एस.एस. राजमौली की आरआरआर ( RRR) का गाना नाटू नाटू (Naatu Naatu) सबके सिर चढ़कर बोल रहा है. बेस्ट ओरिजिनल सॉन्ग की कैटेगरी में ऑस्कर जीतकर इतिहास रच दिया है. 'नाटू-नाटू' इस श्रेणी में नामांकित होने वाला और जीतने वाला भारत का पहला गाना है. इस गाने को एम एम कीरावनी ने कंपोज किया है और राहुल सिप्लिगुंज ने अपनी आवाज दी है.
इसके साथ ही इस गाने के संगीतकार एम.एम. कीरावनी (MM Keeravani) सातवें आसमान पर हैं.
अद्भुत कंपोजर की गानों के लिए गूगल और यूट्यूब को लाखों लोगों ने खंगाल डाला था. तब नए श्रोताओं-दर्शकों को यह बात पता चली कि जिन तीन लोगों के गानों का उन्होंने अब तक आनंद उठाया है- एम.एम.कीरावनी, एम.एम. क्रीम और मारागाथा मणि, दरअसल वे एक ही शख्स के नाम हैं. यह उनके लिए तोहफे से कम नहीं है. इस नाचीज समझे जाने वाले संगीतकार ने ढेरों भाषाओं में, ढेरों गाने बनाए हैं. तेलुगू से लेकर तमिल और मलयालम से लेकर हिंदी तक में.
अखिल भारतीय स्तर पर सनसनी बनने से पहले ही कीरावनी गीतों का बड़ा खजाना रच चुके थे जिसमें अपने कजिन राजमौली की भव्य फिल्मों के दर्जनों गाने भी शामिल हैं.
तमिल भाषा से रिश्ता
इलैयाराजा के गीतों के साथ तमिलनाडु में पले पढ़े, हम जैसे लोगों को 1991 में सबसे पहले ताजा हवा के झोंके की खुशबू मिली थी. जैसा कि समझा जाता है, वह 1992 नहीं, 1991 का वक्त था.
12 सितंबर, 1991 को निर्देशक वसंत एस. सई की दूसरी फिल्म नी पाधी नान पाधी रिलीज हुई. वह तमिल की पहली फिल्म थी, जिसमें संगीतकार के रूप में मारागाथा मणि का नाम था.फिल्म ने बहुत सारे हिट गीत दिए थे, जिसमें प्रसिद्ध 'निवेधा' भी शामिल था. इसमें सिर्फ एक शब्द 'निवेधा' था, बाकी के सारे लिरिक्स स्वरों के विभिन्न संयोजन थे.
ठीक तीन महीने बाद दिसंबर 1991 में के बालाचंदर की अज़गन आई. इसमें भी मारागाथा मणि का संगीत था. आज भी आप किसी ऐसे दृश्य की कल्पना करें, जिसमें प्रेमी युगल रात भर एक दूसरे में खोए हुए हों तो आपको पृष्ठभूमि में अज़गन के 'संगीता स्वरंगल' की स्वर लहरियां ही सुनाई देंगी.
मणि की तमाम खूबसूरत कंपोजिशंस में दूरदर्शन की वह सिग्नेचर ट्यून भी शामिल है जो उसके सुबह के कार्यक्रम की शुरुआत में बजती थी.
चार महीने के बाद, मई 1992 में बालाचंदर की वानमे एलाई रिलीज हुई. इसमें भी मारागाथा मणि का संगीत था. फिर जनवरी 1993 में मणि के संगीत से सजी जाधी मल्ली फिल्म आई जिसमें हिंदुस्तानी और लोक संगीत का अनूठा संगम था.
