ट्रिगर चेतावनी: इस आर्टिकल में आत्महत्या से मौत का जिक्र है.
(चेतावनी: अगर आपको सुसाइड के विचार आते हैं या आप किसी ऐसे को जानते हैं जिसे ऐसे ख्याल आते हैं , तो कृपया उनके पास पहुंचें और स्थानीय आपातकालीन सेवाओं, हेल्पलाइनों और मानसिक स्वास्थ्य NGO's के इन नंबरों पर कॉल करें)
भारतीय समाज की हलचल भरी जीवंतता है, जहां परंपरा और आधुनिकता आपस में गुथी हुई है. यहां के समाज में मातृत्व के सफर को बहुत ही पाक नजरिए से देखा जाता है.
लेकिन इससे इतर कई नई माओं ने भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक चुनौतियों से भरा रास्ता तय किया. ये राह अक्सर सामाजिक दबावों और गैरजरूरी निगरानी की वजह से तैयार होती हैं.
चेन्नई में हाल ही में हुई एक दुखद घटना इस मुद्दे पर ध्यान खींचती है. अभी-अभी मां बनी एक महिला, जो पहले से ही मातृत्व की कई तरह की जिम्मेदारियों से जूझ रही थी. वह महिला एक अफसोसजनक घटना के बाद ऑनलाइन शेमिंग की टारगेट तब बन गई जब उनका बच्चा छत से गिरकर बाल-बाल बचा था. इस घटना के बाद सार्वजनिक तौर पर उनकी काफी आलोचना की गई. ये आलोचनाएं इतनी क्रूर प्रकृति की थी कि इस नतीजा बेहद खतरनाक हुआ..महिला की खुदकुशी से मौत हो गई.
यह घटना न केवल अभी-अभी मां बनी महिलाओं की नाजुकता को सामने लाती हैं, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोणों के असर को भी दर्शाती है जो कभी-कभी गंभीर मानसिक स्वास्थ्य परिणामों की वजह बनती है.
चेन्नई की घटना
चेन्नई की घटना की वजह से एक मां को आत्महत्या जैसा कदम उठाना पड़ा जिसकी वजह से उनकी मौत हो गई. इस घटना की शुरुआत तब हुई जब एक इमारत की चौथी मंजिल से एक बच्चा गिरकर पहली मंजिल के टिन शेड के मुहाने पर लटक गया.
पहली मंजिल की टिन शेड पर लटके इस बच्चे का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है. इस वीडियो ने बडे़ पैमाने पर लोगों का ध्यान खींचा है. हालांकि चमत्कारिक तरीके बच्चे को किसी तरह की गंभीर चोटें नहीं आई, लेकिन इस घटना के बीच बच्चे की मां ने खुद को आलोचनाओं के तूफान से घिरा हुआ महसूस किया.
सोशल मीडिया पर यूजर्स ने बेहद क्रूर तरीके से उस महिला के पालन-पोषण के तरीकों पर बातें कहीं, उनपर लापरवाही का आरोप लगाया.
महिला के परिवार के मुताबिक, लोगों की क्रूर प्रतिक्रिया की वजह से महिला अपराध भावना में डूब गई. लोगों के कॉमेन्ट्स ने ही उसे अपनी जिंदगी खत्म करने जैसे दिल दहला देने वाले फैसले की ओर धकेल दिया.
घटनाओं का यह क्रम साइबरबुलिंग की घातक क्षमता की ओर इशारा करता है और ऐसे संकट में किसी भी शख्स के प्रति अच्छे व्यवहार की जरूरतों पर भी रोशनी डालता है. खासकर ऐसी मां जो हाल-फिलहाल में प्रसव से गुजरी हों, क्योंकि इसके बाद उन्हें मनोवैज्ञानिक तौर पर काफी कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
सार्वजनिक क्रूरता का मनोवैज्ञानिक असर
अभी-अभी मां बनी महिलाओं को सार्वजनिक तौर पर निशाना बनाए जाने का गहरा और दूरगामी मनोवैज्ञानिक प्रभाव हो सकता है.
ऐसी महिलाएं प्रसव से उबरने के साथ-साथ मां होने की जिम्मेदारियों को निभाते हुए संतुलन बना रही होती हैं. इस अवधि के दौरान महिलाओं में एक साथ कई तरह की भावनात्मक प्रतिक्रियाएं देखी जा सकती हैं, जैसे वे कभी -कभी बेहद खुश हो जाएंगी या फिर चिंता में डूब जाएंगी और आखिरकार उदास हो जाएंगी.
पोस्टपार्टम डिप्रेशन (प्रसवोत्तर अवसाद) एक चिंता का विषय है. यह गंभीर चिंता, अत्यधिक थकान और मन में गहरी बैठी उदासी जैसे लक्षण को सामने लाता है. ये लक्षण तब और बढ़ जाते हैं जब किसी पर सार्वजिनक दबाव बनाया जाता है या सार्वजनिक तौर पर उसकी अपेक्षा की जाती है.
जब पारंपरिक मानदंडों और सोशल मीडिया से प्रभावित होकर आम जनता बच्चों की मां से ऐसी उम्मीदें लगाने लगता है जो पूरे किए जा ही नहीं सकते हैं, तब इसके नुकसानदेह नतीजे सामने आते हैं.
बच्चे को लेकर मां पर जब किसी परिवार, दोस्तों और यहां तक कि अजनबियों की आलोचनाएं की जाती हैं, तो यह उस मां के भीतर नाकामयाबी की भावनाओं को और भी पुख्ता कर देता है.
