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एक घातक वायरस और एक ट्वीट से फिर लौटी दो गुटों वाली दुनिया

China, Russia और उसके छोटे सहयोगी अब एक तरफ हैं तो दूसरी तरफ US के नेतृत्व में 'लोकतंत्र का क्वॉड'

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एक घातक वायरस और एक ट्वीट से फिर लौटी दो गुटों वाली दुनिया
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ब्राजील, रूस, भारत और चीन (China) का संगठन (BRICs)- 21वीं सदी के पहले दशक की सबसे चर्चित भू-राजनीतिक घटना थी. इस टर्म को गोल्डमैन सैच्स के अर्थशास्त्री जिम ओ'नील द्वारा 9/11 हमले के बाद के अराजक पृष्ठभूमि में गढ़ा गया था. उस समय व्यापक तौर पर यह माना जाता था कि 2001 में अलकायदा द्वारा न्यूयॉर्क के ट्विन टावर पर हमले और उसके 7 साल,4 दिन बाद लेहमैन कोलैप्स की घटना ने अमेरिका (America) को 'किंग ऑफ वर्ल्ड' के तख्त से हटा दिया था.

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एकध्रुवीय दुनिया (Unipolar World) की जगह बहुध्रुवीय दुनिया (Multipolar World) ने दस्तक दी और BRICs की चौकड़ी में 2010 में साउथ अफ्रीका के शामिल हो जाने से कैपिटल S वाले ब्रिक्स (BRICS) का उभार हुआ. अब अमेरिका मात्र 'बराबरों में प्रथम' था.

जब दुनिया का हुआ 'बहु-ध्रुवीकरण'

वास्तव में 'अन्य देशों के उभार' को और बढ़ावा तब मिला जब 3 सबसे बड़े उभरते बाजारों -मेक्सिको, इंडोनेशिया और तुर्की ने BRICS को और मजबूती दी. इस तरह इन 7 'नए इकोनॉमिक पावर' की टोली ने उन्नत इकोनॉमी वाले परंपरागत G7 को PPP (परचेजिंग पावर पैरिटी) में मापी जाने वाली GDP के संदर्भ में पीछे छोड़ दिया.

इस 'दुनिया के बहु-ध्रुवीकरण' ने 2016 के आसपास गति पकड़ी जब चीनी और भारतीय अर्थव्यवस्था रिकवर करके तेजी से बढ़ने लगी जबकि अमेरिका और यूरोप धीमी गति से चल रहे थे. तब चीन और भारत के बीच बहुत सौहार्द था जिसकी झलक अहमदाबाद और वुहान के मिलन में दिख रही थी( हां तब वुहान कोविड-19 के ओरिजिन प्वाइंट के रूप में बदनाम नहीं था).

तब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक आश्चर्यजनक जीत दर्ज की और व्हाइट हाउस में उनका विघटनकारी प्रवेश हुआ. उन्होंने अमेरिका को देश के अंदर सीमित रखा,या तो उन्होंने अमेरिका को वैश्विक गठबंधन के उसके नेतृत्व से पीछे हटा लिया या उसे कमजोर कर दिया. जलवायु परिवर्तन से लेकर ईरान या NATO तक, अमेरिका ने अप्रत्याशित वापसी का संकेत दिया.

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फिर चीन का आगे बढ़ते जाना 

उसी समय राष्ट्रपति शी जिनपिंग चीन में विशाल शक्तियों और महत्वकांक्षाओं से लैस हो गए. उन्होंने सैन्य रूप से फिर से मजबूत हुए रूस के साथ बड़े स्तर पर गठबंधन बनाया. तीसरी दुनिया के दर्जनों अर्थव्यवस्थाओं में घुसने के लिए चीन की विशाल आर्थिक ताकत का इस्तेमाल किया. दुर्भाग्य से लगभग उसी समय भारत की अर्थव्यवस्था में तेजी से गिरावट शुरू हुई जिसमें उसकी GDP ग्रोथ 8%+ से गिरकर 4% हो गई.अकेले सरपट दौड़ते हुए चीन जल्द ही विश्व राजनीति में एक नए ध्रुव के रूप में उभर रहा था.

