पिछले कम-से-कम पचास वर्षों में, मानव जाति ने कोरोना वायरस जैसी त्रासदी नहीं देखी. जिसका जन्म चीन के वूहान में हुआ. इतने बड़े पैमाने पर इंसानों की मौत और आर्थिक नुकसान जैसे काफी नहीं था, मानवता के लिए अब सबसे बड़ा संकट ये है कि पूरा मामला सिर्फ गलती छिपाने या लापरवाही भर का नहीं था.
साधारण तौर पर कोई देश दो कदम आगे बढ़कर अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों के साथ मिलकर – पूरी पारदर्शिता और सक्रियता से – इस संकट की जड़ तक पहुंचने और समाधान निकालने की कोशिश करता. लेकिन मध्य साम्राज्य, जो कि खुद को सबसे उत्कृष्ट समझने का गुमान रखता है, ऐसा नहीं करता. चीन ने कई हफ्ते तक इस बीमारी को छिपाकर रखा और इसे पूरी दुनिया में बेतहाशा फैलने दिया. फिर, उल्टा अमेरिका को इसका कसूरवार ठहरा दिया. और अब, बीजिंग दुनिया को या तो हड़का रहा है या मीठी बातें कर अपनी काली करतूत को धोने की कोशिश कर रहा है.
कोरोना वायरस संकट: चीन ने पहली बार लापरवाही नहीं दिखाई है
ये कोई पहली बार नहीं है, ना तो आखिरी बार ऐसा होगा कि चीन ने लापरवाही दिखाई है. रौब दिखाना, बगलें झांकना, झूठ बोलना, सच छिपाना, ये सब विस्तारवादी और एकदलीय शासन के स्वभाव का हिस्सा है, जहां आगाह करने वालों की आवाज ही बंद कर दी जाती है. इसलिए यहां के अधिकारी बुरी खबर को दबाते हैं और ऊपरी दिखावे में लगे रहते हैं.
यहां आर्थिक विकास, अपराध, लोक स्वास्थ्य या सामाजिक अशांति के मसलों पर अधूरे सच को बढ़ावा देने की परंपरा रही है.
1958-62 के बीच ‘ग्रेट लीप फॉरवर्ड’ के दौरान, स्थानीय अधिकारी कृषि उत्पादों और औद्योगीकरण के बारे में नियमित तौर पर बढ़ा-चढ़ा कर लेखा-जोखा भेजते थे, जबकि लाखों लोग भूख से मरते रहे.
1990 के मध्य दशक में चीन के हेनान प्रांत में HIV की एक महामारी सामने आई, जो कि ब्लड और ब्लड प्लाजमा संग्रह से जुड़ी गड़बड़ी की वजह से हुआ. हजारों लोगों की जान चली गई. सरकार ने तब तक इसे छिपाने की कोशिश की जब तक स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने इस मानव-निर्मित-आपदा की रिपोर्टिंग शुरू नहीं की. 2002 के आखिर में, चीन में SARS महामारी शुरू हुई और पूरी दुनिया में तेजी से फैलने लगी. बीजिंग को सच्चाई कबूलने में 5 महीने लग गए.
राजनीतिक महकमे में इस बार भी रवैया ठीक वैसा ही दिख रहा है. 1989 में तियानमेन स्क्वायर पर लोकतंत्र की मांग करने वाले छात्र-कार्यकर्ताओं को किस तरह टैंक से कुचल दिया गया वो तस्वीरें आज भी लोगों के जेहन में ताजा हैं. सैकड़ों लोगों को विचारों की अभिव्यक्ति के लिए मार दिया गया, क्योंकि ये चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी के सिद्धांतों के खिलाफ था.
‘छल, रौब और इनकार’ की चीनी रणनीति
विरोध के बावजूद, दक्षिण चीन सागर में चीन का बलपूर्वक अतिक्रमण और चोरी से पूरे इलाके में अपनी सेना उतारना ऐसी ही एक मिसाल है. कुल मिलाकर चीन ने छल, रौब और इनकार का एक आदर्श ढांचा तैयार कर लिया है, आतंरिक तौर पर तिब्बत, शिंजियांग और हॉन्ग कॉन्ग में, और देश के बाहर जापान, भारत, वियतनाम जैसे दूसरे राष्ट्रों में.
