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ममता क्यों नहीं मानतीं, आखिर चाहती क्या हैं? 

ममता बनर्जी के अड़ियल स्वाभाव की वजह से बंगाल में टकराव और हिंसाएं बढ़ी हैं.

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छह साल पहले जब ममता बनर्जी की किताब “अनफार्गेटिबल मेमोरीज” सामने आई तो इसमें एक बात बहुत अनोखी थी. 224 पन्नों की इस किताब में ममता बनर्जी ने अपने जीवन से जुड़ी ढेर सारी महत्वपूर्ण बातें और घटनाएं बताईं लेकिन एक बार भी ये नहीं माना कि उन्होंने कोई कभी कोई गलती की है.

जबकि आमतौर पर राजनेता जब अपनी आत्मकथा लिखते हैं तो गलतियों पर भी चर्चा करते हैं. ऐसे में इस किताब से ममता बनर्जी के व्यक्तित्व का अंदाज लगाया जा सकता है.

पहले पन्ने से आखिरी पन्ने तक किताब में ममता ने खुद को ऐसे पेश किया जैसे वो नैतिकता की मूर्ति हैं और जो करती हैं लोगों की भलाई के लिए करती हैं. यहां तक कि अगर कोई नियम तोड़ती भी हैं तो वो समाज की बेहतरी के लिए होता है.

ममता कहतीं हैं मुझे मत समझाओ

अब ममता बनर्जी के इस स्वभाव को पश्चिम बंगाल में चल रहे है मौजूदा हालात से जोड़कर देखिए तो बहुत कुछ साफ हो जाएगा. उनके गुस्से और कई बार अड़ियल फैसलों से पश्चिम बंगाल में सांप्रदायिक तनाव बढ़ा है. ममता बनर्जी को लगता है जो वो कहें वही सही.

अब देखिए ना कलकत्ता हाईकोर्ट ने मुहर्रम के दिन दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन रोकने का उनका आदेश खारिज कर दिया और राज्य सरकार को फटकार लगाई. लेकिन फिर भी ममता बनर्जी कह रही हैं कि मुझे कोई ये बताने की कोशिश ना करे कि मुझे क्या करना है.

मतलब ये कि ममता को लगता है सत्ता में रहने और विपक्षियों को सत्ता से दूर रखने के लिए चाहे जो करना पड़े वो सब जायज है.

क्या ममता तुष्टिकरण कर रही हैं?

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के कई फैसलों को बीजेपी ने मुस्लिम तुष्टिकरण का मुद्दा बना लिया है.

1. मुहर्रम की वजह से दुर्गा विसर्जन एक दिन टालने का आदेश.

2. 8 माह में दो बार कोलकाता में संघ प्रमुख मोहन भागवत के कार्यक्रम को मंजूरी नहीं देना.

3. 24 परगना के बशीरहाट और बदुरिया में लंबे वक्त तक सांप्रदायिक हिंसा.

4. कई शहरों में रह रहकर सांप्रदायिक तनाव की रिपोर्ट.

5. तीर, तलवार जैसे आक्रामक सिंबल वाले तमाम जुलूसों पर पाबंदी.

6. ममता बनर्जी ने सुप्रीम कोर्ट के तीन तलाक पर फैसले के मुद्दे पर अभी तक मुंह नहीं खोला है. वो कट्टरपंथी मुस्लिमों को नाराज नहीं करना चाहतीं.

7. रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों को समर्थन को भी बीजेपी तुष्टिकरण ही करार दे रही है. पश्चिम बंगाल के मुस्लिम संगठनों ने भी इसके पक्ष में रैलियां की हैं.

लेकिन ममता बनर्जी अपने रुख पर कायम हैं. उनके मुताबिक अगर यह तुष्टिकरण हैं तो जब तक जान है वो यह करती रहेंगी. ‘अगर मेरे सिर पर बंदूक रख दी जाए तब भी मैं यह करूंगी.’

ममता और BJP दोनों फायदे की फिराक में

ममता बनर्जी और बीजेपी नेता दोनों के तेवरों से साफ है बीजेपी और तृणमूल के बीच प्रतिद्वंदिता फिलहाल खत्म होने वाली नहीं है.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कुछ दिन पहले कोलकाता में ममता सरकार की शिकायत कर रहे कार्यकर्ताओं से साफ कह दिया, मैं यहां यह सुनने नहीं आया कि आपकी पिटाई हुई, मैं ये सुनना चाहता हूं आपने उनका मुकाबला कैसे किया.

दरअसल ममता बनर्जी की राजनीति बीजेपी के एजेंडा में फिट बैठती है. ममता बनर्जी को लगता है कि बीजेपी विरोध से उन्हें 27 परसेंट अल्पसंख्यकों को वोटों की गारंटी है. जबकि बीजेपी को लगता है कि ममता बनर्जी की नीतियों का विरोध करके उसे हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण का फायदा मिलेगा.

ममता बनाम BJP

राज्य सरकार के आदेश को खारिज करने और मुहर्रम और विसर्जन साथ करने का हाईकोर्ट का फैसला ममता बनर्जी के लिए तगड़ा झटका है. लेकिन वो इसे भी भुनाने का मन बना चुकी हैं.

