ऐसा कहा जाता है कि अगर कुछ होना तय है तो वह होकर ही रहेगा, तुरंत नहीं तो बाद में होगा ही. वर्ष 1991 में भारतीय साहित्य (साहित्य अकादमी की पत्रिका) के संपादक डॉ राव से मिलने का मौका मुझे मिला था, यह मुलाकात न केवल अप्रत्याशित थी बल्कि इसके परिणाम अनुमान से कहीं ज्यादा रहे.
डाॅ राव प्रेमचंद की कहानी मंदिर मस्जिद का अनुवाद करने के लिए किसी की तलाश कर रहे थे. उन्होंने बिना किसी भूमिका के सीधे तौर पर सुझाव देते हुए मुझसे कहा कि मुझे यह (अनुवाद) करना चाहिए और वे इसे अपनी पत्रिका में प्रकाशित करेंगे. लेखन की तो बात ही छोड़ दें, उन्होंने अनुवाद करने के पिछले अनुभव के बारे में मेरे संशय या उलझन को खारिज कर दिया. उस समय मैं इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में सहायक संपादक के तौर पर काम कर रही थी और अन्य लोगों के (खराब) लेखन को संपादित करके पूरी तरह प्रसन्न थी.
मैंने जल्द ही अपने पिता के क्षतिग्रस्त पुराने टाइपराइटर पर कड़ी मेहनत की और डॉ राव के समक्ष अनुवाद प्रस्तुत किया, जिसे उन्होंने विधिवत प्रकाशित किया. उस समय मुझे ही क्या पता था कि घटनाएं ऐसा मोड़ (अगले दो दशकों में धीमी गति से) लेती चली जाएंगी. अचानक से हुई उस मुलाकात और एक छोटे या कम अनुभवी व्यक्ति के प्रति दयालु व मैत्रीपूर्ण सुझाव से एक अकल्पनीय साहित्यिक जीवन को जन्म मिलेगा.
अनुवाद का वह एकल कार्य किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जीवन भर के व्यवसाय की आधारशिला साबित होगा जिसकी उस समय कोई साहित्यिक महत्वाकांक्षा नहीं थी और न ही कोई अकादमिक हित था. मैं अभी भी लगभग 25 साल बाद उस एकल सुखद बैठक पर तामीर कर रही हूं.
अनुवाद का लहू मुंह लग गया
पीछे मुड़कर देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि प्रेमचंद की एक लघुकथा का अनुवाद करने से मेरे मुंह को खून लग गया था. अक्टूबर 1992 में एक साल के भीतर मैंने हार्पर कॉलिन्स के साथ प्रेमचंद की 10 लघु कहानियों का एक संग्रह प्रकाशित किया था. उस किताब का शीर्षक "द टेम्पल एंड द मॉस्क़" (The Temple and the Mosque) था. बहुत ही संक्षिप्त परिचयात्मक नोट के साथ ही एक पतली किताब थी, बल्कि खुद को प्रभावी तौर पर दिखाते हुए इसे 'ट्रांसलेटर्स नोट' कहा जाता है. पीछे मुड़कर देखें, तो यह अजीब लगता है कि मैं इसे डब करके संतुष्ट थी; शायद उस समय मेरे पास एक टेक्स्ट (पाठ) के साथ स्वामित्व की भावना पूरी तरह से गायब थी.
मैं उर्दू और हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद करती हूं; अंग्रेजी की तुलना में इन दोनों (उर्दू और हिंदी) भाषाओं में एक बहुत अलग रजिस्टर, अलग तरह का भाषण पैटर्न, वाक्य रचना, साथ ही सांस्कृतिक शब्द-भंडार है.
भले ही दो भाषाओं और उनसे जुड़े साहित्य में बहुत कम समानता हो. अगर मैं उर्दू से उड़िया में अनुवाद कर रही होती तो शायद मुझे कम दिक्कते होती. लेकिन, क्योंकि उर्दू और उड़िया दोनों भारतीय उपमहाद्वीप से जुड़ी हुई हैं, इसलिए ऐसी बहुत सी चीजें हैं जिन्हें मैं हल्के में ले सकती हूं. अंग्रेजी के साथ ऐसा नहीं है.
