कभी-कभार हमें भारतीय अर्थव्यवस्था के स्वर्णिम दिनों की याद दिलाई जाती है. वो समय, जब इस उपमहाद्वीप का दुनिया की अर्थव्यवस्था में एक बड़ा हिस्सा हुआ करता था, शायद आज के 3% की तुलना में वैश्विक जीडीपी का 20 से 25% तक.
क्या हम इसे दोबारा पा सकते हैं? अगर हां, तो हमें क्या करना होगा?
एक बार हमें इतिहास में जाकर यह देखते हैं कि समय-समय पर कौन-से देश महाशक्ति बने, जिससे कि हम यह समझ पायें कि भारत की जरूरत क्या है?
फारस की महाशक्ति
2500 साल पहले फारस पहली महाशक्ति थी, क्योंकि इनके पास पूरे विश्व को प्रभावित करने की क्षमता और कुशलता थी. यही महाशक्ति की परिभाषा है. फारस के पारसी राजाओं ने कंधार से टर्की तक शासन किया.
महान इतिहासकार हेरोडोटस ने 479 बीसी में प्लैटिया के युद्ध का जिक्र किया है, जिसमें राजा जरसेस एक बड़ी भारी विशाल सेना लेकर ग्रीस गया, जिसमें संभवत: पंजाब से भारत के सैनिक भी शामिल थे. प्राचीन ग्रीक इतिहास में पर्सियन राजाओं का जिक्र हमेशा महान (बहुत बड़ा) जोड़कर किया गया है.
एलेक्जेंडर द ग्रेट
विश्व में दूसरी महान शक्ति एलेक्जेंडर द ग्रेट (सिकंदर महान) था. मेसिडोनिया का यह योद्धा अपनी उपलब्धियों के कारण महान नहीं कहलाया. वह महान इसलिए कहलाया, क्योंकि उसने डेरियस द ग्रेट को हराकर उससे यह टाइटल छीना था.
रोमन साम्राज्य
तीसरी महाशक्ति रोमन साम्राज्य था, जिसने पहली बार इटली तक विस्तार किया और फिर उसके बाद फ्रांस, स्पेन और यूरोप के अधिकांश भाग और पूर्व में फिलिस्तीन तक शासन किया. जूलियस सीजर रोमन सेना को ब्रिटेन (और उस समय तक लंदन) तक ले गया. लेकिन रोम के पास कोई नौसेना नहीं थी.
मुसलमानों का साम्राज्य
मुस्लिम, जो कि चौथी मुख्य वैश्विक शक्ति थे, कई देशों के समूह से मिलकर बने थे. अरबों ने उत्तरी अफ्रीका (जिसके कारण मिश्र के लोग आज अरबी बोलते हैं) तथा स्पेन के कुछ भाग को जीत लिया लेकिन मुस्लिमों में वास्तविक रूप से शक्शिाली तुर्की, पर्सियन और मध्य एशिया और अफगान थे.
मुस्लिम राज्यों के पास भी नौसेना शक्ति नहीं थी. वास्तव में जब समूचे उत्तर भारत पर औरंगजेब का शासन था, तो भी यूरोप की शक्तियों का बहुत प्रभाव था. ऐसा इसलिए था, क्योंकि मुस्लिमों को पवित्र हज यात्रा के लिए मक्का जाना पड़ता था और समुद्र पर यूरोपीय शक्तियों का राज था.
पंद्रहवीं शताब्दी में कोलोनियन शक्तियों, स्पेन, पुर्तगाल, इंग्लैण्ड, डच और फ्रांस उदय हुई.
उनमें क्या समानता थी?
ये सभी अटलांटिक तट पर थे, जो कि एक उथला समुद्र है. उसको पार करने के लिए बड़े और मजबूत जहाजों की जरूरत थी, जो कि उच्च गुणवत्ता वाले रेशों से बने पतवारों से सक्षम हों. केवल देश ही अपने खर्चे पर इस प्रकार की विशेषज्ञता विकसित करने में सक्षम थे. उनके जहाजों के बड़े होने के कारण वे बड़ी और शक्तिशाली तोपों को ले जाने में सक्षम थे. इसलिए ये देश समुद्र को पार करने में सक्षम हुए और अमेरिका पर शासन किया. इसलिए जर्मनी, रूस, इटली और दूसरे मुख्य यूरोपीय देश, जो कि अटलांटिक पर स्थित नहीं थे, बड़ी कोलोनीय शक्ति नहीं बन पाए.
क्या इस नजरिए से भारत कुछ शताब्दियों पहले महाशक्ति था? इसके पास विश्व की कुल जीडीपी में पांचवा हिस्सा था. इस वजह से कि इस उपमहाद्वीप में विश्व की जनसंख्या का पांचवा हिस्सा निवास करती थी. इतिहास के इस समय में लगभग हर कोई किसान था. कुछ निर्माण कार्य- जैसे बर्तन और कपड़ा आदि बनाने का था, लेकिन अर्थव्यवस्था का अधिकांश निर्मित उत्पाद मानव श्रम आधारित था. किसी देश या राज्य के पास जितने लोग होंगे, उसका वैश्विक जीडीपी में उतना ही ज्यादा हिस्सा होगा.
पंद्रहवीं शताब्दी के बाद, विशेष तौर पर न्यूटन और हुक और बॉयल द्वारा लाई गई वैज्ञानिक क्रांति के बाद हम लोग बहुत पिछड़ गए. यह यूरोपीय देश थे, जिन्होंने आर्थिक रूप से बहुत वृद्धि की और हम जहां के तहं रह गए. इस समय से आर्थिक रूप से मजबूत वे देश आगे रहे, जो विश्व को प्रभावित करने में सक्षम थे. यह सिलसिला संयुक्त राज्य अमेरिका तक चला. आज बड़ी सेना और यहां तक की परमाणु हथियारों का होना यह तय नहीं करता कि देश महान बन चुके हैं, अन्यथा उत्तर कोरिया और पाकिस्तान जैसे देश भी महाशक्ति कहलाएंगे.
आखिर महान बनने की शर्तें क्या हैं?
आधुनिक दौर में महान देश वे हैं, जिन्होंने महानता की पहली शर्त को अपनाया है. एक स्वस्थ्य और शिक्षित जनसंख्या और एक सक्षम राज्य, जिससे कि वे महान बनाने में सक्षम हों. जापान और कोरिया और अभी हाल ही में चीन इन सभी पैमानों को पूरा करने में सक्षम हुए हैं.
मेरे विचार से भारत का इन सभी बातों से कोई लेना-देना नहीं है और शासन अधिकतर कमतर साबित होता है. यहां तक कि 2016 में यह देश आज भी राष्ट्रविरोधी नारों, पड़ोसियों के साथ झगड़ों और संस्कृति और जाति जैसे मुद्दों से घिरा है. स्वास्थ्य और शिक्षा पर केन्द्रित तेज और निरंतर प्रयासों की कमी है. इसके अलावा न्याय और कानून को लागू करने का भी अभाव है.
भारत सरकार सक्षम राज्य की पहली शर्त को भी पूरा करने में विफल रही है, जिसकी पहली शर्त हिंसा पर लगाम है. जन आक्रोश और हत्याकांड जैसी घटनाएं आम हैं और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन-सी सरकार सत्ता में है. जब तक हम ये मूलभूत अधिकार नहीं पा लेते, महाशक्ति बनने की ओर हमारा प्रयास धीमा ही रहेगा.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और Amnesty International India में कार्यकारी निदेशक हैं. उनका ट्विवर हैंडल है @aakar_amnesty. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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