्टार्टअप में अब ब्रेकअप की तरह आम है छंटनी

भारत के EdTechs का रियलिटी टेस्ट चालू, BYJU'S 2500 लोगों की छंटनी कर रहा है तो Unacademy 350 को निकाल रहा है

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

BYJU’s Layoffs: अगर आप एक युवा और शिक्षित भारतीय हैं, जो एक टिकाऊ और सुरक्षित नौकरी की तलाश कर रहे हैं, तो बेहतर होगा कि आप हॉट स्टार्टअप्स को नजरअंदाज करें और कहीं और मौका खोजें. या फिर उच्च अधिकारी बनने के लिए संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) पर ध्यान दें - वह स्थान जहां से सरकार छोटे क्लर्कों से लेकर उच्च डिप्लोमेट तक सभी को हायर करती है. लेकिन आपको किसने कहा कि अब सरकारी नौकरियां भी सुरक्षित और टिकाऊ हैं? यहां तक कि सशस्त्र बलों में भी अब एक अग्निवीर योजना आ गई है, जो रंगरूटों को खोजने के लिए अच्छी तरह से तैयार है, लेकिन लंबी अवधि की नौकरी की पुरानी गारंटी के बिना.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अब रोजगार वो नहीं रहा जो पहले कभी हुआ करता था. अगर आपको ये सब देखना और समझना है तो अब भारतीय क्रिकेट टीम के स्पॉन्सर BYJU'S को देखिए. आप यह समझेंगे कि यह सब कुछ उतना शानदार नहीं है, न होना चाहिए या नहीं होगा जैसा कि फैंसी विज्ञापनों, उच्च-मूल्य वाले वेंचर फंडिंग और मीडिया प्रचार से लगता है.

एडटेक में ताबड़तोड़ छंटनी

आइए एक नजर डालते हैं हफ्ते भर की छंटनी की खबरों पर. तथाकथित 'एडटेक सेक्टर' में एक गंभीर रियल्टी टेस्ट चल रही है. BYJU'S लगभग 2500 लोगों की छंटनी कर रहा है, या अपने 5% कर्मचारियों की छंटनी कर रहा है, जबकि Unacademy लगभग 350 लोगों को निकाल रहा है जो इसके कुल कर्मचारियों का 10% है.

व्यावहारिक रूप से कितने स्टाफ की छंटनी हुई है, इसकी संख्या अभी मालूम नहीं है. पोलिश एडटेक ब्रेनली ने अपने 35 भारतीय कर्मचारियों में से 25 को नौकरी से निकाल दिया है. एडटेक ने 2022 में भारत में करीब 7000 लोगों को हटा दिया है.

निवेश गुरु शंकर शर्मा ने एक बार व्यंग्यात्मक लहजे में कहा था कि फिनटेक स्टार्टअप और कुछ नहीं बल्कि एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC) है, जिसमें एक ऐप और दो IIT वाले हैं. इसी तरह आप कह सकते हैं कि एडटेक एक वीडियो-केंद्रित ऐप, एक बड़े ब्रांड और कुछ जुनूनी शिक्षकों के साथ एक कोचिंग सेंटर के अलावा और कुछ नहीं है.

मैं सुनता हूं जब कई लोग कहते हैं कि फिनटेक एक बहु प्रचारित, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी , NBFC से कहीं ज्यादा है. या फिर एडटेक के ऑफलाइन केंद्र और अत्याधुनिक शिक्षण शैली है जो आपके पड़ोस में आइंस्टीन को तैयार करती है.

इसका ब्यौरा चाहे जो हो ..तीन चीजें मायने रखती हैं.वैल्यू फॉर मनी, यूनिकनेस, और डिमांड-सप्लाई इक्वेशन. ये तीन फैक्टर्स कभी-कभी कंज्यूमर मार्केट, नौकरी मार्केट और फाइनेशियल मार्केट पर लागू होते हैं जो वेंचर को फंड करते हैं. वो सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं.

