ADVERTISEMENTREMOVE AD

राहत पैकेज पार्ट 2: मजदूर का कल संवारिए, पहले आज को तो संभालिए

इन प्रवासी मजदूरों को सरकार के पैकेज से कितना फायदा मिलेगा?

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

कंधे पर पूरी गृहस्थी उठाए सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलते मजदूर. सीमेंट मिक्सर में छिप कर जाते मजदूर. ट्रेन से कुचले जाते मजदूर, सड़क हादसे में मारे जाते मजदूर. पुलिस की लाठियां खाते मजदूर. उठक-बैठक करते मजदूर. सड़क किनारे बैठकर खैरात से पेट भरते मजदूर. लॉकडाउन के कारण नौकरी, शहर की कोठरी और रोटी खो चुके प्रवासी मजदूरों के लिए मदद आने में बड़ी देर हो गई.

20 लाख करोड़ के राहत पैकेज में से जिन मजदूरों को मदद की सबसे ज्यादा जरूरत थी, उन्हें कम मिला. जिन्हें मदद जल्दी चाहिए थी, उनके लिए ज्यादातर लॉन्ग टर्म ऐलान किए गए. ये ऐलान सुनकर कितने मजदूरों, कितने गरीबों, कितने किसानों के चेहरों पर मुस्कान आ गई होगी, कह नहीं सकते.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
झारखंड के चक्रधरपुर में 12 मजदूर फंसे हैं. वो बंगाल में अपने घर जाने की कोशिश करते हुए पकड़े गए, जमानत लेनी पड़ी. अब इतने पैसे नहीं कि मालदा जिले में अपने घरों को जा सकें. चक्रधरपुर में किराया देने और खाने के पैसे भी नहीं बचे हैं.

सड़क पर रहने को मजबूर मजदूर

हरियाणा से मध्य प्रदेश के लिए निकले 12 मजदूरों को दिल्ली पुलिस ने पकड़ लिया और फिर सड़क पर छोड़ दिया. अब ये रात भी सड़कों पर बिताते हैं. कोई शेल्टर होम तक नहीं मिला.

मध्य प्रदेश-महाराष्ट्र बॉर्डर पर 14 मई को बड़वाली जिले में हजारों मजदूरों ने पुलिस पर पथराव कर दिया. ये लोग महाराष्ट्र से आए थे, इन्हें बिहार जाना था, लेकिन पर्याप्त संख्या में बस नहीं थी. सब्र का बांध टूटा, सोशल डिस्टेंसिंग टूटी. मौके पर मौजूद एक पुलिस वाले ने कहा-'इन्हें घर जाने की बड़ी जल्दी है.' लेकिन दरअसल उन्हें घर जाने की जल्दी नहीं है, इनके पास वक्त कम है, खाना और पैसा उससे भी कम.

इन प्रवासी मजदूरों को सरकार के पैकेज से कितना फायदा मिलेगा?
जान जोखिम में डाल घर की राह पकड़ रहे मजदूर
(फोटो: ट्विटर)
0

अब जरा वित्त मंत्री के ऐलानों को याद कीजिए और बताइए कि इन प्रवासी मजदूरों को कितना फायदा मिलेगा? देश का दिल दुख रहा है प्रवासी मजदूरों की तकलीफों को देखकर. गांवों की तरफ उनके महापलायन के रास्ते में पहाड़ जैसी बाधाएं, हादसे, खाने की किल्लत, शारीरिक-मानसिक तकलीफ, बदसलूकियां...ये सब देखकर विभाजन के पलायन की याद आ जाती है. जरूरत है कि इस वक्त मजदूरों पर जो बीत रही है, उसके लिए कुछ तुरंत किया जाए. ट्रेन चली है लेकिन काफी नहीं. बस दौड़ रही है लेकिन काफी नहीं. शेल्टर होम बने हैं लेकिन सबके लिए नहीं. अनाज है लेकिन सबके पेट नहीं भरते.

ये भी पढ़ें- राहत पैकेज पार्ट-2:शहरी गरीब, किसान, प्रवासी मजदूर-किसे क्या मिला?

दो महीने बिना कार्ड मुफ्त राशन का स्वागत है, लेकिन रास्ते में बिलख रहे मजदूर कहां आपसे अनाज लेगा? इससे उसके पांव के छाले कैसे ठीक होंगे? अनाज की ये बोरियां रेल पटरी पर उनको कुचले जाने से कैसे रोकेंगी? क्या ये ट्रक-बस के पहियों और मजदूर के बीच आकर खड़ी हो जाएंगी कि वो इन्हें कुचल न दें?
इन प्रवासी मजदूरों को सरकार के पैकेज से कितना फायदा मिलेगा?
घर जाने को बेताब मजदूरों की बेबसी
(फोटो: ट्विटर)

गरीब किसी तरह अपना पेट पाले?

