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वीरूजी, अपने शब्दों से गुरमेहर की विचारधारा को खामोश न करेंः थरूर

शब्दों की समझ में बहुत छोटे अंतर से बदल जाता है बहस का मुद्दा

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मेरे क्रिकेट हीरो वीरेंद्र सहवाग के राजनीति से प्रेरित बहस में कूदने को लेकर मैं बहुत आहत हूं. सहवाग ने गुरमेहर कौर के शब्दों में कहा कि 'दो तिहरे शतक मैंने नहीं, मेरे बैट ने लगाए हैं.'

आदर्शवादी छात्रा गुरमेहर कौर की टिप्पणी, 'मेरे पिता को पाकिस्तान ने नहीं, युद्ध ने मारा है.' से सभी सहमत नहीं हैं. हम सभी जानते हैं कि युद्ध किसी समस्या का हल नहीं है. युद्ध सरकार और सेना की ठोस नीतियों के पालन करने का परिणाम होता है.

हम ये भी जानते हैं कि गुरमेहर के पिता की मौत कारगिल युद्ध के दौरान हुई थी, जिसकी शुरुआत पाकिस्तान ने की थी. इस त्रासदी का शिकार न सिर्फ गुरमेहर का परिवार हुआ, बल्कि गुरमेहर के पिता जैसे सैकड़ों सैनिकों के परिवारों ने भी उस युद्ध की कीमत चुकाई, जिसका आगाज सीमा पार की सेना ने किया था. यह कहना ज्यादा सही होता अगर कहा जाता कि, ‘सभी पाकिस्तानियों ने मेरे पिता को नहीं मारा, युद्ध का आगाज करने वाले पाकिस्तानियों ने उन्हें मारा.”
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गुरमेहर ने सही इस्तेमाल किया ‘युद्ध’ शब्द

लेकिन ये कहने वाले हम होते कौन हैं? जो ये भी नहीं जानते कि गुरमेहर ने कम उम्र में क्या-क्या सहा? और हम राजनीति से प्रेरित कारणों की वजह से एक 20 साल की अपनी विचारधारा रखने वाली छात्रा को घेर रहे हैं.

वीरू जी, ये न्याय नहीं है. ये शहीद और उसके परिवार के प्रति असंवेदनशीलता है.

आप अपने बल्ले के दम पर विरोधी टीम के गेंदबाजों को खामोश कर देते थे. लेकिन अपने शब्दों की ताकत से आप एक युवा महिला की आदर्शवादी सोच को खामोश न करें.

कई मामलों को लेकर टेलिविजन चैनलों पर होने वाली बहस किसी शब्द के बहुत छोटे फर्क की वजह से अपने मुद्दे से भटक जाती है. गुरमेहर ने 'युद्ध' शब्द का इस्तेमाल किया था, नाकि 'गोली' का. उसका कहने का मतलब था कि सिर्फ गोलियों की वजह से मौत नहीं हुई बल्कि युद्ध की वजह से हुई, जिसकी वजह से गोलियां चलीं. इसलिए ऐसा नहीं है कि आपके बल्ले ने तिहरा शतक लगाया, वीरू जी, शतक उस शख्स ने लगाया, जिसने अपने बैट का भरपूर इस्तेमाल किया.

आपके मजाक ने गंभीर मुद्दे को बनाया महत्वहीन

इसलिए गुरमेहर को जवाब देने के लिए किया गया आपका मजाक सिर्फ गलत ही नहीं है बल्कि इसने युद्ध जैसे गंभीर मुद्दे, एक अपूरणीय नुकसान, और किसी व्यक्ति की भावनाओं को महत्वहीन बना दिया है.

रूजवेल्ट ने कहा था कि, 'जवान मरते हैं और वृद्ध बातें करते हैं'. आपने गुरमेहर के सपनों और उम्मीदों पर पानी डाला है.

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गुरमेहर और उसके परिवार को दें नैतिक समर्थन

मुझे याद है कुछ साल पहले जामिया मिलिया में आयोजित दीक्षांत समारोह में आप अपनी डिग्री के साथ मौजूद थे, जहां आपने कहा था कि ये डिग्री आपके लिए तिहरे शतक से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है.

वीरू जी, मुझे उम्मीद है कि आप फिर सोचेंगे कि आपके लिए वो डिग्री अब कितना मायने रखती है. और ये भी सोचें कि सिर्फ एक सेलिब्रिटी से नहीं, बल्कि एक विकसित और शिक्षित दिमाग से क्या अपेक्षा की जा सकती है.

मैं गुरमेहर की सराहना करता हूं, जो उन्होंने अपनी आवाज उठाने का साहस किया. साथ ही, वह ये भी सीखेंगी कि जो वह कह रही हैं उसके क्या मायने निकाले जा सकते हैं. इसलिए इस तरह की आलोचना न करें. हम सभी को उसका नैतिक समर्थन करना चाहिए, शहीद का परिवार इसका हकदार है.

(शशि थरूर कांग्रेस सांसद हैं. वह गंभीर मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखते हैं. उनसे @Shashitharoor पर संपर्क किया जा सकता है. यह उनके निजी विचार हैं.)

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