बीते कुछ हफ्तों में नीरव मोदी और मेहुल चोकसी पर बहुत कीचड़ उछाला गया है. यह उचित ही है. लेकिन इस कारण से गुजरात के तमाम मेहनतकश हीरा कारोबारी भी बदनाम हुए. यह उनके साथ सरासर नाइंसाफी है.
दुर्भाग्य है कि कुछ लोगों की बेईमानियों का खामियाजा उस तमाम व्यापारियों को भुगतना पड़ रहा है, जिन्होंने इतने दिनों की मेहनत, लगन और भाईचारे से भारत और खास तौर पर सूरत को डायमंड एक्सपोर्ट हब के रूप में दुनिया भर में पॉपुलर बना दिया.
अंतर्राष्ट्रीय बाजार से जुड़ा होने की वजह से मुंबई एक तरह से सूरत का एक्सटेंशन है. जैसे जैसे कम्युनिकेशन और इंफ्रा ढांचा बेहतर होगा, तो हैरानी नहीं कि मुंबई का हीरा कारोबार भी गुजरात आ जाए. सूरत से 11 किमी दूर खाजोड़ गांव में अति-आधुनिक तकनीक से सुसज्जित साढ़े छह लाख वर्गफुट में एक डायमंड ट्रेडिंग सेंटर तैयार हो रहा है. एक बार यूरोप और सूरत के बीच सीधी उड़ानें शुरू हो गईं तो डायमंड कारोबार में मुंबई की अहमियत बहुत कम हो जाएगी.
ग्लैमर की चकाचौंध में भ्रष्ट हुए नीरव-मेहुल
अभी डायमंड कारोबार का बड़ा हिस्सा मुंबई आता है, क्योंकि मुंबई और यूरोप के बीच सीधा हवाई संपर्क है. जाहिर है ग्लैमर नगरी के ग्लैमर से हीरा-व्यापारी प्रभावित होते हैं. इसी चकाचौंध ने नीरव और मेहुल को भ्रष्ट कर दिया. ये दोनों नई पीढ़ी के ऐसे कारोबारी थे जो अपना व्यापार सूरत से मुंबई लेकर आए और यूरोप के अंटवर्प क्षेत्र से हीरा व्यापार का आकर्षण यहां लाने में सफल हुए. ये लालची बैंकर्स की मदद लेकर बड़े सपने देखती है, पर यहीं उनसे चूक हो गई और वो दलदल में फंस गए.
दान-धर्म में यकीन करने वाले मेहनतकश
सब जानते हैं कि डायमंड कटिंग का दुनिया का 99 परसेंट कारोबार भारत के पास है. उसमें भी करीब 95 परसेंट डायमंड कटर, एक्सपोर्टर और डायमंड ज्वैलरी एक्सपोर्टर गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में पालनपुर जैसी छोटी जगह से आते हैं.
इनमें ज्यादातर मध्य वर्ग या निम्न मध्य वर्ग के हैं और ओबीसी वर्ग से हैं. अधिकतर लोग जैन धर्म के उपासक हैं और दान देने के तौर पर जाने जाते हैं. जैन धर्म का 'अपरिग्रह' का गुण इनमें कूट-कूट का भरा है. ये खतरा उठाने से कभी नहीं डरते हैं. इनमें से कुछ अब रियल एस्टेट के धंधे में भी उतर गए हैं. और कुछ फिल्म फाइनेंसिंग में.
डायमंड उद्योग के तेजी के वक्त सूरत में कुछ महीनों के प्रवास के दौरान और पारिवारिक संबंधों के कारण वहां के दौरों के कारण उनमें से कइयों से मेरा व्यक्तिगत संबंध हैं. ईआरपी कंसलटेंट के रूप में मुंबई के कुछ ऐसे व्यापारियों से व्यावसायिक संबंध भी है.
किताबी ज्ञान कम, प्रैक्टिकल ज्ञान ज्यादा
यह जानकर आश्चर्य होता है कि उनमें से अधिकांश के पास सीमित किताबी ज्ञान है. उनकी सादगी भरा जीवन और दान देने की प्रवृत्ति अनुकरणीय है. आज के कई आधुनिकों की नजर में ये उपहासपूर्ण हो सकता है पर वे बड़े धार्मिक प्रवृत्ति के लोग हैं और अपने देवी-देवताओं के प्रति अंध भक्ति रखते हैं.
लेकिन क्या आप ऐसे लोगों पर हंस सकते हैं जो गांव के साधारण घरों से निकल कर अपने मूल विश्वास और भाईचारे के कारण आपसी प्रर्तिस्पर्धा के बावजूद इस ऊंचाई तक पहुंचे हैं? वास्तव में यह उद्योग आपसी सहयोग से आगे बढ़ने की सच्ची मिसाल है.