वन नेशन-वन राशन कार्ड का विचार अच्छा है, लेकिन ये भविष्य की बात है. मदद अभी चाहिए. गरीब मजदूरों को शहरों में किफायती किराए का मकान मिल जाए, इससे अच्छी बात क्या हो सकती है, लेकिन शहरों से भाग रहा मजदूर, कब तो शहर लौटेगा, कब तो लस्त मस्त फैक्ट्री मालिक ताले खोलेगे और गेट पर वो परचा चिपकाएगा कि हमें काम के लिए लोग चाहिए और कब उस मजदूर को काम मिलेगा और कब वो किराए में रहने के लिए एक अदद मकान ढूंढेगा. और ढूंढेगा तो कब उद्योगपति सब्सिडी का फायदा उठाने के लिए उनके लिए अपनी जमीन पर ये कोठरियां बनाएंगे. योजना अच्छी है, लेकिन दूर की कौड़ी है.

रेहड़ी पटरी वाले दाने-दाने को तरस रहे हैं, पुलिस उन्हें भगाती है, ग्राहक मिलते नहीं, कोरोना संक्रमण के भय के कारण न जाने कब उसका रोज का ग्राहक लौटेगा? तो इतनी आशंकाओं के बीच क्यों तो वो रेहड़ी पटरी वाला लोन लेने की सोचेगा और कैसे तो उस गरीब को लोन मिलेगा. वो गरीब किसी तरह अपना पेट पाले, अपने बच्चों को निवाला दे या बैंक के चक्कर लगाए?

हाउसिंग सेक्टर में मिडिल क्लास को 70,000 करोड़ की ब्याज सब्सिडी से वाकई में रियल स्टेट को बूस्ट मिलेगा और ऐसा होगा तो निर्माण क्षेत्र के मजदूरों को काम भी मिलेगा. लेकिन ये कब होगा? भविष्य में. मदद तो अभी चाहिए. इसी तरह सारे मजदूर न्यूनतम वेतन के दायरे में हों, सबको नियुक्ति पत्र मिले, सबका सालाना हेल्थ चेकअप हो, खतरनाक उद्योगों में काम करने वालों को ESCI में इलाज मिले, इन सबका स्वागत है, लेकिन डर है कि इन सुुविधाओं का फायदा लेने के लिए बहुत से मजदूर बचेंगे ही नहीं.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

यही हाल किसानों का है. नाबार्ड से 30 हजार करोड़ का सस्ता लोन मिले, किसे दिक्कत हो सकती है. लोन के लिए आवेदन, उसका निपटान, बीज-खाद खरीदना, फिर फसल काटकर बेचना, तब जाकर कुछ पैसे हाथ में आना. इस रास्ते में पड़ने वाली बाधाओं को इग्नोर भी कर दें, तो बड़ी लंबी प्रक्रिया है. इस माहौल में किसानों को अभी मदद चाहिए थी. यही हाल 2.5 करोड़ नए किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड देने के ऐलान का है.

इन तमाम ऐलानों में एक बात कॉमन है. इनको लागू करने के लिए बड़ी मशक्कत करनी होगी. कई लेयर हैं, ढेर सारी कार्रवाइयां है. तो जाहिर है इसमें वक्त लगेगा. और जितने ज्यादा लोगों के हाथ लगेंगे, उतनी ज्यादा लीकेज का डर. इसके बजाय ये कर सकते थे कि सीधे और सॉलिड मदद देते. जो जहां है वहीं उसके खाते में कुछ पैसे.

किसी की दलील हो सकती है कि प्लानिंग तो लॉन्ग टर्म होनी ही चाहिए. जरूर होनी चाहिए. मजदूर को अपने गांव, अपने शहर में ही काम और इज्जत मिल जाए. 100 नहीं इससे कहीं ज्यादा स्मार्ट सिटी बना लें, सामाजिक भेदभाव को खत्म कर लें, मजदूर के बच्चे को गांव में ही अच्छा स्कूल मिल जाए, छोटे शहरों में दिल्ली-मुंबई जैसी यूनिवर्सिटी खोल लें, बीमारियों का इलाज वहीं होने लगे तो जरूर पलायन रुकेगा. गरीब-मजदूर-शोषित शहरों की तरफ जाने को मजबूर नहीं होगा.

लॉकडाउन में उसकी जिंदगी लॉक नहीं होगी. घर लौटना उसके लिए जीने मरने का सवाल नहीं बनेगा. जब ये होगा, वो बड़ा अच्छा दिन होगा. लेकिन वो दिन कितने दिनों बाद आएगा, हम सबको अंदाजा है. इंतजार में आजादी के बाद इतने साल बीत गए. फिलहाल मजदूरों और गरीबों को तुरंत मदद चाहिए थी, क्योंकि डर है कि वो दिन देखने के लिए बहुत सारे बचेंगे ही नहीं.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×