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कोरोना के चंगुल से निकल रहा है या फंस रहा है भारत ?

अब भी कोई यह कहने की स्थिति में नहीं है कि कोरोना को रोक लिया जाएगा या आने वाले समय में इसके डर से दुनिया निकल पाएगी

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कोविड-19 को कोरोना-2020 बोलें तो बेहतर होगा. 2020 में एक के बाद एक कई देश लॉकडाउन होते चले गये. छह महीने बाद स्थिति यह है कि अनलॉक का पीरियड शुरू हुआ है. अब भी कोई यह कहने की स्थिति में नहीं है कि कोरोना को रोक लिया जाएगा या फिर आने वाले समय में कब तक इसके डर से दुनिया निकल पाएगी. स्थिति की गंभीरता यह है कि दुनिया में 63 लाख से ज्यादा कोरोना के मरीज हैं और पौने चार लाख के करीब लोग मौत का शिकार बन चुके हैं. कोरोना संक्रमित देशों में 7वें नंबर पर खड़ा भारत एक ऐसे पड़ाव पर है जहां वह समझ नहीं पा रहा कि कोरोना की चपेट से वह निकल रहा है या फिर और अधिक फंसने जा रहा है.

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लॉकडाउन सफल या कोरोना?

सत्ताधारी दल बीजेपी और उसकी सरकार समेत कई विद्वानों का मानना है कि भारत ने कोविड-19 की बीमारी से बेहतर तरीके से निपटा है और दूसरे देशों के मुकाबले यहां कोरोना का प्रकोप कम है. इसकी वजह वे सख्त लॉकडाउन को बताते हैं. थोड़ी देर के लिए यह मान लें कि लॉकडाउन सफल रहा, तो अब आगे क्या? यह सफलता किस काम की होगी अगर अनलॉक-1 के बाद कोरोना का संक्रमण बेकाबू हो गया.

जब 24 मार्च को 545 कोरोना मरीजे थे और चार लॉकडाउन के बाद तादाद दो लाख से ऊपर है, तो इससे आगे अनलॉक-1 इस संख्या को कहां ले जाएगी? यह भयावह कल्पना करने की हिम्मत नहीं होती, मगर यह भयावह मार्ग अगर खुला हुआ है तो लॉकडाउन सफल कैसे है!

'रिकवरी रेट अच्छा, मौत कम हो रही है!'

लॉकडाउन को सफल बता रहे लोग तर्क देते हैं कि भारत दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश है. फिर भी यहां कोरोना के कारण हो रही मौत की दर कम है. रिकवरी रेट यहां अच्छा है. अव्वल तो यह तर्क ही अजीबोगरीब लगता है कि किसी कम आबादी वाले छोटे देश में एक वायरस मौत का तांडव करे, तो बड़े देश में भी उसी हिसाब से तांडव हो. भौगोलिक परिस्थिति, स्वास्थ्य की स्थिति, प्रतिरोधक क्षमता जैसे कई तत्व इसे निर्धारित करते हैं.

यही वजह है कि ऐसे कई वायरस आए जिनका खौफ दुनिया के कई देशों में रहा, मगर भारत या कई अन्य देशों में नहीं रहा. फिलहाल कोविड-19 वायरस पर ही केंद्रित रहते हुए विभिन्न महादेशों की जनसंख्या और वहां कोविड-19 की स्थिति की तुलना करते हैं.

आबादी एशिया-अफ्रीका में, कोरोना अमेरिका-यूरोप में ज्यादा

एशिया में सबसे अधिक 4.6 अरब की आबादी है तो दूसरे नंबर पर अफ्रीका है जहां 1.33 अरब की जनसंख्या है. मगर, कोविड-19 के संक्रमण में एशिया तीसरे नंबर पर है जबकि अफ्रीका पांचवें नंबर (देखें तालिका). वहीं, कोविड-19 का संक्रमण सबसे ज्यादा यूरोप में है जबकि आबादी के लिहाज से यह महादेश 0.74 अरब की जनसंख्या के साथ तीसरे नंबर है.

इसी तरह कोरोना के संक्रमण में दूसरे नंबर पर उत्तर अमेरिका है जो 0.36 अरब की आबादी के साथ दुनिया में चौथे स्थान पर है. दक्षिण अमेरिका में 0.65 अरब की जनसंख्या है जो कोरोना संक्रमण में चौथे नंबर पर है.

महाद्वीपों में कोरोना और उसके प्रभाव को ऐसे समझिए

कोरोना से लड़ाई : 12 देशों से भारत आगे, 202 देश भारत से आगे !

