ADVERTISEMENTREMOVE AD

चीन को सपने देखना सिखाने वाले शी जिनपिंग दुनिया के लिए बन सकते हैं दु:स्वप्न?

Xi Jinping के तीसरी बार China के राष्ट्रपति बनने के भारत के लिए क्या मायने हैं?

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

शी जिनपिंग को कोई नहीं रोक पाया- न तो कोविड-19 जैसी महामारी, न टुकड़े-टुकड़े होतीं मंडलियां और न ही पूंजीवादी ताकतों का बनावटी अलगाव. जैसी ही शी तीसरी बार चीन के राष्ट्रपति बनते हैं, उनके सबसे भरोसेमंद सिपहसालार ली कियांग प्रधानमंत्री बन जाते हैं. वैसे शी पहले से ही चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के प्रमुख हैं.

पूर्व उप प्रधानमंत्री हान झेंग को चीन के उपराष्ट्रपति के रूप में चुना गया है, जबकि सीसीपी के भ्रष्टाचार विरोधी आयोग के मुखिया- झाओ लेजी- नए संसदीय अध्यक्ष बने हैं. ये सभी लोग शी के विश्वासू हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

10 मार्च की संसदीय घोषणा के बाद चीन के संविधान पर अपनी बाईं हथेली को रखते हुए, अपनी दाहिनी मुट्ठी को लहराना, और इस मुद्रा में फोटो खिंचवाने का मतलब है, बिजनेस.

लेकिन भारत और दुनिया के लिए इसका क्या मतलब है?

भारत-चीन के रिश्तों में आगे क्या?

हाल ही में बेंगलुरू और नई दिल्ली में जी20 देशों के वित्त और विदेश मंत्रियों के सम्मेलन हुए हैं. इस दौरान संयुक्त विज्ञप्तियों को जारी करने से रोकने में चीन ने अहम भूमिका निभाई है. इस तरह भारत की जी20 अध्यक्षता एक बेमजा माहौल के साथ शुरू हुई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उद्घाटन भाषण के वक्त विदेश मंत्रियों से अपील की थी, और उसमें रूस-चीन की ढिठाई को लेकर चिंता जताई थी.

राष्ट्रपति के तौर पर शी के तीसरा कार्यकाल को इस नुकसान की भरपाई करनी होगी. जैसा कि सैम्युअल टेलर कॉलरिज की अंग्रेजी कविता 'द राइम ऑफ द एन्शियंट मेरिनर' में समुद्री पक्षी अल्बाट्रोस को मारने की सजा मल्लाह को भुगतनी ही पड़ती है. लेकिन बीजिंग उस प्राचीन मल्लाह जैसा नहीं है. नई दिल्ली को कम से कम इस साल के आखिर में जी20 शिखर सम्मेलन तक तो चालाकी से इन पैंतरों को झेलना होगा.

वैसे एस जयशंकर ने चीन की आर्थिक ताकत को स्वीकार करके, फिलहाल चीन के साथ अपने सीमा विवाद को कुछ शांत करने की कोशिश की है, लेकिन इस बात का कोई संकेत नहीं मिला है कि बीजिंग एशिया में भारत को अपनी आंख की किरकिरी मानना बंद कर देगा.

क्या शी जिनपिंग के तीसरे कार्यकाल और प्रधानमंत्री मोदी के 2024 में फिर से पद संभालने की संभावना से वास्तविक नियंत्रण रेखा से जुड़े संकट के कम होने की उम्मीद है? विश्व अर्थशास्त्र के पेंच ही इसकी अटकल लगा सकते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

चीन के लिए शी जिनपिंग का सपना

2013 में जब सीसीपी की 18वीं पार्टी कांग्रेस में शी को नया राष्ट्रपति चुना गया था, तब अपने उद्घाटन भाषण में उन्होंने ‘सपना’ (मेंग) शब्द बोला था. इससे दुनिया को चौकस हो जाना चाहिए था- क्योंकि इससे पहले चीन के नीति निर्माता शी की तरह 'सपने' देखने में भरोसा नहीं करते थे. पार्टी के लिए गौरव की बात यही थी कि वह नागरिकों के लिए काम करे. सपने देखना पूंजीवादी मृगमरीचिका की तरह माना जाता था. शी ने इसे सिर्फ एक शब्द से बदल दिया. चीनी लोग सपने देखने लगे.

