देश में दिलचस्प दंगल का दौर है. आमिर खान 'दंगल' लेकर मैदान में हैं, तो राहुल गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच राजनीतिक दंगल बहुत रोचक हो गया है. लेकिन कॉरपोरेट जगत की नजर तो अभी भी रतन टाटा और सायरस मिस्त्री के बीच जारी दंगल पर है.
जहां दोनों पक्ष एक दूसरे को पटखनी देने की फिराक में ऐसी स्ट्रैटेजिक चालें चल रहे हैं कि निवेशक परेशान हैं, जानकार हैरान है और मार्केट दोनों के अगले कदमों से अनजान है.
मिस्त्री को पहला बड़ा कानूनी झटका
टाटा संस में बहुमत के दम पर रतन टाटा का पड़ला भारी है. ताजा तस्वीर भी यही है टीसीएस और टाटा स्टील के बोर्ड से बाहर किए जाने के बाद साइरस मिस्त्री ने टाटा की सभी कंपनियों का चेयरमैन पद छोड़ दिया.
कानूनी लड़ाई में टाटा को घेरने का मिस्त्री का पहला दांव खाली गया क्योंकि NCLT यानी कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ने उन्हें अंतरिम राहत देने से मना कर दिया.
ट्रिब्यूनल ने पूछा कि टाटा ग्रुप के चेयरमैन पद से हटाए जाने के करीब दो महीने तक वो खामोश क्यों थे? कानूनी जानकारों के मुताबिक, NCLT की तरफ से उठाए सवाल अगर मिस्त्री ने नहीं दिए, तो वो रतन टाटा के साथ जारी इस दंगल में चित हो सकते हैं.
इसलिए मिस्त्री अगले दांव की तैयारी कर रहे हैं, जो कि ट्रिब्यूनल में 31 जनवरी और एक फरवरी को लड़ा जाना है. NCLT ने मिस्त्री से छोटे निवेशकों पर दबाव और टाटा संस और रतन टाटा पर लगाए गए गंभीर आरोपों के ठोस सबूत मांगे हैं.
क्या एक महीने में सबूत देंगे मिस्त्री?
अब सबकी नजरें इस बात पर हैं कि क्या NCLT के सामने मिस्त्री कोई सबूत देंगे? क्या वाकई उनके पास ऐसे दस्तावेज हैं, जिनसे टाटा संस और खास तौर पर वो रतन टाटा को कठघरे में खड़ा कर पाएं?
मिस्त्री ने ट्रिब्यूनल से 3 अनुरोध किए हैं. पहला, उन्हें टाटा संस के बोर्ड से नहीं हटाया जाए. दूसरा, टाटा को नए शेयर जारी नहीं किए जाएं. तीसरा, ट्रिब्यूनल की मंजूरी के बगैर टाटा संस आर्टिकल ऑफ एसोसिएशन में कोई बदलाव नहीं करे.
लेकिन टाटा संस ने एक बयान में कहा है कि मिस्त्री की याचिका बेदम है और 31 जनवरी को ट्रिब्यूनल की अगली सुनवाई में वो एक्सपोज हो जाएंगे.
अभी और क्या होगा?
सायरस मिस्त्री अपने हटाए जाने को लेकर बेहद आहत हैं, इसलिए वो आसानी से मैदान छोड़ने वाले नहीं हैं. हालांकि उन्होंने टाटा ग्रुप की सभी कंपनियों की चेयरमैनशिप छोड़ दी है, पर जानकारों के मुताबिक अगर वो ऐसा नहीं करते तो भी एक एक करके सभी EGM से उनको हटाया जाना तय था. ऐसे में स्ट्रैटेजी के तहत अभी भले उन्होंने अपने पैर पीछे खींचे हैं, लेकिन इसका लक्ष्य आगे की लंबी लड़ाई के लिए तैयार होना है.
मिस्त्री और टाटा की लड़ाई एक साथ कई मोर्चों पर लड़ी जाएगी. कंपनी लॉ बोर्ड ट्रिब्यूनल में वो अपने हटाए जाने को चुनौती दे चुके हैं. चेयरमैन के तौर पर हटाए जाने के खिलाफ वो दलीलें पेश करेंगे.
