ADVERTISEMENTREMOVE AD

देवता आजकल गुस्से में क्यों हैं?हनुमानजी का ये स्टिकर क्या कहता है

टू और फोर ह्वीलर्स पर आजकल हनुमान जी की एक उग्र और प्रचंड तस्वीर चिपकी नजर आ रही है, जिसमें वो बेहद गुस्से में हैं.

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

अगर आप किसी भारतीय महानगर में हैं, तो इस एक इमेज को देखने से आप बच नहीं सकते. टू और फोर ह्वीलर्स पर इन दिनों हनुमान जी की एक उग्र और प्रचंड तस्वीर चिपकी नजर आ रही है. इन स्टीकर्स में हनुमान जी बेहद गुस्से में नजर आ रहे हैं.

हनुमान जी काफी लोकप्रिय देवता हैं और इनके मंदिर लगभग हर शहर में हैं और बेशुमार हैं. कैलेंडर आर्ट, किताबों और कार्टून और एनिमेशन कला में भी हनुमान जी का चरित्र काफी प्रचलित है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

खासकर सड़कों पर, कार, एसयूवी, बाइक्स और स्कूटर पर हनुमान जी की जो तस्वीर पिछले कुछ महीनों में वायरल हुई है, वह पहले जैसे हनुमान जी नहीं हैं. ये हनुमान जी “कुमति निवार सुमति के संगी” वाले हनुमान जी नहीं हैं.

नए लोकप्रिय हो रहे स्टीकर में हनुमान जी की वह छवि नहीं है, जिसमें वो राम, सीता और लक्ष्मण के सामने घुटने पर बैठे हैं, जिनके हाथ आपस में प्रणाम की मुद्रा में जुड़े हैं और जिनके चेहरे का एकमात्र भाव विनम्रता है. जो सेवाभाव की प्रतिमूर्ति हैं. विनीत भाव वाले हनुमान जी की आंखें भी अक्सर भक्ति में मुंदी होती हैं. लोककथाओं, धार्मिक ग्रंथों और मिथक कथाओं में हनुमान जी की यही छवि है.

हनुमान जी बच्चों के भी प्रिय देवता हैं और उनकी किताबों और कार्टून फिल्मों में भी जो हनुमान जी हैं, वे बेहद अहिंसक और शालीन है. इस इमेज से क्रोध तो कतई नहीं उपजता.

लेकिन अब अचानक हनुमान जी की जो छवि सड़कों पर, टू और फोर ह्वीलर्स पर चिपककर छा गई है, वे नाराज हनुमान जी हैं. उनका चेहरा कसा हुआ है. भौंहें तनी हुई हैं. ललाट पर बल है. आंखों में रौद्र भाव है. इन स्टीकर्स में जिन रंगों का इस्तेमाल किया गया है, वे भी गर्म तासीर वाले हैं. इनमें हनुमान जी गुस्से में हैं. यह गुस्सा किस बात पर है, पता नहीं. लेकिन उनके चेहरे का सौम्यता और शांति गायब है.

किसने बनाई है ये हनुमान जी की छवि?

हनुमान जी की इस छवि के बारे में बताया जा रहा है कि इसे उत्तरी केरल के कासरगोड़ जिले के कुंबले गांव में रहने वाले कलाकार करण आचार्य ने बनाया है. उन्हें ऐसी एक छवि बनाने के लिए गांव के युवकों ने कहा था, जो गणेश चतुर्थी पर झंडे में लगाने के लिए कोई निशान चाहते थे. आचार्य ने यह तस्वीर 2015 में बनाई थी, जो पता नहीं, कहां-कहां से गुजरती हुई अब टू ह्वीलर्स के फ्रंट पर और फोर ह्वीलर्स के बैक विंडो पर छा गई है.

हमारे हनुमान जी नाराज नहीं हैं. यह जरूर है कि परंपरागत तौर पर उनके चेहरे पर जो सौम्य और कई बार मुस्कान होती है, वह इस छवि में नहीं है. इस वाले हनुमान जी में ठसक यानी एटिट्यूड है. 
करण आचार्य 

हालांकि आचार्य ने कभी यह नहीं चाहा था कि इस छवि का इस्तेमाल गाड़ियों में इस तरह हो. यह उनसे पूछकर नहीं हुआ है. इन तस्वीरों को चूंकि बड़े पैमाने पर बेचा जा रहा है, तो इसमें कमाई भी है. लेकिन इसकी रॉयल्टी आचार्य तक नहीं पहुंच रही है.

ये तस्वीरें अब अमेजन जैसी ऑनलाइन साइट पर हॉट केक की तरह बिक रही हैं और हो सकता है कि सड़कों पर ये पहले से भी ज्यादा नजर आने लगेंगी.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्या हमारे देवता सचमुच नाराज हैं?

