ADVERTISEMENTREMOVE AD
मेंबर्स के लिए
lock close icon

नागरिकता की ‘नोटबंदी’ है CAA-NRC: नोट नहीं, नागरिक खारिज होंगे

CAA को नागरिकता की नोटबंदी कह सकते हैं. इसमें नोट नहीं नागरिक खारिज होंगे.

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

क्या आम मुसलमान सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट यानी सीएए का मतलब समझता है ? अगर नहीं, तो बगैर मतलब जाने क्यों कर रहा है विरोध? अगर समझता है तो क्या यही कि यह मुसलमानों के विरोध में है? नहीं, नहीं, किसने कह दिया? कहां लिखी है सीएए में मुसलमानों के लिए ऐसी बात? कौन बरगला रहा है मुसलमानों को? कौन डरा रहा है मुसलमानों को? क्या विपक्ष सेंकने में जुटा है राजनीतिक रोटियां? ये चंद सवाल हैं जो मुख्य धारा की मीडिया में लगातार रिकॉर्डिंग की तरह बज रहे हैं. इन सवालों का जवाब सिलसिलेवार तरीके से जनता को मिलना चाहिए.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

CAA की सोच कहां से आई?

जवाब की शुरुआत भी सवाल से ही करना जरूरी है. नागरिकता संशोधन कानून, संक्षेप में कहें तो सीएए की सोच कैसे आयी? कहां से आयी? क्या असम में NRC की लिस्ट संशोधित नहीं की गयी होती तब भी सीएए आया होता? इन सवालों के जवाब भी ढूंढ़ना जरूरी है.

बीजेपी ने 2019 के घोषणापत्र में जरूर कहा था कि वह “प्रताड़ना के कारण पड़ोसी देशों से आए अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों को संरक्षित करने के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक लाने के लिए प्रतिबद्ध है.” 

हालांकि, 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में केंद्र सरकार, असम सरकार और ऑल असम स्टूडेन्ट्स यूनियन के साथ एक बैठक में NRC को संशोधित करने का फैसला लिया गया था. मगर, NRC को संशोधित करने की पहल 2013 में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में ही शुरू हो सकी. वास्तव में इस पर काम 2015 में शुरू हुआ जब केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार आ गयी. 2016 में असम में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद इस पर काम में और तेजी आयी.

  • 31 दिसम्बर 2017 को NRC की पहली ड्राफ्ट सार्वजनिक हुई. इसमें 3.29 करोड़ आवेदकों में 1.9 करोड़ के नाम थे.
  • 30 जून 2018 को NRC की दूसरी ड्राफ्ट सामने आयी. इसमें 40 लाख लोग एनआरसी में जगह नहीं पा सके.
  • 31 अगस्त 2019 को अंतिम NRC जारी हुई. इसमें 3,11,21,004 लोगों के नाम थे. 19,06,657 लोग इसमें जगह नहीं पा सके.
0

मुसलमान से ज्यादा हिंदू हैं NRC से बाहर

बीजेपी की असम इकाई ने जब देखा कि एनआरसी से बाहर होने वालों में मुसलमान से ज्यादा हिन्दू हैं तो उसने इसका विरोध किया. पार्टी ने साफ किया कि यूपी, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा जैसे राज्यों से आए लोगों को कई बार वैध दस्तावेज जमा कराने के बावजूद लिस्ट में जगह नहीं मिल पायी. एनआरसी का स्वरूप राष्ट्रव्यापी मानते हुए इसे केवल असम में शुरू करने पर पार्टी ने आपत्ति की. इस प्रतिक्रिया के बाद ही नागरिकता संशोधन बिल का वह स्वरूप सामने आया, जो अब तक नहीं था. 12 नवंबर को यह कानून बन चुका है.

सीएए के रूप में 1955 के नागरिकता संशोधन कानून के सेक्शन दो में यह बात जोड़ी गयी कि 31 दिसम्बर 2014 से पहले अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से भारत में घुस आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदाय के लोगों को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा.

