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Covid 19: कई सरकारें अरबों खर्च करने को तैयार,कहां है हमारी सरकार?

दूसरे देशों में और हमारे देश में एक बड़ा अंतर है.

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भगवान की कृपा है कि कोरोनावायरस अपने देश में अभी तक शांत ही है. प्रार्थना है कि यह कृपा बनी रहे और हम इस महामारी के चंगुल से बच जाएं. फिलहाल मैं चेतावनियों को अनदेखा ही करुंगा. ग्लोबल एक्सपर्ट जो कहें, उनकी मर्जी. आंकड़ों के हिसाब से हम इस महामारी से फिलहाल लिस्ट एफेक्टेड हैं.

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लेकिन अर्थव्यवस्था का डैमेज तो हो ही गया है. स्कूल-कॉलेज-मॉल्स बंद हैं, ज्यादातर कंपनियों में वर्क फ्रॉम होम की सुविधा दी गई है, इमरजेंसी को छोड़ दें तो लोगों ने घर से निकलना बंद कर दिया है, जरूरी सामानों को छोड़ दें तो लोगों ने खरीदारी बंद कर दी है. ध्यान रहे कि हमारी अर्थव्यवस्था में कंजप्शन का योगदान 60 परसेंट है जो करीब ठप ही हो गया है.

ऐसे में आशंका है कि छंटनियों की संख्या तेजी से बढ़ने वाली है. जो छोटे करोबारी हैं उनका बिजनेस बंद होने वाला है, बड़ी कंपनियों को नुकसान का अंदाजा नहीं है. इसीलिए वहां नौकरी मिलेगी, इसकी संभावना नहीं के बराबर है. तो इकनॉमी का क्या हाल होगा?

और ये पूरी दुनिया की कहानी है. लेकिन दूसरे देशों में और हमारे देश में एक बड़ा अंतर है. जहां दूसरे देशों की सरकारों ने लोगों तक सुविधा पहुंचाने के लिए सारे खजाने खोल दिए हैं, हमें रोज नए आश्वासनों से पेट भरना पड़ रहा है. एक मौका भी था जब पेट्रोल-डीजल की कीमत में भारी कटौती करके लोगों को कुछ राहत दी जा सकती थी, हमारी सरकार ने इसके ठीक उलट, एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी ताकि सरकारी खजाना भरता रहे.

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अमेरिका में वहां की सेंट्रल बैंक और सरकार की ओर से बड़ा राहत पैकेज

अब अमेरिका का ही हाल ले लीजिए. वहां कोरोनावायरस से 100 से ज्यादा मौंते हुई हैं और 6,500 मामले पाए गए हैं. इसको रोकने के उपाय तो हो ही रहे हैं, इकनॉमी में झटके से लोगों को कम नुकसान हो इसके लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं. अमेरिकी फेरडल रिजर्व (वहां की रिजर्व बैंक) ने एक हफ्ते में ब्याज दर में 1 परसेंट की कटौती कर दी. इतनी तेजी से इतनी बड़ी कटौती ऐतिहासिक है. इसके अलावा 700 अरब डॉलर का क्वाटिंटेटिव इजिंग प्रोग्राम शुरू किया गया है. इसका उद्देश्य है कि फाइनेंशियल सिस्टम को कोई दिक्कत ना हो.

साथ ही अमेरिकी सरकार 1 ट्रिलियन डॉलर का राहत पैकेज लाने वाली है. इसमें से 500 अरब डॉलर सीधा लोगों को दिया जाएगा- टैक्स छूट के रूप में या फिर डायरेक्ट सुविधा. 200 अरब डॉलर बिजनेस को संभालने पर खर्च होगा और बाकी पैसा उन सेक्टर्स- एयरलाइंस, टूरिज्म जैसे कुछ सेक्टर्स- को राहत पहुंचाने पर खर्च होगा जिनपर इस संकट ने सीधा नुकसान पहुंचाया है.

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ब्रिटेन में वहां की GDP का 15 परसेंट के बराबर का राहत पैकज

आप कहेंगे कि अमेरिका में ये चुनावी साल है और इसीलिए वहां लोगों को राहत पहुंचाने के लिए बड़े कदम उठाए जा रहे हैं. लेकिन ब्रिटेन में तो अभी-अभी चुनाव खत्म हुआ है. फिर भी नई सरकार ने लोगों को राहत पहुंचाने के लिए वहां की जीडीपी का 15 परसेंट यानी 330 अरब पाउंड के राहत पैकेज का ऐलान किया है. साथ ही यह भी कहा गया है कि अगर इससे भी बड़े राहत पैकेज की जरूरत होगी तो वो भी किया जाएगा.

ब्रिटेन के वित्तमंत्री ने कहा है कि लोगों की नौकरियों को बचाया जाएगा, लोगों की आमदनी को गिरने नहीं दिया जाएगा, छोटे कारोबारियों को राहत दी जाएगी, इस महामारी से लोगों को बचाने के लिए किसी भी तरह की कोताही नहीं होगी. स्कीम के तहत छोटे कारोबारियों को सरकार की गारंटी के साथ सही ब्याज पर लोन मिलेगा, जो लोन की किश्त नहीं चुका पा रहे हैं उनको तीन महीने तक की छूट मिलेगी.

इसके अलावा इटली, फ्रांस और स्पेन जैसे देशों में भी लोगों को राहत पहुंचाने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं. जो बिल पेमेंट नहीं कर पा रहे हैं, उनको भी राहत. EMI नहीं भरने की क्षमता है तो कोई बात नहीं.

दुनिया के तकरीबन हर देश में इस महामारी से अर्थव्यवस्था को कम नुकसान हो और लोगों को इससे कैसे बचाया जाए, इस पर युद्ध स्तर पर काम हो रहा है. 20 से ज्यादा देशों में ब्याज दर में बड़ी कटौती की गई है और दूसरी राहतें भी दी जा रही है.

लेकिन अपने देश की बात ही निराली है. राहत पैकेज तो छोड़िए, रिजर्व बैंक ब्याज दर कटौती करने में भी समय लगा रहा है. कंज्यूमर डिमांड को स्टिम्यूलेट करना तो छोड़िए, पेट्रोल-डीजल की कीमत का उदाहरण लें तो सरकार का अब भी ध्यान सरकारी खजाना भरने पर है. लगता है कि अपने यहां सरकारी तंत्र और आम लोग दो अलग-अलग कम्पार्टमेंट में रहते हैं.

ब्याज दर में कटौती पर रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा कि सही समय पर सही फैसला लिया जाएगा ताकि उसका असर हो. लेकिन जिसकी नौकरी गई है या जिसकी दिहाड़ी बंद हो गई है, वो आपके सुविधानुसार आने वाले सही समय का कब तक इंतजार करेगा?

कोरोनावायरस अप्रत्याशित त्रासदी है. शायद 2008 के वित्तीय संकट से भी भयावह. इससे होने वाले नुकसान भी बड़े कदम उठाकर ही कम किए जा सकते हैं. क्या हमारी सरकार इसके मूड में दिख रही है?

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