ADVERTISEMENTREMOVE AD

हर आठवें मिनट भारत में गायब हो जाती है एक लड़की 

हर मिनट भारत से 8 लड़कियां गायब होती हैं, पढ़िए महिला ट्रैफिकिंग पर प्रिया विरमानी के विचार.

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

आंकड़े कहते हैं कि भारत में हर आठवें मिनट में एक लड़की गायब हो जाती है.

एक अनुमान ये भी है कि गायब होने वाली इन लड़कियों में से 16 मिलियन लड़कियों को देह व्यापार में धकेला जा चुका है.

साल 2014 में आई अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट की मानें तो मानव तस्करी से हर साल पूरी दुनिया में करीब 150.2 बिलियन डॉलर की कमाई की जाती है. यह कमाई गूगल, ईबे और अमजेन जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की कुल सालाना कमाई के बराबर है.असल में, मानव तस्करी से होने वाला फायदा पिछले 10 साल में तीन गुना से ज्यादा हो चुका है.

ये चौंकाने वाले आंकड़े हमारे सामने कुछ सवाल खड़े करते हैं - क्या हम सही मायने में सभ्य हैं? क्या इससे भी ज्यादा बेरहम कुछ हो सकता है?

जबकि ‘आधुनिक 21वीं सदी’ में मानव की बिक्री का विचार ही डरावना है. हममें से ज्यादातर लोग इस बात से भी अनजान हैं कि मानव तस्करी आज के दौर में एक वैश्विक मुद्दा बन चुका है.

निष्पक्ष और व्यावहारिक तौर पर देखें तो तस्करी के लिए मिलने वाला भारी मुनाफा ही तस्कर बनने के लिए ललचाता है.

भारत में, सप्रेशन ऑफ इमॉरल ट्रैफिक इन वुमन एंड गर्ल्स एक्ट, 1956 मानव तस्करी को गैरकानूनी घोषित करता है.1986 में इस कानून का नाम बदल कर इमॉरल ट्रैफिक प्रिवेंशन एक्ट कर दिया गया.

संशोधित अधिनियम देह व्यापार के संबंध में होने वाली तस्करी से जुड़ा है. इसमें दूसरे कारणों जैसे बाल श्रम, अंग निकालने और घरेलू गुलामी के कारण होने वाली तस्करी को शामिल नहीं किया गया है.

लेकिन, लड़कियों की बढ़ती तस्करी से साफ जाहिर है कि यह कानून प्रभावी होने की जगह सतही रहा है. इसी वजह से इस मुद्दे को उजागर करने के लिए समुदाय आधारित योजनाओं को चलाने की जरूरत है.

हर मिनट भारत से 8 लड़कियां गायब होती हैं, पढ़िए महिला ट्रैफिकिंग पर प्रिया विरमानी के विचार.
(फोटो- iStockphoto)

समाज में जागरुकता लाने के लिए इस मुद्दे पर अखिल भारतीय स्तर पर ‘मिसिंग’ नाम का अभियान चलाया जा रहा है. पेंट आवर वर्ल्ड (POW) मेरे द्वारा शुरु की गई योजना है - जो कि भयंकर आघात जैसे बाल यौनशोषण या अनाथ बच्चों को समर्थ बनाने का काम करती है. यह संस्था मिसिंग के साथ मिलकर काम कर रही है.

पीओडब्ल्यू की किशोर लड़कियों के साथ मिलकर हम पब्लिक आर्ट इन्स्टॉलेशन लगाते हैं. ये इस तरह की लड़कियों की समस्या को लेकर ध्यान आकर्षित करते हैं.

कोलकाता की कलाकार लीना केजरीवाल ने लाखों की संख्या में गायब हुई लड़कियों, और लगातार गायब होकर समाज के वहशी अंधेर कोने में समा रही लड़कियों को दर्शाने के लिए महिलाओं के आकार के स्टेंसिल तैयार किए हैं.

दिसंबर में पीओडब्ल्यू की लड़कियां मानव तस्करी पर मेरे द्वारा दी गई एक प्रस्तुति में हिस्सा लेने आईं. उन्होंने इस समस्या को लेकर बहुत ही तीखे सवाल किए.

