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COVID 19 : दुनिया से बेहतर हमारी हालत, कामयाबी या कम टेस्टिंग?  

कोरोनावायरस के आंकड़ों पर उठ रहे हैं सवाल

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कोरोना से जूझने के लिहाज से सरकार की नीतियां पूरी तरह से अमेरिका की पिछलग्गू रही हैं. अमेरिका की ही तरह भारत ने विदेश आवाजाही पर रोक लगाने और देश की सीमा को सील करने में बेहद देरी की. अमेरिका की ही तरह ही मेडिकल इमरजेंसी का प्रोटोकॉल अपनाने और लॉकडाउन का फैसला लेने में करीब दो महीने की देरी की गयी. अमेरिका की तरह ही व्यापक पैमाने पर कोरोना टेस्टिंग की मुहिम छेड़ने में कोताही की गयी. अमेरिका की तरह ही वेंटिलेटर्स का इन्तजाम करने में भारत पीछे रहा. अमेरिकी की तरह ही वक्त रहते चिकित्साकर्मियों के लिए सुरक्षा उपकरणों (PPE) को जुटाने में हीला-हवाली होती रही. और, अमेरिका की तरह ही कोरोना के आंकड़ों पर सवाल भी उठ रहे हैं.

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अमेरिका में जहांं कोरोना अब तक 12,800 से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है, लेकिन भारत में मौत का आंकड़ा अभी सौ के पार गया है. इस पोस्ट के लिखे जाने के वक्त दुनिया में कोरोना से संक्रमितों की कुल संख्या 14,29,437 थी. मृतकों की संख्या 82,074 और उपचार के बाद कोरोना मुक्त पाये गये लोगों की संख्या 3,00,767 थी.  

क्या हमारे यहां मामलों और मौतों के आंकड़े सही हैं?

दूसरे शब्दों में, जो अभी कोरोना से पीड़ित हैं उनकी तादाद है – 9,79,550. इनमें से 5 फीसदी यानी करीब 47 हजार मरीजों की हालत गम्भीर है. इसका मतलब ये हुआ कि सारी दुनिया में अभी तक कोरोना से जितने लोग बीमार पड़े, उनमें से करीब 5 फीसदी की मौत हुई है. भारत में 7 अप्रैल तक 124 लोगों की मौत हो चुकी थी और 4789 लोग इसकी चपेट में चुके थे. जबकि देश के 732 में से 274 ज़िलों तक कोरोना ने अपने पैर पसार लिये हैं. तो सवाल ये है कि क्या हमारे यहां मामलों और मौतों के आंकड़े सही हैं? देश में पहला कोरोना पॉजिटिव केस 30 जनवरी को केरल में सामने आया. बाकी दुनिया के ट्रेंड को झुठलाते हुए भारत में पहला केस सामने आने के 9 हफ्ते बाद भी मामलों में इतना इजाफा हमारी उपलब्धि है या हम टेस्टिंग कम कर रहे हैं?

अब जरा आंकड़ों का तुलनात्मक विश्लेषण करें. दुनिया में जहां 5.5 फीसदी कोरोना के मरीज मर रहे हैं, वहीं भारत में ये महज 2.57 प्रतिशत है. यानी ग़रीबों, पिछड़ों, स्वास्थ्य सेवाओं के स्तर में कमजोर और तमाम लापरवाही दिखाने के बावजूद भारत में कोरोना से मरने वालों की दर, दुनिया की दर के मुकाबले आधे से भी कम है.

क्या कहते हैं टेस्टिंग के आंकड़े

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के आंकड़ों के मुताबिक, 6 अप्रैल 2020 की रात 9 बजे तक भारत की 130 करोड़ की आबादी में से कुल 1,01,068 नमूनों की जांच हुई है. इनसे 4,135 लोगों के कोरोना पॉजिटिव होने की पुष्टि हुई. 24 मार्च तक जहां हम प्रति दस लाख लोगों में से सिर्फ़ 18 की टेस्टिंग कर रहे थे, वो अब बढ़कर 77 व्यक्ति प्रति दस लाख हो गयी है. दूसरी ओर, विकसित देशों में रोजाना 7 से लेकर 10 हजार लोग प्रति दस लाख की दर से टेस्टिंग हो रही है. बहरहाल, भारत का ऐसा प्रदर्शन तब है जबकि सरकार का दावा है कि उसके पास रोजाना 15,000 नमूनों की जांच करने की क्षमता है. इस क्षमता के मुकाबले, 6 अप्रैल को पहली बार सबसे अधिक यानी 11,432 नमूने जांच के लिए लैब में पहुंचे.

तो क्या ज्यादा टेस्ट करवाये जाएंगे तो ज्यादा संक्रमित सामने आएंगे? न्यूयॉर्क में सरकारी अनुमान है कि रोजाना करीब 200 लोगों की मौत उनके घरों में ही हो जा रही है. मौत के बाद न पोस्टमार्टम हो रहा है और ना ही कोरोना संक्रमण की जांच. क्योंकि जांच के लिए मृतक के मुंह से लार का नमूना लेना जरूरी है.

न्यूयॉर्क की हुकूमत ने इससे बचने के लिए दलील गढ़ी कि लाश पर धन-श्रम खर्च करना फिजूल है. इससे बेहतर है कि जिंदा मरीजों की जांच पर ही सारा जोर लगाया जाए. ऐसी दलील को भला कौन गलत ठहरा सकता है. लेकिन इसके दो पहलू और हैं. पहला, बगैर जांच वाले मृतकों को कोरोना पॉजिटिव नहीं माना जा सकता. इससे कोरोना के मृतकों की कुल संख्या कम नजर आएगी तो ट्रम्प सरकार की हाय-हाय कम होगी. अमेरिका का ये चुनावी साल है. इसमें खराब आंकड़ों का कमतर रहना ही बेहतर है. दूसरा, घरों में मरने वालों के मृत्यु प्रमाण पत्र में मौत की वजह कोरोना नहीं लिखी जाती. सरकार बस, मरने की पुष्टि की जाएगी.

तो क्या यहां भी ऐसा हो रहा है? यहां भी मृत्यु प्रमाण पत्र में कोरोना की बात तो तभी लिखी जाएगी जबकि मृतक को कोरोना पॉजिटिव पाया गया होगा. वर्ना, कोई कैसे किसी के बारे में ऐसा लिख देगा?

अब यदि कोरोना ज्वालामुखी भारत में भी वैसे ही फटा जैसे अमेरिका में फटा है तो फिर अन्दाज़ा लगाइए कि यहां कितने लोगों के मृत्यु प्रमाण पत्र में कोरोना का जिक्र नहीं होगा. कल्पना कीजिए कि यदि भविष्य में सरकार ने मृतकों के परिजनों के लिए किसी अनुग्रह राशि की घोषणा की तो उनके परिजनों को कुछ नहीं मिलेगा, जिनके मृत्यु प्रमाण पत्र में कोरोना का जिक्र नहीं होगा.

(ये आर्टिकल सीनियर जर्नलिस्ट मुकेश कुमार सिंह ने लिखा है. आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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