अंग्रेजी श्रोता, देसी संदर्भ
तकनीकी पहलुओं जैसे वाक्य संरचना, क्रियाओं का स्थान, उर्दू और हिंदी में प्राकृतिक विराम के अलावा, संदर्भ भी एक बड़ा मुद्दा है. सांस्कृतिक संवेदनशीलता को आप कैसे अनुवादित करेंगे? आप जिगर (शाब्दिक अर्थ 'लिवर') का अनुवाद कैसे करेंगे? उर्दू कविताओं में यह शब्द बार-बार प्रयुक्त किया जाता है, लेकिन शाब्दिक अर्थ के तौर पर नहीं. जिगर मतलब दिल भी नहीं होता है (जैसे जब गालिब कहते हैं 'ये खालिश कहां से होती है जो जिगर के पार होता...'). उर्दू कवि के लिए जिगर एक अमूर्तता है और मानव शरीर या अंग का हिस्सा नहीं है.
कहीं और, ऐसे चित्र और रूपक हैं जो स्वाभाविक रूप से किसी विशेष संस्कृति से संबंधित लोगों के लिए कुछ मायने रखते हैं. उदाहरण के लिए बरगद के डाल से झूलती हुई कटी हुई पंतग की डाेरी, सूखी धरती पर पहली बारिश की महक, दुल्हन के सेहरे में लगे मोगरे की मीठी महक. अंतिम चित्र विशेष तौर पर मार्मिक है क्योंकि माेगरे की कंपकंपाती महक दुल्हन की कंपकंपाती सुंदरता को और भी ज्यादा जादुई बना देती है.
जब कोई भारतीय भाषाओं के बीच अनुवाद कर रहा होता है तब संस्कृति के साथ गहराई से जुड़े हुए इन रूपकों और चित्रों को अनुवाद की जरूरत नहीं होती है. लेकिन जब आप किसी भारतीय भाषा से अंग्रेजी में अनुवाद कर रहे होते हैं, तो आपके पास दो विकल्पों में से एक होता है : या तो स्पष्टीकरण देते हुए अपने अनुवाद को बोझिल और बेढंगा बनाएं या फिर चित्रों को बना रहने दें व उन्हें खुद से अपनी बात कहने दें और जब जरूरत हो तब एक विस्तृत परिचय दें जो आपके टेक्स्ट के संदर्भ की रूपरेखा निर्धारित करता हो.
एक अनुवादक के तौर पर मेरे 25 साल
बतौर अनुवादक पिछले 25 वर्षों से मुझे संदर्भ में उतनी ही दिलचस्पी है जितनी कि उस टेक्स्ट में जिसका मैं अनुवाद कर रही हूं. यही कारण है कि मुझे उन कहानियों या उपन्यासों या कविताओं का विस्तृत परिचय लिखना जरूरी लगता है जिनका मैं अनुवाद कर रही हूं.
बीते वर्षों में मैंने राशिद जहान, मंटो, इस्मत चुगताई, कृष्ण चंदर, फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यासों और ज़ेहरा निगाह, कैफ़ी आज़मी, शहरयार व जावेद अख्तर की कविताओं का अनुवाद किया. हाल ही में मैंने गुलज़ार के कलेक्टेड वर्क्स की कविताओं का अनुवाद किया है. मेरे हालिया अनुवाद में इंतिज़ार हुसैन का मौलिक उपन्यास आगे समंदर है (द सी लाइज़ अहेड (The Sea Lies Ahead), हार्पर कॉलिन्स, 2015 के तौर पर अनुवादित है) भी शामिल है. इसमें मैंने व्यापक फुटनोट भी प्रदान किए हैं. उदाहरण के लिए प्रारंभिक इस्लामी इतिहास जो एक अंग्रेजी पाठक के लिए तुरंत प्रकट नहीं हो सकता है, लेकिन इसके उर्दू मूल में स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं होगी. वहीं सांस्कृतिक संकेतों या संदर्भों के साथ घने साहित्यिक कार्य में ये महत्वपूर्ण प्रतीत होते हैं.
