मैं पूरी तरह से कन्फ्यूज और हताश हूं. प्रधानमंत्री ने अपनी ही करेंसी के 86% हिस्से को गैर-कानूनी करने का जोखिम भरा फैसला लिया. लेकिन, जो संभावित ब्रह्मास्त्र हो सकता था, वो आधे-अधूरे उपाय के चलते कड़वी दवा बनता जा रहा है.
उन्होंने क्यों गरीब और मिडिल क्लास के सामने बेहिसाब परेशानी का ढेर लगा दिया, जबकि गैर-कानूनी नकदी पर सर्जिकल स्ट्राइक का सबसे ज्यादा फायदा इन लोगों को ही होने वाला था? उस एक मेड के बारे में सोचिए, जिसने 1000 के 5 नोटों को जमाकर 5000 रुपये की बचत की, ताकि वह उसे अपने परिवार को भेज सके. उसके पास एक जनधन अकाउंट है, लेकिन उसने कभी उसका इस्तेमाल नहीं किया है. वह इस समय बेहद परेशानी में है, क्योंकि अफवाहों के बाद उसे लगता है कि उसके नोट अब किसी काम के नहीं रहे. इसके बाद उसके एक दोस्त ने उसकी मदद की और 100 के पांच नोट दे दिए. और इसके बाद वह मेड से लिए 'दागी' नोटों को लेकर बैंक चला जाता है और 4,500 रुपए की बंपर बचत करता है.
अब एक दूधवाले के बारे में सोचिए, जो अपने सप्लायर का भुगतान नहीं कर पाया और इस वजह से उसे बगैर मजदूरी के घर जाना पड़ा. अब एक गरीब किसान के बारे सोचिए जो अपनी पत्नी को एक गंभीर ऑपरेशन कराने के लिए चेन्नई लेकर गया, लेकिन उसके दाखिले के लिए भुगतान नहीं कर पाया? मैं प्रार्थना करता हूं कि वह अपनी पत्नी और होने वाले बच्चे को बचा पाया हो. ऐसी दर्द देने वाली लाखों कहानियां हैं.
चार घंटे का अल्टीमेटम- एक गैर जरूरी फैसला
मेरा मेन पॉइंट बिल्कुल साधारण है - नोटों को बंद करने का फैसला बड़ा और साहसी था. लेकिन, देश के साधारण और सामान्य लोगों को सिर्फ 4 घंटे दिए गए? उन्हें ये अल्टीमेटम देने की क्या जरूरत थी? क्या हम कुछ ऐसा नहीं कह सकते थे:
- 31 दिसंबर 2017 की आधी रात से 500 और 1000 रुपये के नोट पूरी तरह से बंद कर दिए जाएंगे.
- आज से बैंक और एटीएम इन नोटों को जारी करना बंद कर देंगे, लेकिन आप पुराने नोट अपने दस्तावेजों के साथ बैंक में जमा कर सकते हैं.
- आप आखरी दिन तक 500 और 1000 रुपए के पुराने नोटों से लेन-देन कर सकते हैं. 1 जनवरी 2017 से आप इन नोटों का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे.
बस इतना ही. सभी उद्देश्य पूरे हो जाते.
मुझे लगता है अब मैंने ब्यूरेक्रेटिक कबूतरों के बीच में एक लौकिक बिल्ली को बैठा दिया है. जवाब आएगा-
प्राइवेट सेक्टर वाले सरकारी कामकाज के बारे में क्या जानें, 50 दिन का समय अगर दे दिया जाता तो जो अपने बिस्तर के नीचे नोटों का बंडल रखते हैं वो ब्लैक को व्हाइट करने के हजार तरीके निकाल लेते. सरकारी फैसला आईएएस, आईआरएस अधिकारियों पर छोड़िए.
सच में? क्या काला धन इतनी आसानी से सफेद हो जाता?
कैसे, मेरे प्यारे आईएएस दोस्त, कैसे? याद रखिए इस विमुद्रीकरण से काले धन के एक हिस्से पर ही प्रहार हुआ है. जो सिर्फ बेहिसाब नकदी पर है. इसके अलावा काले धन का कोई और हिस्सा चाहे वह रियल एस्टेट हो, अघोषित सोना और ओवरसीज असेट्स इससे पूरी तरह अछूते हैं.
तो आइऐ देखते हैं, राम भाई ने क्या किया होता अगर उनके पास 1 करोड़ रुपये के गुलाबी नोट (1000 के नोट) किसी अखबार में लिपटे हुए नीले रंग सूटकेस में बंद कर बेड में रखे होते.