नागरिकता संशोधन कानून 2019 ने असम में एनआरसी का मतलब बदल दिया. असम बीजेपी की वह आशंका खत्म कर दी गयी जिसमें हिन्दू आबादी घुसपैठिया हो रही थी. इस कानून के बाद असम में एनआरसी से बाहर सभी हिन्दू नागरिकता के हकदार हो गये क्योंकि ये लोग सीएए के तहत तीन पड़ोसी देशों में से एक बांग्लादेश से आए हैं और उन 6 धर्मों में से एक, हिन्दू धर्म से ताल्लुक रखते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

पूरे देश में लाया जाएगा NRC: अमित शाह

असम ही क्यों पूरे देश में एनआरसी का मतलब अब यही हो चुका है. अमित शाह ने लोकसभा में सीएबी पर बहस के दौरान कहा कि मोदी सरकार देश में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन लेकर अवश्य आएगी और जब एनआरसी की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी तो देश में एक भी अवैध घुसपैठिया नहीं रह जाएगा. उन्होंने शरणार्थी और घुसपैठिए का मतलब भी स्पष्ट समझा दिया-

“जो हिन्दू, बौद्ध, सिख, पारसी, ईसाई और जैन पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक प्रताड़ना के शिकार हैं और इस हालत में वे भारत आते हैं तो वे शरणार्थी कहलाएंगे. ऐसे लोगों को नागरिकता संशोधन के तहत भारत की नागरिकता दी जाएगी. जबकि, वे लोग जो बांग्लादेश की सीमा से भारत में घुसते हैं, चोरी छिपे आते हैं, वे घुसपैठिए कहे जाएंगे.”
ADVERTISEMENTREMOVE AD

बंगाली हिंदू शरणार्थी और बंगाली मुसलमान घुसपैठिया?

असम में 3.29 करोड़ लोगों ने एनआरसी में शामिल होन के लिए आवेदन दिया. इनमें से 3.11 करोड़ लोगों को जगह मिली. 19,06,657 लोगों को इसमें जगह नहीं मिली, जिसमें वे लोग भी शामिल हैं जिन्होंने आवेदन नहीं किए. गृहमंत्री अमित शाह की इस ड्रीम बिल के कानून बन जाने के बाद अब एनआरसी से बाहर हुए 5.40 लाख बंगाली हिन्दू शरणार्थी हैं और इसलिए उन्हें नागरिकता मिल जाएगी. वहीं एनआरसी से बाहर 5 लाख बंगाली मुसलमान हैं जो घुसपैठिया हैं और उन्हें नागरिकता नहीं मिल सकेगी. बाकी बचे लोग भी इसी आधार पर इधर या उधर के खांचे में नागरिकता के पात्र या अपात्र हो जाएंगे.

CAA में नागरिकता देश और धर्म के आधार पर

नागरिकता संशोधन कानून में लिखित रूप में नागरिकता देने का आधार धर्म है, देश है. लेकिन, धार्मिक आधार पर प्रताड़ना कोई आधार नहीं है जिसका दावा किया जा रहा है. श्रीलंका से प्रताड़ित होकर भारत आए तमिल प्रताड़ना का आधार रखते हैं लेकिन उनके बारे में चिन्ता नहीं की गयी है. भारत की सीमा से लगते देशों में अफगानिस्तान को बताया गया है ताकि सवाल उठाने वालों से पूछा जा सके आजाद कश्मीर को भारत का हिस्सा मानते हैं या नहीं. अगर सीमा मिलना आधार है तो म्यांमार, भूटान की भी सीमा भारत से मिलती है जिनकी अनदेखी की गयी है. सार ये है कि इस्लामिक देशों के गैर इस्लामिक लोगों को नागरिकता देने की व्यवस्था तो नागरिकता संशोधन कानून में है, मगर इस्लाम मानने वालों को इस कानून से दूर रखा गया है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
शरणार्थियों से भारत में कभी नफरत नहीं की गयी. सबको दिल खोलकर जगह दी गयी. युगांडा, बर्मा, बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, तिब्बत, सोमालिया जैसे देशों से लोगों को भारत में पनाह मिली है. भारत में मौजूद शरणार्थियों के बारे में संयुक्त राष्ट्र संघ हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजीज़ के आंकड़ों पर गौर करें. इस हिसाब से 2 लाख से कुछ ज्यादा शरणार्थी भारत में हैं.

देश - शरणार्थी

  • अफगानिस्तान -7693
  • तिब्बत -1,10,098
  • म्यांमार -15,561
  • श्रीलंका -63,162
  • सोमाली -746
  • बर्मा (रोहिंग्या)- 4,300
  • अन्य -918

इसी तरह विगत 3 वर्षो में भारत में शरण मांगने आए लोगों की तादाद भी प्रति वर्ष दो लाख से ऊपर बनी हुई है-

साल - शरण चाहने वाले

  • 2015- 2,07,861
  • 2016- 2,07,070
  • 2017- 2,07,665
ADVERTISEMENTREMOVE AD

नागरिकता संशोधन कानून के बगैर लोगों को शरण दिए जाते रहे हैं. जिन लोगों को इस कानून का लाभ मिलना बताया जा रहा है उन्हें इस कानून के बगैर भी लाभ मिल सकता था. सवाल यह है कि तब इस नागरिकता संशोधन कानून की आवश्यकता क्यों पड़ी? इस कानून के तहत राजनीतिक रूप से स्पष्ट संदेश दिए गये-

पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों खासकर हिन्दुओं पर जुल्म हुए. इस्लामिक राष्ट्रों में गैर इस्लाम धर्म मानने वालों को परेशान किया गया. इस्लामिक देशों से भारत आने वाले अपराधी होते हैं, आतंकी होते हैं. इसलिए ये शरणार्थी नहीं हो सकते. ये घुसपैठिए हैं.

