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'ट्विटर एक फ्री स्पेस होना चाहिए', मस्क के मंसूबों से भारत में बढ़ेगी हेट स्पीच?

Elon Musk यदि सिक्योरिटी तय करने वाले कर्मचारियों को हटा रहे हैं तो प्लेटफार्म को सुरक्षित स्पेस कैसे बनाएंगे?

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कुछ दिनों पहले ही एलन मस्क और ट्विटर के बीच एक डील क्लोज हुई. इस डील की वजह से सोशल मीडिया कंपनी (ट्विटर) अब एक प्राइवेट कंपनी में तब्दील हो गई है, जिसका मालिकाना हक दुनिया के सबसे अमीर शख्स एलन मस्क के पास है.

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एलन मस्क ने एडवर्टाइजर्स को लिखे एक नोट में कहा है कि उन्होंने ट्विटर को इसलिए खरीदा क्योंकि "सभ्यता के भविष्य के लिए एक सामान्य डिजिटल स्पेस होना बहुत जरूरी है जहां अलग-अलग मान्यताओं की विस्तृत रेंज पर बिना किसी हिंसा के, स्वस्थ तरीके से बहस की जा सके."

इस नोट में आगे कहा गया है कि "... वर्तमान में बहुत बड़ा खतरा यह है कि सोशल मीडिया धुर दक्षिणपंथी और वामपंथी धड़ों में बंट गया है. दोनों तरह के अतिवादी विचार न केवल समाज को विभाजित करने का काम करते हैं बल्कि घृणा फैलाते हैं."

जब से एलन मस्क ने ट्विटर को खरीदने की अपनी मंशा जाहिर करने की घोषणा की, तब से टिप्पणीकारों द्वारा इस लेन-देन के बारे में कई तरह की चिंताओं को उठाया गया है. चूंकि अब डील पूरी हो चुकी है, ऐसे में एलन मस्क द्वारा ट्विटर के टेकओवर के बाद भारत में हमारे लिए उत्पन्न कुछ चिंताओं पर विचार करना महत्वपूर्ण है.

ये चिंताएं दो विषयों पर आधारित हैं; एक निरंकुश फ्री-स्पीच पक्षधर के तौर पर एलन मस्क का रुख, और कंपनी को खरीदने के बाद से मस्क द्वारा ट्विटर को लेकर किए गए एग्जीक्यूटिव निर्णय.

क्या ऑनलाइन नफरत को बढ़ावा देता है एलन का फ्री स्पीच का आइडिया?

एलन मस्क ने जोर देकर कहा है कि ''ट्विटर एक फ्री स्पेस होना चाहिए जहां... समानता होनी चाहिए. किसी पक्ष की तरफ झुकाव नहीं होना चाहिए. [दक्षिण या वाम पंथी राजनीतिक झुकाव नहीं होना चाहिए.]" यह इस विचार के पीछे ये सोच हो सकती है कि ट्विटर पर दक्षिणपंथी बातचीत को बर्दाश्त नहीं किया जाता है. निश्चित रूप से यह बहस का मुद्दा है क्योंकि अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की तरह ट्विटर भी अपने नियमों को लगातार लागू करने के लिए बाध्य कर सकता है.

एलन मस्क ट्विटर के बारे में कैसा महसूस करते हैं इसको लेकर उन्होंने पहले ही स्पष्ट कर दिया है. ट्विटर की पूर्व लीगल, ट्रस्ट और सेफ्टी हेड को निशाने पर लेते हुए मस्क ने एक मीम शेयर किया था. ऐसा प्रतीत होता है कि मीम के जरिए निशाने पर सीनियर एग्जीक्यूटिव थे, जो ट्विटर पर कंटेंट मॉडरेशन पर फैसला लेने वाली टीमों का नेतृत्व करने के इंचार्ज थे.

ये ट्वीट अशोभनीय था. इसके कारण सीनियर एग्जीक्यूटिव (विजया गाड्डे, जिन्हें कथित तौर पर एलन मस्क द्वारा निकाल दिया गया) पर हमले बढ़ गए. अन्य घटनाओं को देखें तो एलन मस्क ने ट्विटर के पिछले निर्णयों को पलटने को लेकर अपने विचार व्यक्त किए हैं जैसे कि डोनाल्ड ट्रम्प पर स्थायी प्रतिबंध, जिसे मस्क ने "गलती" बताया था.

मस्क के अधीन ट्विटर का कंटेंट मॉडरेशन प्लान सही ट्रैक पर नहीं है

कई एक्सपर्ट्स का कहना है कि ट्विटर पर चीजों को बदलने के लिए एलन मस्क के प्रस्ताव न केवल चुनौतीपूर्ण हैं, बल्कि संभावित जोखिमों के कारण काफी चिंताजनक भी हैं. एलन मस्क के हालिया सुझाव पर विचार करें कि ट्विटर यूजर्स को अपने पसंदीदा प्लेटफॉर्म वर्जन को चुनने का विकल्प दिया जाए. उन्होंने सुझाव दिया कि "...जिस तरह यह मूवी मैच्योरिटी रेटिंग के लिए होता है" और यह कि "ट्वीट की रेटिंग अपने आप सेल्फ-सलेक्टेड हो सकती है, जो बाद में यूजर फीडबैक द्वारा मॉडिफाइ की जा सकती है."

