प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जीएसटी को गुड एंड सिम्पल टैक्स, यानी ‘अच्छा और साधारण कर’ बताया था. मगर देश के दिव्यांग इस टैक्स को जिस तरह से महसूस कर रहे हैं, वह कहीं राहुल गांधी की उस परिभाषा को जीवंत बना रहे हैं, जिसमें उन्होंने जीएसटी को ‘गब्बर सिंह टैक्स’ करार दिया था.
राहुल ने इस टैक्स को ‘ग्रैंड स्टुपिड टैक्स’ भी बताया था. दिव्यांग की नजर से देखें, तो यह परिभाषा भी उन्हें सही महसूस हो रही होगी.
क्या दिव्यांगों के लिए लग्जरी आइटम है कार?
कार एक लग्जरी आइटम माना जाता है. मगर क्या ये दिव्यांगों के लिए भी लग्जरी आइटम है? कतई नहीं. ये उनकी अनिवार्य आवश्यकताओं में है. जीएसटी की 18 फीसदी दर देखकर ऐसा नहीं लगता कि दिव्यांगों के लिए कार अनिवार्य आवश्यकता है. इस हिसाब से तो दिव्यांगों को बाकी चीजों पर जिस तरीके 5 फीसदी जीएसटी लगता है, इस पर भी उतना ही लगना चाहिए. मगर हो रहा है ठीक उल्टा.
जब दिव्यांग कार खरीदने जाते हैं, तो उनसे पूरे 28 फीसदी जीएसटी की वसूली कर ली जाती है. तब दिव्यांगों को जीएसटी ‘गब्बर सिंह टैक्स’ ही महसूस होता है. 10 फीसदी रीफंड के लिए उनको दावा करना होता है. और जब आप दावों की स्थिति को समझेंगे, तो आप भी इत्तफाक रखेंगे कि दिव्यांगों को हकीकत में कोई टैक्स छूट नहीं मिल रही है.
GST लागू होने पर भी नहीं बदली रीफंड की परिस्थिति
जीएसटी 1 जुलाई 2017 में लागू हुआ. उससे पहले यह एक्साइज ड्यूटी के तौर पर था. जहां तक टैक्स और टैक्स छूट में रीफंड की बात है, तब और अब में कोई फर्क नहीं आया है. उल्टे अब नियम और सख्त हुए हैं और दिव्यांगों की मुश्किलें और बढ़ी हैं. कार खरीदने की बात सोचते ही दिव्यांगों के सामने मुश्किलों का अम्बार लग जाता है.
जीएसटी की दर में जो छूट दिव्यांगों को मिल रही है, उसे वास्तव में हासिल करना उनके लिए टेढ़ी खीर है.
6 साल में महज 452 लोगों को टैक्स छूट का सर्टिफिकेट!
डिपार्टमेंट ऑफ हेवी इंडस्ट्री एंड इन्फॉर्मेशन की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, मार्च 2011 से 31 मार्च 2017 के बीच 6 साल में दिव्यांगों को टैक्स छूट के महज 452 सर्टिफिकेट जारी किए गए. ताज्जुब की बात ये है कि इससे पहले के आंकड़े मंत्रालय के पास भी उपलब्ध नहीं हैं. इस सर्टिफिकेट को पाने के बाद ही दिव्यांग उस छूट को पाने के हकदार होते हैं, जो सरकार से टैक्स छूट के रूप में उन्हें दिए जाते हैं.
6 साल में महज 22 ने किए रीफंड के दावे, 5 नामंजूर
वित्त मंत्रालय से आरटीआई के जरिए ये सूचना आपको और भी अधिक चौंकाएगी कि इन 452 लोगों में भी महज 22 लोगों ने ही इस सर्टिफिकेट का इस्तेमाल करते हुए टैक्स छूट के लिए आवेदन किया. इनमें से भी 5 आवेदन अलग-अलग कारणों से सीबीआईसी (केन्द्रीय अप्रत्यक्ष कर व कस्टम बोर्ड) ने रद्द कर दिए. यानी महज 17 दिव्यांगों के आवेदन स्वीकार किए गए. 6 साल में महज 17 दिव्यांगों ने अंतत: रिफंड के लिए आवेदन दिए.
