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'कब और कैसे बन जाते हैं हिंदू? जनतंत्र की ताकत क्या- क्या न करा दे'

थोड़ा अतीत में जाकर देखें कि दलितों और पिछड़ों को किसने हिंदू होने से रोका.

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कब और कैसे हिंदू (Hindu) बन जाते हैं और कब नही. इतना अंतर्विरोध शायद संसार में कहीं और होगा! इंसान एक मिनट के लिए हिंदू बन जाता और पल में ही जाति की चारदीवारी में फिर कैद कर दिया जाता है. जनतंत्र की ताकत क्या- क्या न करा दे , न चाहते हुए गले लगाना पड़ता है. इसके पूर्व जन्म से स्थान निश्चित हुआ करता तो कोई परेशानी नहीं होती थी. जब दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और महिलाओं को अधिकार देने बात आती है, तब हिंदू नहीं होते और वोट लेने का समय सबको हिंदू बना दिया जाता है. कितना झूठ और कृत्रिम व्यवस्था का निर्माण हो जाता है और जैसे ही भागेदारी और बराबरी की बात आती, पल में बिखर जाता है.

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राहुल गांधी की बात पर सन्नाटा

6 अप्रैल 23 को राहुल गांधी ने कोलार से बोला कि "जितनी आबादी उतना हक” तब जो सबको हिंदू बनाने की बात करते थे, उनका मुंह सिल गया. विरोध कर नहीं सकते थे, क्योंकि वोट नहीं मिलेगा. सबको भागीदारी मिले तो कौन सा मुसलमान या ईसाई को लाभ मिल रहा है.

फायदा तो हिंदू का होना हैं. यहीं पर चालाकी और धूर्तता पकड़ में आ जाती है. वास्तव में इनकी हिंदू धर्म में आस्था होती तो जो बात राहुल गांधी ने कहा, बीजेपी के नेताओं को करनी चाहिए थी.

बीजेपी की परीक्षा भी इसी में थी. कोलार से राहुल गांधी जी ने बोला था कि क्या चोर मोदी होते हैं? बीजेपी नेता, जो पिछड़ा वर्ग, से नहीं थे मुकदमा कर दिया कि पिछड़ों का अपमान किया गया. राहुल गांधी को सजा भी हो गई. जब उसी जगह से जितनी आबादी उतना हक की बात करी तो सन्नाटा छा गया. अगर तनिक सा भी पिछड़ों को हिंदू मानते तो इन्हें न केवल खुश होना चाहिए था, बल्कि आगे बढ़कर स्वागत करना था. यही तो मौका था पिछड़ों को हिंदू बनाने का.

थोड़ा अतीत में जाकर देखें कि दलितों और पिछड़ों को किसने हिंदू होने से रोका. हिंदू अगर है तो जन्म से लेकर मरने तक होना चाहिए वरना कुछ घंटों और दिनों के लिए कोई हो सकता है.

जब-जब पिछड़ों और दलितों के अधिकार इनको मिले क्या कोई मुसलमान या ईसाई ने विरोध किया? मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू करने के लिए वी पी सिंह की सरकार ने आदेश जारी किया, देश में कोहराम मचा दिया. ये कौन लोग थे?

बीजेपी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में कमंडल यात्रा पूरे देश में निकाला. कथित पिछड़े वर्ग से नरेंद्र मोदी सारथी बने. त्रासदी देखो कि जिस पिछड़ों के आरक्षण का विरोध किया उन्हें हिंदू बनाकर वोट लिया.

पिछड़ों में चेतना के अभाव का खूब लाभ उठाया और अभी भी कर रहे हैं. तर्क दिया कि अगर पिछड़ों को आगे लाना है तो सीधे नौकरी में मौका नही देना चाहिए, बल्कि शिक्षा में दें ताकि योग्य बने.

2006 में जब मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह ने पिछड़ों को मेडिकल और इंजीनियरिंग में आरक्षण दिया तो फिर विरोध किया, लेकिन परोक्ष रूप से ज्यादा. दिल्ली के आल इंडिया आयुर्विज्ञान के प्रांगण को आरक्षण विरोध में अखाड़ा बना दिया. पूरी मीडिया ने ऐसा डेरा डाला कि मानो कि धरती फट जाएगी और जैसे कि प्रलय का समय आ गया हो.

सवर्ण इंजीनियर और डॉक्टर अपनी डिग्री जलाने लगे और आत्म हत्या की धमकी दे डाले. बड़े मुश्किल से धरना तब उठा जब मनमोहन सिंह की सरकार ने एक नया फार्मूला निकाला कि आरक्षण तो पिछड़ों को दिया जाएगा, लेकिन मौजूदा वक्त सीटें प्रभावित नही होंगी. सवर्ण समाज को हिंदू धर्म में आस्था होती तो स्वागत करते! पिछड़े भी महसूस करते कि वो भी हिंदू हैं?

