ADVERTISEMENTREMOVE AD

विरोध जताने का हक बच्चों को भी, कर चुके बड़े प्रदर्शनों की अगुवाई

क्या प्रदर्शनों में बच्चों का इस्तेमाल करना गलत है?

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

जिसे 1990 में अमेरिका का कैपिटल क्रॉल याद है, उसे शाहीन बाग में बच्चों संग बैठी प्रदर्शनकारी खटकेंगी नहीं. 1990 के 12 मार्च को अपने हक के लिए बहुत से डिसेबल लोगों ने वॉशिंगटन में कैपिटल बिल्डिंग की 100 सीढ़ियां रेंगकर चढ़ने की कोशिश की थी. ये प्रदर्शनकारी डिसेबल लोगों से होने वाले भेदभाव के खिलाफ कानून की मांग कर रहे थे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इन प्रदर्शनकारियों में से एक थी आठ साल की जेनिफर कीलन. जेनिफर सेरेब्रल पाल्सी की शिकार थी. उसने अपने हाथों और कोहनी के सहारे यह कहकर सीढ़ियां चढ़नी शुरू की थीं कि अगर उसे चढ़ने में पूरी रात भी लगे, तो भी वह पीछे नहीं हटेगी. इसके बाद वह इस आंदोलन का चेहरा बन गई थी. अमेरिका में जेनिफर अपने हक के लिए कानून बनवाना चाहती थी, भारत में बच्चों को तख्तियां पकड़वाकर लोग एक कानून को रद्द करने की मांग कर रहे हैं. सवाल यह है कि क्या प्रदर्शनों में बच्चों का इस्तेमाल करना गलत है?

क्या प्रदर्शनों में बच्चों का इस्तेमाल गलत है

दिल्ली के शाहीन बाग से लेकर दूसरे कई शहरों में लोग अपनी अपनी तरह से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. इन प्रदर्शनों में कइयों की गोद में नन्हे बच्चे हैं, कइयों ने नन्हे बच्चों को पोस्टर बैनर पकड़ा रखे हैं. इन सबको देखकर बच्चों के अधिकारों की वकालत करने वाले परेशान हैं. नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स यानी एनसीपीसीआर जैसी संस्था ने दक्षिण पूर्वी दिल्ली के डिस्ट्रिक्ट मेजिस्ट्रेट को एक चिट्ठी लिखकर अपनी चिंता जताई है.

कमीशन को इस बात की आशंका है कि इन बच्चों को मानसिक आघात लग सकता है. उसने इन बच्चों की काउंसिलिंग करने और जरूरत हो तो उन्हें बाल कल्याण समितियों के सामने पेश करने का सुझाव भी दिया है.

इसके अलावा उत्तर प्रदेश पुलिस लगातार यह कह रही है कि असामाजिक तत्व बच्चों का गैरकानूनी तरह से इस्तेमाल कर रहे हैं. मुजफ्फरनगर पुलिस ने 33 लोगों पर किशोर न्याय अधिनियम (जेजे एक्ट) 2015 की धारा 83 (2) लगाई और कहा कि उन्होंने बच्चों का गैर कानूनी गतिविधियों में इस्तेमाल किया. पर विरोध प्रदर्शनों में बच्चों को लाना या उन्हें पोस्टर बैनर पकड़ाना, गैर कानूनी नहीं है. जब तक धारा 144 न लगी हो, तब तक कहीं जमा होकर, शांतिपूर्वक तरीके से विरोध करना हर किसी का संवैधनिक हक है.

विरोध करना सभी का हक

यूं विरोध करना सभी का मौलिक अधिकार है. इसमें बच्चे भी शामिल हैं. बाल अधिकारों पर केंद्रित यूएन कन्वेंशन और राष्ट्रीय बाल नीति में भी इसकी हिमायत की गई है. यह राज्य का कर्तव्य है कि बच्चे अपनी एजेंसी को प्रदर्शित कर सकें, अपनी अभिव्यक्ति की आजादी का इस्तेमाल करें- न सिर्फ विरोध करने की आजादी, बल्कि समर्थन करने की आजादी भी. वे शांतिपूर्वक एक स्थान पर जमा हो सकें, और

सार्वजनिक सभाओं में भाग ले सकें. उन्हें सुरक्षित माहौल मिल सके, इसकी जिम्मेदारी राज्य की है. राज्य को ही यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके हकों की रक्षा हो, अपने विचार प्रकट करने के कारण उन्हें प्रताड़ित न किया जाए.

इस संबंध में पिछले दिनों यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरिटा फोर ने दुनिया भर के देशों को चेताया था कि उन्हें बच्चों के प्रदर्शन करने के अधिकार की रक्षा करनी चाहिए. उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने वाले युवाओं पर पुलिसिया बर्बरता की निंदा भी की थी. उनका कहना था कि अगर बच्चे और युवा जलवायु परिवर्तन, शिक्षा, असमानता के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं तो उनकी आवाज दबाई नहीं जानी चाहिए.