तथ्य यह भी है कि गहरे बैठे पितृसत्तात्मक कंडीशनिंग के कारण समाज मां की तुलना में पिता से कम उम्मीद करता है. मां को पिता की तुलना में बच्चे की भलाई के लिए अधिक जवाबदेह ठहराया जाता है. दूसरे शब्दों में कहें तो पेरेंटिंग के लिए मां पर ज्यादा दबाव होता है.
इस तरह की हरकतें न केवल परेशान करने वाली होती है, बल्कि अपने बच्चे के साथ मां के भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक लगाव को भी खत्म कर सकती है. यह संबंध बच्चे के भावनात्मक विकास और मां के मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य के लिए अहम है.
रिसर्च में नई-नई मां बनी महिलाओं पर सामाजिक दबावों के नकारात्मक प्रभाव को देखा गया है.
'जर्नल ऑफ अफेक्टिव डिसऑर्डर' में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि सामाजिक सपोर्ट या इसकी कमी पोस्टपार्टम डिप्रेशन की गंभीरता को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है.
सामाजिक सपोर्ट के बजाय आलोचना का सामना करने वाली माताओं में अक्सर लंबी वक्त तक डिप्रेशन के लक्षण दिखाई देते हैं.
मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को अभी बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाता है. खासकर पोस्टपार्टम बदलावों के जुड़े मुद्दे इसे और भी जटिल बनाते हैं. कई महिलाएं (जो मां बनी हों) लोगों के जजमेंट या किसी गलतफहमी के डर से मदद लेने में संकोच करती हैं. इस संकोच की वजह से दर्द और चुप्पी का कुचक्र चलता रहता है.
ऐसे वातावरण नई नई मां बनी महिलाओं के लिए गंभीर हो सकते हैं. संभावित तौर पर अगर उन महिलाओं को संवेदनशील तरीके से न संभाला जाए तो लंबे वक्त में उनमें मनोवैज्ञानिक दिक्कतें आ सकती हैं.
तो ऐसे में क्या करें?
इस तरह के जोखिमों से निपटने के लिए कई तरीकों को आत्मसात किया जा सकता है:
समाज को शिक्षित करना
पोस्टपार्टम मानसिक स्वास्थ्य (प्रसव के बाद) की वास्तविकताओं के बारे में व्यापक शिक्षा की दरकार है. जागरूकता अभियान के जरिए मातृत्व से संबंधित मानसिक स्वास्थ्य की दिक्कतों को खत्म करने में मदद मिल सकती है. इससे माताओं के लिए किसी के जजमेंट के डर बिना मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मदद लेने में आसानी होती है.
मजबूत सपोर्ट सिस्टम
हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स को व्यापक पोस्टपार्टम केयर की पेशकश करनी चाहिए जिसमें मानसिक स्वास्थ्य की जांच और जरूरी होने पर परामर्श के लिए रेफरल शामिल हो. वहीं प्रशिक्षित पेशेवरों द्वारा नियमित चेक-इन मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को जल्दी पहचानने और संबोधित करने में मदद कर सकता है.
समुदाय और नजदीकी लोगों का सपोर्ट
सामुदायिक सहायता समूह बनाया जा सकता है, जहां नई-नई मां बनी महिलाएं अपने अनुभव और चुनौतियां को साझा कर सकती हैं. ये समूह अपनेपन और सामूहिक जानकारी की भावना मुहैया कर सकते हैं, अलगाव और तनाव की भावनाओं को कम कर सकते हैं.
पारिवारिक शिक्षा
महिला के पार्टनर और परिवार के सदस्यों को पोस्टपार्टम डिप्रेशन और अन्य मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों के लक्षणों के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए.
कानूनी और नीतिगत समर्थन
नीतिगत स्तर पर, सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नई-नई मां बनी महिलाओं को पर्याप्त मातृत्व अवकाश, बच्चों की देखभाल की सुविधाएं, और कानूनी सुरक्षा तक पहुंच हासिल हो, जिससे वे भेदभाव के डर के बिना काम पर लौट सकें.
चेन्नई की दुखद घटना इस बात की याद दिलाती है कि समाज नई-नई मां बनी महिलाओं को कैसे देखता है और उनका सपोर्ट करता है, उसमें बदलाव की तत्काल आवश्यकता है.
नई मातृत्व की मनोवैज्ञानिक चुनौतियों को समझने और संबोधित करने से, हम माताओं के लिए एक स्वस्थ, अधिक सहायक वातावरण बना सकते हैं. परिवार के सदस्यों से लेकर नीति निर्माताओं तक सभी को नई-नई मां बनी महिलाओं का समर्थन करने, उनके मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा करने में मदद करने और विस्तार से अपने बच्चों की भलाई में भूमिका निभानी चाहिए.
यह केवल मेडिकल केयर मुहैया करने के बारे में नहीं है, बल्कि एक ऐसे समुदाय को खाद-पानी देने के बारे में है जो किसी के महिला के जीवन के सबसे चुनौतीपूर्ण लेकिन खूबसूरत पलों के दौरान उसका सम्मान, समर्थन और उत्थान करता हो.
(दिव्या नाइक मुंबई स्थित मनोचिकित्सक, लेखिका और मीडिया पेशेवर हैं. वह महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य, विशेष रूप से प्रसवकालीन और प्रसव के बाद के मानसिक स्वास्थ्य के बारे में भावुक हैं, और इसे विकसित करने के लिए नेटवर्क में चिकित्सकों के एक समुदाय के साथ मिलकर काम करती हैं.)
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