मैं उसके खेल से कम चौंका, उसकी बल्लेबाजी ने मुझे कम चौंकाया, उसकी गेंदबाजी पर भी नहीं चौंका और न ही उसकी फील्डिंग पर. मैं चौंका उसके एक्सेंट यानी उच्चारण पर. अगर मैच टीवी पर नहीं देख रहा होता तो पक्का मान लेता कि किसी वेस्टइंडीज के खिलाड़ी का इंटरव्यू चल रहा है. कोई क्रिस गेल या फिर विवियन रिचर्ड्स सरीखा बोल रहा है. हूबहू वहीं एक्सेंट. वैसे ही "हे मान" बोलना, उसका हेयर स्टाइल भी चौंकाता है. आधे सिर के बाल बहुत छोटे और आधे बड़े, उल्टी तरफ मुड़े. रंग-ढंग, चलने का अंदाज, एक बिंदासपन, अल्हड़ता. जैसे अरण्य में कोई अलसाया शेर चल रहा हो. न शिकार पकड़ने की जल्दी, पूरी कायनात को इग्नोर करने का स्टाइल और एक सहजता. एक ऐसा झरना जिसे किसी की परवाह नहीं, अपने में मस्त, बहना जिसका एकमात्र काम है और एकमात्र धर्म भी.
यही परिचय है उस शख्स का जो आज भारतीय क्रिकेट का सबसे उभरता सितारा है . नाम है- हार्दिक पांड्या
पहली मुलाकात
हार्दिक पहली बार मुंबई में मिला, एक फंक्शन था. जहां वो अपने भाई क्रुणाल के साथ आया था. हम तीनों को अपने-अपने बारे में बोलना था. मैं उससे इम्प्रेस हो गया. इतनी छोटी उम्र और इतना आत्मविश्वास. आँखों में चमक, एक रहस्यमय बेचैनी. बात ज्यादा नहीं हुई, बस हैलो-हाय. तब वो भारतीय टीम में पूरी तरह से नहीं आ पाया था. आईपीएल में मुंबई इंडियन्स के लिए खेल रहा था. फिर उसे टीम में मौका मिला. कहा जाने लगा कि भारतीय टीम में एक तेज गेंदबाज बैट्समैन ऑलराउंडर की जरूरत है और वो उस गैप को भर सकता है. आज ये कह सकते हैं कि हार्दिक उन उम्मीदों पर खरा उतर रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पहले वनडे में वो विस्फोटक बल्लेबाजी और फिर सही समय पर दो विकेट झटकना भविष्य का इशारा है.
इसमें दो राय नहीं कि आईपीएल और टी20 ने क्रिकेट को पूरी तरह से बदल दिया है. तेज स्कोर करना अब कोई खासियत नहीं रह गई है. कोई भी बैट्समैन ताबड़तोड़ बल्लेबाजी कर मैच का रुख एक दो ओवर में पलट सकता है लेकिन टैलेंट क्लीन हिटिंग में है. संकट के समय टेंपरामेंट में है, और आत्मविश्वास के साथ सही समय पर अटैक करने की कला में है.
चेन्नई वनडे में पांच विकेट गिरने के बाद भारत पर हार का खतरा मंडरा रहा था. तब संभल कर खेलने की जरूरत थी. हार्दिक ने धोनी से नसीहत ली और धैर्य नहीं खोया. जब लगा कि स्कोर तेज करना है तो आक्रमण का लावा फूटा. 37वें ओवर में हार्दिक के हमले ने गेम बदल दिया. उसके छक्के क्लीन थे, बिलकुल सहज. परफेक्ट टाइमिंग, सिर्फ पावर नहीं और यही आर्ट एक असाधारण खिलाड़ी को सामान्य से अलग कर देती है. कहीं कोई हड़बड़ी नहीं, एक लय एक रिदम मानो कोई पेंटर किसी कोने में पेंटिंग कर रहा हो. चेहरे पर चमक जैसे उसे मालूम था कि वो क्या कर रहा है.
चैंपियंस ट्रॉफी फाइनल याद है ना?
इसी तरह चैंपियन ट्राफी के फाइनल में हार्दिक ने करिश्मा दिखाया था. पिच ओवल की थी और पूरे देश की निगाह लगी थी. सबको विश्वास था कि भारत चैंपियंस ट्राफी का विजेता बनेगा लेकिन भारतीय पारी शुरू होते ही तोते उड़ गये. विश्व की नंबर एक टीम 54 रन पर 5 विकेट गंवा बैठी, हार्दिक की बारी थी. चेहरे पर फिर वही आत्मविश्वास.
43 गेंद पर 76 रन पीट दिये. 32 गेंद में पचास रन बनाने का नया रिकार्ड बनाया. किसी भी आईसीसी अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में सबसे तेज अर्धशतक बनाने का एडम गिलक्रिस्ट का रिकॉर्ड टूट गया. भारत फाइनल हार गया लेकिन हार्दिक ने एक बड़े खिलाड़ी के आगमन का एहसास सबको करा दिया. इसी साल उसे टेस्ट में भी मौका मिला. श्रीलंका के खिलाफ पल्लेकेले में उसने सेंचुरी मार दी. हैरानी की बात ये है कि हार्दिक का फ़र्स्ट क्लास क्रिकेट का पहला शतक है यानी इसके पहले उसने घरेलू मैचों में भी सेंचुरी नहीं मारी थी .