ममता बनर्जी और बीजेपी पश्चिम बंगाल में एक ही नाव पर सवार हैं. ममता जैसे ही मुस्लिम तुष्टिकरण साधती हैं और बीजेपी उसका विरोध करके हिंदू वोटों को अपनी तरफ खींचने के लिए जोर लगा देती है.

इन दिनों तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच मुख्य मुकाबला चल रहा है और जिस तरह से दोनों पार्टियों ने माहौल बनाया है उससे लेफ्ट और कांग्रेस को समझ में नहीं आ रहा है क्या करें.

BJP के बढ़ते वोटबैंक से ममता में बैचेनी

ममता इस झगड़े को शांत नहीं होने देना चाहतीं. उन्हें लगता है कि राज्य में अल्पसंख्यक वोटों पर उनका एकाधिकार है. इसलिए अगर बीजेपी मजबूत हुई तो उन्हें जिताने के लिए भी लेफ्ट और कांग्रेस का वोट बैंक भी तृणमूल कांग्रेस के पास आ जाएगा.

बीजेपी भी चाहती है कि तृणमूल कांग्रेस के साथ लगातार मतभेद बने रहें, क्योंकि इसी की वजह से उसका जनाधार तेजी से बढ़ रहा है.

जिस रणनीति को ममता बनर्जी बीजेपी के बढ़ते असर को रोकने की स्ट्रैटेजी बना रही हैं पर दरअसल वो बीजेपी और संघ को अपना प्रभाव बढ़ाने के काम आ रही हैं.

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पश्चिम बंगाल में संघ शाखाएं तीन गुनी

ममता बनर्जी के कार्यकाल के दौरान बीजेपी और संघ का पश्चिम बंगाल में तेजी से फैलाव हुआ है. इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि 2011 में पूरे पश्चिम बंगाल में संघ की 580 शाखाएं थीं जो अब 1500 से ज्यादा हो गई हैं.

संघ की शाखाओं की सबसे ज्यादा ग्रोथ मालदा, कोलकाता, मिदनापुर, बीरभूम, मुर्शिदाबाद जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में हुई है.

बीजेपी और संघ ने तृणमूल कांग्रेस को जवाब देने के लिए उसी की तरह आक्रामक तेवर बना रखे हैं.

जैसे जब संघ प्रमुख मोहन भागवत के कार्यक्रम की मंजूरी रद्द की गई तो राज्य बीजेपी के अध्यक्ष दिलीप घोष ने अपने कार्यकर्ताओं से पुलिस और तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को पीटने का हुक्म दे डाला.

मतलब साफ है दोनों पार्टियां टकराव के जरिए फायदा उठाना चाहती हैं. दोनों पार्टियों की स्ट्रैटेजी कुछ इस तरह की है.

1. एक दूसरे को उकसाओ.

2. पुलिस पर कार्रवाई करने का दबाव बनाओ.

3. बीजेपी की रणनीति है अगर पुलिस तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई ना करे तो पुलिस के खिलाफ मुहिम चलाओ.

ममता के वार पर BJP का पलटवार

बीजेपी ममता बनर्जी पर वही नुस्खे आजमा रही है जो कभी ममता ने लेफ्ट सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए अपनाए थे.

1. ममता बनर्जी ने दुर्गा पूजा को अपना जनाधार बढ़ाने और लेफ्ट के खिलाफ माहौल तैयार करने का जरिया बनाया था. अब यही तरीका बीजेपी और संघ अपना रहे हैं

2. ममता बनर्जी ने बैठे बिठाए सालों से चले आ रहे मुहर्रम और दुर्गा पूजा के सद्भाव को अलग रंग दे दिया. जो मुद्दा कभी भी हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच विवाद की वजह नहीं बना अब वो तनाव की वजह बन गया है.

ध्रुवीकरण का असर

1. ममता सरकार की नजर राज्य की 90 विधानसभा सीटों पर है जहां मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका में हैं. 2011 में जीत के बाद ममता सरकार ने मुस्लिम समुदाय को खुश करने के लिए बड़े फैसले भी किए.

जैसे इमाम और मुअज्जिन को सैलरी देने के वादे पर अमल किया. पश्चिम बंगाल अल्पसंख्यक विकास और वित्त आयोग बनाया गया. नए मदरसों को मंजूरी मिली, तृणमूल कांग्रेस की तरफ से बड़ी बड़ी इफ्तार पार्टियों का आयोजन शुरू किया गया.

2. ममता के साथ टकराव से बीजेपी के प्रचार प्रसार को पंख लग गए हैं. 2014 में बीजेपी को 17 परसेंट वोट के साथ दो लोकसभा सीटें मिली थीं. लेकिन कुछ दिन पहले हुए नगर निगम चुनावों में बीजेपी को मिले वोट बढ़कर 30 परसेंट हो गए हैं.

बीजेपी और ममता दोनों झुकने को तैयार नहीं हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि तृणमूल कांग्रेस से टकराव से उन्हें फायदा होगा. ममता सरकार के 6 साल में पश्चिम बंगाल सांप्रदायिक तौर पर बेहद संवेदनशील हो गया है.

अब ममता बनर्जी और बीजेपी में माइंडगेम चल रहा है, ऐसे में सरकार के किसी एक्शन का रिएक्शन होने का खतरा बना रहेगा.

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