क्या हमारे देवता सचमुच नाराज हैं या कोई है, जो इनको नाराज बताकर कुछ हासिल करना चाहता है? आखिर वो कौन है, जो हनुमान जी जैसे देवता से उसके चेहरे की शालीनता छीन लेना चाहता है? क्या कोई है, जो भारतीय नागरिकों के बीच गुस्से का कारोबार कर रहा है या करना चाहता है?

कहीं ऐसा तो नहीं कि गुस्सा हमारे लोकजीवन में छाता जा रहा है और उसी का असर इन स्टीकर्स में दिख रहा है. आखिर यह तो सच है कि गुस्से और गुस्से में हिंसा की खबरों से हम हर रोज गुजर रहे हैं.

मोबाइल छीन लेने की वजह से बच्चा अपनी मां को पीट दे रहा है. पढ़ने के लिए बार-बार कहने पर बच्चा घर का फर्नीचर तोड़ दे रहा है. पति से नाराज एक मां अपने बच्चों को मार देती है. जवान लड़का बैट चलाकर अपने पिता की हत्या कर देता है. सड़क पर गाड़ी से गाड़ी छू जाने जैसी घटनाओं का अंत हत्या में हो रहा है.

एक मजदूर इसलिए पीट दिया जाता है कि काम के वक्त उसने दो मिनट सुस्ताने के लिए बीड़ी सुलगा ली. एक एचआर मैनेजर इसलिए मारा जा सकता है कि मजदूरों का वेतन पर्याप्त नहीं बढ़ा. टीचर स्टूडेंट को स्टूडेंट टीचर को पीट सकते हैं. कोई भी किसी को भी पीट सकता है. गाली दे सकता है. जान भी ले सकता है. कोई संबंध इतना पवित्र नहीं है कि उसका अंत हिंसा में न हो. नाराजगी हर रिश्ते पर भारी है.

नेता गुस्से में बयान दे रहे हैं. टीवी स्क्रीन पर एंकर अक्सर इतने नाराज होते हैं कि लगता है कि सेट में आग लगा देगा या देगी. पैनलिस्ट को देखकर अक्सर लगता है कि वे एक दूसरे का सिर फोड़ देंगे. हो सकता है कि शो के बाद वे एक दूसरे को पीट डालते हों. या हो सकता है कि वे स्क्रीन पर नाराजगी का नाटक कर रहे हों और बैक स्टेज पर मिलकर चुटकुले शेयर कर रहे हों.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

सोशल मीडिया पर लोग दे रहे हैं धमकियां

सोशल मीडिया पर लोग धुआंधार एक-दूसरे को गालियां दे रहे हैं. एक दूसरे को देख लेने और मिटा डालने की धमकियां दे रहे हैं. ट्रोल हो रहे हैं, कर रहे हैं.

एक गुस्सा वातावरण में है, जो चौतरफा है. नेता एक दूसरे को अपशब्द बोल रहे हैं, जो अपशब्द नहीं बोल रहा है वह कमजोर नेता मान लिया गया है. जो नेता विरोधी पक्ष की आवाज को न दबा सके, वह नकारा मान लिया गया है. नेताओं का मर्दानापन अब मुंह से आग और झाग उगल रहा है.

हो सकता है कि यही गुस्सा पसरकर कार की पिछली कांच पर जा चिपका हो.

सोचने की बात तो है...

हालांकि देवता का नाराज होना इससे पहले भी हुआ है. शिव और मां काली का रौद्र रूप तो हमेशा से लोकप्रिय रहा है. लेकिन 1990 के दशक में राममंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद के दौरान मर्यादापुरुषोत्तम राम की तस्वीरों के भी केश खोल दिए गए और उन्हें गुस्से में तीर और बाण लेकर प्रस्थान करते हुए दिखाया जाने लगा.

राम ने युद्ध जरूर लड़े थे, लेकिन राम की लोकछवि राजा राम की या विवाहित परिवारी पुरुष राम की ही थी. 1990 के एक विवाद ने सब कुछ बदल कर रख दिया. विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के हर कार्यक्रम के बैनर पोस्टर में क्रुद्ध राम दिखने लगे. ऐसा लगता है कि राममंदिर आंदोलन के संचालक यही क्रोध जनता के एक हिस्से के अंदर जगाना चाहते थे और वे इसमें एक हद तक सफल भी रहे.

क्या वही सब एक बार फिर हो रहा है? सड़क पर अपनी नजरें खुली रखिए.

(दिलीप मंडल सीनियर जर्नलिस्‍ट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है. आर्टिकल की कुछ सूचनाएं लेखक के अपने ब्लॉग पर छपी हैं)

ये भी पढ़ें- भक्त वानर: हनुमान की भक्ति में लीन एक अनोखा रॉकस्‍टार!

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×