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दिल्ली चुनाव 2020: राहुल-सोनिया की खींचतान से कांग्रेस को नुकसान?

राहुल और सोनिया के बीच खींचतान ने दिल्ली को लीडरशिप से दूर कर दिया

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झारखंड, महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों के नतीजों के बाद जिस तरह से कांग्रेस को मजबूती मिल रही थी, ठीक उसी तरह दिल्ली के नतीजे इस सबसे पुरानी पार्टी के लिए एक बड़ा झटका है. कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी, जिनकी सेहत भी ठीक नहीं, मार्च तक अपना उत्तराधिकारी खोज लेने पर जोर दे रही हैं और इस बीच कांग्रेस अंधकार में रास्ता तलाश रही है.

आम धारणा है कि राहुल गांधी निश्चित रूप से उनके उत्तराधिकारी हैं. लेकिन इसका दोनों ओर से विरोध है.

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राहुल जहां संगठन को अपनी मनमर्जी से चलाने के लिए पूरी तरह से खुली छूट चाहते हैं, वहीं उनकी मां सोनिया चाहती हैं कि पार्टी के मौजूदा स्वरूप, पदों की संरचना और अहम नियुक्तियों के ढांचे की विरासत को बनाए रखा जाए.

राहुल को कांग्रेस में कोई चुनौती नहीं है, लेकिन चुनावी सफलता नहीं मिलने की हालत में पार्टी उनसे यथास्थिति बनाए रखने की उम्मीद करती है. यह विचार और संगठन के भीतर अनौपचारिक रस्साकशी पार्टी में दूसरे जरूरी बदलावों को रोक रही है.

राहुल और सोनिया के बीच खींचतान ने दिल्ली को लीडरशिप से दूर कर दिया

यह खींचतान तब हुई जब दिल्ली के चुनावों की घोषणा हुई और चुनाव लड़ा गया. शीला दीक्षित के निधन के छह महीने बाद भी पार्टी उनके उत्तराधिकारी की खोज नहीं कर सकी. जबकि दावेदारों की संख्या भी बहुत थी, जिनमें युवाओं से लेकर बुजुर्ग तक शामिल थे.

अनौपचारिक रूप से राहुल और सोनिया दिन में एक बार जरूर मिलते हैं लेकिन वो अजय माकन, संदीप दीक्षित, शर्मिष्ठा मुखर्जी, राजेश लिलोठिया, अरविंदर सिंह लवली और आधा दर्जन दूसरे उम्मीदवारों के बीच सही व्यक्ति का फैसला नहीं कर सके.

अंत में अनगिनत विचार-विमर्श के बाद पुराने योद्धा सुभाष चोपड़ा को वोट से ज्यादा संसाधन जुटाने की उनकी काबिलियत के कारण दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. 

सुभाष चोपड़ा, अजय माकन, कीर्ति आजाद, जेपी अग्रवाल और स्वर्गीय शीला दीक्षित के वफादार जैसे कई गुटों के बीच टिकटों को लेकर छीना-झपटी से उम्मीदवारों की चयन प्रक्रिया गड़बड़ा गई.

AICC के प्रभारी पीसी चाको कई चुनावी समितियों को बनाने और उनका गठन करने में लग गए. घोषणा पत्र, प्रचार, अभियान और अन्य समितियों में 607 व्यक्तियों को रखा गया. हालांकि इन समितियों की शायद ही कोई ऐसी बैठक हुई, जब पैनल के सभी लोग मौजूद रहे.

जब तक उन्होंने औपचारिकताएं पूरी कीं, उससे पहले ही कांग्रेस के उम्मीदवार चुन लिए गए और वे मैदान में पहुंच गए. कांग्रेस के 40 स्टार प्रचारकों की लिस्ट को कभी भी काम में नहीं लाया गया. जबकि उनमें से ज्यादातर का घर दिल्ली में ही था. उम्मीदवार और पार्टी इनके लिए जनसभाएं, बैठकें और रैलियां आयोजित करने में नाकाम रहे.

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कांग्रेस के आंतरिक गुटों के बीच कोई सहयोग नहीं

दिल्ली कांग्रेस ने डीपीसीसी प्रमुख सुभाष चोपड़ा और क्रिकेटर से राजनेता बने कीर्ति आजाद के बीच खुली लड़ाई देखी. पार्टी के कुछ अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, कभी-कभी सोनिया गांधी के सामने भी माहौल इतना गर्म हो जाता था कि उन्हें दखल देना पड़ता था और अशोभनीय व्यवहार के लिए डांटना पड़ता था.

