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दूसरे राज्यों के मुकाबले बिहार-झारखंड-ओडिशा में COVID19 काबू में?

बिहार, झारखंड और ओडिशा जैसे कम विकसित राज्यों में कोरोनावायरस कंट्रोल में दिख रहा है.

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महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडू जैसे राज्य तुलनात्मक रूप से ज्यादा विकसित हैं. वहां कोरोना के मामले तेजी से बढ़े हैं. लेकिन बिहार, झारखंड और ओडिशा जैसे कम विकसित राज्यों में मामला कंट्रोल में दिख रहा है.

क्या इन राज्यों में हार्ड इम्यूनिटी डेवेलप हो गई है और इसीलिए वहां खतरनाक कोरोना वायरस बेअसर हो गया है? उम्मीद है कि ऐसा ही हो, लेकिन फिलहाल इस बात का कोई वैज्ञानिक सबूत सामने नहीं आया है.

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क्या इन राज्यों में उतने मामलों की जांच हो रही है जितना होना चाहिए? बिल्कुल नहीं. इन राज्यों में फिलहाल सारा ध्यान हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्टर पर ज्यादा बोझ बढ़ाने को रोकना दिख रहा है.

क्या इन राज्यों के लोगों का देश के दूसरे हिस्सों, जिनमें कुछ को हॉट स्पॉट करार किया गया है, से काफी संपर्क है? बिल्कुल है.

बिहार, झारखंड, ओडिशा के लोग देश के अंदर माइग्रेशन में काफी आगे

2007 में एनएसएसओ का एक सर्वे हुआ था जिसमें माइग्रेशन पर आंकड़ा इकट्ठा किया गया था. उसके नतीजे बताते हैं कि देश के अंदर होने वाले माइग्रेशन में बिहार, ओडिशा और झारखंड के लोग काफी आगे हैं. उसके बाद से स्थिति में बदलाव हुआ हो, ऐसा नहीं दिखता है. किसी रेलवे स्टेशन या फिर हवाई अड्डे के नजारे से देश का माइग्रेशन पैटर्न आपको साफ दिख जाएगा. और इससे पता चलता है कि बिहार या झारखंड जैसे राज्यों से माइग्रेशन एक बड़ी सच्चाई अब भी है.

2007 के सर्वे के आंकड़ों पर जाने माने अर्थशास्त्री और नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगड़िया ने लिखा था कि देश के अंदर होने वाले माइग्रेशन में बिहार अव्वल रहा है. बाहर जाने वाले करीब 62 परसेंट बिहार के लोग दूसरे राज्यों में रहते हैं . और जिन राज्यों के लोग माइग्रेशन में आगे रहे हैं वो हैं दिल्ली, बिहार, झारखंड, उत्तराखंड और ओडिशा.

उनका लेख द न्यू बिहार नाम की किताब में छपी थी, जिसका प्रकाशन 2013 में हुआ था

आप कहेंगे कि कोरोना वायरस की बात के बीच मैं माइग्रेशन की कहानी क्यों बता रहा हूं. वो इसीलिए कि बिहार, झारखंड और ओडिशा के लोग देश के कई इलाकों में रहते हैं उनमें से कई वो भी जगह हैं जिनको कोरोना वायरस का हॉट स्पॉट माना जा रहा है. बहुत संभव है कि लॉकडाउन से पहले इन इलाकों से उन राज्यों में लोगों का आना-जाना रहा होगा. और खबरों के मुताबिक लॉकडाउन की घोषणा के बाद भी दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद जैसे शहरों से हजारों की संख्या में माइग्रेंट अपने-अपने राज्यों में वापस लौटे.

कम विकसित राज्यों में औसत से कम टेस्ट

इन तथ्यों को देखेंगे तो लगेगा कि इन राज्यों में जितने टेस्ट हो रहे हैं उससे कई गुणा ज्यादा टेस्ट होने चाहिए.

  • 31 मार्च के हिंदुस्तान टाईम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में हर 10 लाख आबादी पर औसतन करीब 6 टेस्ट हो रहे हैं
  • बिहार में करीब 8 और ओडिशा में 9
  • राष्ट्रीय औसत 32 का है
  • केरल में यही आंकड़ा 200 का है

दिल्ली, तमिलनाडु, कर्नाटक और राजस्थान में भी राष्ट्रीय औसत से ज्यादा टेस्ट हो रहे हैं. संभव है कि अब ज्यादा टेस्ट हो रहे होंगे. लेकिन फिर भी उतने नहीं जितने शायद होने चाहिए.

इन राज्यों में ज्यादा टेस्ट क्यों नहीं हो रहे हैं? हो सकता है कि उतने टेस्टिंग किट्स नहीं हैं जितने की जरूरत है. इसीलिए उन्हीं मामलों की जांच हो रही हैं जो बेहद जरूरी हों. दूसरी वजह शायद ये हो सकती है कि इन राज्यों में हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर की इतनी कमी है कि सरकारें उसपर और बोझ डालना नहीं चाहती हैं.

ब्रुकिंग्स के एक पेपर के हिसाब से बिहार में हरेक 10,000 की आबादी पर औसतन 1 सरकारी हॉस्पिटल बेड है, झारखंड में 3 और ओडिशा में 4. केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों में यह आंकड़ा 10 से ऊपर का है.

  • इन राज्यों में पब्लिक हेल्थकेयर पर खर्च काफी कम है.
  • बिहार में प्रति व्यक्ति औसत खर्च महज 491 रुपए है जबकि झारखंड और ओडिशा में क्रमश: 866 और 927 रुपए हैं.
  • केरल और कर्नाटक जैसे राज्यों में इससे कहीं ज्यादा खर्च होता है.

हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर में रातोंरात तो सुधार हो नहीं सकता है. लेकिन इस बात की जरूरत है कि इन राज्यों में जो भी संसाधन उपलब्ध हैं उनका बेहतर इस्तेमाल हो और टेस्ट की संख्या भी बढ़े. साथ ही इंफ्रास्ट्रक्चर को तेजी से बढ़ाने पर तेजी से काम हो.

ध्यान रहे कि कोरोना वायरस जैसा राक्षस का फैलना सदियों में एक बार होने वाली घटना है. इससे लड़ने का तरीका भी उतना ही दमदार होना चाहिए. इसके अलावा हमारे पास कोई और विकल्प है भी नहीं.

(मयंक मिश्रा वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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