ADVERTISEMENTREMOVE AD

बर्फबारी में अभूतपूर्व कमी, शीतकालीन सूखे ने हिमालय को अपनी आगोश में लिया

कम बर्फबारी होने से क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के दो स्तंभ-कृषि और पर्यटन पर नुकसानदायक असर पड़ सकता है.

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

हिंदू कुश हिमालय (HKH) इलाके में बर्फ से ढकी चोटियां, जो हमेशा सर्दियों के सफेद कंबल से सजी होती थीं, इस साल खासकर पश्चिमी हिमालय में बिल्कुल बर्फ नहीं है. बहुत कम बर्फबारी या जरा भी बर्फबारी नहीं होने वाली इस असामान्य सर्दी ने उन किसानों में चिंता पैदा कर दी है, जिनकी आजीविका काफी हद तक किसानी पर निर्भर है. कृषि पर बहुत ज्यादा निर्भर HKH क्षेत्र, कम बर्फबारी के सीधे असर से गंभीर नतीजों का सामना करता होता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

परंपरागत रूप से पहाड़ी इलाकों में बर्फ आजीविका का एक अहम जरिया है, जो फसलों को इन्सुलेशन देती है, जड़ों को बढ़त देती है, ठंड को अंदर जाने से रोकती है और मिट्टी को कटाव से बचाती है. इस मौसम में गर्म तापमान के चलते बर्फबारी की कमी से हिमालय क्षेत्र में पानी और कृषि वानिकी पर प्रतिकूल इकोलॉजिकल असर पड़ने की संभावना है. आने वाले महीनों में भले ही भरपूर बर्फबारी हो, लेकिन यह मौजूदा घाटे की भरपाई के लिए काफी नहीं हो सकती है. बर्फ का घटता जमाव ‘बहाव’ (runoff), जिससे कृषि के लिए महत्वपूर्ण नदियों और झरनों में पानी का बहाव कम हो जाता है, में कमी के बारे में चिंता पैदा करता है.

डाउनस्ट्रीम के जल संसाधन को बनाए रखने में मददगार हैं ग्लेशियर

HKH क्षेत्र में पहाड़ी समुदाय पहले से ही कई चुनौतियों से जूझ रहा है, जिनमें फसल की खराबी, पशुधन का नुकसान, चारे की कमी और आपदाओं का खतरा शामिल है. इससे मनोवैज्ञानिक संकट पैदा होता है. मौजूदा शुष्क सर्दी (Dry Winter) इन चुनौतियों को और बढ़ा देती है, बीते सालों में औसत से कम बर्फ इकट्ठा होने की वजह से आने वाले वसंत और गर्मियों में जल संसाधनों पर और दबाव पड़ने की आशंका है. उल्लेखनीय मामलों में नेपाल का हुमला जिला शामिल है, जहां ऊपरी ऊंचाई वाली लिमी घाटी में बारिश में भारी कमी के बाद सितंबर की शुरुआत में असामान्य बर्फबारी हुई, इसी तरह, उत्तरी पाकिस्तान का मध्य हुंजा इलाका, जो आमतौर पर साल के इस समय में कई मीटर बर्फ से ढका रहता है, वहां इन सामान्य से अधिक गर्म सर्दियों में जरा भी बर्फबारी नहीं हुई है.

इस असामान्य मौसमी पैटर्न की बुनियादी वजह धरती के गर्म वातावरण को माना जा रहा है, जो जलवायु संकट का एक अहम हिस्सा है, जो ला नीना– अल नीनो (La Niña – El Niño) दशाओं को प्रभावित करता है और महत्वपूर्ण ‘पश्चिमी विक्षोभ’ (Western Disturbance) में रुकावट बनता है. यह मौसम संबंधी घटना हिंदू कुश हिमालय की जल आधारित व्यवस्था पर गहरा असर डालती है, जिससे यहां रहने वालों के लिए जल सुरक्षा प्रभावित होती है.

साल 2023 में सबसे गर्म वैश्विक तापमान दर्ज किए जाने के साथ वैश्विक तापमान में हुई बढ़ोत्तरी, जलवायु परिवर्तन पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत को और बढ़ा देती है. इन तापमान विसंगतियों के नतीजे कमजोर और देरी से आने वाले पश्चिमी विक्षोभ के रूप में सामने आते हैं, जो पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में सर्दियों की बारिश, फसल उत्पादन और बर्फबारी पर असर डालते हैं.