'आगे समंदर है' में मैंने एक छोटा सा प्रयोग करने का प्रयास किया. मुझे यह स्वीकार करना होगा कि मैं अनुवाद के इस प्रयोगात्मक शैली की अग्रणी नहीं हूं; अन्य लोगों ने इसे मेरे सामने किया है, विशेष तौर पर लैटिन अमेरिकी के अनुवादक ग्रेगरी रबासा जैसे काम करते हैं.
उपन्यास का अनुवाद शुरू करने से पहले मैंने इसे नहीं पढ़ा था; हर दिन मैं केवल उतना ही पढ़ती जितना कि मैंने उस दिन अनुवाद करने की योजना बनाई होती थी; हर दिन मैंने खुद को एक पैराग्राफ यहां तक कि तय योजना से एक भी लाइन ज्यादा पढ़ने से खुद को रोका. मुझे लगता है कि यह अनुवाद को नवीनता और एक निश्चित सहजता प्रदान करने में मदद करता है. मेरा मानना है कि इस तरह के दृष्टिकोण में उस सर्वज्ञता का अभाव है जिसकी कल्पना एक अनुवादक करता है.
अनुवाद में नुकसान होने पर निर्भीक
अनुवाद कार्य में नुकसान या कमियां अपरिहार्य हैं लेकिन, अगर संतुलन हो तो लाभ कमियों से कहीं ज्यादा है. ऐसा कहा जाता है अनुवाद कार्य किसी कार्पेट के उलटे पक्ष या सिरे को देखने जैसा है; पैटर्न और रूपरेखा स्पष्ट रूप से 'गलत' पक्ष पर दिखाई देते हैं लेकिन जो चीज गायब है वह है 'सही' पक्ष की चमक, दमक और रंगत.
हार या नुकसान से डरने के बजाय, मेरा मानना है कि किसी को अनगिनत लाभों पर विचार करना चाहिए. क्योंकि, अगर निडर व निर्भीक अग्रणी अनुवादकों ने विश्व के बेहतरीन साहित्य पर काम नहीं किया होता तो हमारे 'अपने' साहित्य कितने कमजोर होते. कल्पना कीजिए कि ग्रीक क्लासिक्स, इलियड, ओडिसी, रिपब्लिक को नहीं पढ़ा है, कल्पना करें कि कोई मोपासॉन्ट नहीं, कोई रूसी मास्टर्स नहीं, कोई गेब्रियल गार्सिया मार्केज़ नहीं, कोई पाब्लो नेरुदा भी नहीं. कल्पना कीजिए, भारत में ही ओवी विजयन, महाश्वेता देवी, विवेक शानभाग, पेरुमल मुरुगन और कई अन्य लेखकों को नहीं पढ़ा है.
उर्दू से अंग्रेजी में अनुवाद करने की चुनौतियां
उर्दू साहित्य, विशेष तौर पर से उर्दू शायरी की बात करें तो उर्दू से अंग्रेजी में अनुवाद करना एक चुनौतीपूर्ण व विकट कार्य है.
मैं शहरयार का एक उदाहरण देती हूं, जिनकी कविता का मैंने पहली बार थ्रू द क्लोज्ड डोरवे (रूपा एंड कंपनी, 2004) में अनुवाद किया था और बाद में जिनकी जीवनी मैंने 'शहरयार : ए लाइफ इन पोएट्री' (हार्पर कॉलिन्स, 2018) के रूप में लिखी. उर्दू मूल की संक्षिप्तता और रूपक सटीकता को बनाए रखते हुए अंग्रेजी में शहरयार के शब्दों और मौन के अक्सर असामान्य उपयोग के कुछ हिस्सों और उनकी विशिष्ट वाक्य संरचना को शामिल करना काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है.
अंग्रेजी के विपरीत उर्दू में पद्यबद्ध या छंदबद्ध पैटर्न खिंचाव के बजाय लाइन की लंबाई और अक्षरों की लंबाई पर निर्भर करते हैं. कोई पूर्व-निर्धारित शब्द क्रम भी नहीं है, कवि अपने स्वयं के वाक्य-विन्यास को गढ़ने के लिए स्वतंत्र है; विराम चिह्नों का भी शायद ही कभी उपयोग किया जाता है क्योंकि अधिकांश कवि काम करने के लिए प्राकृतिक विरामों को अनुमति देना पसंद करते हैं.
