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Covid-19:सुरक्षा उपकरणों और गाइडलाइन की कमी से खतरे में डॉक्टर

अब जबकि कोरोना वायरस दुनिया पर अपना शिकंजा कसता जा रहा है, तो इसका सबसे बुरा असर स्वास्थ्य कर्मचारियों पर पड़ रहा है

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अब जबकि कोरोनावायरस दुनिया पर अपना शिकंजा कसता जा रहा है, तो, इसका सबसे बुरा असर स्वास्थ्य कर्मचारियों पर पड़ रहा है. आज दुनिया के सामने जितनी भयंकर चुनौती खड़ी है, उससे निपटने के लिए उन पेशेवर लोगों पर सबसे ज्दाया ध्यान दिए जाने की जरूरत है, जो लगातार काम कर रहे हैं, ताकि संक्रमित लोगों की मदद कर सकें.

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शनिवार, 21 मार्च को एक प्रेस कांफ्रेस में भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने इन पेशेवर स्वास्थ्य कर्मचारियों की अपनी सुरक्षा के लिए जरूरी सुरक्षात्मक उपकरणों से जुड़े मुद्दों पर बात की. क्योंकि इन उपकरणों को बनाने वालों की शिकायत है कि उनके पास इससे जुड़े मानकों की कोई गाइडलाइन ही नहीं है. न ही मौजूदा मांग को पूरा करने के लिए उनके पास ये सामान तैयार हैं. एम्स के डॉक्टरों का दावा है कि सुरक्षा के लिए जरूरी सामान की इतनी कमी है कि वो खुद से बनाए हुए मास्क और सैनिटाइजर का इस्तेमाल कर रहे हैं. जिन्हें वो विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों के अनुसार बना रहे हैं.

कोरोनावायरस के संक्रमण से स्वास्थ्य सेवाओं में लगे लोगों को बहुत ज्यादा खतरा है. क्योंकि उनके पास जांच कराने और संक्रमण के परीक्षण के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं. पर, समस्या ये है कि इन स्वास्थ्य कर्मियों के पास अपनी हिफाजत के लिए जरूरी संसाधान पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं.

निजी सुरक्षा के उपकरण यानी पीपीई, जिसमें पूरे शरीर को ढकने वाले गाउन, दस्ताने, चेहरे की सुरक्षा के उपकरण, चश्मे और एन-95 जैसे मास्क, अभी पर्याप्त मात्रा में अस्पतालों में रहने बेहद जरूरी हैं हालांकि, ये बात बिल्कुल साफ है कि भारत इनकी पर्याप्त आपूर्ति कर पाने की चुनौती से जूझ रहा है.

सुरक्षा के उपकरण खरीदने के लिए जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं:स्वास्थ्य मंत्रालय

जब ये पर्सनल प्रोटेक्टिव गियर या निजी सुरक्षा उपकरण बनाने वालों ने शिकायत की कि इसके पैमाने तय करने वाली कोई गाइडलाइन नहीं है. और, जब शनिवार को स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सविच लव अग्रवाल से प्रेस कांफ्रेंस में पीपीई की कमी के बारे में सवाल पूछे गए तो, उन्होंने कहा कि, ‘शुरुआत में मांग और आपूर्ति में फर्क था क्योंकि यहां जो निजी सुरक्षा के उपकरण बनाए जा रहे थे वो आयातित कपड़े से तैयार किए जा रहे थे. मांग और सप्लाई में इस फर्क को देखते हुए हमने कपड़ा मंत्रालय के सदस्यों और सार्वजनकि स्वास्थ्य के विशेषज्ञों की एक कमेटी बना दी है.’

‘इस कमेटी ने पीपीई बनाने के लिए तय गाइडलाइन्स में जरूरी संशोधन कर दिया है. और हमने कई घरेलू निर्माताओं को भी मान्यता दे दी है. इन घरेलू निर्माताओं से ज़रूरी उपकरण खरीदने के लिए आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं’
-लव अग्रवाल, संयुक्त सचिव, स्वास्थ्य मंत्रालय

हालांकि, अभी ये साफ नहीं है कि ये गाइडलाइन कब निजी क्षेत्र के निर्माताओं के लिए सार्वजनिक की जाएंगी. ताकि, वो इन्हीं पैमानों के आधार पर उपकरणों का उत्पादन कर सकें. और सुरक्षा उपकरणों को खरीदने की प्रक्रिया कब शुरू होगी ये भी पता नहीं है. फिलहाल तो निर्माताओं के पास ये अपडेटेड गाइडलाइन नहीं हैं.

