ADVERTISEMENTREMOVE AD

दिल्ली हिंसा: सरकार की कहां रही खामी,5 नामी विश्लेषकों की राय

दिल्ली हिंसा को लेकर देश के कुछ नामी स्तंभकारों के लेख

Updated
छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

वीडियो एडिटर: विशाल कुमार

जब कोई बड़ी घटना घटती है तो हम संपादकीय पढ़ते हैं. वहां खबरों को सबसे तेज देने की होड़ नहीं होती है, थोड़ा ठहर कर विचार होता है, विमर्श होता है कि जो हुआ है वो क्यों हुआ है, क्या हुआ है और इसके क्या नतीजे निकलेंगे. तो मैंने दिल्ली हिंसा को लेकर देश के कुछ नामी स्तंभकारों के लेख पढ़े. उन्हीं के हिस्से मैं आज आपको सुनाने जा रहा हूं.

0

दिल्ली हिंसा पर क्या कहते हैं पॉलिटिकल कमेंटेटर प्रताप भानु मेहता

पॉलिटिकल कमेंटेटर प्रताप भानु मेहता ने द इंडियन एक्सप्रेस में लिखे एक लेख में समझाने की कोशिश की है कि दिल्ली में जो हिंसा हुई उसका बैकड्रॉप क्या था. वो लिखते हैं और मैं उन्हें कोट कर रहा हूं.

''दिल्ली के शाहीन बाग में प्रदर्शन को जारी रखने की अनुमति इसलिए नहीं दी गई क्योंकि सरकार नरम थी. इसके पीछे बीजेपी की रणनीति थी कि बहुसंख्यकों की भावनाओं को एकजुट कर फायदा उठाया जा सके. कुछ इस तरह कि ये देखो अल्पसंख्यक रास्ते बंद कर रहे हैं और हिंदुओं के अधिकारों के खिलाफ खड़े हो रहे हैं. ''

प्रताप भानु मेहता के मुताबिक बीजेपी की 'रणनीति' कुछ ऐसी थी.

“पहले हम भेदभाव करेंगे. फिर हम ये पक्का करेंगे कि कोई भी संस्थागत उपाय न हो. अगर कोई प्रदर्शन होता है तो हम उसे अल्पसंख्यकों, इटलेक्चुअल्स और तथाकथित देशद्रोहियों के दगा के सबूत के तौर पर इस्तेमाल करेंगे. इसके बाद बीजेपी नेता हिंसा के लिए उकसाएंगे, और जब हिंसा हो जाएगी तो हम उन्हें हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराएंगे.’’
प्रताप भानु मेहता
ADVERTISEMENTREMOVE AD

प्रताप भानु मेहता की तरह ही वरिष्ठ पत्रकार स्वामीनाथन अय्यर ने टाइम्स ऑफ इंडिया के लेख में शाहीन बाग के प्रदर्शन और उसे लेकर बीजेपी की रणनीति का जिक्र किया है. उन्होंने लिखा है-

“सामान्य तौर पर पुलिस- जो दिल्ली में बीजेपी के नियंत्रण में है- प्रदर्शनकारियों को हटा देती और ट्रैफिक बहाल करा देती. लेकिन दिल्ली के चुनाव करीब थे और बीजेपी को उम्मीद थी कि ट्रैफिक अव्यवस्था से उसे वोटों का फायदा होगा.’’
स्वामीनाथन अय्यर

अय्यर ने लिखा है कि बीजेपी ने शाहीन बाग को द्रेशद्रोहियों के अड्डे के तौर पर चित्रित किया.

अय्यर ने ये भी लिखा है कि इसके बाद बीजेपी के नेताओं ने खुलेआम हिंसा को उकसाया और फिर पुलिस मूकदर्शक बनी रही. उन्होंने इस बारे में कपिल मिश्रा के इस ट्वीट का जिक्र किया है जिसमें उन्होंने लिखा था -

“दिल्ली पुलिस को तीन दिन का अल्टीमेटम– जाफराबाद और चांद बाग की सड़कें खाली करवाइए इसके बाद हमें मत समझाइएगा , हम आपकी भी नहीं सुनेंगे, सिर्फ तीन दिन.’’
स्वामीनाथन अय्यर
ADVERTISEMENTREMOVE AD

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के करीबी सहयोगी रहे सुधींद्र कुलकर्णी और पीछे जाते हैं. क्विंट के लिए वो लिखते हैं आज बीजेपी और केन्द्र सरकार मुसलमानों से जो कह रही है वो बिलकुल वैसा ही है जैसा बंटवारे के बाद पाकिस्तान के नए शासक वहां रहने वाले हिंदुओं और अल्पसंख्यकों से कहते थे – ‘हम तुम्हें बर्दाश्त कर सकते हैं, लेकिन इसी शर्त पर कि तुम पाकिस्तान की हमारी कल्पना और यहां के मुस्लिम बहुसंख्यक की राजनीति को स्वीकार कर लो.’

