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गुजरात के साणंद में अबकी बार बीजेपी का स्वागत होगा या टाटा?

सानंद गुजरात के विकास का मॉडल का सबसे बड़ा चेहरा माना जा सकता है

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नरेंद्र मोदी ने जब टाटा नैनो के लिए 2008 में स्वागतम् कहा था, तब से उद्योगों के लिए गुजरात के मुस्कुराते-स्वागत करते चेहरे के तौर पर साणंद का नाम लिया जाता है. वैसे, पूरे राज्य को उद्योगों के लिहाज से अनुकूल माना जाता है. लेकिन साणंद में नैनो का आना पूरे देश और दुनिया में भी चर्चा की वजह बन गया. अब उसी साणंद के नैनो प्लांट के बंद होने की बात कहकर राहुल गांधी भारतीय जनता पार्टी की सरकार और नरेंद्र मोदी पर हमला कर रहे हैं.

लेकिन इसी साणंद से चुने गए कांग्रेसी विधायक करमसी पटेल ने अहमद पटेल के राज्यसभा चुनाव के दौरान हाथ का साथ छोड़ दिया और कमल का फूल थाम लिया. अब करमसी पटेल के बेटे कुनभाई पटेल को बीजेपी ने अपना प्रत्याशी बनाया है. ये एक नई किस्म की राजनीति है, जिसे अमित शाह ने साध लिया है. कोई भी राजनीतिक विश्लेषण इस पहलू को सही नजरिये से नहीं देख पाता है.

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उत्तर प्रदेश में ऐसी सीटों पर, जहां दूसरे दलों के मजबूत प्रत्याशी थे, उन्हें अमित शाह ने बीजेपी में लाकर सीट जीत ली थी. क्या गुजरात में भी राजनीतिक विश्लेषक इस पहलू की अनदेखी कर रहे हैं. उदाहरण के लिए साणंद को ले लें. साणंद में 2008 में नैनो का प्लांट आया. दुनियाभर में नरेंद्र मोदी की पहचान उद्योग-निवेशक मित्र के तौर पर हुई.

लेकिन कमाल की बात यह रही कि 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ये सीट बीजेपी से 4000 से ज्यादा मतों से जीत ली. अब राहुल गांधी 2017 के चुनाव में साणंद में उद्योगों में घटते रोजगार और नैनो प्लांट के बंद होने का मुद्दा जोर-शोर से उठा रहे हैं. इसलिए बीजेपी के लिए साणंद सीट ज्यादा बड़ी चुनौती हो गई है.

शायद यही वजह है कि कोली-पटेल समाज के बड़े नेता करमसी पटेल को अमित शाह ने कांग्रेस से तोड़ा और कमल का फूल उनके बेटे के हाथ में थमा दिया.

साणंद गुजरात के विकास का मॉडल का सबसे बड़ा चेहरा माना जा सकता है. 2008 के पहले इसकी पहचान एक गांव के तौर पर थी और 2008 के बाद साणंद की पहचान देश के सबसे विकसित इलाके के तौर पर की जाती है. इसका अनुमान कुछ आंकड़ों से आसानी से लगाया जा सकता है.

टाटा ने साणंद में नैनो का प्लांट लगाया तो, उस समय यहां की जमीन की कीमत 5 लाख रुपये बीघे के आसपास थी और आज साणंद के आसपास जमीन की कीमत 50 लाख रुपये बीघे तक पहुंच गई है.

भले ही राहुल गांधी ये कह रहे हों कि साणंद में नैनो प्लांट बंद हो रहा है और लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है. किसानों की जमीन चली गई है. लेकिन, इसका एक दूसरा पहलू ये है कि साणंद में किसानों को उनकी जमीन का इतना ऊंचा भाव मिला है कि उनके लिए रोजगार कोई मुद्दा नहीं है. किसानों को एकमुश्त मोटी रकम मिली है.

इसके अलावा कई उद्योगों के आने से साणंद में दूसरे राज्यों से आए ढेरों मजदूर-कर्मचारी रहने लगे हैं. इसकी वजह से साणंद में किराए के घर का एक बड़ा कारोबार खड़ा हो गया है और ये कारोबार ज्यादातर जमीन बेचकर मोटा पैसा पाए किसानों के पास ही है. उन्होंने अपनी बेची जमीन से मिली मोटी रकम से बची जमीन पर घर बनाकर उसे किराए पर दे दिया है.