यह बात स्पष्ट हो रही है कि जनसंख्या अधिक होने का कोरोना के केस से कोई संबंध नहीं है. अब दुनिया के स्तर पर संख्या के नजरिए से देखें तो कोविड-19 के कारण मौत के मामले में भारत 13वें नंबर पर है, जबकि संक्रमण के मामले में यह 7वें नंबर पर है. भारत में 1 जून तक 5,448 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि कोरोना पीड़ितों की तादाद 1,95,504 हो चुकी है. अमेरिका में 18 लाख 41 हजार 375 कोरोना मरीज और 1 लाख 6 हजार 270 लोगों की मौत के मुकाबले निश्चित रूप से भारत बेहतर स्थिति में है. संक्रमण में भारत से जो देश आगे हैं उनमें अमेरिका, ब्राजील, रूस, स्पेन, इंग्लैंड और इटली शामिल हैं.

कोरोना के कारण मौत के मामले में भारत से पहले जो 12 देश आते हैं वे हैं- अमेरिका, इंग्लैंड, इटली, ब्राजील, फ्रांस, स्पेन, मेक्सिको, बेल्जियम, जर्मनी, ईरान, कनाडा और नीदरलैंड.

जहां संक्रमण भारत से कम मौत ज्यादा

भारत उन 7 देशों से निश्चित रूप से बेहतर स्थिति में है जहां संक्रमण तो भारत से कम है लेकिन मौत ज्यादा है. ये देश हैं- फ्रांस, जर्मनी, ईरान, कनाडा, मेक्सिको, बेल्जियम, नीदरलैंड

जहां संक्रमण और मौत दोनों भारत से ज्यादा

भारत उन 5 देशों के मुकाबले भी खुशनसीब है जहां कोरोना के कारण संक्रमण और मौत दोनों भारत से अधिक है. ये देश हैं- अमेरिका, ब्राजील, इंग्लैंड, स्पेन, इटली

रूस इकलौता देश है जहां संक्रमण का आंकड़ा भारत से अधिक है लेकिन मौत के मामले में वह भारत से बेहतर है. रूस में 4,14,878 कोरोना संक्रमित हैं जबकि 4855 लोगों की मौत हो चुकी है.

इस तरह बारह देशों को (5+6+1=12) छोड़ दें तो 215 कोरोना पीड़ित देशों में 202 देशों की स्थिति भारत से बेहतर है. क्या इसका मतलब यu है कि कोरोना से निपटने में भारत इन 202 देशों से पीछे रह गया है? इसका उत्तर देने से पहले एक बार फिर जनसंख्या के नजरिए से तथ्यों की पड़ताल करते हैं.

यह बात सही है कि कोरोना से लड़ाई में भारत की विशाल जनसंख्या की अनदेखी नहीं हो सकती, जो दुनिया में दूसरे नंबर पर है. मगर, चीन जनसंख्या के मामले में नंबर वन पर है. चीन के मुकाबले कोरोना से संघर्ष में भारत की स्थिति बेहतर नहीं है. चीन में कोरोना संक्रमित 83,017 हैं और मौत का आंकड़ा 4,634 है.

जनसंख्या के घनत्व के हिसाब से बांग्लादेश भारत से आगे है. यहां जमीन कम और जनसंख्या ज्यादा है. बांग्लादेश में एक वर्ग किमी में 1146 लोग रहते हैं जबकि भारत में 406. बांग्लादेश में कोरोना के 49,524 मामले हैं और मौत का आंकड़ा 672 है. इस तरह चीन और बांग्लादेश का उदाहरण सामने रखें तो इन दोनों देशों के मुकाबले कोरोना से लड़ाई में भारत बेहतर स्थिति में नहीं है. ये दोनों देश कोरोना से लड़ाई में अधिक जनसंख्या वाली थ्योरी को भी खारिज करते हैं.

कम टेस्टिंग, ज्यादा एक्टिव केस यानी खतरा ही खतरा

जब जनसंख्या की बात आती है तो टेस्टिंग की भी बात आएगी. मतलब ये कि कोरोना मरीजों की पहचान के लिए कितनी टेस्टिंग की गयी. कोविड-19 की टेस्टिंग में भारत संख्या के हिसाब से दुनिया में 7वें नंबर पर है. वहीं, प्रति 10 लाख टेस्टिंग के मामले में भारत का स्थान 140वां है और यह संख्या है 2,783. भारत में 1 जून तक 38 लाख 37 हजार 207 लोगों की टेस्टिंग हुई है. अमेरिका में प्रति 10 लाख लोगों पर 53,723 लोगों की टेस्टिंग हुई है. फिर भी, अमेरिका का स्थान इस मामले में 35वां है. अधिक घनत्व वाले बांग्लादेश में प्रति 10 लाख आबादी पर 1951 लोगों की टेस्टिंग हुई है.

