ये तथ्य पुराना है, लेकिन बहुत सारे पुरुष हैं जो ये सच मानने को तैयार नहीं हैं. कोरोना हमारे इतिहास का वो अभूतपूर्व मोड़ है, जो हमें कई पुरानी धारणाओं- मेंटल मॉडल- को बदलने को कह रहा है. हमें इसके लिए तैयार हो जाना चाहिए. ऐसा ही एक सच है - मेन आर वीकर सेक्स. शरीर से भी, मन से भी.
कोरोना से हुई मौतों को देखें तो इससे संक्रमित होने वाले पुरुषों में मृत्युदर 4.7% और महिलाओं में 2.8% है. ये कोरोना के कन्फर्म मामलों का प्रतिशत है. (आंकड़े वर्ल्डोमीटर से लिए गए हैं.)
दो और उदाहरण...
- चाइनीज सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक, चीन में कोरोना वायरस से पुरुष और महिलाएं समान रूप से संक्रमित हुए, लेकिन पुरुषों में मृत्युदर जहां 2.8% है, वहीं महिलाओं में ये इससे काफी कम 1.7% है.
- हॉन्गकॉन्ग की एक स्टडी है, एनल्स ऑफ इंटरनल मेडिसिन की. स्टडी कहती है कि 2003 में कोरोना वायरस के कारण पैदा हुई SARS महामारी में महिलाएं पुरुषों से ज्यादा संक्रमित हुईं, लेकिन पुरुषों में मृत्युदर 50% ज्यादा थी.
और भी सबूत...
वैज्ञानिकों ने विषय पर काफी काम किया है. वैज्ञानिक और फीजिशियन शैरॉन मोलेम भी उनमें से एक हैं. उनकी एक किताब आने वाली है, जिसका एक हिस्सा न्यूयॉर्क टाइम्स ने छापा है. मोलेम के मुताबिक, कोरोना से ज्यादा पुरुषों की मौत का कारण सिर्फ ये नहीं है कि ज्यादा पुरुष सिगरेट पीते हैं या इलाज कराने में आनाकानी करते हैं. दरअसल, स्त्रियों के शरीर की बनावट ही ऐसी है कि वो बीमारी से ज्यादा मजबूती से लड़ सकती हैं. इसकी खास वजह है जेनेटिक बनावट.
इस लेख के मुताबिक स्त्रियों की शारीरिक बनावट में जो दो क्रोमोसोम हैं - XX. उसके मुकाबले पुरुष के शरीर में सिर्फ एक X है और दूसरा Y. ये डबल X महिलाओं को बीमारियों से लड़ने के लिए दोगुनी ताकत देता है.
स्त्रियों का मस्तिष्क और रोग प्रतिरोधक क्षमता का राज इसी में छिपा है. यूं समझिए कि स्त्रियों के पास दो सेनाएं हैं और पुरुषों के पास एक.
महिलाएं ज्यादा जीती हैं. सौ साल की उम्र वाले लोगों में 80 प्रतिशत महिलाएं हैं और 110 साल वालों में तो 95 प्रतिशत महिलाएं हैं.
दिक्कत ये है कि अभी तक मेडिकल साइंस में जितने भी रिसर्च होते हैं या जो क्लीनिकल ट्रायल होते हैं, उसमें ज्यादातर पुरुषों के शरीर का अध्ययन किया जाता है. अब जो नए ट्रेंड सामने आ रहे हैं उसको देखते हुए जरूरी होगा कि नई दवाइयां और नई चिकित्सा ढूंढने के पहले स्त्री और पुरुष के शरीरों की जरूरतों का अलग से अध्ययन किया जाए.
फिर भी इतने प्रपंच...
एक छोटा सा फ्लैशबैग मारिए. पुरुषों के प्रभुत्व वाली इस दुनिया में हमने कितने प्रपंच किए हैं - नारी मुक्ति, नारी की बराबरी, फिर सशक्तीकरण, फेमिनिज्म और अब जेंडर न्यूट्रल वाला ट्रेंड. हमने कितने सारे दशक गुजार दिए हैं इस स्लो मोशन ड्रामा में.
कोरोना दुष्काल हमें चेतावनी दे रहा है कि हम और हमारी पूरी दुनिया कई बीमारियों से ग्रस्त है. स्त्रियों के प्रति नासमझी भी एक बीमारी है. उसका इलाज जरूरी है. उनकी बराबरी, हो सके तो उनकी प्राइमेसी -ज्यादा तव्वजो को नए सिरे से समझिए. शरीर से कोमल दिखने वाली महिलाएं दरअसल पुरुषों से न सिर्फ बराबर हैं, बल्कि शरीर से ज्यादा मजबूत हैं और मन से ज्यादा बेहतर.
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