जाहिर सी बात है, बच्चों की बात भी सुनी जानी चाहिए. फिर ऐसा कोई कानून नहीं है जो बच्चों को प्रदर्शन में भाग लेने से रोकता हो. यह अभिभावकों का कर्तव्य है कि वे बच्चे की रक्षा करें. शाहीन बाग की औरतें, जब धरने पर बैठी हों तो बच्चों को साथ रखने पर कोई रोक नहीं लगाई जा सकती. क्योंकि बच्चों को घरों पर अकेले नहीं छोड़ा जा सकता. हमारे देश में बच्चों के सभी अधिकारों की उपयोग माता-पिता या अभिभावक द्वारा ही किया जाता है. ऐसे में बच्चों को संग रखना गैर कानूनी तो कतई नहीं हो सकता.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

खुद राज्य बच्चों की हिफाजत नहीं कर पाता

ऐसे बहुत से मामले हैं जब खुद राज्य बच्चों के हकों की हिफाजत नहीं कर पाता. कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद और उत्तर प्रदेश में सीएए के खिलाफ प्रदर्शनों में सुरक्षा बलों और पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़े किए गए हैं. उन पर आरोप हैं कि उन्होंने नाबालिगों को हिरासत में लिया और प्रताड़ित भी किया. इस सिलसिले में चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट इनाक्षी गांगुली सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटका चुकी हैं. उनका कहना है कि इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय को किशोर न्याय समिति (जेजेसी) ने जो रिपोर्ट सौंपी है, उसमें बहुत सी विसंगतियां हैं. रिपोर्ट में सुरक्षा बलों को क्लीन चिट दी गई है

दूसरी तरफ सीएए के खिलाफ प्रदर्शनों में पुलिस ने बिजनौर में पांच और दिल्ली में आठ नाबालिगों को धर पकड़ा और दो दिनों तक उन्हें यातनाएं दीं, यह आरोप भी है. जबकि जेजे एक्ट कहता है कि नाबालिगों को सिर्फ स्पेशल जुवेनाइल पुलिस यूनिट या चाइल्ड वेल्फेयर पुलिस अधिकारी के तहत रखा जा सकता है.

वह अधिकारी 24 घंटे के अंदर उस बच्चे को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के सामने पेश करेगा. बच्चों को पुलिस लॉकअप या जेल में नहीं रखा जा सकता. पर प्रदर्शनों में बच्चों के ‘दुरुपयोग’ पर चिंतित एनसीपीसीआर ने बच्चों को हिरासत में रखने पर कोई शोर नहीं मचाया. उसने सिर्फ पुलिस महानिदेशक को एडवाइजरी जारी की. प्रदर्शनकारियों को ही कटघरे में खड़ा किया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

बच्चे विश्व स्तर पर प्रदर्शनों में भाग लेते हैं

इतिहास के पन्नों को टटोलने पर पता चलता है कि बच्चों ने कितने ही प्रदर्शनों हिस्सा लिया है. 1961 में अमेरिका में अश्वेत अधिकारों के समर्थन में टेनेसी में एक प्रदर्शन का फोटो खूब चर्चित हुआ था. इसमें एक अश्वेत अमेरिकी अपनी आठ महीने की बच्ची को प्रैम में लेकर विरोध जता रहा था.

बच्ची ने एक बैनर पकड़ा था जिसमें लिखा था- डैडी, मैं भी स्वतंत्र होना चाहती हूं. मई 1963 में बर्मिंघम, अल्बामा में बच्चों ने नस्ल के आधार पर किए जाने वाले भेदभाव के विरोध स्वरूप प्रदर्शन किया था. ये बच्चे इससे पहले अपने माता-पिता को मार्टिन लूथर किंग की अगुवाई में विरोध जताते देख चुके थे.

इस प्रदर्शन को दबाने के लिए पुलिस ने इन बच्चों पर कुत्ते तक छोड़े थे. ऐसा ही एक प्रदर्शन 1976 में दक्षिण अफ्रीका के सोवेतो में 20,000 स्कूली बच्चों ने किया था. इसमें पुलिसिया गोलीबारी में दो बच्चों की मौत हो गई थी.

मशहूर शिक्षाविद और अमेरिका स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉनसिन-मेडिसन स्कूल ऑफ एजुकेशन की डीन डायना हिस ने एक पेपर लिखा है पुटिंग पॉलिटिक्स वेयर इट बिलॉन्ग्स- इन द क्लासरूम. इसमें कहा गया है कि स्कूलों में राजनीति पर बात जरूर होनी चाहिए. चूंकि स्कूल बच्चों को विविधता प्रदान करते हैं.

बच्चों को सिखाया जाना चाहिए कि सबूत के आधार पर दावे किए जाने चाहिए, किस प्रकार हम सम्मानपूर्वक तरीके से असहमति जता सकते हैं और दूसरों की बातें खुले दिलो-दिमाग से सुन सकते हैं. उन्हें उन राजनीतिक विषयों के बारे में भी बताया जाना चाहिए जो बड़े समुदायों को प्रभावित करते हैं. इसीलिए विरोध प्रदर्शनों में बच्चों को ले जाना गलत नहीं. उन्हें इनसानी दुनिया की बेहिसी के बारे में बताना गलत नहीं, न ही यह बताना गलत है कि एक आबादी का बसना, दूसरी आबादी के उजड़ने की वजह नहीं बनना चाहिए.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×