शेक्सपियर की पंक्ति ‘नाम में क्या रखा है’ का नया जवाब आ गया है: ‘सब कुछ.’ जी हां, ‘वुहान वायरस’ को चाहे किसी भी नाम से पुकारा जाए वो घातक ही रहेगा, लेकिन इसके साथ इसके जन्म के जगह का नाम देना बेहद जरूरी है.
आज पूरी दुनिया – दोबारा कहना चाहूंगी कि पूरी दुनिया परेशान है क्योंकि चीन ने एक वैश्विक महामारी पैदा कर दी है. इसने शुरुआती चरणों में तथ्यों को छिपाया, नमूने बर्बाद कर दिए, आगाह करने वाले डॉक्टरों को चुप कर दिया, दूसरे देशों के साथ जानकारी साझा करने से मना कर दिया और विश्व स्वास्थ्य संगठन में अपनी पहुंच का इस्तेमाल कर इंसान-से-इंसान में फैलने वाली बीमारी को दबाने की कोशिश की.
एक तरफ चीन इसे छिपाने में लगा रहा दूसरी तरफ कोरोनावायरस कई हफ्ते तक तेजी से फैलता रहा. इस दौरान वुहान के 50 लाख लोग शहर से बिना किसी मेडिकल जांच के बाहर निकलते रहे. चीन के अलग-अलग शहरों और दूसरे देशों की यात्रा करते रहे.
कोरोनावायरस पर चीन का झूठ और प्रोपेगेंडा
‘चीन झूठ बोलता रहा, लोग मरते रहे’ ट्वीटर पर दिया गया ये हैशटैग चीन के घातक व्यवहार के लिए बिलकुल जायज है. दुनिया के दूसरे देश इससे छोटे अपराधों के लिए पाबंदियां और सजा झेल चुके हैं.
अपने देश में वायरस पर काबू करने का दावा कर चीन दूसरे देशों की परेशानियों और दुविधाओं का फायदा उठा रहा है और अपनी जवाबदेही से बचकर नई कहानियां गढ़ने की कोशिश कर रहा है. इतिहास के साक्ष्यों को हमारी नाक के नीचे ही दोबारा लिखने की कोशिश की जा रही है.
चीन अब ऐसे खौफनाक झूठ फैलाने पर उतर आया है कि वायरस की सिर्फ जानकारी चीन में मिली, इसका जन्म चीन में नहीं हुआ. चीन की दलील है कि पिछले साल अक्टूबर के महीने में वुहान में मिलिट्री वर्ल्ड गेम्स के दौरान अमेरिकी सेना इसे लेकर आई होगी. नया दावा ये है कि कोरोनावायरस के लक्षण चीन से पहले इटली में दिखे.
दूसरी तरफ, चीन मेडिकल सप्लाई ‘दान कर’ अपनी छवि भी सुधारने में लगा है. लेकिन ये भी आंशिक तौर पर चीन का एक झूठ ही है. इटली, जहां कि अब चीन से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, को कुछ मदद जरूर मिली है, लेकिन बदले में चीन ने अपने ‘चरित्र’ के मुताबिक इटली से ये भरोसा लिया है कि वो वायरस को काबू करने के मामले में चीन की आलोचना नहीं करेगा.
चीन बेचैन है और उसे अपनी छवि की चिंता सता रही है. चीन को डर है कि कोई भी पढ़ा लिखा और समझदार इंसान आने वाले वैश्विक आर्थिक संकट के लिए चीन के उन बुरे फैसलों को ही जिम्मेदार ठहराएगा.
डोनाल्ड ट्रंप की तरह अगर पूरी दुनिया एक साथ चीन से तालुक्कात पर दोबारा विचार करने के लिए तैयार हो जाए तो सोचिए क्या होगा?
इसलिए चीन अपना चेहरा छिपाने की हर संभव कोशिश कर रहा है. साउथ अफ्रीका से लेकर सर्बिया तक चीन के राजदूत दुष्प्रचार का कैंपेन चला रहे हैं. इससे हर हाल में मुकाबला करना होगा.
