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रॉ चीफ को 5 साल का कार्यकाल: एक भ्रमित दिमाग की सोच

क्यों केंद्र सरकार को रॉ चीफ का कार्यकाल बढ़ाकर 5 साल नहीं करना चाहिए? 

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ये सुनने में आ रहा है कि सरकार रॉ चीफ का कार्यकाल 2 साल से बढ़ाकर 5 साल करने पर विचार कर रही है. उसके पीछे का तर्क ये है कि हमारी राजनीतिक हलचल और प्रशासनिक अड़चनों का असर रॉ के कामकाज पर न पड़े. मकसद तो आकर्षक है लेकिन इसमें काफी नुक्स हैं.

क्यों केंद्र सरकार को रॉ चीफ का कार्यकाल बढ़ाकर 5 साल नहीं करना चाहिए? 
3 दिसंबर 2014 को सीबीआई डायरेक्टर का कार्यभार संभालते अनिल कुमार सिन्हा. सीवीसी एक्ट 2003 के तहत सीबीआई चीफ का कार्यकार सिर्फ दो साल के लिए तय है (फोटो: Reuters)

यहां ये याद दिलाना जरुरी है कि रॉ चीफ के लिए 2 साल का कार्यकाल को दरअसल पहले एक अधिकारी को फायदा पहुंचाने के लिए लाया गया था और बाद में इसे ये कहकर लागू किया गया कि अफसरशाही डिलिवर करने में माहिर है.

एक पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जो अपनी महिमामंडन के लिए जाने जाते, उन्होंने तो रॉ के काम करने के तौर तरीकों को ही बेकार और बता दिया था और जरुरत पड़ने पर इसे खत्म करने की भी बात कही थी.

रॉ के खात्मे के लिए वह अपनी पसंद का एक अफसर भी लेकर आए. लेकिन ये ऑफिसर कुछ ही दिन में रिटायर होने वाले थे. और फिर सरकार को इस बात के लिए राजी कर लिया गया कि रॉ चीफ और इंटेलिजेंस ब्यूरो का कार्यकाल बढ़ाकर दो साल का कर दिया जाए.

अफसरों के लिए फायदा

रॉ और इंटेलिजेंस ब्यूरो चीफ के कार्यकाल बढ़ाने से आईएएस अफसरों के साथ साथ कैबिनेट सेक्रेटरी, होम सेक्रेटरी और विदेश मंत्रालय के सेक्रेटरी जैसे पदों पर बैठे अधिकारियों को भी फायदा मिला.

लेकिन सही मायने में इस कदम से न तो राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी के प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर कोई फर्क पड़ा और न ही हमारी सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता हुई.

भारत की सुरक्षा जरुरतें पहले से लगभग तय हैं और इसमें बस समय- समय पर बदलाव की जरुरत है. आपको उस टीम को चुनना है जो काम करेगी. हमारे चीफ के आसपास के अफसर ही आइडिया लेकर आते हैं, क्या करना है ये तय करते हैं, इसके लिए प्लानिंग करते हैं और मिशन पर जाते हैं.

चीफ तो बस एजेंसी और सरकार के बीच की कड़ी हैं जिन्हें हाल के दिनों में एनएसए ने पंगु कर दिया है.रॉ तब तक दुरुस्त होकर काम करता रहेगा जबतक रॉ चीफ अपने दिमाग से चलेंगे, अपने अफसरों को पूरी आजादी से काम करने देंगे और कोई रोकटोक नहीं करेंगे.

अगर ये सोचा जा रहा है कि लंबा कार्यकाल रॉ चीफ को अपने काम में और आजाद और ताकतवर बना देगा तो ये गलत है.

