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CAA-NRC पर संसद से सड़क तक धोखा, न जाने विपक्ष का क्या होगा?

महाराष्ट्र में कांग्रेस की सहयोगी पार्टी शिवसेना तक नहीं आई

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कांग्रेस ने CAA और NRC के खिलाफ रणनीति बनाने के लिए विपक्षी पार्टियों की बैठक बुलाई लेकिन इस बैठक का जो हाल हुआ उससे एक बार फिर विपक्ष की नीति, रणनीति और नियति पर सवाल उठ खड़े हुए हैं. इतिहास याद रखेगा कि जब देश के हर कोने से संविधान को बचाने की आवाज उठ रही थी तो विपक्ष अपने छोटे हितों को साधने में बंटा था. क्योंकि अभी विपक्ष जो फैसले ले रहा है, उससे न सिर्फ देश बल्कि खुद उसका भी भाग्य तय होना है.

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जिस यूपी में CAA के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान हिंसा में सबसे ज्यादा लोग मारे गए हैं, वहां की बीएसपी ने इस बैठक में हिस्सा नहीं लिया. जिस बंगाल पर CAA और NRC का बड़ा असर पड़ना है, वहां की पार्टी तृणमूल कांग्रेस इस बैठक में शामिल नहीं हुई. महाराष्ट्र में कांग्रेस की सहयोगी पार्टी शिवसेना तक इसमें नहीं आई. शिवसेना की तरह दिल्ली की आम आदमी पार्टी ने भी कह दिया कि हमें तो बुलाया ही नहीं.

सोनिया की बैठक में 20 दलों के नेता पहुंचे

  1. कांग्रेस
  2. एनसीपी
  3. सीपीएम
  4. जेएमएम
  5. आरजेडी
  6. सीपीआई
  7. एलजेडी
  8. आईयूएमएल
  9. आरएसपी
  10. केसीएम
  11. एआईयूडीएफ
  12. एनसी
  13. पीडीपी
  14. जडीएस
  15. आरएलडी
  16. हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा
  17. आरएलएसपी
  18. स्वाभिमान प्रकाश
  19. फॉरवर्ड ब्लॉक
  20. वीसीके

ममता ने कहा कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और वामपंथी दलों की ओर से हिंसा भड़काने के कारण वह इस बैठक का हिस्सा नहीं बनेंगी. मायावती ने दलील दी कि चूंकि राजस्थान में कांग्रेस ने बीएसपी के विधायकों को तोड़कर अपनी पार्टी में शामिल कराया, इसलिए इस विश्वासघात के बाद वो बैठक में नहीं जा सकतीं.

अब जरा याद कीजिए बीजेपी CAA के खिलाफ प्रदर्शनों को लेकर बार-बार क्या कह रही है? यही ना कि देश की जनता को CAA से कोई समस्या नहीं है. इसके खिलाफ लोगों को कांग्रेस और लेफ्ट वाले भड़का रहे हैं. आपको ममता और बीजेपी के बयान एक जैसे लगते हैं क्या?

अगले साल बंगाल में चुनाव को लेकर ममता की अपनी मजबूरियां हो सकती हैं लेकिन क्या ये CAA-NRC के बाद आम जन की दुश्वारियों से बड़ी हैं?

मायावती जो कह रही हैं, जरा उसकी जांच कीजिए. कांग्रेस ने उनकी पार्टी को तोड़ा इसलिए वो इसकी चिंता नहीं करेंगी कि देश को तोड़ने की कोशिश हो रही है. उन्हें पहले अपनी पार्टी की चिंता है. उन्हें इस बात की चिंता नहीं है कि इसी CAA के खिलाफ यूपी के लगभग हर शहर में प्रदर्शन हो रहे हैं. यूपी में 31 जनवरी तक धारा 144 लागू है. कई लोगों की मौत हो गई है.

भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद जब दिल्ली में CAA के खिलाफ प्रदर्शनों में शामिल हुए तो मायावती ने बाकायदा बयान जारी कर इसका विरोध किया. समझ नहीं आ रहा था कि वो यूपी की जनता और खासकर उस दलित जनता के लिए आवाज उठा रही थीं (जिसे CAA+NRC की जुगलबंदी से ज्यादा डर लग रहा है) या बीजेपी के सुर में सुर मिला रही थीं?

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जिस वक्त देश भर में CAA पर बवाल मचा हुआ है, उस वक्त विपक्ष का ऐसा ठंडा रवैया वाकई चौंकाने वाला है. कांग्रेस की जो बैठक हुई उसमें भी क्या हुआ? बयान जारी किया गया कि सरकार मंदी से निपटने के बजाय समाज को बांटने का काम कर रही है.

बैठक के बाद जनता से अपील की गई कि वो महात्मा गांधी की पुण्यतिथि, नेता जी सुभाष चंद्र बोस की जयंती और गणतंत्र दिवस पर CAA-NRC का विरोध करें. लेकिन सच तो ये है कि देश का आम आदमी स्वत: स्फूर्त विरोध प्रदर्शन पहले से ही कर रहा है. वो अपनी तरफ से जो बन सकता है, कर रहा है. लाठियां खा रहा है, गोलियां झेल रहा है.

अगर वही पब्लिक पलट करविपक्ष से पूछ ले कि आप क्या कर रहे हैं तो विपक्षी पार्टियों के पास क्या जवाब  होगा? विपक्ष के कितने नेता हैं जो सड़कों पर उतरे हैं? विपक्ष के कितने नेताओं ने लाठियां खाई हैं? कोरी बयानबाजी और ट्विटरबाजी के सिवा किया क्या है? जब सड़क पर संघर्ष का वक्त आया है तो विपक्ष नेपथ्य में बैठा है. जब ये कानून पास हो रहा था तो संसद में भी विपक्ष का यही रवैया था.

मंदी की मारी जनता को नागरिकता छिनने का डर सता रहा है. ऐसे में विपक्ष के लिए बड़ा मौका था कि वो जनता की आवाज और बुलंद करता और अपनी खोई हुई जमीन वापस ले लेता. लेकिन तुच्छ हितों और छोटे सियासी स्वार्थों में घिरा विपक्ष ये नहीं देख पा रहा है कि आज अगर उसने जनता को अकेला छोड़ा तो कल जनता भी उसे अकेला छोड़ देगी. संसद में विपक्ष की इसी नाकामी का नतीजा है कि आज आम आदमी CAA के खिलाफ खुद सड़क पर उतर आया है.

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