ADVERTISEMENTREMOVE AD

गुजरात विधानसभा चुनाव 2017 की पांच बड़ी बातें 

बीजेपी की सरकार बनेगी, लेकिन क्या पार्टी की जीत हुई? कांग्रेस हारी,लेकिन क्या पार्टी को मनोवैज्ञानिक बढ़त मिली है?

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

क्रिकेट में एक मजेदार कहानी है- एलबीडब्ल्यू के लिए बार-बार अपील किए जाने के बाद भी अंपायर बैट्समैन को आउट नहीं दे रहे थे. लेकिन बॉलर ने स्टंप्स उड़ा दिए और अंपायर की ओर देखने लगा:

अंपायर- वो तो बोल्ड हो गया.

गेंदबाज- मुझे पता है सर, लेकिन क्या वो आउट हो गया?

ADVERTISEMENTREMOVE AD

गुजरात का चुनाव नतीजा भी कुछ इसी तरह का है. बीजेपी की सरकार बनेगी, लेकिन क्या पार्टी की जीत हुई और कांग्रेस की हार हुई? लेकिन क्या पार्टी को मनोवैज्ञानिक बढ़त मिली है? इस सवाल का जो भी जवाब देना चाहेगा, समझिए वो खतरे से खेल रहा है.

राजनीति में एक उदय का क्षण होता है. 1978 में कर्नाटक में इंदिरा गांधी के साथ कुछ ऐसा ही हुआ था. वीपी सिंह ने इलाहाबाद में यही कारनामा 10 साल बाद कर दिखाया. यूके में लेबर पार्टी ने इसी साल ये कर दिखाया. मैं कह सकता हूं कि राहुल गांधी के कांग्रेस ने कुछ यही आज कर दिखाया है.

गुजरात के नतीजों की 5 बड़ी बातें, मेरे हिसाब से:

1. ये गुजरात का चुनाव था, लेकिन राहुल ने दुस्साहस करके अपनी पूरी ताकत झोंक दी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात की शान हैं, वहां के आइकन. और सामने राहुल, एक बाहरी, एक ऐसे नेता, जिनकी पार्टी लगातार शिकस्त झेल रही है.

  • एक ऐसे नेता जिनका, मीडिया में जमकर मजाक उड़ाया जा रहा है. लेकिन उन्होंने सुपरमैन के सामने लड़ने की हिम्मत दिखाई. शेर के इलाके में उन्होंने घुसने की हिम्मत की. चाहते तो और फजीहत से बच सकते थे. खतरा था कि उनके अरमान चूर-चूर हो जाते. लेकिन उनकी मेहनत की बदौलत कांग्रेस जीत के करीब पहुंच गई और वो भी वोट शेयर में खासी बढ़ोतरी के साथ. पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में करीब 3 फीसदी और 2014 लोकसभा चुनाव की तुलना में करीब 9 फीसदी.

मतलब ये कि प्रधानमंत्री मोदी की जीत नहीं हुई और न ही राहुल हारे. राजनीति में साहस दिखाने के मामले में उनका ग्राफ काफी ऊपर गया. आज के धमाकेदार नतीजे का मेरे हिसाब से सबसे बड़ा निष्कर्ष यही है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

2. BJP की यूपी में शानदार जीत एक ट्रेंड की शुरुआत नहीं, एक पीक था

मुझे याद है कि मैंने अपने एडिटर्स को उस समय कहा था कि यूपी की जीत बीजेपी के प्रदर्शन का शिखर है.

  • राजनीति के पंडित उस आधार पर ये कहने लगे थे कि मोदी मैजिक की बदौलत बीजेपी की 2019 में और भी शानदार जीत होने वाली है. लेकिन यूपी में जीत बीजेपी को अपनाने की चाहत वाली जीत थी. 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद हर उस राज्य, मसलन महाराष्ट्र, हरियाणा, उत्तराखंड- में बीजेपी की जीत हुई, जहां वो अंडरडॉग थी और जहां मोदी मैजिक को आजमाने की ललक थी.

