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गुजरात चुनाव प्रचार की कहानी, विकास की जुबानी

कहां गुम गया विकास? गुजरात में चर्चा शुरू हुई विकास से लेकिन शुरुआती चर्चा के बाद इसकी जगह भावनाओं ने ले ली

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गुजरात में विधानसभा चुनाव का प्रचार थमा, अब रिजल्ट की बारी है. लेकिन पिछले कई हफ्तों में हमने बहुत कुछ सीखा. बहुत कुछ पाया. हां, एक बात का दुख रहेगा कि गुजरात की जनता को क्या चाहिए. इस पर कम ही चर्चा हुई. आइए जानने की कोशिश करते हैं कैंपेन की पूरी कहानी, विकास की जुबानी.

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विकास की स्प्लिट पर्सनेलिटी

कहां गुम गया विकास? गुजरात में चर्चा शुरू हुई विकास से लेकिन शुरुआती चर्चा के बाद इसकी जगह भावनाओं ने ले ली
कई लोगों का कहना है कि विकास बच्चों को कॉलेज में एडमिशन नहीं दिला पा रहा है
(फोटो: स्मृति चंदेल)

कोई कहता है, विकास पागल हो गया है- सड़कों पर, बसों में, रोजगार के मौकों में, खेतों-खलिहानों में, छोटे कारोबारियों की दुकानों पर, अस्पतालों में. इनका कहना है कि विकास बच्चों को कॉलेज में एडमिशन नहीं दिला पा रहा है, बड़ी डिग्री वालों को नौकरी नहीं दिला पाता. किसानों को उपज का सही दाम नहीं दिला पाता.

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हम जहां खड़े होते हैं, लाइन वहीं से शुरू

कहां गुम गया विकास? गुजरात में चर्चा शुरू हुई विकास से लेकिन शुरुआती चर्चा के बाद इसकी जगह भावनाओं ने ले ली
जीडीपी ग्रोथ के आंकड़ों विकास दिखाने की कोशिश 
(फोटो: स्मृति चंदेल)

इससे अलग विकासवादी खुद को ही विकास कह रहे हैं. उनके लिए विकास दर में बढ़ोतरी सब कुछ है. उनके दावों के पीछे बड़े-बड़े निवेश के आंकड़े हैं. इस बात का दावा है कि ग्रोथ में तो हम जहां खड़े हो जाते हैं, लाइन वहीं से शुरू होती है.

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लेकिन विकास के नाम पर

कहां गुम गया विकास? गुजरात में चर्चा शुरू हुई विकास से लेकिन शुरुआती चर्चा के बाद इसकी जगह भावनाओं ने ले ली
विकास की बजाए नकारात्मक और उलझाने वाले मुद्दे छाए
(फोटो: क्विंट हिंदी)

इसकी भी एक लंबी लिस्ट है. लिस्ट में सेक्स भी है, तालिबान की भी एंट्री हुई है, बाबर-खिलजी ने भी जगह बना ली है. ऐसे में पाकिस्तान का होना तो बनता है. और इसके अलावा हमेशा वाला ऊंच-नीच तो है ही. कुल मिलाकर, प्रचार में विकास के नाम पर ऐसे मुद्दों का विकास हुआ है, जो रिश्ते में विकास के न तो बाप हैं, न बेटे हैं.

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अभिव्यक्ति का विकास तो हो ही गया है

जिन बातों को चुनाव के अलावा बोलने में दिक्कत हो सकती है, उन्हें खुलकर बोला जा रहा है. अवमानना वगैरह गई तेल लेने. अगर बेबुनियाद आरोप लगाने से चुनाव जीता जा सकता है, तो ठीक है ना! केस-मुकदमा लड़ते रहेंगे. मुख्य उद्देश्य तो पूरा हो गया ना. साथ ही अभिव्यक्ति की लिमिट भी काफी बढ़ गई.

लेकिन संवैधानिक चेतावनी यह है कि जनता इस नुस्खे को आजमाने की भूल न करें. महंगा पड़ सकता है, जेल भी जाना पड़ सकता है.

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नए नेताओं का विकास तो हो ही गया

कहां गुम गया विकास? गुजरात में चर्चा शुरू हुई विकास से लेकिन शुरुआती चर्चा के बाद इसकी जगह भावनाओं ने ले ली
जनता का विकास भले नहीं हुआ पर कई नेताओं का खूब विकास हुआ
(फोटो: Liju Joseph/The Quint)

सेक्स सीडी से हार्दिक पटेल को कोई फर्क पड़ा हो, ऐसा दिख नहीं रहा है. जिग्नेश मेवानी और अल्पेश ठाकोर की पारी की शुरुआत हुई नहीं कि स्लॉग ओवर में मौका मिल गया. इतना तो कहा ही जा सकता है कि चुनाव के बहाने नए नेताओं का विकास तो हो ही गया.

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कंफ्यूज्ड जनता को जवाब मिला क्या?

महीनों के कैंपेन के बाद जनता फिर भी कंफ्यूज्ड. विकास को कहां खोजें, किस शक्ल में खोजें, उसके मुख्य लक्षण कौन-कौन से होंगे, उसकी भाव-भंगिमा कैसी है. और सबसे बड़ी बात- विकास पर इतनी बहस के बाद कहीं विकास रूठ गया तो.

मेरी एक छोटी-सी एक और फिक्र है- उस हाड़ मांस वाले विकास की भावनाओं को लेकर भी, जिनके बारे में इतना कुछ कहा जा रहा है.

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