और फिर अर्जुन की कुछ फिल्मों और रहमान अभिनीत पातोंद्रु केतन को छोड़कर, मारागाथा मणि ने तमिल फिल्मों में काम करना बंद कर दिया. उन्होंने लगभग 25 वर्षों तक यहां कोई संगीत रचना नहीं की हैलेकिन लोग अभी भी उनकी धुनों को सुनते और गुनगुनाते हैं- विडंबना यह है कि कई लोगों को लगता है कि इन गानों का संगीतइलैयाराजा नेदिया है.
इलैयाराजा का असर
दिलचस्प है कि कीरावनी खुद इलैयाराजा के प्रशंसक हैं- 2021 में उन्होंने इलैयाराजा के चेन्नई स्थित नए स्टूडियो के सामने सेल्फी लेकर कहा था, “टुडे हैज बीन अ गुड डे(आज का दिन अच्छा रहा)!”
राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक वसंत संगीत के बहुत अच्छे जानकार हैं. उनकी फिल्मों में जबरदस्त गीत होते हैं. वह अब भी कीरावनी के साथ काम करने के आनंद को याद करते हैं.
उन दिनों, के बालाचंदर के साथ कई वर्षों तक काम करने के बाद उन्होंने खुद फिल्म निर्देशक के तौर पर अपनी शुरुआत की थी.
“सर (बालाचंदर) मेरी फिल्म नी पाधी नान पाधी को प्रोड्यूस कर रहे थे और यह वह समय था जब वह इलैयाराजा की बजाय दूसरे संगीतकारों के साथ काम कर रहे थे– उन्होंने 1991 में मारागाथा मणि और 1992 में एआर रहमान को इंट्रोड्यूस किया. दिवंगत गायक एसपीबी सर (एसपी बालासुब्रह्मण्यम) ने केबी सर से कीरावनी के बारे में बहुत बात की थी (जिन्होंने तेलुगु में चरवर्ती और रमेश विनयागम को असिस्ट किया था), और इसके साथ मारागाथा मणि को दो फिल्में मिलीं- अज़गन और वानमे एलाई. पहली जिसे बालाचंदर सर निर्देशित कर रहे थे, और दूसरी मेरी फिल्म, जिसके वह प्रोड्यूसर थे.
वसंत, तमिल फिल्म निर्देशक
बालाचंदर की मारागाथा मणि के संगीत से सजी फिल्म बाद में रिलीज हुई, वसंत की फिल्म पहले. वसंत मुस्कुराते हुए कहते हैं, "मुझे हमेशा बहुत गर्व रहेगा कि रिलीज की तारीख की दिक्कतों की वजह से कीरावनी की पहली फिल्म, मेरी फिल्म रही.
वसंत को हमेशा याद रहेगा कि कीरावनी ने ‘निवेधा’ पर कैसे काम किया था.
“हमने चेन्नई के सवेरा होटल में एक हफ्ते तक काम किया. मैंने उनसे पूछा कि क्या वह ऐसा कोई गाना बना सकते हैं जिसमें कोई लिरिक्स न हों, सिर्फ कैरेक्टर का नाम हो. मैं हर फिल्म में कुछ नया करना चाहता था. उन्होंने गाने में ‘निवेधा’ का इस्तेमाल किया और बाकी के लिरिक्स के लिए स्वर लिए. यह गाना एसपीबी की आवाज में है... इस गाने को और क्या चाहिए था?”
दूसरे गानों में मारागाथा मणि शब्दों को बहुत अहमियत देते थे. जैसे उनके संगीत के अलंकार में,लफ्ज मणियों जैसे जड़े होते हैं.व संत रजामंदी जताते हैं, “वह मेलोडी किंग हैं. मुझे समझ नहीं आता कि हमने अब तक उनका जश्न क्यों नहीं मनाया.” जिसकी असली कीमत समझने में देर लगी
@SoundTrackIndiaपर भारतीय फिल्म संगीत के बारे में ट्वीट करने वाले नागराजन नटराजन ‘निवेधा’ की तरफ इशारा करते हैं. “जब मैं मारागाथा मणि के बारे में सोचता हूं तो मुझे सबसे पहले ‘निवेधा’ जैसा कमाल का गाना याद आता है. हालांकि वह तमिल भाषा को उतना नहीं जानते थे, लेकिन उन्होंने के बालाचंदर के साथ मिलकर हमारे लिए नब्बे के दशक की धुन ही बदल दी.
