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नफरती बयानों से BJP करना चाहती है परहेज, तो ये है वजह

क्या गृह मंत्री का बयान एक कोर्स करेक्शन की तरफ इशारा है?

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वीडियो एडिटर: वरुण शर्मा

गृह मंत्री का बयान कि नेताओं की गलत बयानबाजी से भारतीय जनता पार्टी को दिल्ली में नुकसान हुआ का क्या मतलब निकाला जाए? पार्टी को पिछले चुनाव की तुलना में ज्यादा वोट मिले. सीट भी ज्यादा मिलीं. क्या गृह मंत्री का बयान एक कोर्स करेक्शन की तरफ इशारा है? संभव है कि बीजेपी के आला नेताओं को लगने लगा है कि सामाजिक तनाव कंट्रोल से बाहर होता जा रहा है और इस तरह के बयानबाजी माहौल को और खराब कर रहे हैं.

लेकिन इससे भी बड़ी बात ये है कि शायद गृह मंत्री ने हाल में हुए विधानसभा चुनावों के जनादेश का सही मतलब निकाला है. और जनादेश ये है कि ध्रुवीकरण से बीजेपी का वोट शेयर तो बढ़ा, लेकिन बीजेपी विरोधी सारे वोटर्स एकजुट हो गए. कम से कम हाल के दो चुनावों- झारखंड और दिल्ली के विधानसभा चुनावों- में यही पैटर्न सामने आया है. और इन दोनों चुनावों में नेताओं की ओर से जमकर बयानबाजी हुई जिसका मकसद दिलों को जोड़ना तो बिल्कुल ही नहीं था.

दिल्ली चुनाव में 3 बड़ी बातें हुईं

दिल्ली के चुनाव में तीन बड़ी बातें हुई हैं. पहला, 5 साल की इनकंबेंसी के बावजूद आम आदमी पार्टी का वोट शेयर रिकॉर्ड 54 परसेंट कायम रहा और इसे ऐतिहासिक कह सकते हैं. दूसरा, ध्रुवीकरण की वजह से कांग्रेस का वोट शेयर बिल्कुल धाराशायी हो गया और इसका फायदा बीजेपी को भी हुआ. और तीसरा, बीजेपी विरोधी वोट एकजुट पड़े जिसकी वजह से चुनाव से तीसरा फैक्टर लगभग गायब ही हो गया. मतलब कि दिल्ली में आप और बीजेपी के अलावा किसी भी पार्टी को नाम मात्र के वोट ही मिले. ये चुनाव का नया ट्रेंड रहा.

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चुनाव में ध्रुवीकरण से बीजेपी को नुकसान

दिल्ली विधानसभा के नतीजे से यह साफ पता चलता है कि बीजेपी विरोधी वोट्स एक ही जगह पड़े.

  • उदाहरण के लिए मटिया महल विधानसभा क्षेत्र को ले लीजिए. यहां से जीतने वाले आप के उम्मीदवार का वोट शेयर रिकॉर्ड तोड़ 76 परसेंट रहा. कांग्रेस, जिसे 2015 के चुनाव में करीब 26 परसेंट वोट मिले थे, का वोट शेयर महज 4 परसेंट रहा. बीजेपी के उम्मीदवार को 19 परसेंट वोट मिले.
  • दूसरे क्षेत्र ओखला के नतीजे को देखिए. यहां पिछले चुनाव में आप के उम्मीदवार को 62 परसेंट वोट्स मिले थे. इस बार पार्टी के उम्मीदवार को 66 परसेंट वोट्स मिले.
  • और सबसे मजेदार मुकाबला मुस्तफाबाद में रहा. 2015 के चुनाव में यहां 36 परसेंट वोट के साथ बीजेपी को जीत मिली थी. कांग्रेस के उम्मीदवार करीब 32 परसेंट वोट पाकर दूसरे नंबर पर थे. आप के उम्मीदवार को महज 23 परसेंट वोट मिले थे. लेकिन 2020 में कांग्रेस का वोट शेयर 3 परसेंट से भी कम रहा. आप ने छलांग लगाकर 53 परसेंट वोट हासिल किए. और बीजेपी के उम्मीदवार को 42 परसेंट वोट मिले फिर भी आप के उम्मीदवार से वो करीब 20000 वोटों से पीछे रहे.
  • मटिया महल विधानसभा क्षेत्र का वोट शेयर

    (ग्राफिक्स: क्विंट हिंदी)

इन तीनों विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम आबादी खासी है. और वोटों के ध्रुवीकरण का फायदा बीजेपी को होता रहा है. लेकिन इस बार इसके ठीक उलट हुआ. इन तीन उदाहरणों से साफ है कि बीजेपी विरोधी वोटर ने अपना सारा दांव आप पर लगाया और पार्टी का वोट शेयर रिकॉर्ड ऊंचाइयों को छू गया.

झारखंड में भी कई पार्टियां मैदान में थीं लेकिन अन्य और छोटी पार्टियों के हाथ काफी कम वोट और सीटें आईं. चुनाव आयोग के आंकड़े के हिसाब से झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा को, जिन सीटों में पार्टी ने चुनाव लड़ा उन पर, करीब 38 परसेंट वोट मिले जो बीजेपी के 34 परसेंट से कहीं ज्यादा हैं. और जिन सीटों पर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा, उन सीटों पर पार्टी का भी वोट शेयर 34 परसेंट है. बहुकोणीय मुकाबले में जीतने वाली पार्टी/गठबंधन को इस तरह के वोट शेयर का मतलब है कि वोटर किसी खास ग्रुप के पक्ष में लामबंद हो गए.

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झारखंड़ में भी बीजेपी विरोधी वोटर एकजुट हो गए

राज्य में आदिवासियों की आबादी करीब 26 परसेंट है. वहां की 28 आदिवासी बहुल विधानसभा क्षेत्रों में झारखंड मुक्ति मोर्चा की अगुवाई वाले गठबंधन को 25 सीटें मिलीं. बीजेपी इन इलाकों में महज 2 सीटें जीत पाई, जो पिछले विधानसभा चुनाव से 9 सीटें कम हैं.

सीएसडीएस के सर्वे के मुताबिक इन चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा की अगुवाई वाली गठबंधन को यादवों और मुस्लिम का भी खूब साथ मिला. इस गठबंधन को पिछले चुनाव के मुकाबले यादवों के सर्पोर्ट में 11 परसेंटेंज प्वाइंट के इजाफे से काफी फायदा हुआ.ये सारे आंकड़े यही बताते हैं कि वोटरों के ध्रुवीकरण का नुकसान बीजेपी को हुआ. ध्रुवीकरण की वजह से बीजेपी का वोट शेयर तो बढ़ा, लेकिन बीजेपी- विरोधी भी उसी तरह एकजुट हो गए जिसका नुकसान बीजेपी को हुआ.

शायद जनादेश के सही आकलन के बाद ही गृह मंत्री का वो बयान आया है. इस बयान में सबसे खास बात ये थी कि वो अब नागरिकता कानून के मुद्दे पर भी डायलॉग के लिए तैयार हैं. और ये पार्टी के रुख में बड़े बदलाव का संकेत है. ऐसे में उम्मीद बनती है कि नेताओं की बयानबाजी में थोड़ी कमी आएगी. इससे सबका भला होगा.

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