पीआर ट्रिक और एडटेक का यूनिकॉर्न

जैसा कि होता है, बड़ी संख्या में तथाकथित यूनिकॉर्न जो भारत के स्टार्टअप इको सिस्टम में अरबों डॉलर के वैल्युएशन की बात करते हैं वो सिर्फ, वेंचर कैपिटलिस्ट की अतिशयोक्ति के प्रोडक्ट है. फाइनेंशियल इंडस्ट्री पहले गुड इमेज का एक चक्र पैदा करती है: फाउंडर्स इस हाई वैल्युएशन से प्रेरित होते हैं और इसे हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करना शुरू करते हैं. बिना सोचे-समझे न्यूज मीडिया और रिपोर्ट में जो नंबर उन्हें बताया जाता है उसे मान लेते हैं .

पीआर ट्रिक से ब्रांड बनाने में मदद मिलती है. नए निवेशक हाई वैल्युएशन पर आते हैं . क्योंकि कहानियां बढ़ती युवा आबादी के कॉकटेल के इर्द-गिर्द बुनी जाती हैं. नई तकनीकों के माध्यम से जो सेवाएं देता है उससे उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने में मदद मिलती है.

यह बॉलीवुड के '3 इडियट्स' की जमीन है. हम सभी जानते हैं कि भारतीय माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी तरह से शिक्षित, अच्छी तनख्वाह और फिर शादी कर अच्छी तरह से सेटल देखना पसंद करते हैं. संक्षेप में, सर्फ के बाद एडटेक एक अगली बड़ी चीज के रूप में लाखों लोगों को बेचा जाने वाला नया डिटर्जेंट साबुन बन गया है. इससे पहले कि हम यह जान पाते, यह सरकार द्वारा दी जाने वाले सेवा नहीं रही, बल्कि अब यह पड़ोस की दुकान में सलवार-कमीज पहनी हॉउसवाइफ के द्वारा खरीदारी की जाने वाली कमोडिटी जैसी बन गई है.

धन्यवाद, बायजू रवींद्रन. शिक्षा अब एक सोप ओपेरा बन गई है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

छंटनी की खबरों के बीच, BYJU'S अपने नए ब्रांड एंबेसडर के रूप में लियोनेल मेसी को हायर करने में व्यस्त है. नौकरी से निकाला गया कर्मचारी कह सकता है कि यह क्रिकेट जैसा नहीं है और एक से अधिक अर्थों में सटीक हो सकता है. यहां कंपनी आपको किक मारकर बाहर निकाल रही है और दूसरी तरफ एक फैंसी फुटबॉल स्ट्राइकर को हायर कर रही है, जो पिच पर शानदार किक लगा सकता है.

कर्ज और महंगाई के बीच, क्या छंटनी ही एकमात्र रास्ता है ?

2011 में शुरू हुए BYJU में अब तक, ( इंडस्ट्री ट्रैकर क्रंचबेस के अनुसार) 58 राउंड में 27 निवेशकों से 5.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर की फंडिंग देखी गई है. इसमें कर्ज भी शामिल है. कहा जाता है कि बायजूस का फायदा 150 मिलियन लोगों ने उठाया है. निश्चित तौर पर यह एक विशाल कंपनी बन चुकी है. लेकिन जैसा कि हमें मोबाइल वॉलेट में दिग्गज कंपनी पेटीएम के IPO आने के बाद पता चला कि ज्यादा मौजूदगी की वैल्यू (ubiquitous value) और फाइनेंशियल वैल्यू दो अलग अलग बात है.

सोनी टीवी के आने वाले 'शार्क टैंक' शो के लिए एक मजेदार नया विज्ञापन आया है जिसमें एक सब्जी विक्रेता अपने कारोबार को 70 लाख रुपये का आंकता है. अब वैल्युएशन सिलिकॉन वैली से आपके मोहल्ले की गली में शिफ्ट हो गया है.