‘उनके (चीन के) दिमाग में क्या चल रहा है ये जानना बहुत मुश्किल है... जब वो सबसे निष्ठुर और निर्मम बातें करते हैं उनके चेहरे पर मुस्कान होती है. माओ (जेडांग) ने मुझे मुस्कराते हुए कहा था कि उन्हें परमाणु युद्ध का कोई डर नहीं है...,’ पंडित नेहरू ने एक भविष्यदर्शी की तरह ये समीक्षा की थी.
चीन के साथ आपको अप्रत्याशित प्रतिक्रिया के लिए तैयार रहना होता है, आप पहले से कुछ अंदाजा नहीं लगा सकते. हो सकता है ये कुछ हद तक उनके अलग-थलग हो जाने की वजह से हो, लेकिन मेरे हिसाब से ये मुख्य तौर पर चीन का चरित्र है.पंडित नेहरू
कोरोना वायरस पर लौटें तो विजय गोखले, जो कि हाल तक भारत के विदेश सचिव रहे और चीन के जानकार हैं, लिखते हैं, ‘अब चीन अपना मानवीय चेहरा ओढ़ लेगा... पश्चिम में जो नुकसान हुआ उसे दुरुस्त करने की कोशिश करेगा, वहीं अफ्रीका, एशिया और दूसरी जगहों में पैसे के बल पर समर्थन जुटाएगा. जो चीन के खिलाफ आवाज उठाएंगे, उन पर या तो दबाव बनाया जाएगा या उन्हें सजा दी जाएगी. चीन की प्रतिक्रिया लगभग तय है, तीसरी दुनिया और एशिया के साथ खड़े होने की बात इस संकेत और कार्रवाई के साथ की जाएगी कि उसके पास हमारी अर्थव्यवस्था को बाधित करने की ताकत है. अलग-अलग विश्व मंच पर चीन अमेरिका के खिलाफ रुख कड़ा करेगा और पूरे क्षेत्र में दबाव बनाने की कोशिश करेगा.’
चीन बिलकुल ऐसा ही कर रहा है. 24 मार्च को चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने हमारे विदेश मंत्री डॉ. जयशंकर को कहा कि भारत इसे चीनी वायरस कहने से बचे क्योंकि ‘ये किसी भी तरीके से गवारा नहीं होगा और चीन को कलंकित करना… अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए नुकसानदेह होगा.’
चीन के साथ WHO की सांठगांठ और दुनिया को आगाह करने में नाकामी
‘चीन अमेरिका को निर्यात किए जाने वाले फेस मास्क और दूसरी मेडिकल सामग्री पर बैन लगा सकता है, कोरोना वायरस के तेजी से फैलने के बाद इनका अभाव है’ – 11 मार्च को ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, जो कि चीन की सत्तारुढ़ पार्टी से जुड़ा अंग्रेजी अखबार है.
अगले दिन, लिजियान झाओ, चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने ट्वीट किया: ‘हो सकता है अमेरिकी सेना ये वायरस लेकर वूहान आई हो’ – आगे ये भी लिखा कि ‘अमेरिका को इसका जवाब देना होगा.’
वहीं संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में, जब मार्च महीने में इसकी अध्यक्षता चीन के पास थी, चीन ने उस ड्राफ्ट पर रोक लगा दी जिसमें कोरोना वायरस के फैलने पर पूरी पारदर्शिता की मांग की गई थी.
दुख की बात ये है कि डॉ. टेड्रोस, WHO के डायरेक्टर जनरल जिनकी उम्मीदवारी को चीन का समर्थन हासिल है, ने कर्ज उतारते हुए ‘पारदर्शिता की प्रतिबद्धता’ पर चीन की जमकर तारीफ कर दी, जबकि सच्चाई इससे ठीक उलट थी, और कोविड-19 के टाइम-बम की टिक-टिक से दुनिया को आगाह करने में WHO नाकाम रहा.