अगर आप देखें कि शहरयार की कविता को एक पृष्ठ पर कैसे रखा जाता है तो आप पायेंगे कि वह प्राकृतिक विरामों का पूरी तरह से उपयोग करते थे और अपने शब्दों में एक लय और गति को शामिल करते थे जो पूरी तरह से पाठक के लिए नज़्म की इच्छित दिशा के अनुरूप है.
जहां एक ओर उर्दू में इन सबसे कानों को अच्छा लगने वाला आकर्षण होता है. वहीं दूसरी ओर अंग्रेजी में यही शब्द अर्थहीन गड़बड़ी की तरह प्रतीत हो सकते हैं. इसलिए मुझे छवियों के करीब रहना और उन्हें कविता को आगे ले जाने देना सबसे अच्छा लगा, जहां लय और तुकबंदी अंग्रेजी में चित्रित करना मुश्किल साबित हो रहा था.
शहरयार की कविता से मैंने क्या सीखा
शहरयार की कविता में छवि महत्वपूर्ण है. वह अपनी कविताओं को कई खूबसूरत शब्दों का जामा पहनाते हैं, ऐसे शब्द जिनका अपना मंत्रमुग्ध कर देने वाला जादू होता है. एक अनुवादक के तौर पर आपको चित्रों को दोबारा देखने के उनके आंतरिक आकर्षण से खुद को दूर रखना होगा. एक बार जब आप तिलिस्म के जादू से मुक्त हो जाते हैं, तब आप शब्दों पर नाटक द्वारा बनाई गई छवि की सुंदरता को देख पाते हैं. यह अर्थ की कई परतों के माध्यम से अपनी पूरी स्पष्टता, अपनी ताजगी और मार्मिकता से चमकता है.
एक पाठक और अनुवादक के तौर पर मेरा अनुभव मुझे बताता है कि शायद तभी आप शहरयार की कविताओं के केंद्र तक पहुंचे हैं, इसकी ताजगी और लगभग छू लेने वाले इसके आकर्षण को महसूस किया है. शायद यहीं वह बिंदु है जहां आप खुद को जागृति के एक अदृश्य दरवाजे की तरफ खिंचता हुआ महसूस करते हैं.
यहां उसके कुछ उदाहण हैं :
Among those who crossed over
One among those who watch from the shore
I too used to be fearful of the river
There were many of us in that paper boat
I was the only one who crossed over
***
The habit of living
There is no one to come and meet me
Then why do I have the name plate on my door
When you get the habit of living
It is hard to let go
***
The fear of morning
There is nothing new about the falling of night
And that is why I am fearful
The morning that will follow
Does not include the night
That I know
***
The pleasure of wakefulness
My lips upon yours
Weighing your body
In the scales of my hands
And the smell of gunpowder in the domes till afar
After a long time I savoured the pleasure of wakefulness
***
You will be punished
You have sold the ink of the night
To the morning
You will be punished some day
For the devastation you have wrought
***
Sorrowful since the morning
Night shall halt in the middle of the wind tonight
The thought that I will not be able to
Light the lamp of my dreams
Causes a frenzy inside me
And has made me sorrowful since the morning
***
Do you remember any of it
The routes I took to reach your body
The sound of earth and the scent of wheat
I brought with me
Do you remember any of it
***
It rained for a long time
In the evening, behind the fig leaves
A bare-foot whisper
Ran so swiftly
It nearly suffocated me
I yearned for a drink that tasted of sand
There in the distance a storm brewed
And then it rained for a long time
***
I am scared
I am scared
I am scared of those moments
Those moments yet to come
That will search
With great freedom
Every corner of my heart
For those dreams, and those secrets
That I have kept hidden from this world
(डॉ. रक्षंदा जलील, एक लेखिका, ट्रांसलेटर और लिटररी हिस्टोरियन हैं. उनका लेखन साहित्य, संस्कृति और समाज पर रहा है. उनका संगठन हिंदुस्तानी आवाज, उर्दू साहित्य को लोकप्रिय बनाने का काम कर रहा है. उनका ट्विटर हैंडिल है @RakhshandaJalil. यह एक ओपनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)