महिलाओं का खतना (एफजीएमः फीमेल जेनाइटल म्युटिलेशन) एक वास्तविकता है. इसमें गैर-मेडिकल वजहों से महिलाओं के जननांग को सर्जिकल रूप से ऑपरेट किया जाता है. महिलाओं का खतना दुनिया के विभिन्न हिस्सों, विभिन्न तहजीबों और मजहबों में चलन में है. हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे महिला मानवाधिकारों का उल्लंघन माना गया है.
संयुक्त राष्ट्र ने 6 फरवरी को महिलाओं के खतना के खिलाफ जीरो टॉलरेंस का अंतरराष्ट्रीय दिवस घोषित किया है. इस साल का थीम ‘साल 2030 तक एफजीएम के उन्मूलन के जरिए नए वैश्विक लक्ष्यों को पाना’ रखा गया है.
हालांकि भारत इस कार्यक्रम में हाशिए पर रखा गया है, क्योंकि इस देश के लिहाज से कोई सक्रिय अभियान की योजना तैयार नहीं की गई है.
भारत में महिलाओं का खतना बोहरा मुस्लिम समुदाय में प्रचलित है, जिनकी आबादी दस लाख से थोड़ी ही अधिक है.
मासूमा रानाल्वी एक एफजीएम-विरोधी कार्यकर्ता और एक बोहरा मुस्लिम हैं, उन्हें भी ऐसी ही परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था, जब वह महज 7 साल की थीं.
रानाल्वी बताती हैं, “हमारे समुदाय में हर लड़की का खतना बगैर उनकी किसी रजामंदी के महज अंधविश्वास के तहत किया जाता है. इस रिवाज़ के पीछे कथित रूप से एक ही वजह है कि इससे महिलाओं की यौनेच्छा रुक जाती है और उसको नियंत्रित किया जा सकता है.”
किसी और मुस्लिम समुदाय में खतने का रिवाज नहीं है. यह कोई धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि एक सांस्कृतिक रिवाज है.मासूमा रानाल्वी, एफजीएम विरोधी कार्यकर्त्ता
रानाल्वी ने इस आंदोलन को इच वन रीच वन नाम के एक अभियान से जोड़ दिया है, ताकि बोहराओं में महिलाओं के खतना के खिलाफ जागरुकता फैलाई जा सके.
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में कम से कम 20 करोड़ महिलाओं की आबादी ऐसी है, जिनका किसी न किसी तरह का खतना किया जा चुका है. उनमें से 4.4 करोड़ या 14 साल की या उससे कम उम्र की हैं.
इस खतने की वजह से बहुत ज्यादा खून बहता है और दूसरी स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं. इनमें सिस्ट बनना, संक्रमण, बांझपन तो आम हैं ही, बच्चे के जन्म के समय जटिलताएं बढ़ जाती हैं और इसमें नवजात की मृत्यु का जोखिम बढ़ना भी शामिल है.
रानाल्वी एफजीएम पर बने एक समूह की सदस्य भी हैं, जिसने महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी, कानून और न्याय मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री जगत प्रकाश नड्डा को भारत में महिला खतने पर रोक लगाने संबंधी कानून बनाने की मांग करते हुए एक ज्ञापन सौंपा है. द क्विंट भी इस अभियान का समर्थन करता है.
इस अभियान में बोहरा समुदाय के पुरुषों के शामिल होने की जरूरत भी है, क्योंकि ‘सन्नाटे को तभी तोड़ा जा सकता है, जब पुरुष और महिलाएं मिलकर एक-दूसरे से बात करें.’
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