हिमालय में बर्फबारी की भविष्यवाणी के लिए पश्चिमी विक्षोभ के बदलते आयाम को समझना और निगरानी करना जरूरी है. HKH इलाके में ग्लेशियरों की बड़ी भूमिका है, क्योंकि वे प्रमुख नदियों को पानी देने और डाउनस्ट्रीम जल संसाधनों को बनाए रखने के लिए जरूरी हैं. इन बदलावों से तालमेल बैठाना बहुत जरूरी हो जाता है क्योंकि क्षेत्र में लंबे मॉनसून और वर्षा पैटर्न में बदलाव देखा जा रहा है. जल प्रबंधन पर तेजी से फैसले लेने, खाद्य उत्पादन का अनुकूलन, सिंचाई नेटवर्क को बढ़ाना और आपदा जोखिम कम करने की रणनीतियों को लागू करना भविष्य में जल की समस्या को कम करने और उभरती जलवायु चुनौतियों के सामने हिमालय क्षेत्र की आबादी को अनुकूल बनाने के लिए महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं.

पानी की गंभीर कमी से जलवायु संबंधी चिंताएं बढ़ी

हिंदू कुश हिमालय (HKH) क्षेत्र अभूतपूर्व शीतकालीन सूखे का सामना कर रहा है, जिससे जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के बीच जल सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं बढ़ गई हैं. 2023 के रिकॉर्डतोड़ वैश्विक तापमान के बाद बर्फबारी न होना एक दुर्लभ घटना है, जो चिंता जगाती है. खासकर पश्चिमी हिमालय में, जहां आमतौर पर बर्फ से ढकी रहने वाली चोटियां अब नंगी खड़ी हैं.

परंपरागत रूप से अक्टूबर या नवंबर से मार्च तक बर्फ इकट्ठा होती है, जो एक महत्वपूर्ण जल स्रोत के रूप में काम करती है, फसलों को ठंड से बचाती है और मिट्टी के कटाव को रोकती है. बर्फबारी की कमी इस नाजुक संतुलन को बिगाड़ देती है, जिससे जरूरत के समय कृषि और कृषि वानिकी के लिए पानी की उपलब्धता पर असर पड़ता है. जलवायु संकट में महत्वपूर्ण योगदान देने वाली ग्लोबल वार्मिंग, मौसम के पैटर्न को बदल देती है, जिससे HKH की जल सुरक्षा की नाजुक स्थिति को समझने की जरूरत है.

कम बर्फबारी का असर खेती पर भी पड़ता है, पहाड़ी आबादी पहले से ही फसल की खराबी, पशुधन के नुकसान और चारे की कमी से जूझ रही है. पिछले कुछ सालों में औसत से कम बर्फबारी के साथ ही शुष्क सर्दियों की चुनौतियों से आने वाले वसंत और गर्मियों में जल संसाधनों के लिए खतरा पैदा हो गया है.

HKH ग्लेशियरों के लिए बर्फबारी के एक महत्वपूर्ण स्रोत पश्चिमी विक्षोभ पर बदलते मौसम के पैटर्न का असर, डाउनस्ट्रीम नदी जल व्यवस्था के बारे में चिंता जगाता है. पश्चिमी विक्षोभ की सक्रियता में कमी से क्षेत्र की जल सुरक्षा के लिए खतरा पैदा हो गया है, जिससे सीमा के दोनों तरफ खासतौर से भारत और पाकिस्तान पर सिंधु जल संधि और कृषि और बिजली उत्पादन के लिए जल प्रबंधन पर असर पड़ सकता है.

इन चुनौतियों का सामना करने के लिए तेजी से कदम उठाने की जरूरत है, जिसमें पश्चिमी विक्षोभ के बदलती आयाम की निगरानी और इसे समझने के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम बनाना भी शामिल है. इस बढ़ते खतरे से निपटने और हिमालयी क्षेत्र की जल सुरक्षा के लिए प्रभावी योजनाएं तैयार करने के लिए भरोसेमंद वैज्ञानिक डेटा जरूरी है. इस संकट के बीच, हिमालय के जल संसाधनों पर निर्भर नाजुक इको-सिस्टम और आबादी पर शीतकालीन सूखे के असर को कम करने के लिए समझदारी भरे निर्णय लेना और ठोस कदम उठाना जरूरी है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

उत्तर-पश्चिमी भारत में सर्दियों की कमी के नतीजे

उत्तर पश्चिम भारत की शानदार पहाड़ियों में सर्दियां आ चुकी हैं, मगर कश्मीर में गुलमर्ग और हिमाचल प्रदेश में शिमला जैसी सैलानियों की जन्नत में बर्फ की गैरमौजूदगी आम लोगों और विशेषज्ञों के बीच चिंता का कारण बन गई है. पारंपरिक विंटर लैंडस्केप में यह अप्रत्याशित बदलाव अब खूबसूरत नजारों और टूरिज्म के नतीजों से बढ़कर एक जटिल समस्या को उजागर करता है.