नया अंदाज लाए हैं हार्दिक
हार्दिक का खेलने का अंदाज और बॉडी लैंग्वेज भारतीय क्रिकेट में बिलकुल नई है. उसमें विराट का अक्स झलकता है. विराट भी बिंदास हैं, उसके शरीर पर बने टैटू एक नयी क्रिकेट की इबारत लिखते हैं. विराट से पहले क्रिकेट की पहचान सचिन तेंदुलकर से थी. एक सज्जन पुरूष, धीर गंभीर, सिर्फ खेल से मतलब, सिर्फ बल्ला बोलता. गावस्कर भी पूरी टीम को अपने कंधों पर ढोते थे लेकिन बोलते कम थे. बल्ला ज्यादा चहकता था. खेल में आत्मविश्वास तो था लेकिन "फ्लैमबॉयंस" नहीं था . जो वेस्टइंडीज क्रिकेट की खासियत थी. जो खेल के साथ जिंदगी जीने का हुनर भी जानते थे.
सचिन महान हैं, गावस्कर महान हैं, विराट भी उनके समकक्ष महान हैं लेकिन विराट के शरीर का एक-एक अंग बोलता है. वो किसी की परवाह नहीं करता. हम भारतीयों में एक खास बात है कि हम इस बारे में ज्यादा सोचते हैं कि दूसरे हमारे बारे में क्या सोचते हैं और ये सोचकर थोड़ा गंभीर हो जाते हैं. अपने में सिकुड़ जाते हैं, सहजता खो देते हैं. क्या आप सोच सकते हैं कि सचिन कभी टैटू करा सकते हैं? असंभव... सचिन इमेज कॉन्शस हैं. विराट को कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोग क्या सोचेंगे उसके बारे में. उसे करना है तो करेगा. वो सचिन की तरह अपने इमोशन छिपाता नहीं, एक्सप्रेस करता है. खुलकर अपने आप को दुनिया के सामने रखता है, उसकी आक्रामकता को भारतीय संदर्भ में लोग गलत समझ सकते हैं पर वो ये नहीं सोचता कि पॉलिटिकली क्या सही और क्या नहीं. कुछ-कुछ सौरव गांगुली का लॉर्ड्स के मैदान पर शर्ट लहराने जैसी ही अदा है.
विराट से एक कदम आगे है हार्दिक
हार्दिक विराट से भी एक कदम आगे हैं. विराट शायद हार्दिक की तरह वेस्टइंडीज की जीवन शैली को अपने में उतारने की कोशिश नहीं करेगा. वो अपनी भारतीय सीमा में खुश है. उसका अपना स्टाइल है, वो आइकॉन बन चुका है. शायद वो इंग्लैंड के फुटबॉल खिलाड़ी डेविड बैखम जैसा है. टैलेंटिड-स्टाइलिश-सेलिब्रिटी, वो रूखा नहीं है. उसके जीवन में रंग है और वो उसका जी भर के इजहार भी करता है. वो कंजरवेटिव सचिन नहीं, वो रिवोल्यूशनरी विराट है लेकिन हार्दिक रैडिकल है .
हार्दिक की परवरिश छोटे शहर बड़ौदा के मध्यवर्गीय परिवार में हुयी है. छोटे शहर के बड़े सपने हैं . वो दुनिया मुठ्टी में करना चाहता है और इस दौड़ में वो भौगोलिक और सांस्कृतिक सीमाओं, बंधनों में नहीं बंधना चाहता. वो विराट की तुलना में ज्यादा ग्लोबल है. उसकी बल्लेबाजी बेखौफ है, ये बेखौफ अंदाज उसे वेस्टइंडीज से मिला है. मुंबई इंडियंस से खेलते समय उसकी सबसे ज्यादा दोस्ती वेस्टइंडीज के खिलाड़ियों से रही. वो उनसा बन गया. उनकी जीवन शैली भी अपना ली और क्रिकेट का बेखौफपन भी.
कपिल के नक्शेकदम पर हार्दिक पांड्या
कपिल देव उसका आदर्श हो सकते हैं. कपिल भी उसकी तरह तेज गेंदबाज बैट्समेन ऑलराउंडर थे. वो भी बेखौफ बल्लेबाजी करते थे लेकिन उनकी गेंदबाजी ज्यादा बेहतर थी. हार्दिक को गेंदबाज के तौर अभी बेहतर होना है. उसकी गेंद मे वो रिदम और स्विंग नहीं है जिसने कपिल को महान गेंदबाज बना दिया. कपिल अपने समय में रिवोल्यूशनरी थे लेकिन भारतीय परंपरा में पूरी तरह रचे बसे.
हार्दिक में क्षमता है. जब उसने टीम में जगह पाई तब वो 135-36 किमी की रफ्तार से गेंद फेंकता था. अब वो 140 किमी के ऊपर मार रहा है. विकेट भी लगातार ले रहा है. फर्स्ट चेंज बॉलर के रूप में अच्छा है. कपिल भारत के मेन बॉलर रहे, आखिर तक. ऐसे में कह सकते हैं कि हार्दिक कपिल के नक्शेकदम पर हैं. उसमें कपिल से आगे जाने की क्षमता और ऊर्जा दोनों हैं. जैसे विराट में सचिन को पीछे छोड़ने का माद्दा है और सचिन से आगे निकलते दिख भी रहे हैं लेकिन हार्दिक को कोशिश करनी है. वो एक जीवंत संभावना का नाम है अपनी उम्र की पीढ़ी की तरह. जैसे उसकी पीढी दिल से हिंदुस्तानी है और दिमाग से ग्लोबल.
(लेखक आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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