रीफंड के 4 आवेदन तो समय रहते आवेदन नहीं करने की वजह से रद्द किए गए. (RTI/GGM/32/17-18/5179)
रीफंड के 2 आवेदनों में एक को आवेदन प्रक्रिया में कमी के आधार पर रद्द किया गया था, जिसे कमिश्नर (अपील)/CESTAT में चुनौती दी गयी. दावाकर्ता के पक्ष में आदेश आने पर आखिरकार 14 दिसंबर 2017 को रीफंड मिल सका. (ये जानकारी 22 मार्च 2018 को RTI के तहत मांगी गयी जानकारी के जवाब Letter No VGN (30)118/RTI/17/260 के अनुसार है.)
बीते साल महज 138 को जारी हुए टैक्स छूट के सर्टिफिकेट
ऐसा नहीं है कि जीएसटी लागू होने के बाद स्थिति में कोई बदलाव हुआ हो. अगर 1 अप्रैल 2017 से 1 अप्रैल 2018 के दौरान आंकड़ों पर गौर करें, तो पूरे देश में महज 138 लोगों को कार खरीदने पर एक्साइज ड्यूटी/जीएसटी कन्सेशनल सर्टिफिकेट के रूप में छूट लेने के प्रमाण पत्र मिले.
सितंबर 2018 तक इस साल यह संख्या 178 हो चुकी है. इनमें से कितने लोगों ने जीएसटी में छूट का फायदा लेने के लिए रीफंड का आवेदन किया है, अभी इससे जुड़े आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. ये जानकारी भी उपलब्ध नहीं है कि कितने लोगों के आवेदन मंजूर या नामंजूर किए गए.
दिव्यांगों के लिए रीफंड का चक्कर ही क्यों?
सवाल ये है कि दिव्यांग को रीफंड के चक्कर में फंसाया ही क्यों जा रहा है? सैनिकों को भी एक्साइज ड्यूटी से छूट मिलती है. बगैर किसी दिक्कत के वो स्टोर से छूट के साथ सामान हाथों-हाथ खरीद लेते हैं. यहां तक कि रेलवे भी दिव्यांगों के लिए ऐसी ही सुविधा देता है. यहां तक कि इनकम टैक्स डिडक्शन भी दिव्यांगों के लिए बेहद आसान हैं. फिर, इनके साथ कार की खरीद में यह अन्याय क्यों?
जीएसटी लागू होने के बाद 1 मई 2018 को भारी उद्योग मंत्रालय ने एक दिशा-निर्देश जारी किया. उम्मीद ये थी कि दिव्यांगों के लिए जीएसटी की दर में छूट का लाभ आसानी से मिलेगी, इसके लिए नियमों को आसान किया जाएगा, मगर ऐसा कुछ नहीं दिखा.
आइए डालते हैं कार खरीदने वाले दिव्यांगों के लिए जरूरी दिशा-निर्देशों पर एक नजर :
- डिपार्टमेंट ऑफ हैवी इंडस्ट्रीज के डिप्टी सेक्रेटरी से नीचे का व्यक्ति यह तय नहीं कर सकता कि वाहन शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति के इस्तेमाल के लायक है. (आश्चर्य है कि मंत्रालय ने सक्षम अधिकारी का स्तर इतना ऊंचा कर दिया है कि यह प्रक्रिया जटिल ही रह गयी)
- कार के खरीदार को हलफनामा देना होगा कि वह खरीद की तारीख से आगे 5 साल तक इसे अपने ही पास रखेगा. (यह नियम भी दिव्यांगों पर एक बोझ की तरह है.)
- दिव्यांग के लिए कार (ड्राइवर समेत 7 सीटर) का मतलब है, कार को दिव्यांग चला सकता है. कार को इस रूप में डिजाइन किया गया है कि वह दिव्यांग के चलाने लायक है. कार दिव्यांग के लिए ही है.
इसके अलावा दिव्यांगों को कार पर जीएसटी में छूट के लिए अनिवार्य शर्त हैं:
- विशेष तौर पर दिए गये फॉर्म एनेक्स्चर ए को भरना.