फौरी मांग को देखते हुए, बहुत से निजी अस्पताल घरेलू निर्माताओं के भरोसे हैं कि वो उन्हें ज़रूरी सुरक्षात्मक उपकरण मुहैया कराएंगे.

इस वक्त पीपीई बनाने वाली घरेलू कंपनियां या तो विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन का पालन कर रही हैं या फिर वो कर रही हैं, जो उन्हें ठीक लग रहा है. इनमें से ज्यादातर निर्माताओं के पास तो कच्चा माल भी इतनी तादाद में नहीं है कि ये तुरंत उत्पादन बढ़ा सकें.

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निजी निर्माताओं का कहना है कि जरूरी उपकरणों की कमी की सबसे बड़ी वजह कोई गाइडलाइन न होना है-

इससे पहले, स्वास्थ्य कर्मियों के लिए सुरक्षात्मक उपकरण बनाने वाली कंपनी मेडिक्लिन हेल्थकेयर लिमिटेड की प्रबंध निदेशक, स्मिता शाह ने द क्विंट को बताया कि, ‘सरकार, स्वास्थ्य कर्मियों के लिए इन प्रोटेक्टिव गियर या पीपीई की सप्लाई के लिए केवल

एचएलएल के भरोसे है. वहीं, एचएलएल इन उपकरणों के लिए तीन अन्य छोटे ठेकेदारों के भरोसे है’

मेडिक्लिन हेल्थकेयर लिमिटेड पिछले कई वर्षों से डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों के लिए निजी सुरक्षा के उपकरण बना रही है.

स्मिता शाह ने जोर देकर कहा कि एचएलएल की इन तीन सहयोगी कंपनियों के लिए मौजूदा मांग को पूरा कर पाना संभव नहीं है. ख़ास तौर से सरकार की तरफ़ से उचित एडवाइजरी और नियम-कायदे स्पष्ट न होने से तो ये मुश्किल और बढ़ जाती है.

स्मिता शाह ने बताया कि, हालांकि इन सुरक्षात्मक उपकरणों को बनाने के लिए जरूरी सामान देश में ही तैयार होता है. लेकिन कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते कच्चा माल बनाने वाले ज़्यादातर निर्माता या तो काम नहीं कर रहे हैं, या फिर सामान के लिए ज़्यादा क़ीमत मांग रहे हैं. इसलिए सरकार को हर निजी सुरक्षा उपकरण ख़रीदने के लिए ज़्यादा दाम चुकाने पड़ेंगे.

जब हमने स्मिता शाह से पूछा कि आख़िर पीपीई किट बनाने के लिए सरकार निजी क्षेत्र के निर्माताओं को एडवाइजरी और मानक क्यों नहीं बता रही है, तो उन्होंने कहा कि, ‘ये उनके निजी फायदे के लिए है. अगर वो कोई एडवाइजरी जारी करना चाहते, तो ये काम वो काफी पहले कर चुके होते.’
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भारत में ये उपकरण बनाने वाली प्राइवेट सेक्टर की कई कंपनियां हैं. जैसे कि स्मिता शाह की अपनी कंपनी. जो निजी अस्पतालों को ये पीपीई किट मुहैया करा रही हैं. लेकिन, इनमें से ज्यादातर, इन उपकरणों को बनाने में विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन का पालन नहीं कर रही हैं. अधिकतर कंपनियों में तो इन उपकरणों को स्टेरिलाइज करने तक की प्रक्रिया नहीं है.

स्मिता शाह ने बताया कि उनकी कंपनी ने मुंबई के एक अस्पताल को पीपी किट उपलब्ध कराई हैं और कुछ पीपी किट हैदराबाद के अस्पताल को भी मुहैया कराई है. कुल मिलाकर मेडिक्लिन हेल्थकेयर प्राइवेट लिमिटेड ने अब तक निजी अस्पतालों को करीब दो हजार पीपी किट उपलब्ध कराई हैं. इन अस्पतालों ने मेडिक्लिन को किसी तरह की गाइडलाइन या विशेष नियमों के तहत ये उपकरण तैयार करने के लिए नहीं कहा. हालांकि, स्मिता शाह का कहना है कि वो ये सुनिश्चित करती हैं कि कम से कम उनकी कंपनी के कर्मचारी विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन का पालन जरूर करें.