कोरोनावायरस पर चीन के प्रोपेगेंडा का सामना कैसे करें
इसकी शुरुआत नाम से की जाए तो अच्छा रहेगा. इसे चीनी वायरस या वुहान वायरस कहना पूरी तरह वैज्ञानिक तथ्य पर आधारित है, जैसा कि कुछ लोग दावा कर रहे हैं इसका किसी नस्लीय भावना से वास्ता नहीं है. वायरस के फैलने के लिए सीधे-सीधे शी-जिनपिंग की नेतृत्व वाली चीन की सरकार जिम्मेदार है.
पहले भी दुनिया की कई बीमारियों के नाम उन जगहों के नाम पर दिए जा चुके हैं, जहां उनका जन्म हुआ– इबोला को कांगो की नदी इबोला का नाम दिया गया, निपा वायरस को मलेशिया के सुंगई निपा गांव का नाम दिया गया. इसके अलावा गिनी वॉर्म, जर्मन मीजल्स, ओटोमन प्लेग, स्पैनिश फ्लू और मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रॉम या MERS – जैसी लंबी लिस्ट है. इसमें Delhi Belly को भी गिना जा सकता है.
याद रखिए चीन की सरकारी मीडिया खुद दिसंबर में इस बीमारी के फैलने के बाद इसे वुहान वायरस कह रही थी, बाद में चीन की सत्तारूढ़ पार्टी के लोगों की इस पर नजर पड़ी और इसे एक कमजोर कड़ी मानते हुए पाबंदी लगा दी गई.
चीन की वेट मार्केट को हमेशा के लिए बंद कर देना चाहिए
इस महामारी का विज्ञान सीधे तौर पर चीन की वेट मार्केट की दयनीय हालत को संक्रमण का जिम्मेदार मानता है. वेट मार्केट चीन का वो बाजार है जहां जानवरों को सरेआम मारा और बेचा जाता है. इनमें पारंपरिक जानवरों के साथ-साथ असाधारण यानी Exotic प्रजातियों के जानवर भी शामिल होते हैं. साफ-सफाई की हालत इतनी बुरी होती है कि जानवरों से इंसानों में वायरस के संक्रमण का खतरा बना रहता है जिसे Zoonotic बीमारियां कहते हैं. इस सदी में कम-से-कम दो बार ऐसा हो चुका है.
वुहान वायरस के मामले में ये संक्रमण चमगादड़ से पैंगोलीन में और पैंगोलीन से इंसान में फैला. SARS, जिसकी शुरुआत 2002-03 में चीन में हुई, चमगादड़ से सीवेट कैट और फिर इंसान में फैला. ये बीमारी 26 देशों के 8000 लोगों में फैली, जिससे 774 लोगों की मौत हो गई.
चीन ने तब कुछ महीनों के लिए वेट मार्केट को बंद किया था, लेकिन जब WHO ने SARS वायरस के काबू में आने की घोषणा की, चीन ने पाबंदी हटा ली.
इसके बाद सब कुछ पहले जैसा चलता रहा
लेकिन दोबारा ऐसा नहीं होने देना चाहिए. दुनिया के बड़े नेताओं को साथ मिलकर चीन पर नैतिक और आर्थिक दबाव बनाकर उसे बड़े फैसले लेने पर मजबूर करना चाहिए. अगर चीन कार्रवाई नहीं करेगा, तो आने वाले समय में दुनिया में कोरोना जैसे वायरस फैलते रहेंगे.
कोरोनावायरस पर राजनीति का समय नहीं है
कई उदारवादी लोग परेशान हैं कि ट्रंप इसे चीनी वायरस कहते हैं. ट्रंप की हजार बातें बुरी होती होंगी, लेकिन यहां वो बिलकुल ठीक कह रहे हैं. चीन से आने वाले लोगों पर पाबंदी का उनका फैसला समझदारी से भरा था, इसके बावजूद कि ट्रंप और उनका प्रशासन फिलहाल अमेरिका में इस वायरस के संक्रमण को रोकने में नाकाम रहा है. और अमेरिका अब इस मामले में दुनिया का नंबर वन देश नहीं रह गया.
