ADVERTISEMENTREMOVE AD

छत्तीसगढ़ महिला आयोग की नई समझाइश महिलाओं को कैसे एंपावर करेगी?

छत्तीसगढ़ महिला आयोग अध्यक्ष की समझाइश है या जकड़न की परिभाषा?

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

इस हफ्ते छत्तीसगढ़ की महिला आयोग अध्यक्ष किरणमयी नायक ने लड़कियों को समझाइश दी. माना जा सकता है कि शायद "लड़कों से गलतियां हो जाती हैं" के बाद ये बयान लड़कियों को 'गलतियों' से बचाने के लिए दी गई है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

नायक ने 11 दिसंबर को बिलासपुर में मीडिया को संबोधित करते हुए कहा, "अधिकांश मामलों में लड़कियां पहले सहमति से संबंध बनाती हैं, लिव-इन में रहती हैं उसके बाद रेप की FIR कराती हैं. मैं अनुरोध करूंगी कि अपने स्टेटस, रिश्ते को समझें. ऐसे रिश्ते में आप पड़ते हैं तो परिणाम बुरा होता है."

ये बयान पुरुषवादी सोच दिखाता है, बताता है कि वो एक पूर्वाग्रह के साथ संवैधानिक पद पर बैठी हैं, जो कहता है कि स्त्री की एजेंसी कोई मायने नहीं रखती.

राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने नायक के बयान पर नाराजगी जताते हुए ट्वीट किया.

नायक के बयान पर विवाद होने के बाद राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि "मैं इस पर टिप्पणी नहीं करुंगा. ये एक संवैधानिक पद है और उन्होंने अगर कुछ कहा है तो अपने अनुभव के आधार पर कहा होगा, आंकड़ों के आधार पर कहा होगा."

अगर नायक ने अनुभव के आधार पर भी ये बयान दिया हो, फिर भी महिलाओं से जुड़े संवेदनशील मुद्दों का सामान्यीकरण नहीं किया जा सकता.

आंकड़ों की बात कर लें तो 2019 का NCRB डेटा कहता है कि देश में औसतन हर दिन रेप के 88 मामले दर्ज होते हैं. छत्तीसगढ़ में हर दिन दर्ज होने वाले मामलों की संख्या 6 है. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक इसी साल विधानसभा में दी गई एक जानकारी के मुताबिक जनवरी 2019 से जनवरी 2020 तक राज्य में रेप के 2575 मामले दर्ज किए गए हैं. वहीं, 2018 में राज्य में रेप के 2081 मामले दर्ज हुए थे, जिनमें नाबालिगों की संख्या 1219 थी.

सोशल मीडिया पर नायक के बयान के पक्ष में कुछ पोस्ट निकल आए जिनमें 2019 के NCRB डेटा का हवाला दिया गया कि रेप के दर्ज मामलों में सजा की दर 27.8% है. यानी 100 आरोपियों में से सिर्फ 28 दोषी पाए जाते हैं.

ये बात अलग है कि भारतीय बार एसोसिएशन की स्टडी कुछ और ही कहती है. उसके मुताबिक, 69% औरतें यौन शोषण की रिपोर्ट नहीं करतीं, इसके बावजूद उसे झेलती हैं.

अपराधियों को सजा नहीं मिलने के सामान्य कारणों में से एक खराब पुलिसिया जांच है. गवाहों और शिकायतकर्ताओं की दुश्मनी और पीड़ित पर पारिवारिक दबाव जैसे कारण भी एक भूमिका निभाते हैं.

किरणमयी नायक के बयान की गिनती भी कारणों में की जा सकती है! जो कई बार विक्टिम को ही कलप्रिट की तरह पेश करता है.

ऐसे कई अन्य उदाहरण भी हैं. 2017 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने रेप के 3 आरोपियों को ये कहते हुए जमानत दे दी थी कि लड़की का खुद का व्यवहार गड़बड़ है. वो सिगरेट पीती है और उसके हॉस्टल रूम से कंडोम मिले हैं.

इसी तरह फिल्म पीपली लाइव के डायरेक्टर महमूद फारुखी रेप के आरोप से बरी कर दिए गए थे, क्योंकि उन पर आरोप लगाने वाली अमेरिकी रिसर्चर के चरित्र पर सवाल उठाए गए थे. कहा गया था कि आरोपी पीड़ित के नो को यस समझ बैठा था.

हमने पहले भी महिला मुद्दे से जुड़े एक आर्टिकल में दिल्ली की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मृणाल सतीश की किताब “डिस्क्रिशन एंड द रूल ऑफ लॉ : रिफॉर्मिंग रेप संटेंसिंग इन इंडिया” का जिक्र किया था. किताब में 1984 से 2009 के बीच बलात्कार के 800 मामलों की छानबीन की गई है. इसमें कहा गया है कि अगर बलात्कार का आरोपी कोई परिचित व्यक्ति होता है, पीड़िता शादीशुदा और सेक्सुअली एक्टिव होती है, तो अपराधियों को कम सजा मिलती है.

बता दें, कम सजा दर पर चिंता व्यक्त करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि रेप के 90% मामलों में आरोपी बरी हो जाते हैं.

दरअसल, समाज लड़कियों को जज्बाती फिसलन से बचाने का कर्तव्य निभाने की तैयारी में है. इसलिए कथित लव जिहाद से बचाने के लिए कानून लाया जा रहा है. समाज लड़कियों को बेवकूफ और अपने जीवन के बारे में फैसला लेने में नाकाबिल समझता है. नायक का बयान भी लड़कियों को एंपावर करने की मुहिम की आड़ में उनके जकड़न की परिभाषा गढ़ता नजर आ रहा है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×