स्नैपशॉट

5 साल के कार्यकाल की जरुरत नहीं

  • रॉ का कामकाज बेहतर तरीके से चलता रहेगा जबतक रॉ चीफ अपने दिमाग से काम करेंगे: इसका कार्यकाल से नहीं रॉ चीफ के चरित्र से लेना-देना है.
  • 5 साल के कार्यकाल की सबसे बड़ी खामी ये है कि अगर चीफ ठीक से काम नहीं कर पाए तो 5 साल तक आपको उन्हें झेलना होगा.
  • लंबा कार्यकाल उन अफसरों के लिए भी ज्यादती है जो सालों से कड़ी मेहनत कर चीफ बनने के इंतजार में हैं ताकि उनके करियर को नई उंचाई मिले.


लंबे कार्यकाल से अहंकार का खतरा

नौकरी में लंबा और सुरक्षित कार्यकाल अंहकार के अलावा कामकाज की गति को भी धीमी कर देता है. लेकिन अगर आप अपनी नौकरी में असुरक्षित हैं तो या तो आप हार मान लेते हैं या फिर अपनी सुरक्षा के लिए लड़ते हैं.

5 साल के कार्यकाल की सबसे बड़ी कमी ये है कि जिस अफसर को चीफ बनाया गया है उसे उसकी कमियों के बावजूद आपको झेलना होगा.

किसी भी गलत रॉ चीफ के लिए एजेंसी को बर्बाद करने के लिए 2 साल ही काफी है. रॉ का अनुभव भी स्थाई कार्यकाल के बाद अच्छा नहीं है. बतौर उदाहरण, आपके पास एक चीफ था जिसने रॉ को एनएसए के हवाले कर दिया था.

फिर आपके पास एक अहंकारी चीफ था जो अपने अफसरों की मदद से एजेंसी के ऑपरेशन और मनोबल को गिराया. बाद में आपके पास एक ऐसा रॉ चीफ आया जिसके लिए रॉ एक परीलोक जैसा था.

एजेंसी के कामकाज से उसे कोई मतलब ही नहीं था, और फिर गुमनामी के अंधेरे में बगैर कोई अहम काम किए खो गया. फिर आपके पास एक ऐसा रॉ चीफ आया जो क्रूर था, कमजोर को सताने में उसे मजा आता था और उसे सबपर शक रहता था. रॉ पर खौफ की बदौलत उसने राज किया.

और ये फेहरिस्त और लंबी है. एजेंसी की किस्मत अच्छी रही कि इन सभी रॉ चीफ का कार्यकाल सिर्फ दो साल का था, 5 साल का नहीं.

दूसरे अफसरों के अरमान पर पानी फिर जाएगा

5 साल का कार्यकाल सालों से मेहनत कर रहे और रॉ चीफ बनने की ख्वाहिश रखने वाले प्रतिभाशाली अफसरों पर किसी अत्याचार से कम नहीं. एक बड़े ओहदे से रिटायर करने कि उनकी इच्छा भले ही कम समय के लिए ही शायद ही कभी पूरी हो पाएगी.

क्यों केंद्र सरकार को रॉ चीफ का कार्यकाल बढ़ाकर 5 साल नहीं करना चाहिए? 
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की फाइल तस्वीर (फोटो: Reuters)

दरअसल रॉ चीफ पद के दावेदार अफसरों की क्वालिटी में ज्यादा फर्क नहीं है. चुने हुए अफसर को कार्यभार संभालने में ज्यादा वक्त नहीं लगता जबतक पद के दावेदारों के अरमानों को कुचल कर किसी बाहरी को लाकर न बिठा दिया गया हो.

5 साल का कार्यकाल दरअसल उनके लिए एक धोखे से कम नहीं, उनके पास इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं.

क्या भारत रॉ चीफ का कार्यकाल बढ़ाने के बाद नाराज डिप्टी अफसरों से निपट पाएगा? इसपर हमें विचार करने की जरुरत है. लेकिन इन सब तथ्यों के बावजूद सरकार को कार्यकाल बढ़ाने से रोका नहीं जा सकता.

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