- कुछ मिनटों के लिए मान लीजिए कि हमारी सीमाएं इतनी अभेद्य हैं कि कोरोनावायरस इसे पार नहीं कर पाएगा.
- मान लीजिए की कोरोनावायरस जिस तरह से इटली और स्पेन में नुकसान पहुंचा रहा है, वैसा अपने देश में नहीं हो सकता है.
- मान लीजिए कि जिस ग्लोबल मंदी की बातें हो रही हैं उससे अपना देश अछूता रहेगा.
- मान लीजिए कि अपने देश में भी कोई संकट आता है तो हम चीन जैसी कार्यकुशलता दिखाकर वायरस पर काबू कर लेंगे.
- ये भी मान लीजिए कि वायरस का वैक्सीन जल्दी ही खोज लिया जाएगा और पूरी दुनिया को इससे मुक्ति मिल जाएगी.
ये सारी बातें मैं आपको इसलिए सोचने को कह रहा हूं ताकि हम सबके अंदर एक सकारात्मक सोच की ऊर्जा बहे और हम थोड़ा हल्का महसूस करें. वैसे तो चारों तरफ की खबरें डिप्रेशन के लिए काफी हैं ही. लेकिन आप कहेंगे कि मान भर लेने से सच्चाई बदल नहीं सकती है. वायरस का पूरी दुनिया में कहर एक सच्चाई है जिससे इनकार नहीं किया जा सकता है. इसने अपने देश में भी एंट्री ले ली है और ये कितना फैल सकता है, इसका हमें अंदाजा भी नहीं है. लेकिन इस मायूसी भरे माहौल में भी कुछ अच्छा हो रहा जिसे याद कीजिए और थोड़ा बेहतर महसूस कीजिए.
इंपोर्ट बिल में 30 अरब डॉलर की कमी
सबसे अच्छी खबर तो कच्चे तेल में भारी गिरावट वाली है. एक अनुमान के मुताबिक, कच्चे तेल की कीमत में 10 डॉलर की गिरावट से हमारे इंपोर्ट बिल में 15 अरब डॉलर की कमी आती है. पिछले कुछ दिनों में कच्चे तेल की कीमत में करीब 20 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा की गिरावट आई है. इसका सीधा मतलब है कि इंपोर्ट बिल में 30 अरब डॉलर की कमी. है ना बड़ा फायदा और वो भी बिना किसी कोशिश का.
ये तो लॉटरी जैसा हो गया. इस मायूसी के माहौल में मुस्कान लाने में ये खबर हमारी काफी मदद कर सकता है.
साथ में ये भी खबर है कि महंगाई दर में कमी आई है और खाने-पीने के सामान जिस तेजी से दिसंबर से बढ़ने लगे थे उसमें कमी आई है. कच्चा तेल जिस तरह से सस्ता हुआ है आगे भी महंगाई को कंट्रोल में रखने में आसानी हो सकती है.
व्यापार घाटा में भारी कमी
दूसरी अच्छी खबर व्यापार घाटे में आई कमी है. ताजा आंकड़ा बताता है कि हमारा व्यापार घाटा अब जीडीपी का महज 0.7 परसेंट हो गया है जो पिछले साल के इस समय की तुलना से काफी कम है.
आप कहेंगे कि व्यापार (इंपोर्ट और एक्सपोर्ट दोनों में) में कमी आई है जो परेशानी की वजह है. जिस तरह से कोरोनावायरस ने दुनिया की अर्थव्यवस्था को झकझोरा है, ग्लोबल ट्रेड में आगे भी कमी आना तय है और इसका असर अपने देश पर भी होगा. नफा-नुकसान का हिसाब तो बाद में होगा.
तो इसका जबाव ये है कि व्यापार घाटे में कमी के कई फायदे हैं.
सबसे बड़ा यह कि इससे करेंसी में स्थिरता आती है और अर्थव्यवस्था के रिस्क में कमी आती है. रेटिंग एजेंसी का अनुमान है कि व्यापार घाटा अगले वित्त वर्ष में कम रहने वाला है. इसका मतलब है कि अपने देश की करेंसी में स्थिरता आगे भी रहने वाली है. है ना अच्छी खबर.
चीन ने बताया कि इस वायरस को पछाड़ा जा सकता है
चीन के तरीकों से आपको मतभेद हो सकता है. लेकिन एक बात तो हम सबको माननी होगी कि चीन ने दिखा दिया है कि इस वायरस को कंट्रोल किया जा सकता है. चीन ने जिस तत्परता से और जिस स्केल पर ऐसा कर दिखाया वो कई देशों में संभव नहीं है. लेकिन यह अपने आप काफी सुकून देने वाली बात है कि यह वायरस ऐसा नहीं है जिसका तोड़ नहीं है. इस फीलिंग के साथ अगर हम कोरोना का मुकाबला करेंगे तो हौसला बढ़ेगा और फिर हम इसपर जल्दी से काबू कर लेंगे.
चीन का पटरी पर आने के दूसरे फायदे भी हैं. पूरी दुनिया की फैक्ट्री के रुप वाले देश में कारोबार फिर से सामान्य होने का मतलब है कि वैश्विक व्यापार में बड़े झटके से बचा जा सकता है. अपने देश में जिन सेक्टर्स (फार्मा, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटो उनमें प्रमुख हैं) का चीन पर निर्भरता ज्यादा है. उसमें फिर से तेजी लौटेगी और इसका फायदा देश की अर्थव्यवस्था को होगा.
कुछ फायदे जिसका हमने अनुमान भी नहीं लगाया था
इस संकट की वजह से पूरी दुनिया में हिदायत दी जा रही है कि अपना ज्यादा समय आप घर पर ही बिताएं. हो सकता है कि इसकी वजह से जिन सबके साथ हम क्वालिटी टाइम बिताना चाहते हैं उसमें हमें मदद मिले. और इस त्रासदी के बाद हम एक बेहतर सामाजिक प्राणी बन सकें. हर त्रासदी एक नए ऑर्डर की शुरुआत भी तो होती है. कोरोना संकट के बाद भी ऐसा ही होगा.
और इस त्रासदी में पूरी दुनिया की सरकारों का कड़ा इम्तहान होना है. अब ठीक से पता चलेगा कि सही समय पर, सही कदम उठाना किसे आता है.
इस त्रासदी को बातों से रोका नहीं जा सकता है. इसके लिए ठोस कदम उठाने होंगे. अगले दो-तीन महीनों में हमें पता चल ही जाएगा कि कौन सी सरकारें इसे रोकने में कामयाब रही और कौन फेल हुए.
इन सब बातों पर गौर कीजिए और इस त्रासदी के समय में अपने चेहरे पर थोड़ा मुस्कान आने दीजिए. कोरोना संकट से भी हम उबर ही जाएंगे.
(मयंक मिश्रा वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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