मार्केट रेगुलेटर सेबी भी अब इस मामले में जांच शुरू कर सकता है, क्योंकि मिस्त्री ने इनसाइडर ट्रेडिंग, कॉरपोरेट गवर्नेंस के मामलों के साथ टाटा कंपनियों के कामकाज में टाटा ट्रस्ट की दखलंदाजी जैसे बेहद गंभीर आरोप टाटा संस और टाटा ट्रस्ट पर लगाए हैं.
अभी तक सरकार खास तौर पर कंपनी मामलों का मंत्रालय और वित्त मंत्रालय ने मिस्त्री के आरोपों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. पर विवाद बढ़ा तो सरकार को दखल देना पड़ सकता है. इसकी वजह है 103 अरब डॉलर के टाटा ग्रुप की कंपनियों में लाखों निवेशकों के साथ सरकार के वित्तीय संस्थानों का भी भारी निवेश है.
इस लड़ाई के सामने आने के बाद टाटा ग्रुप की लिस्टेड कंपनियों में निवेशकों के करीब 77 हजार करोड़ रुपये स्वाहा हो गए हैं.
मिस्त्री के साथ नुस्ली वाडिया जैसे मजबूत साथी
दरअसल टाटा के खिलाफ लड़ाई में सायरस मिस्त्री को नुस्ली वाडिया जैसे बहुत मजबूत और जुझारू कॉरपोरेट दिग्गज का साथ मिला हुआ है. वाडिया टाटा ग्रुप की कई कंपनियों में डायरेक्टर हैं और खुलकर मिस्त्री की बर्खास्तगी का विरोध कर रहे हैं.
वाडिया ने टाटा के डायरेक्टरों और रतन टाटा के खिलाफ 3000 करोड़ का मानहानि का केस भी ठोंक दिया है.
नुस्ली वाडिया को इस बात से एतराज है कि टाटा संस और खुद रतन टाटा ने आरोप लगाया था कि मिस्त्री के साथ मिलकर वाडिया इंडियन होटल पर कब्जा करने की साजिश कर रहे थे. जो लोग वाडिया और रिलायंस के फाउंडर धीरूभाई अंबानी की कुछ दशक पुरानी प्रतिद्वंद्विता को जानते हैं, उन्हें मालूम है कि नुस्ली वाडिया कितने जुझारू हैं.
दरअसल मिस्त्री को टाटा ग्रुप कंपनियों के बोर्ड में ज्यादा समर्थन हासिल नहीं है. लेकिन नुस्ली वाडिया का साथ मिलने और टाटा संस में अपने परिवार की सबसे बड़ी हिस्सेदारी के दम पर वो लंबी कानूनी लड़ाई के लिए तैयार हैं.
ट्रिब्यूनल में दायर याचिका में टाटा संस और रतन टाटा पर उन्होंने अपनी हैसियत का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया. याचिका के मुताबिक फ्लॉप कार नैनो और भारी नुकसान के बावजूद यूरोपीय स्टील प्लांट को चलाने का दबाव डाला गया, क्योंकि दोनों रतन टाटा के कार्यकाल के दौरान शुरू किए गए थे.
यही नहीं मिस्त्री का आरोप है कि ये सीधे तौर पर शेयरहोल्डरों के साथ अन्याय और कुप्रबंधन का मामला बनता है. उन्होंने अपनी याचिका में कहा है कि उन्हें अवैध तरीके से हटाया गया.
टाटा संस ने सभी आरोपों को बेबुनियाद और दुर्भावनापूर्ण करार दिया है और उन्हें 31 जनवरी की सुनवाई का इंतजार है, जहां टाटा अपना पक्ष पेश करेगा.
इस दंगल में अभी रतन टाटा और टाटा संस अभी मजबूत स्थिति में हैं. लेकिन कानूनी अखाड़े में दोनों पक्ष अपनी तरफ से सभी कानूनी पहलुओं के दम पर पूरा जोर लगाएंगे. टाटा के पक्ष में बड़े शेयरहोल्डर और बोर्ड का बहुमत है, लेकिन सायरस मिस्त्री के पास टाटा संस में उनके परिवार की सबसे बड़ी हिस्सेदारी का दम है और नुस्ली वाडिया जैसे जुझारू तेवर वाले साथी हैं. इसलिए मुकाबला बड़ा दिलचस्प होगा.
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