स्वास्थ्य कर्मियों के लिए निजी सुरक्षा के उपकरणों की कमी और इन्हें बनाने के लिए किसी तय मानक के न होने से स्वास्थ्य कर्मी लगातार अपनी जान जोखिम में डाल कर काम कर रहे हैं. और इससे उन लोगों के लिए भी ख़तरा है, जो चेकअप कराने के लिए अस्पताल जा रहे हैं.
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कपड़ा मंत्रालय ने इस कमी का संज्ञान लिया है-

टाइम्स ऑफ इंडिया ने खबर दी थी कि 18 मार्च को इस बारे में कपड़ा मंत्रालय की एक मीटिंग हुई थी. इस बैठक में कपड़ा मंत्रालय ने पाया था कि स्वास्थ्य मंत्रालय को इस समय 7.25 लाख बॉडी सूट की ज़रूरत है. उन्हें 60 लाख एन-95 मास्क और एक करोड़ प्लाई मास्क चाहिए.

टाइम्स ऑफ इंडिया के हाथ लगे इस मीटिंग के नोट्स के मुताबिक, ‘इस समय ये उपकरण बनाने के लिए कच्चे माल की कमी है और इनकी सप्लाई का जो हाल है, वो तेजी से बढ़ती मांग को पूरा नहीं कर पा रहा है.’ चिंता की बात ये है कि ये आंकड़े केवल सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों और अस्पतालों के हैं. निजी क्षेत्र के अस्पतालों की जो जरूरत है, उसे तो सरकार के इन आंकड़ों में शामिल ही नहीं किया गया है.

भारत में कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों की संख्या रविवार की शाम को ही तीन सौ के पार हो गई थी. ये पिछले हफ्ते के मुकाबले बहुत तेजी से बढ़ी है.

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हमारे पास अपनी सुरक्षा के पर्याप्त संसाधन नहीं हैं:एम्स के डॉक्टर

डॉक्टर आदर्श प्रताप, दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के सर्जरी विभाग के एक सीनियर डॉक्टर हैं. उन्होंने द क्विंट को बताया कि,

‘मैंने देखा है कि कई केंद्रों और वार्ड में पीपीई उपकरण जैसे कि गाउन, मास्क, सूट और दस्ताने वगैरह तो पर्याप्त मात्रा में हैं. लेकिन, कई वार्डों में इनकी कमी है. हमने प्रशासन को इस बारे में लिखा है और उन्होंने हमें भरोसा दिलाया है कि वो हमें ये उपकरण उपलब्ध कराएंगे.’
-डॉक्टर आदर्श प्रताप

डॉक्टर आदर्श प्रताप ने आगे कहा कि, ‘पीपीई की आपूर्ति बाधित हो रही है. जो स्टॉक था वो पहले ही खत्म हो चुका है. नोवल कोरोनावायरस का प्रकोप देश में अभी शुरू ही हुआ है और अभी से हम मुश्किल हालत में है.’

प्रोग्रेसिव मेडिकोज़ ऐंड साइंटिस्ट फ़ोरम (PMSF) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर हरजीत सिंह भट्टी, एम्स में भी डॉक्टर रह चुके हैं. डॉक्टर भट्टी कहते हैं कि, ‘करीब सात हजार नर्सें और अन्य स्वास्थ्य कर्मी जैसे के लैब टेक्निशियन और हेल्पर हैं जो स्ट्रेचर वगैरह लाने ले जाने का काम करते हैं. वो भी इंसान हैं. उन्हें भी ऐसे सुरक्षा उपकरणों की ज़रूरत है.’

‘मरीजों के संपर्क में आने वाले डॉक्टर पहले इंसान होते हैं. और हमें सुरक्षित रहने के लिए सुरक्षा के उपकरणों की जरूरत होती है. कुछ दिन पहले लखनऊ में एक डॉक्टर कोरोनावायरस से संक्रमित पाया गया. और अब उस डॉक्टर के साथ उसकी पूरी टीम को क्वारंटाइन किया गया है.’

(इनपुट : टाइम्स ऑफ इंडिया)

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