वीडियो एडिटर: मोहम्मद इब्राहिम
भारत में कम आमदनी वाले परिवार में पैदा हुए एक इंसान को संपन्न होने में 7 पीढ़ियां लगेंगी - ग्लोबल सोशल मोबिलिटी रिपोर्ट
भारत में एक टॉप CEO जितना साल भर में कमाता है, उतनी कमाई करने में एक डोमेस्टिक हेल्प को 22 हजार से ज्यादा साल लगेंगे - ऑक्सफैम
भारत के कारण दुनिया में मंदी आ रही है- विश्व मुद्राकोष
डावोस में वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम के वक्त 3 रिपोर्ट आई हैं जो भारत के लिए अलार्म हैं और संकेत दे रहे हैं कि हम मंदी से उबरने के बजाय उलटी दिशा में जा रहे हैं.
अल्टीमेटम नंबर 1 - पहली रिपोर्ट
पहली रिपोर्ट है अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF) की . मुद्राकोष ने भारत के ग्रोथ अनुमान को घटा दिया है. 2019-20 के लिए मुद्राकोष ने भारत के ग्रोथ अनुमान को घटाकर 4.8% कर दिया है. पहले ये अनुमान 6.1% था, यानी 1.3 परसेंटेज प्वाइंट की कमी. ये किसी भी विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ी कटौती है.
IMF ने कहा है कि मुख्य रूप से भारत के ग्रोथ अनुमान में कमी कारण 2020 में दुनिया की आर्थिक वृद्धि दर में 0.1 परसेंट प्वाइंट की कमी आ सकती है. भारत के ही कारण 2021 में दुनिया की इकनॉमी 0.2 परसेंटेज प्वाइंट धीमी हो सकती है.
तो पहली बात तो ये है कि देश के हुक्मरान जो सफाई देते हैं कि भारत में मंदी इस वजह से आई है कि दुनिया में मंदी है, उसे IMF गलत बता रहा है...बल्कि वो तो उल्टा कह रहा है. वो कह रहा है कि भारत अपने साथ दुनिया को डुबा रहा है.
अल्टीमेटम नंबर 2 - दूसरी रिपोर्ट
यहीं पर मैं बात करना चाहता हूं दूसरी रिपोर्ट का...डावोस में वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम की 50वीं सालाना बैठक से पहले जारी हुई है ऑक्सफैम रिपोर्ट. सामाजिक न्याय के क्षेत्र में काम करने वाले NGO ऑक्सफैम की ये रिपोर्ट कहती है कि दुनिया के सबसे अमीर 2,153 लोगों के पास सबसे गरीब 4.6 अरब लोगों से ज्यादा दौलत है.
ऑक्सफैम रिपोर्ट कहती है कि भारत के सबसे अमीर 1 फीसदी लोगों के पास देश की 70 फीसदी आबादी यानी 95.3 करोड़ लोगों से 4 गुना ज्यादा संपत्ति है. ऑक्सफैम इंडिया के CEO अमिताभ बेहर ने कहा है कि आर्थिक असमानता कम करने के लिए बहुत कम सरकारें काम कर रही हैं.
अल्टीमेटम नंबर 3 - तीसरी रिपोर्ट
आर्थिक गैरबराबरी के इस सबूत के बाद मैं सामाजिक गैरबराबरी की बात करना चाहता हूं. और यहीं मैं तीसरी रिपोर्ट की चर्चा करना चाहता हूं. तीसरी रिपोर्ट है वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम (WEF) की. फोरम ने पहली बार ग्लोबल सोशल मोबिलिटी रिपोर्ट जारी की है. इसमें 82 देशों में भारत का रैंक 76वां है. डेनमार्क नंबर 1 पर है. सोशल मोबिलिटी क्या है, ये समझने के लिए बस इतना समझ लीजिए कि जिन देशों की रैंकिंग अच्छी है, वहां कम आमदनी वाले परिवार में जन्मे लोगों को अमीर वर्ग में शामिल होने के वैसे ही अवसर मिलते हैं, जैसा कि किसी अमीर परिवार में पैदा होने वाले बच्चे को.
इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में किसी गरीब को अमीर वर्ग में शामिल होने में 7 पीढ़ियां लग जाती हैं, लेकिन वही डेनमार्क में ये सिर्फ दो पीढ़ियों में संभव है. तो बात ये है कि अपने देश में सेहत, शिक्षा में सबको बराबरी नहीं मिलती. सामाजिक न्याय नहीं मिलता.
रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि सोशल मोबिलिटी स्कोर बेहतर हो तो सबसे ज्यादा फायदा जिन देशों को होगा, उनमें भारत भी शामिल है. अगर पूरी दुनिया में गैरबराबरी सिर्फ 10% कम हो तो 2030 तक वर्ल्ड इकनॉमी 5% तक बढ़ सकती है. WEF के मुताबिक समाज में सबको बराबरी का मौका मिले तो न सिर्फ सामाजिक फायदे होंगे बल्कि अर्थव्यवस्था को भी हर साल अरबों का फायदा होगा.
क्लॉस श्वाब के अल्टीमेटम में जिन समस्याओं की बात कही गई है वो आपको यहां अपने देश में जानी-पहचानी लग रही है क्या? क्या लग रहा है कि आजकल ऐसे ही मुद्दों को लेकर देश के हर कोने में प्रदर्शन हो रहे हैं?
CAA के खिलाफ जो लोग प्रदर्शन कर रहे हैं, क्या वो गैर बराबरी की ही बात नहीं कर रहे? क्या उन्हें पहचान खोने का डर नहीं लग रहा? अगर हां तो जरा सोचिए जब इतनी बड़ी आबादी को गैर बराबरी का डर होगा, पहचान खोने का डर होगा, जब उन्हें राजनीतिक प्रक्रिया से कट जाने का डर होगा तो वो क्या आर्थिक गतिविधियों में हिस्सा ले पाएंगे? और नहीं ले पाएंगे तो देश तरक्की करेगा या हमारी माली हालत और खराब होगी?
कहां तो हम दलितों, पिछड़ों और महिलाओं के साथ होने वाले सामाजिक अन्याय को कम करते और कहां हम नई गैरबराबरियां ला रहे हैं. मुझे डर है कि इन तमाम रिपोर्ट में तरक्की का जो रास्ता दिखाया गया है, हम उससे उलटे ही जा रहे हैं.
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