कानूनी दायित्वों को देखते हुए ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को देशों के कानूनों का पालन करने की आवश्यकता है. ऐसे में जो कोई भी कंटेंट मॉडरेशन को फॉलो (भले ही वह दूर से फॉलो) करता है, वह इस बात को समझता है कि यह सुझाव कितना अव्यावहारिक है. हमें यह भी उल्लेख करना चाहिए कि ट्विटर को अपने खुद के नियम लागू करने की आवश्यकता है, जिसके तहत कंपनी को यूजर्स की भलाई और सुरक्षा को खतरे में डालने वाली सामग्री को हटाने की आवश्यकता होती है.

हाल ही में हमने उन खतरों को देखा है जो तब पैदा होते हैं जब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म कंटेंट को प्रभावी ढंग से मॉडरेट नहीं करते हैं. म्यांमार में रोहिंग्या लोगों के खिलाफ नरसंहार को फेसबुक पर जहरीले अभद्र भाषा से जोड़ा गया है. इन परिस्थितियों में, यह समझना मुश्किल है कि ट्विटर जैसा प्लेटफार्म कैसे ऐसी स्थिति को अनदेखा कर सकता है और अपने यूजर्स को यह चुनने दे कि वे ट्विटर के किस वर्जन का उपयोग करना चाहते हैं.

ऐसा प्रतीत होता है कि एलन मस्क ने अंततः कंपनी के टेकओवर के बाद से ट्विटर के सामने आने वाली भारी चुनौतियों को समझना शुरू कर दिया है. उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि "ट्विटर साफ तौर पर एक फ्री-फॉर-ऑल हेलस्केप नहीं बन सकता है, जहां बिना किसी परिणाम या महत्व के कुछ भी कहा जा सकता है!"

इसके अलावा, उन्होंने यह स्पष्ट किया कि ट्विटर की कंटेंट मॉडरेशन पॉलिसी नहीं बदली है. प्रतिबंधित ट्विटर अकाउंट्स को बहाल करने के निर्णय सहित कोई भी नीतिगत परिवर्तन अब "कंटेंट मॉडरेशन काउंसिल" द्वारा किया जाएगा जिसे स्थापित करने का प्लान ट्विटर बना रहा है. ऐसा प्रतीत होता है कि यह मेटा (पूर्व में फेसबुक) के ओवरसाइट बोर्ड की स्थापना के निर्णय के अनुरूप है. यह एक निष्पक्ष निरीक्षण तंत्र है जो उन क्रिटिकल कंटेंट पॉलिसी मुद्दों की जांच करता है जिसका सामना फेसबुक और इंस्टाग्राम करते हैं.

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क्या लिबरल या लिबेलस की ओर बढ़ेगा ट्विटर इंडिया?

एलन मस्क ने कहा है कि "...प्लेटफॉर्म हार्दिक और सभी के लिए गर्मजोशी से स्वागत योग्य होना चाहिए," लेकिन ट्विटर का टेकओवर करने के बाद से एलन मस्क ने जो फैसले लिए हैं, उससे यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि क्या वह वास्तव में अपनी कही गई बातों पर विश्वास करते हैं. क्रिटिकल कंटेंट पॉलिसी के मुद्दों की देखरेख करने वाली टीम के लोगों की छंटनी की खबरें तो कुछ और ही इशारा कर रही है.

जो कर्मचारी ट्विटर की सिक्योरिटी को सुनिश्चित करते हैं यदि उनसे छंटनी की शुरुआत की जाती है तो इससे यह बिल्कुल भी स्पष्ट नहीं होता है कि एलन मस्क कैसे इस प्लेटफार्म को अपने यूजर्स के लिए एक सिक्योर स्पेस बनाने का इरादा रखते हैं.

भारतीय दृष्टिकोण से, एक बड़ी चिंता यह है कि क्या ट्विटर ऑनलाइन स्पीच को प्रतिबंधित करने के भारत सरकार के प्रयासों का विरोध करना जारी रखेगा. हम जानते हैं कि ट्विटर ने भारत सरकार के खिलाफ अपने कंटेंट-हटाने के आदेशों को लेकर न्यायिक अदालत में मुकदमा दायर किया है, और इसका ट्रायल अभी भी चल रहा है.

एलन मस्क ने कहा है कि ट्विटर "... लॉ ऑफ द लैंड" को फॉलो करेगा. ऐसे में यह देखा जाना अभी बाकी है कि क्या ट्विटर भारत सरकार पर मुकदमा जारी रखेगा? यह मामला एलन मस्क और उनकी नई ट्विटर टीम के समक्ष एक उपयुक्त प्रश्न खड़ा करता है, वह यह कि जब देश के कानून पहले से ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित करते हैं तब उस स्थिति में ट्विटर क्या करेगा?

एलन मस्क के ट्वीट पर मुनव्वर फारूकी द्वारा दी गई प्रतिक्रिया शायद अब समझ में आती है. मस्क ने ट्वीट किया था कि "कॉमेडी अब ट्विटर पर लीगल है" जिस पर प्रतिक्रिया करते हुए फारूकी ने लिखा था “पक्का? नहीं भाई रहने दो तुम नहीं आओगे बेल कराने.”

(जेड लिंगदोह, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, जोधपुर में कॉन्स्टिट्यूशनल लॉ (ऑनर्स) के कैंडिडेट हैं, जहां वे मेटा इंडिया टेक स्कॉलर (2021-22) रहे हैं.)

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