कहा जा रहा है कि कीर्ति आजाद ने सोनिया गांधी से पार्टी में फूट डालने की शिकायत भी की हैं. उनकी पत्नी पूनम, कांग्रेस की उम्मीदवार थीं.

ऐसा माना जाता है कि कीर्ति आजाद, पूजा चोपड़ा (डीपीसीसी प्रमुख सुभाष चोपड़ा की बेटी) और मनीष चतरथ (डीपीसीसी की प्रचार समिति के उपाध्यक्ष) 'बदल डालो' और 'ऐसी हमारी होगी दिल्ली' कैंपन को चलाना चाहते थे. जबकि AICC के सोशल मीडिया प्रमुख रोहन गुप्ता 'कांग्रेस वाली दिल्ली' कैंपन के साथ आगे बढ़ गए.

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शीला दीक्षित के कार्यकाल को लेकर ‘बहस’

कांग्रेस के भीतर कुछ लोग सोचते हैं कि क्यों पार्टी ने शीला दीक्षित युग पर जोर देकर उदासीनता की भावना को बढ़ाया, जबकि दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री खुद 2013 के राज्य विधानसभा चुनावों में बुरी तरह हार गईं थी. 

नई दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र से अरविंद केजरीवाल ने शीला दीक्षित को 25,864 वोटों से हराया था, जबकि शीला दीक्षित और कपिल सिब्बल उन्हें दिल्ली की राजनीति में 'नॉन एक्टर' और 'नॉन फैक्टर' बताने में लगे हुए थे.

यह साफ करने के लिए कि दिल्ली की राजनीति को शीला दीक्षित युग से कांग्रेस ने किस तरह देखा, एक असंतुष्ट कांग्रेसी नेता ने रॉबर्ट ब्राउनिंग के हवाले से कहा गया, "ये कितना दुखद, बुरा और पागल था- लेकिन फिर भी यह कितना मीठा था". हालांकि, नतीजों के बाद कई कांग्रेसी नेता शीला युग के गौरवशाली अतीत में वापस जा रहे हैं.

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बहुत कम लोगों को याद होगा कि दिल्ली कांग्रेस के “ऐसी होगी हमारी दिल्ली” नाम के घोषणापत्र जारी होने वाले दिन एक नेता के कथित आग्रह पर एक दूसरा गाना बजाया गया था. इसके बावजूद कांग्रेस आलाकमान मूक-दर्शक बना रहा.

दिल्ली कांग्रेस के प्रचार अभियान में विसंगतियां

प्रचार अभियान के दौरान पार्टी के घोषणापत्र, पार्टी के विज्ञापन और प्रचार सामग्री में जो लिखा गया था, उसके बीच कई विसंगतियां थीं. उदाहरण के लिए कांग्रेस के घोषणापत्र के 34 नंबर प्वाइंट में कहा गया, "कांग्रेस हर परिवार को रहने के लिए मकान देगी. इसमें हर झुग्गी-झोपड़ी के किराएदार और उसके मालिक भी शामिल होंगे. उनकी झुग्गी के ही स्थान पर 350 वर्ग फीट का एक फ्लैट सभी को दिया जाएगा."

लेकिन होर्डिंग्स में कांग्रेस मतदाताओं से 25 वर्ग मीटर यानी 269 वर्ग फीट के फ्लैट का वादा करती नजर आई. खैर, 8 फरवरी को मतदाता इस बात को लेकर ज्यादा चिंतित नजर नहीं आए.

प्रियंका गांधी और कुछ अन्य कांग्रेस नेताओं ने सीएए विरोधी कड़ा रूख अपनाया जबकि इस बारे में दिल्ली कांग्रेस से या उम्मीदवारों से कोई राय या सलाह नहीं मांगी गई.

जमीन पर ज्यादातर कांग्रेस उम्मीदवार वैचारिक दृढ़ता की कमी के कारण राष्ट्रवाद, शाहीन बाग, जामिया और जेएनयू के मुद्दों पर शांत बने रहे.

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कांग्रेस अब दो विधानसभा चुनावों (2015 और 2020) और दो लोकसभा चुनावों (2014 और 2019) में खाली हाथ रहकर एक संदेहास्पद हालत में पहुंच गई है. क्रिकेट की भाषा में कहें तो डबल पेयर या लगातार 4 बार शून्य.

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