- एनेक्स्चर बी में दिये गये फॉर्मेट में सरकारी अस्पताल के मेडिकल ऑफिसर से प्रमाणपत्र.
- एनेक्स्चर सी के दिए गये फॉर्मेट में यह घोषणा करना कि पिछले 5 साल में जीएसटी में छूट की यह सुविधा नहीं ली गयी है.
- एनेक्स्चर सी में ही जीएसटी में छूट का लाभ लेने के बाद अगले 5 साल तक कार को अपने पास रखने की घोषणा करना.
- अगर कोई आवेदक अपनी कार को उस अवस्था में फिट कराकर पाना चाहता है जिस अवस्था में वह उसे इस्तेमाल कर सके तो अतिरिक्त प्रमाण पत्र देने होते हैं. एनेक्स्चर डी में दिए गए परफॉर्मा के हिसाब से उसे डीआरटीओ से इस आशय का प्रमाण पत्र लेना होता है कि जीएसटी में छूट के लिए प्रस्तावित कार का इस्तेमाल आवेदक खुद करेगा. साथ ही आवेदक आवश्यक फिटिंग के बाद उस कार का इस्तेमाल करने के हिसाब से शारीरिक रूप से सक्षम है.
- हर तरीके से सभी प्रकार के आवेदन हासिल कर लेने के बाद भारी उद्योग मंत्रालय तय शुदा फॉर्मेट एनेक्स्चर ई पर चार हफ्तों के भीतर प्रमाणपत्र देता है.
टैक्स छूट का सर्टिफिकेट मिलने पर भी हल नहीं होती मुश्किल
अब इस सर्टिफिकेट का दिव्यांग करे क्या? किसके पास वह यह सर्टिफिकेट लेकर जाए कि उसे वह टैक्स छूट मिल सके जिसके लिए अब तक इतने पापड़ बेले गए हैं. आश्चर्य है कि न तो भारी उद्योग मंत्रालय और न ही वित्त मंत्रालय के बीच ऐसा कोई समन्वय है, जिससे सर्टिफिकेट बन जाने के बाद आसानी से जीएसटी रिफंड दिव्यांग को मिल सके.
इस प्रक्रिया में कहीं इस बात का भी जिक्र नहीं है कि जिस दिव्यांग ने पहले से गाड़ी खरीद ली है उसे कैसे जीएसटी में छूट का फायदा मिले. सारी प्रक्रिया खरीद से पहले की बतायी गयी है.
दिव्यांगों को परेशान करने वाली है पूरी रीफंड की प्रक्रिया
इतना नहीं इनमें से हर प्रक्रिया लम्बी, थकाऊ और दिव्यांग को परेशान करने वाली है. उदाहरण के लिए तयशुदा परफॉर्मा में सरकारी डॉक्टर से मेडिकल सर्टिफिकेट हासिल करना. यह आसान काम नहीं है. यह सर्टिफिकेट देने के लिए पूरी मेडिकल टीम बैठती है. इस बैठक की कोई निश्चित तारीख नहीं होती. इसके लिए डेट लेना होता है. लम्बी लाइन लगती है.
मेडिकल बोर्ड के सामने निश्चित तिथि को हाजिर होना पड़ता है. वहां फाइल निबटने में वक्त लगता है. तब जाकर कहीं आवेदक यानी दिव्यांग यह मेडिकल सर्टिफिकेट हासिल कर पाता है.
सवाल ये है कि एक दिव्यांग को और कितनी बार परेशान किया जाएगा? बारम्बार सर्टिफिकेट की जरूरत क्या है? शायद यही वजह है कि दिव्यांग 10 फीसदी की राहत के बजाए 28 फीसदी का जीएसटी झेलने को आसान मानते हैं. अब तो यह बात समझ में आ रही होगी कि करोड़ों विकलांग लोगों में 6 साल में महज 17 दिव्यांग ही कर छूट हासिल क्यों के योग्य क्यों पाए? दिव्यांगों पर यह अत्याचार आखिर कब बंद होगा?
(प्रेम कुमार जर्नलिस्ट हैं. इस आर्टिकल में लेखक के अपने विचार हैं. इन विचारों से क्विंट की सहमति जरूरी नहीं है.)
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