3. इन्कंबेंसी के नुकसान का काट BJP खोजने में सफल नहीं

पंजाब, बवाना, दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ का चुनाव, यूपी निकाय चुनाव. मैंने जान-बूझकर अलग-अलग स्तर वाले चुनावों का हवाला दिया है. बवाना को छोड़कर बीजेपी को हर उस चुनाव में असफलता मिली, जहां केंद्र या राज्य, किसी स्तर पर उसकी सरकार थी. ये बीजेपी के लिए खतरे की घंटी हो सकती है.

फूलपुर, गोरखपुर, अलवर, अजमेर और अररिया के लोकसभा उपचुनाव में और फिर राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव, दोनों में कांग्रेस सारी ताकत झोंक सकती है. और शायद गुजरात से बढ़े उत्साह के बाद पार्टी को चंदा देने वालों की कमी का सामना भी न करना पड़े.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

4. GST और नोटबंदी के सफल राजनीतिक स्पिन का असर शायद कम हो रहा है

प्रधानमंत्री ने नोटबंदी को गरीबों के हित वाला कदम बताया और इस संदेश को ठीक से पहुंचाने में सफल भी रहे. लोगों ने उम्मीद में सारी तकलीफें झेलीं. लोगों को लगा कि वो फैसला बेईमानों को जमीन पर ला देगा.

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के नतीजे शायद उसी का परिणाम थे. लेकिन जैसे-जैसे लोग हकीकत से रूबरू होने लगे, लोगों ने सवाल पूछने शुरू कर दिए हैं. और उस पर से जीएसटी की मार. प्रधानमंत्री को इस माहौल से उबरने के लिए असाधारण फैसले लेने होंगे और शायद इसके लिए अपने विरोधियों की बातों को भी ध्यान से सुनना होगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

5. 2019 का नतीजा किसी तरफ जा सकता है, राहुल की कांग्रेस विपक्षी एकता का केंद्र हो सकती है

यूपी चुनाव के बाद पंडितों के बड़े-बड़े ऐलानों पर फिर से विचार करने की जरूरत है. उस समय कहा गया कि कांग्रेस, राहुल और विपक्ष के लिए 2019 में 'नो चांस'. कहा गया कि 2019 में बीजेपी को 350 से कम सीटें नहीं आने वाली हैं. ऐसे ऐलानों पर शायद अब विराम लगेगा. और वो भी उस राज्य के नतीजों के बाद, जो मोदी जी की जन्मभूमि और कर्मभूमि है.

2019 का मैच किसी का भी हो सकता है. बशर्ते कि कांग्रेस विपक्ष का एक तगड़ा गठबंधन बनाए, जिसमें टीएमसी, डीएमके, एसपी, बीएसपी जैसी पार्टियां जुड़ें. राहुल इसकी कोशिश करेंगे और मोदी-शाह उस गठबंधन को रोकने का भी जमकर प्रयास करेंगे. ऐसे गठबंधन पर 2019 का परिणाम निर्भर करेगा.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

ये थे मेरे पांच निष्कर्ष. इसके अलावा, अगर प्रधानमंत्री की नजरें इनायत हों, तो एक सुझाव भी है. मेरा मानना है कि अगर प्रधानमंत्री अपनी विकासोन्मुखी राजनीति की तरफ नहीं मुड़े तो 2014 में उनके साथ जो प्रगतिशील वोटर्स जुड़े थे, उनके छिटकने का खतरा है.

1999 के बाद के चुनावों पर नजर डालें, तो बीजेपी और कांग्रेस को मिलाकर दोनों पार्टियों को 50 फीसदी वोट मिलता रहा है. दोनों का अपना-अपना हिस्सा करीब 25 फीसदी रहा है. 2014 में बीजेपी ने इस बंधन को तोड़ा और करीब 5 फीसदी मॉडरेट वोटर्स को अपनी तरफ खींच लिया. इसकी वजह से जहां बीजेपी 30 फीसदी का आंकड़ा पार कर गई, वहीं कांग्रेस 20 फीसदी के नीचे गिर गई.

अगर प्रधानमंत्री दोबारा विकास की तरफ नहीं मुड़े और कट्टरपंथियों पर लगाम नहीं लगा पाए, तो 2019 का मौका उनके हाथ से फिसल सकता है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×