“भारतीय मुसलमानों के लिए बीजेपी और संघ परिवार का गूढ़ संदेश यही है – ‘हम तुम्हें बर्दाश्त कर सकते हैं, लेकिन शर्त है कि हिंदू राष्ट्र के रूप में भारत की हमारी कल्पना और हिंदू बहुसंख्यक की राजनीति को तुम स्वीकार कर लो. तुम अगर नए भारत के इस आधार को नहीं मानते, तो हम तुम्हें बर्दाश्त नहीं करेंगे.’’
दिल्ली हिंसा पर सुधींद्र कुलकर्णी

सुधींद्र ये भी लिखते हैं कि मुसलमान सिर्फ CAA, NRC और NPR को लेकर नाराज नहीं हैं. 2014 से बीजेपी के नेताओं के साथ पूरा संघ परिवार मुसलमानों और उनके धर्म के खिलाफ लगातार दुष्प्रचार में लगा है. वो इसलिए भी नाराज हैं क्योंकि छोटे-छोटे इलाकों में क्रूर और हिंसक वारदातों को अंजाम देने वाले गुनहगारों को कोई सजा नहीं मिली.

उनकी राय है कि मुसलमान में असुरक्षा की भावना इसलिए भी बढ़ी क्योंकि बीजेपी के नेता कभी मुसलमानों को धमकाते रहे और उनपर कोई कार्रवाई नहीं हुई

ADVERTISEMENTREMOVE AD

CAA-NPR-NRC पर शेखर गुप्ता ने क्या लिखा?

द प्रिंट के एडिटर इन चीफ और वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता अपने एक आर्टिकल में देश की हवा में फैले इस जहर की जड़ें सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश में बताते हैं. वो लिखते हैं कि,

‘’इन दिनों CAA-NPR-NRC का जहर पूरे देश को दूषित कर रहा है. दुर्भाग्य से ये द्वेषपूर्ण कंटीली झाड़ी सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी जब जस्टिस रंजन गगोई और रोहिंग्टन नरिमन के बेंच ने अपने डायरेक्ट सुपरविजन में असम में National Register of Citizens यानी NRC शुरु करने का लैंडमार्क आदेश दिया.’’
शेखर गुप्ता, द प्रिंट के एडिटर इन चीफ

चलिए दंगे क्यों हुए, किसने कराए, इसका बैकग्राउंड क्या है.इसपर हमने इन स्तंभकारों के विचार सुने लेकिन इसका असर सिर्फ वो नहीं है जो दिख रहा है.इसके दूरगामी नतीजे निकलेंगे.

क्विंट के लिए लिखे आर्टिकल में वरिष्ठ पत्रकार आरती जेरथ लिखती हैं कि ब्रांड इंडिया छवि तहस-नहस हो रही है. ट्रंप की तड़क भड़क वाली यात्रा के दौरान भी दिल्ली का सांप्रदायिक दंगा चर्चा का केंद्र बन गया.

‘’दंगों के कारण ब्रांड मोदी को भी नुकसान पहुंचा है. यह चिंताजनक है क्योंकि उन्होंने आर्थिक क्षेत्र में विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए मेहनत की है और उन्हें 2024 में तीसरी बार प्रधानमंत्री चुने जाने के लिए इस पटकथा पर अमल करने की जरूरत है.‘’
आरती जेरथ

मैं थोड़ी देर पहले द प्रिंट के जिस लेख का जिक्र किया, उसी में शेखर गुप्ता चेतावनी देते हैं.-

''दिल्ली तो सिर्फ एक दंगा था. बंगाल, असम, उत्तर प्रदेश भी जोड़ लेंगे तो मरने वालों की संख्या और बढ़ जाएगी. अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि ये भारत में एक लंबे और स्याह अध्याय की शुरुआत है. यही वजह है कि बुनियादी कारणों की पहचान जल्द से जल्द होनी चाहिए.''

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×