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गॉन विथ द विंड: 80 साल पुरानी क्लासिक सिखाती है जिंदगी के सबक  

आज के दौर में भी मौजू है इस फिल्म की थीम

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चार घंटे की मूवी. 1939 में रीलीज. मैं क्यों देखूं?
क्या फर्क पड़ता है कि फिल्म आज तक की सारी फिल्मों में सबसे ज्यादा कमाई करने वालों में से एक है. क्या फर्क पड़ता है कि अमेरिकी लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस ने इसे संजोकर रखा है.
ना तो अदाकारा आज मुझे एक्साइट करती हैं और ना ही फिल्म का प्लॉट.

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इसी तरह के ख्याल मेरे मन में आ रहे थे जब मैंने अपने खास मित्र के कहने पर 'गॉन विथ द विंड' देखना शुरू किया. फिल्म देखने के बाद मेरा भाव था- वाओ, मैंने इसे मिस कैसे कर दिया!

शायद क्लासिक वही होता है जो देश-काल की सीमाओं से परे हो. 'गॉन विथ द विंड' उस हिसाब से सच में क्लासिक है, जो अपने अंदर आज भी सारे जरूरी भाव संजोकर रखे हुए है.

अब तक मेरे लिए प्यार का मतलब होता था ‘आया, गया, हो गया’. लेकिन ऐसा भी प्यार हो सकता है जो तीन शादी और पूरी जिंदगी के लिए किसी एक से आसक्ति के बाद ही ठीक से पता चले? फिल्म की लीड स्कारलेट ओहारा के साथ यही हुआ.  

सबक सिखाती फिल्म

उसने बहुत कुछ खोया, बहुत पाया. लेकिन अपनी लड़ाई उसने कभी बंद नहीं की. बेहतर बनने की लड़ाई. अपने अंदर की लड़ाई और बाहरी ताकतों से लड़ाई. और ये मेरे लिए सबसे बड़ा सबक है.
दूसरा सबक, प्रेम ऐसा भाव हैं जिसे खुद भी समझने में काफी समय लगता है. इसके नाम पर किसी की जिंदगी तबाह कर देना, किसी से बदला ले लेना, स्टॉकिंग करना, एसिड फेंक देना- ये सारे बेवकूफी भरे काम है.

आज के दौर में भी मौजू है थीम

फिल्म में सिविल वॉर से तबाही का भी वर्णन है. 2020 में आशंका है कि दुनिया के करीब 80 देशों में सिविक अनरेस्ट रहेगा. मूवी को देखने के बाद आपको पता चल जाएगा कि किसी का ईगो दूसरों पर कितना भारी पड़ता है. ऐसे माहौल में खाने को लाले पड़ते हैं, बच्चों की डिलिवरी बिना डॉक्टर-अस्पताल के होते हैं, शहरें, गांव-कस्बे उजड़ते हैं. अपने अंदर कुछ करने की तमन्ना रखने वाले तो फिर भी उजड़े हुए चमन फिर से बनाने में कामयाब हो जाते हैं. लेकिन बाकी सबके नसीब में तबाही बचती है. ऐसे ईगो वाले हमारे किस तरह से हितैषी हो सकते हैं, जिनके गलत फैसले से चारो तरफ तबाही होती है? ये थीम आज भी मौजू है ना?

आज के दौर में भी मौजू है इस फिल्म की थीम
फिल्म के एक सीन में क्लार्क गेबल का साथ स्कारलेट ओहारा
(फोटो: ट्विटर)

स्कारलेट ओहारा को आप कतई किसी खास आइडियोलॉजी को मानने वाली नहीं कह सकते हैं. उसका एक ही फंडा है कि 'अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता'. कुछ इसी तरह की दुनिया है जिसमें 'फेंस सिटर्स' की बहुतायत होती है. वो अपना काम करते हैं और मस्त रहते हैं. इसमें कुछ गलत है क्या? लेकिन ईगो के क्लैश में इनका भी नुकसान होता है. क्यों? सारे 'फेंस सिटर्स' को ये सवाल अपने आप से पूछना चाहिए, और उनसे भी जो अपने फायदे के लिए इन मासूमों की जिंदगी तबाह करते हैं.

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मैंने तो ये मूवी देखी. स्कारलेट ओहारा की जिंदगी के बहुमूल्य सबक सीखने की कोशिश कर रहा हूं. आपका भी एक बार देखना तो बनता है. सिर्फ इसीलिए नहीं कि ये एक ऑलटाइम ग्रेट क्लासिक है. इसीलिए कि फिल्म में स्कारलेट की जिंदगी एक सबक है. अपने प्यार को खोजने का, आसपास की तबाही के बीच किस तरह से सर्वाइव करना है, सबकुछ फेल हो जाए तो कैसे जुगाड़ लगाई जाए. मूवी देखने के बाद मुझे लगा कि जिंदगी के कुछ सबक हमेशा ही काम आते हैं और हर पीढ़ी पर फिट बैठते हैं.  
आज के दौर में भी मौजू है इस फिल्म की थीम
फिल्म के एक सीन में स्कारलेट ओहारा
(फोटो: ट्विटर)

हां, फिल्म में सड़कों पर कुछ बिलबोर्ड हैं जिसमें जिंदगी के कुछ कालजयी सबक छिपे हैं. उन पर जरा गौर कीजिएगा, हो सकता है कि कुछ आपके काम के निकल जाएं.
मूवी देखने के बाद मैं ऐसा नहीं कह सकता कि स्कारलेट ओहारा से मुझे प्यार हो गया. लेकिन अपने किरदार के जरिए वो जिंदगी के कई सबक दे गई जिसे मैं हमेशा अपने साथ रखने की कोशिश करूंगा.

जिंदगी की जद्दोजेहद के बारे में बताती फिल्म

फिल्म की कहानी कुछ इस तरह की है. स्कारलेट को एक शादीशुदा मर्द से एकतरफा प्यार हो जाता है. वो लड़का युद्ध लड़ने जाने से पहले अपने पत्नी की देखभाल की जिम्मेदारी स्कारलेट को ही सौंप जाता है. तबाही के बीच स्कारलेट को अपने मां-बाप के शहर में लौटना पड़ता है, जहां उसे पता चलता है कि जिस घर को अपना मानती आई थी उसका तो नामोनिशान भी मिट गया है. इसके बाद शुरू होता है जिंदगी का असली संघर्ष - फिर से घर बनाना, खोये प्यार की तलाश, चारो ओर बर्बादी के बीच अपना अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद औऱ आखिर में अपने असली प्यार का एहसास.

इससे ज्यादा मैं आपको नहीं बताना चाहता हूं. मैं चाहता हूं कि फिल्म के सबक को आप अपने हिसाब से तलाशें. तभी वो आपके लिए सार्थक होंगे.

(लेखक युवा हैं और उनको फिल्मों का शौक है और उसी के जरिए वो जिंदगी के मायने तलाशने में जुटे हैं.)

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