और फिर कोविड-19 महामारी ने दस्तक दी, जिससे दुनिया भर में तबाही मच गई. चीन को छोड़कर लगभग हरेक देश ने अपने GDP में दोहरे अंक का संकुचन देखा. इस बीच चीन ने वायरस को नियंत्रित किया और 6% की दर से बढ़ने में कामयाब रहा. कुछ ही समय में बहुध्रुवीय दुनिया की अवधारणा मरणासन्न हो गई. इसका उद्घोष जुलाई 2021 के पहले सप्ताह में सुनाई पड़ा.
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बहुध्रुवीय विश्व का अंत

1 जुलाई 2021 को राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कूटनीतिक तहजीब को ऐसे छोड़ दिया जैसे वो सर्व-विजेता,अपराजेय बॉलीवुड हीरो हों, जो अकेले ही 20 गुंडों के गैंग को मार देता है और चिल्लाता है "ढिशूम, एक एक को चुन कर मारूंगा, ढिशूम". और स्पष्ट रुप में बताएं तो शी जिनपिंग ने कहा कि जो कोई भी चीन को धमकाने की कोशिश करेगा वह "1.4 अरब चीनी लोगों के लोहे की महान दीवार के सामने टूटे हुए सिर और रक्तपात का सामना करेगा". क्रूर विडंबना है कि कुछ ही महीने पहले इस तस्वीर को बेरहमी से प्रदर्शित किया गया था, जब डोकलाम में दर्जनों चीनी और भारतीय सैनिकों की झड़प हुई थी.

लेकिन 1 जुलाई को शी जिनपिंग ने उस NATO को असमान रूप से आक्रामक जवाब दिया जिसका मानना है कि "चीन की घोषित महत्वकांक्षाओं और मुखर व्यवहार (जो) एक नियम आधारित इंटरनेशनल आर्डर के लिए व्यवस्थित चुनौतियां पेश करते हैं". शी जिनपिंग ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 100 वीं वर्षगांठ का प्रयोग चीनी ध्रुव का दावा मजबूत करने और उसे आगे बढ़ाने के लिए किया.भारत ने 100 साल के इस जश्न पर औपचारिक अभिवादन की जगह एक पूर्ण खामोशी के साथ जवाब दिया.

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3 दिन बाद 4 जुलाई को प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका के 245 वें स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रपति बाइडेन को एक गर्मजोशी भरा ट्वीट किया "एक जीवंत लोकतंत्र के रूप में भारत और अमेरिका स्वतंत्रता और स्वछंदता के मूल्यों को साझा करते हैं. हमारी रणनीतिक साझेदारी का वास्तव में वैश्विक महत्व है".

तटस्थता के नारे के बावजूद भारत प्रभावी रूप से एक गुट का हिस्सा बना 

एक ही झटके में बहु-ध्रुवीय दुनिया खत्म हो गई.NAM( गुटनिरपेक्ष आंदोलन, जिसे भारत में शीत युद्ध के दौर में 'तीसरे ध्रुव' के रूप में नेतृत्व करने की कोशिश की थी) की तरह ही BRICS एक शोपीस बन गया. अब एक तरफ चीन और रूस और उसके छोटे सहयोगी हैं तो दूसरी तरफ अमेरिका के नेतृत्व में 'लोकतंत्र का क्वॉड'. तटस्थता के घोषित नारे के बावजूद भारत अब प्रभावी रूप से एक गुट का हिस्सा बन गया है.

2001 में कुछ हाईजैक हवाई जहाजों द्वारा जिसे खंडित किया गया था, उसे 2021 में एक घातक वायरस द्वारा पुनर्जीवित किया गया है. इस नए द्वि-ध्रुवीय दुनिया में आपका स्वागत है.

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