ज्यादातर ट्रेडर डायमंड के कटाई और पॉलिसिंग मजदूर के रूप में सूरत आए थे. यहां आकर ही उन्होंने कारोबार के गुर सीखे और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के सिलसिले में मुंबई से जुड़े. मुंबई में ऑफिस खोलने के बाद ही वे अंटवर्प, लंदन, बैंकाक और हांगकांग आदि जगहों से व्यापार में काबिल बने.
पहली पीढ़ी के अधिकांश हीरा व्यापारियों ने स्कूली पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी. पर वो अपने धंधे के मास्टर हैं. उन्होंने कम्युनिकेशन का अच्छा इस्तेमाल किया और यूरोप में अपने कंपिटीटर से ही डायमंड के अच्छी क्वालिटी बनाने के गुर सीख लिए.
अपने विकास की साझेदारी और कर्मचारी रखने में उन्होंने अपने गांव पालनपुर के लोगों को ही तवज्जो दी. और उन्हें नई-नई टेक्नीक सिखाई हैं. पड़ोसियों और संबंधियों को रखने के कारण कीमती हीरों की चोरी का डर कम होता है. सूरत डायमंड ट्रेड का हब है. लेकिन महंगा होने की वजह से डायमंड कटिंग और पॉलिशिंग अब ये धंधा आसपास के जिलों बोताड और अमरेली और सौराष्ट्र के कुछ इलाकों में फैलने लगा है.
व्यक्तिगत कुरियर यानी आंगड़िया सिस्टम डायमंड ट्रेड के लिए बहुत असरदार और सक्षम तरीके से चलता रहा है. भरोसे की वजह से कच्चे और पॉलिश हीरे और रुपए-पैसे को एक जगह से दूसरी जगह भेजने का ये तरीके बड़े अच्छे तरीके से चलता रहा है.
कम शिक्षा और टेक्नोलॉजी में हाथ तंग होने की वजह से वो जटिल बैंकिंग समझौते पर भी ज्यादा भरोसा नहीं करते. इस वजह से उनके कई व्यापारिक लेन-देन हवाला कारोबार की तरह देखे जा रहे हैं लेकिन आज के मशीनी व्यापारिक कारोबार की अपेक्षा ये ज्यादा भरोसेमंद और प्रभावी तरीका है.
सरकार ने हीरा व्यापार के संकट को नहीं समझा!
2008 में अमेरिका और यूरोप में आर्थिक संकट के बाद ही हीरा के कारोबार में गिरावट का दौर शुरू हुआ. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में दफ्तरों के खर्चे बढ़ गए और उनकी लागत निकलनी भी मुश्किल हो गई. और इन लोगों की दुनिया बिखरनी शुरू हो गई. ऐसे दौर में ही बैंकों ने एलओयू के मार्फत कुछ व्यापारियों को अपने चंगुल में फंसाया. दुनिया भर में अपने बढ़ते बाजार को बचाए रखने के लालच में इनमें से कुछ इस झांसे में आ गए.
पाठकों को याद हो तो आधुनिक शैली के हीरे-जवाहरात के शो रूम हाल के दौर के हैं और इन्होंने परंपरागत तौर-तरीकों के खरीदारी की आदतों को बदला है.
अगर समय से सरकार में बैठे लोगों ने हीरा व्यापार के संकट को समझा होता और उन्हें बेहतर फंडिंग उपलब्ध कराई होती तो आज इसकी नौबत नहीं आती. हीरा व्यवसाय में लगे लोग निकट भाईचारे पर आधारित और बहुत सम्मानित समुदाय से आते हैं. ये बहुत खामोशी से परेशानी में पड़े अपने लोगों की आर्थिक सहायता करते हैं और इसकी भनक बाहरी नेटवर्क को एकदम नहीं होती है. इतना ही नहीं ये अपने पारिवारिक व घरेलू झंझटों में भी एक-दूसरे की बखूबी सहायता करते हैं.
पहली बार ऐसा हुआ है कि नैतिक और सामुदायिक मूल्यों से बाहर जाकर काम करने वाले और क्षमता से बहुत ऊपर जाकर व्यापार करने वाले कारोबारी की सहायता में वे चूक गए हैं.
ये दुखद है कि उच्चतर मूल्यों में विश्वास करने वाले एक व्यापारिक समुदाय को आज अपने कुछ भाइयों की करतूतों की सजा इस तरह भुगतनी पड़ रही है.
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(रतन शारदा सीक्रेट्स ऑफ आरएसएस नामक किताब के लेखक हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार लेखक के हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)
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