राष्ट्रपति ट्रंप ने भी कहा है कि WHO ने कोरोना वायरस संकट पर चीन की तरफदारी की है. वो बार-बार कोरोना वायरस को ‘चीनी वायरस’ कहते रहे, साथ ही ये भी कहा कि ‘चीन ने जो किया है पूरी दुनिया उसकी बड़ी कीमत चुका रही है.’
और इस बार अमेरिका के राष्ट्रपति कुछ बढ़ा-चढ़ा कर नहीं कह रहे थे. कोविड-19 ने 200 देशों में 37,820 से ज्यादा लोगों की जान ले ली (31 मार्च, 11 बजे सुबह). मौत का ये आंकड़ा बेतहाशा बढ़ता जा रहा है, इसके खत्म होने की उम्मीद नजर नहीं आ रही. पूरी दुनिया पर मंदी का खतरा मंडरा रहा है. बेरोजगारी, सप्लाई चेन में रुकावट और सामाजिक अशांति बढ़ रही है.
कोरोना और चीन का रोल: दुनिया अभी क्या कदम उठा सकती है?
ग्लोबल एक्सपर्ट्स कहते हैं (फॉरेन अफेयर्स, 20 मार्च) कि कोविड-19 से वैश्वीकरण पर रोक लग जाएगी; मतलब दुनिया कम स्वछंद, कम समृद्ध, कम मुक्त रह जाएगी; सरकारों की भूमिका बढ़ेगी; वैश्विक आर्थिक गतिविधि कम होगी और निर्माण केन्द्र घरों के नजदीक आ जाएंगे.
वहीं चीन में, मुखर रिएल्टी कारोबारी रेड झिकियांग, जिन्होंने राष्ट्रपति शी जिनपिंग को ‘उनकी निष्क्रियता और फैसले लेने में देरी’ के लिए ‘गंवार’ कह दिया था, गायब हो गए हैं; लेकिन चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी में हलचल, जो कि लोगों में उठे व्याप्त आक्रोश की निशानी है, और तेज हो गई है. अपुष्ट खबरेंआ रही हैं कि चीन में पोलितब्यूरो की आपात बैठक बुलाने की कोशिशें जारी हैं जिसमें शी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.
इसलिए, व्यावहरिक तौर पर दुनिया के पास अब कौन सा रास्ता बचा है? चीन तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को इस संकट पर चर्चा की इजाजत नहीं देगा.
हालांकि, अमेरिका, यूरोप के देशों और भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे समान-सोच वाले राष्ट्रों को उच्च स्तरीय टेलीकांफ्रेंसिंग से कौन रोक सकता है, ये देश एक साथ मिलकर एक साझा बयान जारी कर सकते हैं, चीन से जवाब मांग सकते हैं.
ये कदम अपने आप में अभूतपूर्व होगा, और चीन को आत्ममंथन पर मजबूर होना पड़ेगा. धीरे-धीरे चीन के सामनों पर निर्भरता कम करने के लिए कदम उठाने होंगे. गैर-चीनी सामान थोड़े महंगे जरूर होंगे, लेकिन मानवता के सामने विकल्प ये है कि या तो थोड़ी ज्यादा कीमत चुकाई जाए या फिर चीन का खजाना भरा जाए और वैश्विक दबदबा और नए संकट पैदा करने की उसकी भूख को और तेज किया जाए. मानव जाति को अभी खुल कर बोलना होगा, या...
(लेखक कनाडा के पूर्व उच्चायुक्त, दक्षिण कोरिया के पूर्व राजदूत और विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता रह चुके हैं. उनका ट्विटर हैंडल @AmbVPrakash है. लेख में व्यक्त विचार निजी हैं. क्विंट का इससे कोई सरोकार नहीं है.)
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