ADVERTISEMENTREMOVE AD

नेपाली जी का मंत्र: ‘हिंदी है भारत की बोली, तो अपने आप पनपने दो’

दुनियाभर में भारत की धमक ज्‍यों-ज्‍यों बढ़ती चली जाएगी, त्‍यों-त्‍यों हिंदी भी लगातार ग्‍लोबल होती जाएगी.

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

हिंदी दिवस के मौके पर हिंदीप्रेमियों में अक्‍सर दुविधा जैसी स्थिति देखी जाती है. दुविधा इस बात को लेकर कि वे दुनिया के अन्‍य देशों में हिंदी की लगातार दमदार मौजूदगी का जश्‍न मनाएं या अपने ही देश में कई स्‍तरों पर उपेक्षा झेलने का मातम मनाएं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इस दुविधा की स्थिति से निकलने में एक सूत्र मददगार साबित हो सकता है.

दरअसल, भाषा को ‘बहता नीर’ माना गया है. इसी छोटे-से सूत्र में सार छिपा है. पानी तल के हिसाब से अपना रास्‍ता खुद ढूंढ लेता है. भाषा भी सांस्‍कृतिक, सामाजिक, व्‍यावसायिक आदि कई आधारों पर अपना बहाव खुद बना लेती है.

दुनिया के ताकतवर देशों के बीच हर मोर्चे पर भारत की धमक ज्‍यों-ज्‍यों बढ़ती चली जाएगी, त्‍यों-त्‍यों हिंदी भी लगातार ग्‍लोबल होती जाएगी. ‘बहता नीर’ वाले फॉर्मूले के आधार पर इसमें संदेह की गुंजाइश न के बराबर है.

जहां तक अपने घर की बात है, देश के सियासतदान हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए अगर कोई नया प्‍लान न भी बनाएं, केवल इसके बहाव में ‘बांध’ न खड़ी करें, तो भी इसका भविष्‍य उज्‍ज्‍वल ही मालूम पड़ता है.

महाकवि गोपाल सिंह ‘नेपाली’ की कविता ‘हिंदी है भारत की बोली’ आज भी इस भाषा से बेपनाह मोहब्‍बत करने वालों में जोश भर देती है.

अप्रैल, 1955 में लिखी हुई इस कविता पर नजर डालिए, यह आज भी उतनी ही प्रासंगिक और तरोताजा नजर आती है, जितनी करीब 64 साल पहले.



दुनियाभर में भारत की धमक ज्‍यों-ज्‍यों बढ़ती चली जाएगी, त्‍यों-त्‍यों हिंदी भी लगातार ग्‍लोबल होती जाएगी.
फोटो साभार: गोपाल सिंह ‘नेपाली‘ : प्रतिनिध‍ि कविताएं  पुस्‍तक का कवर

हिंदी है भारत की बोली

दो वर्तमान का सत्‍य सरल,
सुंदर भविष्‍य के सपने दो
हिंदी है भारत की बोली
तो अपने आप पनपने दो

यह दुखड़ों का जंजाल नहीं,
लाखों मुखड़ों की भाषा है
थी अमर शहीदों की आशा,
अब जिंदों की अभिलाषा है

मेवा है इसकी सेवा में,
नयनों को कभी न झंपने दो
हिंदी है भारत की बोली
तो अपने आप पनपने दो

क्‍यों काट रहे पर पंछी के,
पहुंची न अभी यह गांवों तक
क्‍यों रखते हो सीमित इसको
तुम सदियों से प्रस्‍तावों तक

औरों की भिक्षा से पहले,
तुम इसे सहारे अपने दो
हिंदी है भारत की बोली
तो अपने आप पनपने दो

श्रृंगार न होगा भाषण से
सत्‍कार न होगा शासन से
यह सरस्‍वती है जनता की
पूजो, उतरो सिंहासन से

तुझे इसे शांति में खिलने दो
संघर्ष-काल में तपने दो
हिंदी है भारत की बोली
तो अपने आप पनपने दो

जो युग-युग में रह गए अड़े
मत उन्‍हीं अक्षरों को काटो
यह जंगली झाड़ न, भाषा है,
मत हाथ पांव इसके छांटो

अपनी झोली से कुछ न लुटे
औरों का इसमें खपने दो
हिंदी है भारत की बोली
तो आपने आप पनपने दो

इसमें मस्‍ती पंजाबी की,
गुजराती की है कथा मधुर
रसधार देववाणी की है,
मंजुल बंगला की व्‍यथा मधुर

साहित्‍य फलेगा फूलेगा
पहले पीड़ा से कंपने दो
हिंदी है भारत की बोली
तो आपने आप पनपने दो

नादान नहीं थे हरिश्‍चंद्र,
मतिराम नहीं थे बुद्ध‍िहीन
जो कलम चला कर हिंदी में
रचना करते थे नित नवीन

इस भाषा में हर ‘मीरा’ को
मोहन की माल जपने दो
हिंदी है भारत की बोली
तो अपने आप पनपने दो

प्रतिभा हो तो कुछ सृष्‍ट‍ि करो
सदियों की बनी बिगाड़ो मत
कवि सूर बिहारी तुलसी का
यह बिरुवा नरम उखाड़ो मत

भंडार भरो, जनमन की
हरहलचल पुस्‍तक में छपने
दोहिंदी है भारत की बोली
तो अपने आप पनपने दो

मृदु भावों से हो हृदय भरा
तो गीत कलम से फूटेगा
जिसका घर सूना-सूना हो
वह अक्षर पर ही टूटेगा

अधिकार न छीनो मानस का
वाणी के लिए कलपने दो
हिंदी है भारत की बोली
तो अपने आप पनपने दो

बढ़ने दो इसे सदा आगे
हिंदी जनमत की गंगा है
यह माध्‍यम उस स्‍वाधीन देश का
जिसकी ध्‍वजा तिरंगा है

हों कान पवित्र इसी सुर में
इसमें ही हृदय तड़पने
दोहिंदी है भारत की बोली
तो अपने आप पनपने दो.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

0
Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×