एक और महत्वपूर्ण तथ्य है कि कोरोना के एक्टिव केस किस देश में कितना है. यह आंकड़ा वर्तमान में किसी देश में कोरोना संक्रमण की वास्तविक स्थिति को बयां करता है. कोरोना के एक्टिव केस के मामले में भारत दुनिया में चौथे नंबर पर पहुंच चुका है जबकि एशिया में नंबर एक पर.

भारत से आगे 3 देश हैं अमेरिका, ब्राजील और रूस. एशिया में भारत के ठीक बाद पाकिस्तान है जहां 44,834 एक्टिव मरीज हैं. उसके बाद बांग्लादेश है जहां 38,265 एक्टिव मरीज हैं. एक्टिव केस बताते हैं कि एशिया में हालात गंभीर होने लगे हैं. आने वाले समय में यहां भी यूरोप या अमेरिका महादेश जैसी स्थिति देखने को मिल सकती है.

क्रिटिकल केस यानी गंभीर स्थिति वाले मरीजों की संख्या भी कोरोना के हालात को बयां करते हैं. इस मामले में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर और एशिया में पहले नंबर पर है. भारत में क्रिटिकल केस की संख्या 8,944 है. पहले नंबर पर अमेरिका है जहां 17,075 क्रिटिकल केस हैं.

एक्टिव केस और क्रिटिकल केस की स्थिति यह बताती हैं कि कोरोना के मामले में भारत सुरक्षित स्थिति में नहीं है. और, यह कहना बहुत मुश्किल है कि भारत ने कोरोना की स्थिति को सम्भाल लिया है. प्रति दिन कोरोना केस की बढ़ती रफ्तार इस तथ्य पुष्टि करती है. अप्रैल में एक दिन में अधिकतम कोरोना संक्रमण के 2013 मामले सामने आए. मई के पहले हफ्ते में यही दैनिक उछाल अधिकतम 3932 हो गया जो दूसरे हफ्ते में 4353, तीसरे हफ्ते में 6147, चौथे हफ्ते में 7113 और पांचवें हफ्ते में अधिकतम 8782 तक जा पहुंचा.

दिल्ली का उदाहरण काफी है

कोरोना के चंगुल से हम निकल रहे हैं या फंस रहे हैं- इस उधेड़बुन को समझने के लिए दिल्ली का उदाहरण काफी है. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली में अनलॉक-1 को लागू करने में सबसे आगे दिखते हैं. सबकुछ खुल रहा है. मगर, दिल्ली की सीमाओँ को वे खुले नहीं रखना चाहते. वे पूछते भी हैं कि दिल्लीवालों के लिए दिल्ली को खोलें या दिल्ली से बाहरवालों के लिए? इस सवाल में ही कोरोना का डर दिख रहा है. यूपी और हरियाणा जैसे दिल्ली से सटे राज्य भी अपनी-अपनी सीमाएं सील कर रखी हैं. उन्हें दिल्ली से डर लग रहा है जहां संक्रमण और मौत के आंकडों में स्पर्धा चल रही है.

कोरोना ने एक देश को दूसरे देश से, एक प्रदेश को दूसरे प्रदेश से डरा दिया है. अब एक शहर से दूसरा शहर, एक गांव से दूसरा गांव, एक कॉलोनी से दूसरी कॉलोनी, एक अपार्टमेंट से दूसरा अपार्टमेंट और यहां तक कि रिश्तेदारो को भी एक-दूसरे से सशंकित कर दिया है. कैसे कहें कि हम कोरोना के चंगुल से निकल रहे हैं. निकल रहे हैं मगर वैसे ही जैसे कोई दलदल में फंसा व्यक्ति निकलता है!

कोरोना से मौत में टॉप 20

  • अमेरिका-106,270
  • इंग्लैंड-38,489
  • इटली- 33,415
  • ब्राजील- 29,341
  • फ्रांस- 28,802
  • स्पेन- 27,127
  • मेक्सिको- 9,930
  • बेल्जियम- 9,486
  • जर्मनी- 8,605
  • ईरान- 7,878
  • कनाडा- 7,295
  • नीदरलैंड- 5,962
  • भारत- 5,448
  • रूस- 4,855
  • चीन- 4,634
  • तुर्की- 4,540
  • पेरू- 4,506
  • स्वीडन- 4,403
  • इक्वाडोर- 3,358
  • स्विटजरलैंड-1920

(प्रेम कुमार जर्नलिस्‍ट हैं. इस आर्टिकल में लेखक के अपने विचार हैं. इन विचारों से क्‍व‍िंट की सहमति जरूरी नहीं है.)

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