हिमालय क्षेत्र में बर्फबारी का महत्व इसके खूबसूरत नजारों से कहीं ज्यादा है. यह इकोलॉजिकल संतुलन बनाए रखने और स्थानीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. जनवरी में कम बर्फबारी, जब पहाड़ियों को नए नवेले सफेद कंबल से ढक जाना चाहिए था, संभावित नतीजों के बारे में चिंता पैदा करती है.

कम बर्फबारी से क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के दो स्तंभ कृषि और पर्यटन पर नुकसानदायक असर पड़ सकता है. बर्फ, फसलों के लिए सुरक्षा परत का काम करती है, ठंड से होने वाले नुकसान और कटाव को रोकती है, जिससे अच्छी फसल होती है. इसके साथ ही, बर्फ से ढके पहाड़ों का कुदरती नजारा सैलानियों को खींचता है, जो अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं.

सर्दियों की महत्वपूर्ण अवधि के दौरान अप्रत्याशित सूखा क्लाइमेट पैटर्न और हिमालयी इको-सिस्टम पर इसके असर के बारे में चिंता पैदा करता है. जलवायु विशेषज्ञ इस असामान्य मौसमी घटना के दूरगामी असर को समझने के लिए व्यापक अध्ययन की जरूरत पर जोर देते हैं.

चूंकि खत्म हो रही बर्फ इस क्षेत्र को परेशान कर रही है, इसलिए उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए जागरूकता बढ़ाने, वैज्ञानिक जांच और असरदार उपाय करने की जरूरत है. उत्तर पश्चिम भारत में प्रकृति और इंसानों के बीच नाजुक संतुलन खत्म हो रही बर्फ की पहेली को हल करने और पर्यावरण और उस पर निर्भर समुदायों की बेहतरी के लिए स्थायी समाधान देने पर निर्भर है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

लचीलेपन का बचाव: टिकाऊ भविष्य के लिए हिमालय में सर्दियों के सूखे को समझना होगा

हिमालय की खास पहचान बर्फ से ढकी चोटियां नंगी हैं, ऐसे में फिक्र केवल खूबसूरत नजारों तक सीमित नहीं हैं; इसमें कृषि, पर्यटन और क्षेत्र की इकोलॉजिकल स्थिरता की नींव भी शामिल है. ग्लोबल वार्मिंग से बिगड़े असामान्य मौसम पैटर्न के नतीजे में कम बर्फबारी से पर्वतीय समुदायों के परंपरागत आजीविका तंत्र को भी खतरा है.

बर्फ जमा होने, ग्लेशियर पिघलने और डाउनस्ट्रीम नदी जल व्यवस्था के बीच जटिल परस्पर संबंध पश्चिमी विक्षोभ के बदलते आयाम को समझने और निगरानी करने के फौरन कदम उठाने की जरूरत है. जलवायु परिवर्तन से हुई यह मौसमी घटना हिमालय क्षेत्र की जल सुरक्षा की कुंजी है.

कम बारिश, कृषि नुकसान और आपदाओं के बढ़ते खतरों की चुनौतियों के बीच, इनका सामना करने के लिए कदम उठाने और समझदारी भरे फैसले लेने की जरूरत है. पश्चिमी विक्षोभ की निगरानी के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम बनाने और भरोसेमंद वैज्ञानिक डेटा का इस्तेमाल करना इन अनिश्चितताओं से निपटने के लिए जरूरी हो जाता है.

सर्दियों का सूखा सिर्फ एक जलवायु से जुड़ी विसंगति नहीं है, बल्कि बदलते वर्षा पैटर्न और बढ़ते तापमान के लिए तेजी से अनुकूलन करने के लिए एक चेतावनी है.

हिमालयी आबादी का हालात का सामना करने के लिए तैयार होना स्ट्रेटजिक जल प्रबंधन, खाद्य उत्पादन को अनुकूलित करने, सिंचाई नेटवर्क को मजबूत करने और मजबूत आपदा जोखिम को कम करने रणनीतियों को लागू करने पर निर्भर करता है.

इन चुनौतियों में, चेतावनी साफ है– लचीलापन पैदा करें. तेजी से कदम उठाकर हिमालय में टिकाऊ भविष्य का रास्ता साफ हो सकता है, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि ये दिलफरेब चोटियां आने वाली पीढ़ियों के लिए जिंदगी और आजीविका का जरिया बनी रहेंगी.

(अंजल प्रकाश भारती इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी, इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस [ISB] में क्लिनिकल एसोसिएट प्रोफेसर [रिसर्च] हैं. वह ISB में सस्टेनेबिलिटी पढ़ाते हैं और IPCC रिपोर्ट में योगदान देते हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और यह लेखक के अपने विचार हैं. द क्विंट इनके लिए जिम्मेदार नहीं है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×