मुसलमान होना गुनाह है?

भारतीय विपक्ष को पसोपेश में डाल दिया गया है. सीएए के आधार पर सवाल उठाने वालों से पूछा जा रहा है कि क्या आप चाहते हैं कि पाकिस्तान के नागरिकों को भारत की नागरिकता दे दें? जबकि सच यही है कि जिन्हें शरणार्थी बताकर नागरिकता का प्रावधान बनाया गया है वे भी गैर मुसलमान होते हुए भी पाकिस्तानी, अफगानी या बांग्लादेशी हैं. प्रश्न ये है कि जिन्हें नागरिकता नहीं दी जा रही है उनका गुनाह क्या मुसलमान होना है? क्या इस्लामिक राज्य में मुसलमान प्रताड़ित नहीं हो सकते? भारत से पाकिस्तान गये मुस्लिम मुहाजिरों पर क्या जुल्म नहीं हो रहे? तस्लीमा नसरीन जैसी उदाहरणों का क्या होगा? ऐसे मामलों से मुंह क्यों मोड़ा जाए?

NRC लागू होने पर क्या होगा?

ये बात भी डंके की चोट पर सरकार कह रही है कि नागरिकता संशोधन कानून भारतीय मुसलमानों से कुछ छीनता नहीं है. यह अजीबोगरीब मजाक है. यह कानून उस समय अपना रंग दिखाता नजर आएगा जब देशभर में एनआरसी लागू करने की प्रक्रिया चल रही होगी.

तमाम धर्मों के लोग इस कानून की कसौटी पर खरे उतरेंगे क्योंकि, दस्तावेज नहीं रहने के बावजूद वे घुसपैठिया नहीं कहलाएंगे. मगर, दस्तावेज नहीं रहना मुसलमानों के लिए गुनाह हो जाएगा और उन पर घुसपैठिया करार दिए जाने का संकट सामने होगा. एक तरह से छीना कुछ नहीं जा रहा है बल्कि लानत दी जा रही है मुसलमान होने की. या तो उन पर नागरिक मान लेने का उपकार होगा या फिर उन पर घुसपैठिया करार देने का खौफ रहेगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

आखिर ये सब हो क्यों रहा है?

आखिर यह सब क्यों हो रहा है? लोकतंत्र में राजनीतिक दलों का व्यवहार चुनाव तय करते हैं. बिहार, बंगाल जैसे चुनाव से लेकर 2024 के आम चुनाव तक यह मुद्दा बना रहने वाला है. इस मुद्दे के जरिए बहुसंख्यकों और अल्पसंख्यकों को लड़ाया जाता रहेगा, उनकी गोलबंदी होती रहेगी. तभी थोक के भाव में वोट मिल सकेंगे. मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाते-लगाते बहुसंख्यक तुष्टिकरण का खेल शुरू कर दिया गया है.

महज कुछ लाख शरणार्थियों को नागरिकता देने या कुछ लाख लोगों को नागरिकता से वंचित करने के लिए 135 करोड़ की आबादी को आने वाले 5 साल तक दस्तावेज बनाने, देने, जांच करने, उन्हें मानने या नकारने की प्रक्रिया से जोड़ दिया गया है. इसे नागरिकता की नोटबंदी कह सकते हैं. इसमें नोट नहीं नागरिक खारिज होंगे. कालाधन नहीं, घुसपैठिए निकलेंगे. कम से कम दावा तो यही किया जा रहा है. मगर, नोटबंदी के बाद कालाधन की खोज का प्रयास ही विलुप्त हो गया. उसकी जरूरत ही खत्म मान ली गयी. कहीं उसी तरह घुसपैठिए खोजने का अभियान भी तब तक गैरजरूरी न हो जाए. चुनाव में फायदे हो चुके होंगे, तब कौन खोजे घुसपैठिया.

(प्रेम कुमार जर्नलिस्‍ट हैं. इस आर्टिकल में लेखक के अपने विचार हैं. इन विचारों से क्‍व‍िंट की सहमति जरूरी नहीं है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×