लेकिन इसका जवाब राजनीतिक औचित्य नहीं है, असल में ये बिलकुल उल्टा रवैया साबित होगा. उदारवादियों की इस सजगता से चीन को दरअसल प्रोपेगेंडा फैलाने का हथियार मिल गया है. इनमें सबसे ऊपर है ये दलील कि चीन की बड़ी कार्रवाईयों की वजह से ही पूरी दुनिया को वायरस से निपटने का वक्त मिल गया. उदारवादी भले ट्रंप पर भरोसा नहीं करते हों, उनसे नफरत करते हों, लेकिन उन्हें चीन के प्रोपेगेंडा का हिस्सा नहीं बनना चाहिए.
क्रिस्टीन फेयर, जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर, ने बार-बार ट्वीटर पर लिखा है चीन से फैलने वाली Zoonotic महामारियों को नजरअंदाज करना ठीक वैसा ही जैसेजलवायु विज्ञान को नजरअंदाज करना. क्रिस्टीन के मुताबिक ये बीमारी पूरी तरह से चीन की नीतियों और व्यवहारों की देन है.
इतिहास से सीखो और चीन की जवाबदेही तय करो
2007 में SARS बीमारी के फैलने के बाद आई नेशनल सेंटर ऑफ बायोटेक्नॉलोजी इंफॉर्मेशन - जो कि अमेरिकी स्वास्थ्य संस्थान का हिस्सा है. की एक रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिणी चीन में आर्थिक विकास के साथ एनिमल प्रोटीन की मांग में बढ़ोतरी हुई है, जिसमें सीवेट जैसी Exotic जानवर भी शामिल हैं. बड़ी तादाद में जंगली जानवरों को पिंजड़ों में रखने और वेट मार्केट में साफ-सफाई की कमी की वजह से SARS नोवल वायरस जानवरों से इंसान के शरीर में पहुंच गए.
‘इंसान-से-इंसान में प्रसार, संक्रमण को रोकने को लेकर अस्पतालों में जानकारी के अभाव और अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों की सुविधा होने की वजह से यह वायरस बहुत तेजी से फैल गया,’ अमेरिकी रिपोर्ट की शुरुआत इन्हीं पंक्तियों से होती है. ‘SARS से इंसानों का मृत्यू दर 10 फीसदी था, जबकि इससे प्रभावित देशों में हेल्थ केयर सिस्टम, अर्थव्यवस्था और लोगों पर 2003 के कुछ ही महीनों में ऐसा असर पड़ा जैसा प्लेग के बाद कभी नहीं हुआ.’ इस रिपोर्ट में आगाह किया गया था कि अगर हालात ऐसे ही रहे तो SARS दोबारा लौट सकता है.
अगर ये बातें आज के हालात में भी अनजानी लग रही हैं, तो समझिए विश्व की बड़ी ताकतों ने कोई सबक नहीं लिया. इस वक्त इतिहास खुद को दोहरा रहा है. ऐसा फिर होगा अगर दुनिया की बड़ी ताकतें एकजुट होकर चीन को नहीं रोकेंगी. लोगों का भविष्य खतरे में है.
सबसे बड़ी बात ये कि इसके लिए ना तो चीन के लोग जिम्मेदार हैं और ना ही उन पर कोई नस्लीय टिप्पणी होनी चाहिए. चीन की अपारदर्शी राजनीति की वहां की जनता भी शिकार हुई है.
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(लेखक वॉशिंगटन स्थित एक सीनियर जर्नलिस्ट हैं. उनसे @seemasirohi पर संपर्क किया जा सकता है. आर्टिकल में लिखे विचार उनके निजी हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसकी जिम्मेदारी लेता है)
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