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छत्तीसगढ़ और झारखंड में आरक्षण की सीमा वहां की सरकारों ने बढ़ा दिया, लेकिन बीजेपी के राज्यपाल फाइल रोक कर बैठे हैं. छत्तीसगढ़ की बघेल सरकार ने 76% का आरक्षण देने का फैसला किया है लेकिन राज्यपाल ने रोक दिया.

अब सवाल बनता है बीजेपी से पूछने का कि क्या ये लाभ मुसलमान या ईसाई लेने जा रहे थे?

जाति जनगणना का समर्थन करें तो पता लगेगा कि सभी को हिंदू मानते हैं. बजरंग दल प्रतिबंध लगाने की बात कर्नाटक में हुई तो मौके का फायदा उठाकर सबको हिंदू बनाने में लग गए. हालांकि राज्य सरकार प्रतिबंध लगा भी नहीं सकती और यह भी कहा अगर जो नफरत फैलाता है या तोड़ फोड़ करता है, उस पर पाबंदी लगेगी चाहे वाई पीएफआई हो या कोई और.

बजरंग दल की स्थापना करने वाले को गायब कर दिया गया

मिला मौका प्रधानमंत्री से लेकर सब कूद गए दलित और पिछड़े समाज को हिंदू बनाने में. राहुल गांधी ने जब भागेदारी देने की बात कही तो कहां गायब हो गये थे? बजरंग दल की स्थापना पिछड़े वर्ग से आने वाले विनय कटियार की थी, कहां गायब हो गये. बुनियाद तो उन लोगों ने डाली लेकिन फायदा लेने की बात आई तो गायब कर दिया. बाहर से लोगों को लाकर सांसद और मंत्री बना दिए, क्या जिन पिछड़ों ने खून पसीना बुरे समय में बहाया था आज वो कहां हैं? मतलब निकल गया पहचानते नहीं. रामजन्म भूमि ट्रस्ट में विनय कटियार और उमा भारती जैसों को प्रबंधन समिति में सदस्य बना सकते थे. माना कि पूजा पाठ कराने का अधिकार ब्राह्मण का है, लेकिन प्रबंधन में तो लिया जा सकता था. जब भागीदारी देने की बात आई तो हिंदू न रहे.

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पहलवानों के केस में बजरंग दल कहां है?

बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने पर बड़ा हंगामा खड़ा हो हुआ है. जंतर-मंतर पर बैठे पहलवानों को न्याय दिलाने के समय बजरंग दल कहा हैं? लाखों किसान हक के लिए आंदोलन किए, करोड़ों युवा बेरोजगार हैं, महंगाई असमान छू रही हैं, बैंक पूंजीपतियों ने लूटा, लाखों लोग कोरोना में तड़पकर मरे, रसोई गैस की बढ़ी कीमत, डीजल-पेट्रोल के दाम बढ़े, दलित-आदिवासी के साथ अन्याय आदि क्या बजरंग दल कुछ बोला?

क्या ये हिंदुओं की समस्या नही है? बीजेपी को वोट दिलाने के लिए बजरंग दल मैदान में होता है. हिन्दू लड़के और लड़कियों को मारते हैं और होटल-रेस्टोरेंट में तोड़-फोड़ करते हैं, तो किसको क्षति पहुंचाते हैं? क्या वो हिंदू नही हैं?

चेतना के अभाव में दलितों और पिछड़ों को डराकर भ्रमित करते हैं. पूर्व जन्म के किए गए पाप का डर दिखाकर भेड़ की तरह हांकते रहते हैं, लेकिन अब लोग जग गये हैं और पहले की तुलना में बड़ा फर्क पड़ गया है. भूत और भविष्य का डर और लोभ दिखाकर मूर्ख बनाया जाता है. दलित और पिछड़े वर्तमान की चिंता छोड़कर भविष्य संभालने में लग जाते हैं. सत्ता में भागीदारी और सम्मान से भी बड़ा स्वर्ग का सपना दिखाकर वोट लेने का कारोबार बहुत दिनों तक नही चलने वाला है.

जो लोग बजरंग बली और बजरंग दल को एक समान रूप से पेश कर रहे हैं, भला वो किसको बख्शने वाले हैं? आस्था के नाम पर वोट मांगना क्या दर्शाता है कि ये खुद स्वर्ग में नहीं जाना चाहते हैं और दलित पिछाड़ों को भेजना चाहते हैं.

खुद वोट लेकर राज करेंगे और पिछड़ों को भड़काएंगे कि बजरंग बली पर ताला लगाना चाहते हैं. मान लेते हैं कि कांग्रेस ने आस्था पर चोट किया हालांकि ऐसा नहीं है, तो इनको क्यों चिंता है? जो जैसा करेगा वैसा भरेगा? बजरंगबली खुद खबर लेंगे लोगों की. मोदी जी बजरंग बली के नाम से कर्नाटक में वोट मांगा, तो क्या इनकी आस्था है? ये बजरंग बली का उपयोग सत्ता के लिए करें नाम दें आस्था का. पिछड़ों और दलितों को समझना होगा इस खेल को.

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