उन्होंने पूछा कि इन लड़कियों की तलाश और बच्चों की तस्करी को रोकने के लिए क्या किया गया. वे देश और सरकार की उस व्यवस्था से निराश थीं, जो अपने ही लोगों को इस तरह से नीचे गिरा रहे थे. शायद वे खुद से भी परेशान थीं. वे सिर्फ जागरुकता ही नहीं फैलाना चाहती थीं, बल्कि खोई हुई लड़कियों को तलाश करने के काम में मदद भी चाहती थीं.

हर मिनट भारत से 8 लड़कियां गायब होती हैं, पढ़िए महिला ट्रैफिकिंग पर प्रिया विरमानी के विचार.
(फोटो- iStockphoto)

महिलाओं के आकार वाले स्टेंसिल को लेकर हम मध्य कोलकाता की सड़कों पर निकले. हम गलियों और मुख्य सड़कों पर निकले. आसपास से निकलने वाले लोग हमें कौतूहल और कुछ लोग घृणा से देख रहे थे ( जैसे की हमारा कोई लक्ष्य नहीं था, या हम किसी तरह की बाधा थे), कुछ ने प्रशंसा की और कुछ लोग शहर के भीतरी इलाकों में कुछ प्रेरित युवा लड़कियों के मार्च को देखकर हैरान थे.

कुछ चेहरे भावशून्य तो कुछ मस्त थे और अंदर की गलियों में तो ऐसा लगा कि हमारा मार्च जैसे उस दिन का मनोरंजन था. सार्वजनिक दीवारों के साथ स्टेंसिल को पकड़े, लड़कियों ने रंग भरे.

कुछ राहगीरों ने पूछा कि यह क्या था, और इस बात से झुंझलाए दिखाई दिए कि गायब हुई महिलाओं और बच्चों से उन्हें क्या लेना देना.

करीब 1.2 अरब जनसंख्या वाले देश में 30 लाख लोगों का गायब होना जैसे कोई मायने ही नहीं रखता. महत्वहीन. इसने मुझे और लड़कियों को गुस्से से भर दिया.

हमने कहा कि यही है जिसे हमें बदलना है. यह उदासीनता. यह सड़ी हुई उदासीनता, और फिर जब हम रंगने के लिए दूसरी दीवार ढूंढने के लिए आगे बढ़े तो आधे कपड़े पहने बच्चे कई बार हमारे रास्ते में आए.

औरतें, अपने आस पास दौड़ रहे दुर्बल बच्चों और बयान ना की जा सकने वाली बेहद भीड़ के बीच जर्जर पहिया गाड़ियों पर बेखबर सो रही थी. आदमी बेपरवाही से खड़े थूक रहे थे, बात कर रहे थे और घूर रहे थे.

ये खाली आदमी तस्करों के लिए अक्सर काम का सामान साबित होते हैं. वे लोग समाज से इस हद तक अधिकारविहीन हो चुके हैं कि उपेक्षा और क्रूरता के बीच झूलते रहते हैं. इसके साथ ही, तस्करी के लिहाज से संवेदनशील महिलाओं तक इनकी पहुंच बेहद आसान है.

भारत में बेची जाने वाली 60 फीसदी लड़कियां वंचित और उपेक्षित वर्ग से आती हैं. अधिकतर मामलों शादी या नौकरी के बहाने उनकी तस्करी की जाती है. कुछ मामलों में बेहद गरीबी के कारण उनके माता-पिता भी उनको बेच देते हैं.

मानव तस्करी को लेकर जागरुकता के बढ़ाने के साथ ही मानव तस्करी के बढ़ते व्यापार पर रोक लगाने के लिए इसके होने के पीछे के प्राथमिक कारणों जैसे घरेलू हिंसा, अशिक्षा, बेरोज़गारी, गरीबी, असुरक्षित प्रवास और बाल विवाह पर भी हमें ध्यान देना होगा.

मिसिंग जैसे अभियानों को ग्रामीण इलाकों तक ले जाना होगा, जो कि भारत में मानव तस्करी के जन्मस्थान हैं. यह जिंदगी के बारे में है, और हर घायल , प्रभावित और चूर-चूर होती जिंदगी के साथ हम एक समाज और सभ्यता के तौर पर असफल होते हैं.

( लेखिका एक राजनैतिक और आर्थिक विश्लेषक हैं । )

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

0
Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×