बड़ी आसानी से साणंद के गांवों में 5000 से 7000 रुपये महीने पर घर किराए पर मिल जा रहा है. नागपुर के रहने वाले योगेश तायडे टाटा मोटर्स में काम करते हैं. साणंद के नजदीक गांव में एक घर में 3500 रुपये महीने के किराए पर रहते हैं. योगेश बताते हैं कि बैचलर लोग एक साथ पूरा घर 10-15000 रुपये पर ले लेते हैं.
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साणंद में टाटा मोटर्स के आने के बाद फोर्ड और दूसरी कई बड़ी कम्पनियां आई हैं. अहमदाबाद से साणंद से आगे हाइवे पर बढ़ने पर बाएं हाथ की ओर गुजरात स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट ने उद्योगों के लिए जमीन दी है. गेट नम्बर 2 से मुड़ने पर टाटा मोटर्स की बड़ी फैक्ट्री नजर आती है. टाटा मोटर्स के गेट पर ही हर वक्त 5-7 ऑटो रिक्शा वाले खड़े रहते हैं. उनसे बात करने पर गजब की नाराजगी टाटा से देखने को मिली. उनकी नाराजगी ये थी कि टाटा मोटर्स में उन्हें नौकरी नहीं मिल रही है.

मैंने पूछा- कितनी पढ़ाई की है? जवाब आया- 10वीं. ज्यादा गुस्से में नजर आ रहे तौसीफ ने कहा कि हम लोगों को नौकरी नहीं मिलती. छोटा काम मिलता है. बड़ा काम सब बाहर वालों को मिलता है. तौसीफ, आसिफ और शाहरुख- तीनों ने एक स्वर में ये बात कही. तीनों ऑटो चलाते हैं और रोजाना 500 रुपये कमाई की बात बताते हैं.

लेकिन ये भी कि 200 रुपये पुलिसवालों को देने में चले जाते हैं. टाटा मोटर्स के सामने की सड़क के पार छारोड़ी गांव है और इस गांव के लोगों को जमीन इसमें नहीं ली गई है. इस वजह से भी छारोड़ी गांव वालों को टाटा की नैनो खास पसंद नहीं आती.

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राहुल गांधी और हार्दिक पटेल चुनावी सभाओं में लगातार ये कह रहे हैं कि गुजरात के स्थानीय लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है. इसीलिए मैं टाटा मोटर्स के गेट पर ही रुक गया. थोड़ी देर में 2 लड़के फैक्ट्री से निकले मुझे लगा बाहर के ही होंगे. लेकिन, मेरी उम्मीदों के उलट दोनों ही गुजराती निकले. आकाश पटेल और विजय लुहार. दोनों ने कुछ महीने पहले ही टाटा मोटर्स में 12500 रुपये महीने पर नौकरी शुरू की है. आकाश, मोडेरा के रहने वाले हैं और उन्होंने सरखेज पॉलिटेक्निक से और सुरेंद्र नगर के रहने वाले विजय ने सी यू शाह पॉलिटेक्निक से पढ़ाई की है.

स्थानीय लोगों को रोजगार न मिलने का सवाल जब मैंने उनसे पूछा तो, जवाब आया. यहां नौकरी करना कौन चाहता है. 10वीं के बाद पढ़ाई नहीं करते. हमें कैंपस प्लेसमेंट में नौकरी मिली. आकाश, विजय की बात को पुख्ता करते हुए योगेश तायडे बताते हैं कि वे जिस कंपनी के लिए काम करते हैं, उसमें 14 लोग हैं और वे अकेले गैर गुजराती हैं. राहुल गांधी के टाटा नैनो बनना बंद होने पर योगेश ने बताया कि नैनो पहले से बहुत कम बन रही है. लेकिन, टाटा ने यहां से टिगोर और टियागो बनाना शुरू कर दिया है.

साणंद के खोड़ा गांव के सरपंच चंद्र सिंह वाघेला ने स्थानीय लोगों को रोजगार न मिलने का दूसरा पहलू बताया. उन्होंने कहा कि नौकरी में कम पैसे मिलते हैं. गांव के बहुत से लोग यहां की कंपनियों के साथ छोटे-बड़े काम लेकर ज्यादा कमा रहे हैं. साणंद कोली-पटेल बहुल विधानसभा है. जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने ही इसी समाज के लोगों को टिकट दिया है.

करीब 90000 कोली-पटेल इस इलाके की सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत हैं. हालांकि, ठाकोर-दलित-मुस्लिम गठजोड़ भी एकसाथ आए तो, अच्छी ताकत दिखती है. साणंद विधानसभा में ठाकोर 25000, दलित 22000 और मुस्लिम 18000 के करीब हैं. इसके अलावा पाटीदार-पटेलों का मत भी विजेता तय करने में अहम भूमिका निभाएगा. इस विधानसभा में करीब 13000 पाटीदार-पटेल हैं.

विकास और जातिवाद दोनों ही लिहाज से ये सीट काफी दिलचस्प है. मोदी के विकास के एजेंडे पर पर यहां सबकुछ चमकता दिखाई देता है. जातीय संरचना के लिहाज से कांग्रेस-बीजेपी दोनों ने दांव खेला है. अब साणंद की जनता भारतीय जनता पार्टी को इस बार स्वागतम् कहती है या फिर टाटा. देखना दिलचस्प होगा.

(हर्षवर्धन त्रिपाठी वरिष्‍ठ पत्रकार और जाने-माने हिंदी ब्लॉगर हैं. उनका Twitter हैंडल है @harshvardhantri. लेखक अभी गुजरात के दौरे पर हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)

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