अहम बात: ग्लोबल बाजार में मूल्यांकन/वैल्युएशन कोई मजाक नहीं है- जहां महंगाई बढ़ रही है और ब्याज दरों पर सख्ती की जा रही है और मंदी की चर्चा बहुत गरम है.

बताया जा रहा है कि BYJU'S ने जिस ट्यूटोरियल यूनिट आकाश को खऱीदा था उसे 4 बिलियन अमरीकी डालर के मूल्य में बेचने की फिराक में है. यह दशकों पुराने कोचिंग- आकाश को एक साल पहले जिस भाव में खरीदा गया उसका लगभग चार गुना है. हम नहीं जानते कि पर्दे के पीछे क्या चल रहा है, लेकिन ये सब चल रहा ये कहा जा सकता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कहा तो ये भी जा रहा है कि BYJU'S अब एक अंब्रेला कंपनी बनने की कोशिश कर रहा है. शिक्षा की तरह ही IPO भी नए जमाने की कमोडिटी है. इनकी बढ़िया पैकेजिंग होती है और फिर भारी मार्जिन के साथ इनकी मार्केटिंग होती है. वहीं कर्मचारियों की छंटनी इनके लिए सिर्फ गेहूं के साथ घुन के पिसने जैसा कोलेटरल डैमेज ही है, जिसे यह कह कर प्रचारित किया जाता है कि यह प्रोफिट बचाने की स्ट्रैटेजी है.

जरा गहराई से देखिए तो आप पाएंगे कि यूनिकॉर्न या डेकाकॉर्न (मूल्य 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर या अधिक) को उपभोक्ताओं की कल्पना से जोड़कर बढ़ा-चढ़ाकर पूरे जोर शोर से प्रचार के जरिए एक ग्लैमरस ब्रांड बना दिया जाता है. अब यूनिकॉर्न इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट पर बहुत ज्यादा फोकस नहीं करते जो किसी खोज या पेटेंट से मिलता है. जब IPO का टाइम आता है तो यह सिर्फ मुनाफा है जो मायने रखती है. टेलेंट एक्विजिशन नहीं. यहीं पर कड़ाई से लोगों को नौकरियों से निकाला जाता है और कोई फिक्र नहीं की जाती है.

आश्वस्त करने वाली बात बस यह है कि दो या तीन दशक पहले जब डॉट-कॉम बबल और कुछ दूसरी कंपनियों में क्रूरता के साथ छंटनी हुई, वैसी हालत अब नहीं है. आज की नई पीढ़ी जानती है कि छंटनी बिल्कुल बर्खास्ती नहीं है. यह स्टाफ से ज्यादा कंपनी का मसला है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

नौकरी छूटने के साथ जो कलंक जुड़ा होता था अब वैसा कुछ नहीं है ..हालांकि नौकरी की असुरक्षा बनी हई है. आज 25 साल के एक शख्स के इतना पैसा कमाने की संभावना है, जितना कि उनके पिता रिटायर होने पर अर्जित कर सकते हैं.

जेनरेशन एक्स/वाई/जेड/मिलेनियल के कर्मचारियों, को यह समझने की जरूरत है कि स्टार्टअप ‘Latter day Relationship’ की तरह हैं . ब्रेक-अप की तरह छंटनी काफी आम है. रात की मस्ती के बाद दिल टूटने के लिए तैयार रहें. एक लंबी अवधि के रिश्ते जैसा इसे समझने की गलती ना करें या फिर एक स्थायी शादी के लिए बढ़िया हनीमून ना मानें.

(लेखक सीनियर जर्नलिस्ट और कमेंटेटर हैं जो रॉयटर्स, इकोनॉमिक टाइम्स, बिजनेस स्टैंडर्ड और हिंदुस्तान टाइम्स के साथ काम कर चुके हैं. उनका ट्विटर हैंडिल @madversity है. यह एक ओपिनियन पीस है. यहां लिखे विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×