कम्यूनिकेशन स्ट्रैटेजी कंसल्टेंट और म्यूजिक ब्लॉगर कार्तिक श्रीनिवासन (ट्विटर पर @milliblog) कहते हैं कि 1991 वह दौर था, जब इलैयाराजा के बाद तमिल संगीत को एक नई आवाज़ मिली थी.
“बालचंदर ने कीरावनी को जब चुना, तब उन्होंने तेलुगू फिल्मों में करीब एक साल पहले ही अपनी शुरुआत की थी. कीरावनी का संगीत बहुत अनोखा था, रहमान की तरह नई राह दिखाने वाला नहीं, लेकिन इलैयाराजा से बहुत अलग.उन्होंने बहुत सुंदर गाने दिए, हालांकि बहुत ज्यादा फिल्में नहीं कीं."कार्तिक श्रीनिवासन, कम्यूनिकेशन स्ट्रैटेजी कंसल्टेंट
फिल्म निर्माता और फिल्म समीक्षक अक्सर मारागाथा मणि के लिए एक शब्द का इस्तेमाल करते हैं, अंडररेटेड, यानी जिनकी असली कीमत नहीं आंकी गई. और उन्हें अंडररेटेड क्यों कहा जाता है, इसकी भी एक वजह है.
"यह शर्मनाक है कि उनके काम को वह लोकप्रियता नहीं मिली, वह तवज्जो नहीं मिली, जिसके वह काबिल हैं- जबकि उनके पास गीतों का इतना बड़ा खजाना है. शायद इसकी वजह यह भी है कि उन्होंने हर इंडस्ट्री के लिए अपना एक अलग नाम इस्तेमाल किया. इससे लोग जान ही नहीं पाए कि उन्होंने इतने सारे सुंदर गीत रचे हैं.” नागराजन नटराजन कहते हैं.
श्रीनिवासन का कहना है कि मारागाथा मणि ने 'संगीता स्वरंगल' में अलग-अलग शब्दों/वाक्यांशों को संगीत में पिरोया है.
“उन्होंने छोटी फिल्मों में बहुत शानदार काम किया है, जोकि बहुत लोकप्रिय नहीं है. मुझे नहीं लगता कि प्रसिद्धि ने उन्हें कभी छुआ है. वह ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने एक बार अपने रिटायरमेंट की तारीख (8 दिसंबर 2016 तक) तय की थी, लेकिन फिर काम करते रहने का फैसला किया. वह अपनी लोकप्रियता से बहुत बेखबर है. पीछे मुड़कर देखें तो तमिल फिल्म इंडस्ट्री ने उनकी असली कद्र नहीं की. हो सकता है कि तेलुगु इंडस्ट्री अब उन्हें वह जगह दे दे. हां, मुझे लगता है कि हिंदी फिल्मों ने उनका सबसे अच्छा उपयोग किया है (क्रिमिनल, ज़ख्म, सुर, जिस्म, पहेली).कार्तिक श्रीनिवासन
कीरावनी को पहले गोल्डन ग्लोब और अब ऑस्कर जीतने से जो बात सभी को खुश करती है, वह यह है कि आखिरकार उन्हें पहचान मिल गई है. "यह वास्तव में मायने नहीं रखता है कि इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को जीतने वाला उनका गीत, उनके पिछले शानदार गीतों के मुकाबले कुछ फीका है. अहमियत यह रखता है कि एमएम कीरावनी को मंच और प्रसिद्धि मिल रही है'.
(सुभा जे राव तमिलनाडु में स्थित एक वरिष्ठ फिल्म समीक्षक और पत्रकार हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. द क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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