8 नवंबर 2016 को शाम 8 बजे राम भाई ने अपना शाकाहारी खाना खाया और अपने फेवरेट पीएम नरेंद्र मोदी के 'राष्ट्र के नाम संबोधन' को सुनने के लिए टीवी के सामने बैठ गए. 8:30तक वे पसीना-पसीना हो गए.
8:45 बजे उन्होंने अपने ज्वेलर श्याम भाई को 50 लाख रुपये का सोना खरीदने के लिए बुलाया. श्याम भाई आए, उन्होंने कहा, 'मैं सोना बेचने के लिए तैयार हूं, लेकिन अगर नोट 1000 के हैं, तो मैं 30 पर्सेंट प्रीमियम चार्ज करूंगा, मतलब मैं आपसे 60 लाख रुपये लेकर 40 लाख रुपये का सोना आपको दूंगा'. राम भाई इसके लिए तुरंत तैयार हो गए.
अब राम भाई के पास 40 लाख रुपये के सोने के बिस्किट, लेकिन 20 लाख रुपये का नुकसान था. राम भाई की नजर काफी समय से जगुआर XF पर थी, उन्होंने तय किया कि वैसे भी 50 दिन बाद ये गुलाबी नोट तो बेकार हो जाएंगे, तो क्यों न अपनी पत्नी के लिए एक चमचमाती हुई लाल कार खरीद ली जाए. इसके बाद एक कार बेचने वाले ने भी वही 'जुगाड़' किया और कैश लेकर कार बेच दी. इस तरह 40 लाख रुपये की काली कमाई ने टाटा मोटर्स की बैलेंसशीट तक का सफर तय कर लिया. और इस तरह से भारत की इकॉनमी बढ़ गई क्योंकि एक अतिरिक्त कार भी तो बिक गई.
अब देखिए श्याम भाई ने क्या किया. उन्होंने डॉलर खरीदने के लिए अपने रेग्युलर हवाला ऑपरेटर को फोन किया. दुबई के इस जैंटलमैन ने प्यार से मना करते हुए कहा, 'मैं इस गुलाबी टॉयलेट पेपर के साथ क्या करूंगा?'
उदास होकर श्याम भाई अपने परिवार के पास पहुंचे, जहां सभी लोग उनका बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. उनका बेटा नई हार्ले खरीदने वाला है, बेटी नया आईफोन 7 प्लस खरीदेगी और पत्नी लेगी नई 'इटेलियन जकूजी'. इस तरह उन्होंने 60 लाख रुपये को इन सब सामान में खपा दिया. डन! और इस तरह एक और 60 लाख रुपये भारतीय जीडीपी ग्रोथ का हिस्सा हो गए.
जब भी किसी करेंसी नोट को खत्म किया जाता है तो या तो वह नष्ट हो जाता है, या फिर किसी सम्पत्ति में बदल जाता है. इस तरह के कई उदाहरण दिए जा सकते हैं. लेकिन एक बात साफ है, अगर एक नोट को 50 दिन में खत्म होना है तो दो ही चीजें हो सकती हैं- या तो नोट खत्म हो जाएगा या फिर दूसरे एसेट क्लास में तब्दील होकर इकोनॉमी का हिस्सा हो जाएगा. दोनों ही हालात में प्रधानमंत्री अपने उद्देश्य में सफल हो जाते. 4 घंटे के अल्टीमेटम के बाद अफरा-तफरी नहीं होती. और साथ ही कंजम्पशन को बूस्ट भी मिलता, जिससे विकास दर में 2 परसेंट तक की बढ़ोतरी हो सकती थी.
प्राइवेट सेक्टर को बल मिलता, नौकरियों के मौके बढ़ते और खुशहाली बढ़ती. ऐसे प्लान में सबकी चांदी होती. ऐसा तब होता अगर मोदी जी अपने उद्यमी सोच को आजमाते और बाबुओं के ‘ये नहीं हो सकता है’ की सोच से ऊपर उठते.
- खराब तरीके से लागू करने की वजह से ब्रह्मास्त्र कड़वी दवा बन रहा है.
- डिस्ट्रेस की हजारों कहानियां रोज आ रही है.
- डर है कि कालेधन की लड़ाई में उठाया गया कदम एक नई समानांतर इकोनॉमी को ना जन्म दे दे.
- इतनी मुश्किल के बाद भी अगर यथास्थिति कायम रहती है तो कितने दुख की बात है.