शी राष्ट्रपति के तौर पर अपनी शुरुआत करते, उससे पहले सीसीपी से लोगों का भरोसा टूटने लगा था. इसकी वजह भ्रष्टाचार, अंदरूनी कलह और एक स्पष्ट विचारधारा की कमी था. चीनी अर्थव्यवस्था का असरदार विकास हुआ था, लेकिन इसने देश को भू-राजनीतिक स्तर पर असरदार नहीं बनाया था. शी के लिए यह काम मुश्किल जरूर था, लेकिन उन्होंने तेज और सधी हुई शुरुआत की.

उनकी विदेशी और घरेलू नीतियां व्यक्तिगत ताकत बढ़ाने पर आधारित थीं. उन्होंने अपने राजनीतिक विरोधियों को खत्म किया और देश और विदेश में नए संस्थान बनाए. वह अपनी रहनुमाई को कायम करने के लिए बेचैन थे. दुनिया भर में चीन ने जिन आक्रामक तरीके से निवेश किया, उसने उसकी विदेश नीति को और हवा दी.

अब 2023 में आ जाइए. महामारी के बाद की दुनिया में हर शख्स की तरह शी को भी अपने सपनों की उड़ान को थामना पड़ा है. चीन के विकास का लक्ष्य "लगभग 5%" है, जो कई दशकों की तुलना में सबसे कम है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

विश्व शक्ति के रूप में चीन के उभार से डरना चाहिए

चीन में पार्टी से भी बड़े कद का सपना देखने वाले दौलतमंदों के साथ शी शासन में जैसा बर्ताव हुआ, उससे कई शख्सीयतें जैसे गुमनाम हो गईं- अलीबाबा के जैक मा, चीन रेनेसां होल्डिंग्स के बाओ फैन, फोसुन के गुओ गुआंगचांग और ऐसे कई और नाम. लेकिन हो सकता है कि यह चीन की असल तस्वीर न दिखाता हो. हो सकता है कि इन खबरों से भी सच का पता न चलता हो कि कर्ज में डूबा चीन इंफ्रास्ट्रक्चर के जबरन टेकओवर में लगा है.

लेकिन शायद शी इन सबकी परवाह ही नहीं करते. वह जानते हैं कि सामाजिक-राजनीतिक भावुकता से पश्चिमी प्रेस में उनकी वाहवाही तो होगी, लेकिन सप्लाई चेन्स पर कोई असर नहीं होगा.

सऊदी अरब और ईरान के बीच नए युद्धविराम ने शी को 'राज्याभिषेक' का तोहफा दिया है. यह बीजिंग की मध्यस्थता में मुमकिन हुआ है, और रिश्ते उस दौर में मधुर हुए हैं, जब पूरी दुनिया रूस-यूक्रेन की जंग से बेहाल था.

अमेरिका और बाकी का पश्चिम जो हासिल नहीं कर पाया, वह मौका चीन ने हथिया लिया है. और शायद इसलिए शी का बीजिंग इस बात से खुश या गाफिल नहीं है कि भारत भी मास्को और कीव के बीच शांति कायम करने में बड़ी भूमिका निभा सकता है, और क्षेत्रीय खिलाड़ी के रूप में उभर सकता है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

शी के तीसरे कार्यकाल में हम कई तरह की उम्मीद कर सकते हैं- सीमा से जुड़े मुद्दों पर घमासान, क्वाड गतिविधियों पर प्रतिक्रियाएं, तिब्बत में विरोध का बढ़ना, संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रस्तावों में रुकावट, और दूसरे कई हमलावर बर्ताव. इसके अलावा वह जिम्मेदार पड़ोसी और व्यापार भागीदार के तौर पर भी नजर आने वाले हैं. अब वह घरेलू स्तर पर निश्चिंत हैं, इसलिए उनका ध्यान इस बात पर केंद्रित हो सकता है कि दुनिया भर में दोस्त बनाए जाएं और दुश्मनों को घुटनों पर लाया जाए.

ताइवान और हॉन्गकॉन्ग के लिए परेशान होने की वजहें हो सकती हैं लेकिन असल में भारत तलवार की धार पर चल रहा है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×