नैतिकता या काले धन पर हमला
लेकिन, ऐसा नहीं हो सकता है. कहने वाले 'नैतिक जोखिम' का हवाला देंगे. कहा जाएगा कि कानून तोड़ने वालों को निकलने का रास्ता क्यों. क्या नैतिक जोखिम जो कदम अभी उठाए गए हैं, उसमें नहीं है.
हम कहानी को वहां से शुरू करते हैं जब पीएम का संबोधन सुनने के बाद राम भाई 8:45 बजे पसीना-पसीना हो गए थे. राम भाई ऐसे लाखों लोगों में से एक हैं, जो अभी 4 लाख करोड़ के बारे में सोच रहे हैं, जिसे उन्होंने बेसमेंट, गद्दों में, सूटकेस और लॉकरों में छिपा रखा है. आपको लगता है कि ऐसे लोग परेशान होंगे और मर जाएंगे, और अपनी जिंदगी भर की 'कमाई' किसी टैक्समैन को दे देंगे? नहीं सर, वे ऐसा नहीं करेंगे. वे अपने कैश को बचाने के लिए हर कोशिश करेंगे. कोई ऐसा जुगाड़, तरीका- अच्छा या बुरा, भयानक हो, आपराधिक हो या चालाक हो, हर हथकंडा आजमाया जाएगा.
धीरे से, लाखों कुटिल दिमागों की ताकत, ठगों की इंटरनेट की टैराबाइट वाली शक्ति एक डिवाइस जैसा प्लान लेकर आएगी. वे छोटे शहरों-कस्बों और गांवों में एक करोड़ गरीब और बेरोजगार लोगों की तलाश करेंगे. और 50 दिनों तक ये 1 करोड़ लोग लाइनों में खड़े होकर अपने अब तक यूज न हुए जन धन खातों में छोटी मात्रा में नकद रकम जमा करेंगे. हर कोई औसतन 3 लाख रुपये जमा करेगा. जब तक 3 लाख करोड़ बैंक में जमा नहीं हो जाते हैं. लेकिन, उसके बाद 4 लाख करोड़ में से बचे हुए 1 लाख करोड़ रुपये के काले धन का क्या होगा?
यहां, यह कहानी और दिलचस्प हो जाती है. यह एक लाख करोड़, बैंक शाखाओं के मैनेजरों, पोस्ट मास्टरों, दलालों जैसे लोगों के बीच जाएगा, जो इस प्रक्रिया को आसान बनाने में मदद करने वाले हैं. बिल्कुल उसी तरह जैसे आपको पासपोर्ट बनवाने के लिए या घर की रजिस्ट्री कराने के लिए या फिर बिजली बिल कम कराने के लिए देने होते हैं.
स्वच्छ नए भारत में आपका स्वागत है, जो अब काला धन और करप्शन रहित है - लेकिन अब इसके पास लाखों बेनामी बैंक अकाउंट और सम्पति है. और फिर क्या, 1 जनवरी आते ही इन बैंक खातों में नए चमचमाते बैंगनी नोट होंगे, अब इस काले धन का साइज भी छोटा होगा, जिसके लिए राम भाई को इतना बड़ा सूटकेस भी नहीं रखना होगा. क्योंकि अब 1000 के नोट नहीं हैं, बल्कि 2000 के नोट हैं, जो बैग के साइज को छोटा कर देंगे.
फिर से यथास्थिति
और फिर से वही कहानी. क्योंकि मेरे प्यारे पीएम को उनके समझदार सलाहकारों ने सही सलाह नहीं दी. उन्हें एक अंधेरे में फंसा दिया है. जो ब्रह्मास्त्र हो सकता था वो फुस पटाखा बन कर रह जाएगा. शोर तो खूब होगा, लेकिन रोशनी नहीं होगी. और फिर से करप्शन का वही सिलसिला. कितने अफसोस की बात है!
पोस्ट स्क्रिप्ट: इस सुबह, जब मैं अपने होटल से चेक आउट कर रहा था, तो मैंने 100 रुपये की टिप देने के लिए अपना बटुआ बाहर निकाला. लेकिन, मेरे पास दो ही नोट थे. एक 100 रुपये का और दूसरा 1000 रुपये का. मैंने उसे 1000 रुपये दिए और 100 रुपये अपने पास रख लिए (क्या पता अगर एयरपोर्ट पर मेरा स्नीकर्स बार खाने का मन कर जाए). इस अभाव के बीच कम से कम मेरे बटुए में थोड़ी जान बची थी.
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